Tuesday, December 21, 2010
शाश्वत वाणी उपवन : एक साहित्यिक उद्यान
बुंदेलखंड मे खाद- बीज की किल्लत
Monday, December 13, 2010
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पूर्णतया गलत , तो फिर क्या
Saturday, October 23, 2010
खुद अपने को बचाना : एक घातक कदम
सामान्यतया लोग असफलताओं, दुर्घटनाओं या गलतियों के लिए स्वयं को कभी दोषी नहीं मानते और अपने प्रति पक्षपाती रवैये के कारण अपने को साफ साफ बचा जाते हैं | प्रत्येक दुर्घटना व गलती होने की स्थिति मे दूसरों पर दोष मढ़ने की प्रवृति प्रायः सबमे दिखाई पड़ती है | यह निःसंदेह अत्यधिक घातक और अस्वस्थ स्थिति व प्रक्रिया होती है और इससे किसी का भला होने की बिलकुल सम्भावना नहीं होती |
वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति का अपने ऊपर ही पूरा- वश होता है और वह अपने बारे मे ही पूरी पूरी जिम्मेदारी ले सकता है | शराब पीकर खतरनाक ढंग से वाहन चलाता हुआ व्यक्ति यदि आप से टकरा जाता है अथवा अचानक आई खराबी के कारण वह अपने वाहन पर नियंत्रण न रख सकने के कारण दर्घटना कर देता है, तो ऐसी स्थिति मे हम सभी सामान्यतया उक्त वाहन चालक को दोषी मान बैठते हैं और अपने को इस सम्बन्ध मे दायित्व बोध से पूरा- पूरा मुक्त साबित करते अथवा समझ लेते हैं | ऐसी सोंच ही दुर्घटनात्मक और अत्यधिक घातक होती है |
वस्तुतः प्रत्येक दुर्घटना के सन्दर्भ मे हर हाल मे व्यक्ति को दूसरों पर दोषारोपण दोषी समझने के बजाय स्वयं अपने आप को ही दोषी व जिम्मेदार मानना चाहिए कि हमने इस सम्भावना को ध्यान मे रखकर वाहन क्यों नहीं चलाया कि दूसरा वाहन चालक शराब पीकर वाहन चला रहा हो सकता है और उसके वाहन मे अचानक आई तकनीकी खराबी की सम्भावना के दृष्टिगत रखते हुए हमें स्वयं सतर्क रहना चाहिए था | अर्थात दूसरे वाहन चालकों की गलतियों के लिए भी स्वयं को ही जिम्मेदार समझना चाहिए | ऐसी भावना और मनोवृति हमें हमेशा दुर्घटनाओं से बचाती रहेगी |
ऐसी परिस्थियों मे हमें सोचना चाहिए कि हमारा उद्देश्य वाहन चलते समय दुर्घटना से बचना है और यह तभी संभव है, जब हम प्रत्येक दुर्घटनात्मक परिस्थियों के लिए खुद अपने को ही जिम्मेदार माने और दूसरों पर दोषारोपण करने की प्रवृति छोड़ें | अन्यथा हम दुर्घटनाओं से नहीं बच सकते | अर्थात वाहन चलाते वक्त विचार करना चाहिए कि हमने क्यों नहीं सोंचा कि अन्य वाहन चालक ने शराब पी रखी हो या उसके वाहन मे अचानक ब्रेक फेल होने जैसी तकनीकी खराबी भी आ गयी हो | इन सभी सम्भावनाओं का पूर्वानुमान करके वाहन चलाने की जिम्मेदारी खुद आपकी अपनी ही है , तभी आप दुर्घटनाओं से बच सकेगें | अच्छा चालक वही है जो प्रत्येक आसन्न या घटित दुर्घटना के लिए दूसरे को दोषी ठहराने के बजाय अपने को ही जिम्मेदार समझता है, क्योंकि दूसरों की गलती का खामियाजा तो आपको ही भुगतना होता है | ऐसी सोंच वाला व्यक्ति हमेशा दुर्घटना से बचा रहता है और जीवन मे कभी भी दुर्घटना का शिकार नहीं होता |
दुर्घटना के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों मे भी यह मनोवृति काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है और हम जीवन की अनेकानेक दुर्घटनाओं से बच सकते हैं | ऐसी परिस्थियों मे व्यक्ति दूसरों को उत्तरदायी मानने के बजाय सबसे पहले यदि खुद अपने बारे मे सोंचने लगे कि वह प्रकरण मे कहीं वह स्वयं तो जिम्मेदार नहीं है अथवा वह स्वयं किस अंश तक जिम्मेदार है ? इसके बाद दूसरों की जिम्मेदारी के सम्बन्ध मे विचार करना चाहिए | इस मनोवृति से जीवन की तमाम समस्याएं खेल खेल मे सुलझ जावेंगी और तनाव मुक्त जीवन का लक्ष्य भी प्राप्त करना संभव हो सकेगा |
Saturday, October 16, 2010
राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता तथा इससे मिलती सीख व अनुभव
राष्ट्रमंडल खेलो की सफलता व गौरवपूर्ण परिसमाप्ति के तुरंत बाद इसका श्रेय लेने की राजनेताओं मे होड़ मची हुई है | राजनेता भले ही अपने मुह मिया मिट्ठू बनकर खुद अपनी पीठ थपथपा लें , देश की जनता किसी राजनेता को इसका श्रेय देने से रही , क्योकि लोगो को बखूबी पता है कि राजनेताओं ने खेलों तथा खेल आयोजनों के सम्बन्ध मे न तो समय से निर्णय लिए और इसकी तैयारियों मे काफी घपलेबाजियां की गयी थी, भ्रष्टाचार का नंगा नाच हुआ और पूरे देश की साख को बट्टा लगाया | इन नेताओं और व्यवस्थाकारों ने खिलाडियों को अभ्यास के लिए आवश्यक साजो समान तक समय से नहीं मुहैया कराया , उदाहरणार्थ निशानेबाजों को अभ्यास के लिए समय से कारतूस तक नहीं उपलब्ध कराये गए थे | ऐसी स्थिति मे राजनेताओं को श्रेय देने का प्रश्न नहीं उठता | आज की जनता बहुत होशियार हो गयी है और देश की जनता को यह भली भांति पता है कि इस सम्बन्ध मे किसी भी प्रकार का श्रेय राजनेताओं , खेल प्रशासन , खिलाडियों , प्रशिक्षकों तथा कोच मे से किसको मिलना चाहिए |
इस गौरवशाली सफलता मे सबसे पहला श्रेय खिलाडियों को मिलना चाहिए, जिन्होंने जी तोड़ मेहनत करके इतने अधिक पदक जीते | यदि खिलाडियों को समय से प्रचुर सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती, तो स्वर्ण पदकों तथा जीते गए पदकों की कुल संख्या काफी अधिक होती | इस खेल महाकुम्भ के आयोजन का सर्बाधिक लाभ यही रहा है कि देश मे खेल पुनर्जागरण के अभिनव युग का सूत्रपात हो चुका है और अब खेल यात्रा विश्व विजय के बाद ही थमेगी , जिसका प्रमाण एक माह बाद ही आयोजित होने वाले एशियन खेलों से मिलना शुरू हो जावेगा और अगले ओलम्पिक तथा राष्ट्रकुल खेलों मे व्यापक प्रभाव परिलक्षित होगा, ऐसी उम्मीद बनी है |
खेल के क्षेत्र का सबसे बड़ा कार्य यही है कि प्रारंभिक स्तर पर खेल प्रतिभाओं की पहचान करने की धरातल स्तर की व्यावहारिक योजना बनायीं जाय और इसका पूरी ईमानदारी से कार्यान्वित किया जाय | राजनीति को कमसे काम इस स्तर पर पूर्णतया अलग थलग रखा जाय , क्योंकि राजनीति और भाई भतीजाबाद वस्तुतः खेल को बिगाड़ते हैं और प्रारंभिक स्तर पर हुई गड़बड़ी को आगे किसी तरह ठीक नहीं किया जा सकता | प्रारंभिक चयन के बाद उनका सर्बश्रेष्ट प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता तथा कौशल का सुधार करना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडियों के साथ खेलने का अवसर दिलाना काफी लाभदायक हो सकता है | उपयुक्त स्तरों पर तत्क्रम पर समीक्षा करना भी आवश्यक होगा | राज्यों को इस सम्बन्ध मे सर्बाधिक दिलचस्पी लेने का बहुत अच्छा लाभ मिलेगा , जैसा कि हरयाणा सरकार ने करके अनुकरणीय उदाहरण अन्य राज्यों के समक्ष रखा है , जिसके चलते छोटे से हरयाणा राज्य के खिलाडियों ने हर राज्य से अधिक पदक जीते | इसके अलावा खेल को कैरियर के रूप अपनाने का अवसर उपलब्ध कराने के आशय से तकनीकी संस्थानों की तर्ज पर बड़े पैमाने पर खेल संस्थान खोलने की भी जरुरत होगी | तत्क्रम मे सरकारी नीति निर्धारण की भी आवश्यकता होगी |
Friday, October 8, 2010
समाज एवं सामाजिक प्रगति
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
गति और प्रगति
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
भारत की सुरक्षा और अस्मिता से जुडी विशिष्ट पहचान संख्या योजना
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
वृद्ध भ्रान्ति : अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस पर विशेष
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Thursday, September 30, 2010
चिकित्सा का अधिकार बनना चाहिए मौलिक अधिकार
Tuesday, September 28, 2010
रचनाकारों , रचनाधर्मिता तथा हिंदी को नुकसान पहुचाते प्रकाशक
जयपुर का बोधि प्रकाशन इस दिशा मे अत्यधिक सराहनीय पहल कर रहा है | यह प्रकाशन ८० से १२० पृष्ट की कहानी और कविता की पुस्तक का मूल्य मात्र दस रुपया रखा जाता है | इसी प्रकार अन्य प्रकाशन भी हो सकते हैं | इसके बिपरीत अन्य प्रकाशकों द्वारा इस आकार की पुस्तक का मूल्य सामान्यतया १५० व २०० रुपया रखा जाता है | पुस्तकों के मूल्य मे इतना अधिक अंतर होने की क्या वजह हो सकती है ? बोधि प्रकाशन का यह प्रयास रचनाकारों , साहित्य व हिंदी के लिए बेहद हितकारी तथा पुस्तकों को महगा करके प्रकाशित करने वाला प्रकाशकों का कृत्य रचना , रचनाकार तथा हिंदी को बेहद नुकसान पहुचाने वाला होता है | यदि देश के सभी प्रकाशक छपाई की लागत के अनुसार पुस्तक का मूल्य रखने लगे तो साहित्य की गंगा फिर से बह सकती है | सरकार को भी बोधि प्रकाशन सरीखे सस्ता प्रकाशन करने वालों को प्रोत्साहन देने पर भी विचार करना चाहिए |
Tuesday, September 21, 2010
अयोध्या मे " राम दर्शन " मंदिर का निर्माण
खैर यहाँ मै कुछ और कहने जा रहा हूँ जो प्रासंगिक तो है ही उपयोगी भी है | भगवान राम मर्यादा पुरुषोतम तो थे ही , वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र मे आदर्श स्थापित करने वाले एक व्यवस्थाकार भी थे | भगवान राम ने आदर्श पुत्र , आदर्श भाई , आदर्श शिष्य , आदर्श पति , आदर्श शासक , आदर्श मित्र , आदर्श शत्रु के प्रतिमान स्थापित किये थे और व्यावहारिक जीवन मे इन समस्त आदर्शों को चरितार्थ किये थे | ऐसे सैकड़ों प्रसंगों से राम चरित मानस भरा पड़ा है | भगवान राम के जीवन के इन प्रसंगों , जिनसे राम के आदर्श , राम की शिक्षाएं तथा राम के दर्शन की जानकारी लोगों को हो सके , ऐसा प्रयास करने की आवश्यकता है | ताकि अयोध्या , जहाँ कोई युद्ध नहीं होता , मे आने वाले लोगों को राम के दर्शन हो सके और उन्हें राम के दर्शन की वास्तविक जानकारी मिल सके | अयोध्या मे ऐसा राम दर्शन मंदिर निर्मित कराये जाने की अत्यधिक उपयोगिता और आवश्यकता है | यह उपयोगितावाद पर आधारित अवधारणा है और इससे किसी का विरोध हो ही नहीं सकता |
मै चित्रकूट मे जिलाधिकारी था और संयोगवश नानाजी देशमुख के साथ बैठा था | उसी समय कुछ लोग नाना जी से मिलने आ गए | उन लोगो ने नाना जी से पूछा कि अयोध्या मे राम मंदिर कब बनेगा ? नानाजी ने उनसे पूंछा कि तुम सब चित्रकूट भ्रमण कर चुके हो , तो क्या तुम्हे राम के दर्शन हुए ? मै चाहता हूँ कि चित्रकूट मे आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को राम के दर्शन हों और राम के दर्शन की जानकारी हो सके | अतयव मै ऐसा मंदिर बनवाने जा रहा हूँ , जिसका नाम होगा "राम दर्शन " | राम दर्शन के शिल्पकार थे सुहाश बहुलकर और वास्तुकार थे पुनीत सुहैल | मै तो केवल राम दर्शन के निर्माण का प्रत्यक्षदर्शी मात्र था कि नाना जी कैसे रामायण के महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद प्रसंगों को चयनित करते थे ? उन्होंने अपने कुशल निर्देशन मे विभिन्न पगोडा मंदिरों मे रिलीफ , पेंटिंग और डायोरमा के माध्यम से राम दर्शन को निर्मित कराया था | नाना जी की सोच बहुत व्यापक थी और उसी सोच से प्रभावित होकर मैं इस मत का हूँ कि अयोध्या मे भी विशाल राम दर्शन बनवाये जाने की बहुत बहुत आवश्यकता है , ताकि अयोध्या आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राम के दर्शन हो सके और उन्हें राम के दर्शन की सम्पूर्ण जानकारी हो सके | यह दक्षिण भारत के मंदिरों की भांति बहुत विशाल और भव्य हो और इसकी व्यवस्था भी तदनुसार हो |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
बाढ़ : दैवी आपदा से अधिक मानव कृत समस्या
प्रकृति हमारे ऊपर सदा सर्वदा मेहरबान रही है | यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम इन मेहरबानियों से अनजान बने हुए रहते हैं | प्रकृति ने पृथ्वी पर इस प्रकार की ढलान रखी है कि कहीं जल भराव की स्थिति न उत्पन्न होने पाये | सर्बे आफ़ इंडिया ने बड़ी मेहनत करके विभिन्न स्थलों की ढलान को दर्शाते हुए कंटूर लाइन मैप बनाया गया है | यदि इस नक़्शे का उपयोग सड़कों , नहरों , भवनों के अलायमेंट के समय किया जाता तो जल निकासी की समस्या से बचा जा सकता था , पर दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी के पास सर्वे आफ इंडिया का मैप ही नहीं होता | जिले के अधिशाषी अभियंता लोक निर्माण विभाग के पास ऐसा एकमात्र मैप अवश्य होता है जो उनकी तिजोरी मे सुरक्षित रखा जाता है , ताकि वी आई पी के आगमन के समय हेलीकाप्टर का अक्षांश का पता लगाने के लिए उक्त मैप तिजोरी से बाहर निकाला जाता है और काम के बाद उसे फिर तिजोरी मे रख दिया जाता है | इसके अलावा इस अत्यधिक उपयोगी मैप का कभी भी कोई अन्य उपयोग सड़क , नहर तथा भवन निर्माण हेतु नहीं होता | इसका परिणाम यह होता है कि पूरे देश की ही जल निकासी की व्यवस्था बद से बदतर हो जाती है | यह भी जल भराव तथा बाद की स्थितियां उत्पन्न कर देता है |
इस सम्बन्ध मेरा दृढ़ मत रहा है कि बाढ़ दैवी आपदा नहीं है , वरन यह मानवीय कृत्यों का प्रतिफलन है और एक तरह से बाढ़ के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है | पहले भी बाढ़ आती थी , पर शीघ्र ही बाढ़ का पानी उसी रफ़्तार मे उतर जाता था , जिस रफ़्तार मे बाढ़ आती थी | नदियाँ जहाँ एक ओर बाढ़ लाती थी , वही दूसरी ओर नदियाँ ही जल निकासी का श्रोत भी साबित होती थी | पर आज बाढ़ का पानी कई कई दिनों तक ठहरा रहता है और नदियाँ अब जल निकासी का पहले की तरह काम नहीं कर पाती | मानवीय प्रयासों ने इस दृष्टि से भी नदियों को बहुत अक्षम बना दिया है |
नदियों पर बांध निर्माण करके मनुष्य द्वारा नदी को पालतू बनाने जैसा कार्य किया जाना प्रतीत होता है | बांध निर्माण का मुख्यतः दो उद्देश्य होता है | बांध बना कर वस्तुतः नदी का अधिकांश जल बांध के जलाशय मे रोक लिया जाता है , जिससे नहरे निकाली जाती है और बिजली पैदा की जाती है | जिससे विकास का मार्ग तो अवश्य प्रशस्त होता है , परन्तु इस प्रकार होने वाले विकास की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है |
बांध निर्माण से होता यह है कि नदी का अधिकांश जल जलाशय मे रोक लिया जाता है और नदी मे नाम मात्र का ही जल आ पाता है | इसके परिणाम स्वरूप नदी मे तेज प्रवाह व बहाव लायक जल तो आ ही नहीं पाता | इससे नदी का पेटा पटने लगता है | परिणाम स्वरूप दस लाख क्यूसेक धारक क्षमता वाली नदी की धारक क्षमता घटते घटते दस साल मे मात्र दो लाख क्यूसेक रह जाती है | वर्षा काल मे बांध को बचाने के लिए मजबूरन २ ० सी ५ ० लाख क्यूसेक पानी नदी मे छोड़ना पड़ता है | नदी की धारक क्षमता घट जाने के कारण नदी का यह पानी दूर दराज़ क्षेत्रों मे फ़ैल जाता है और काफी देर तक पानी रुका रहता है , क्योकि धारक क्षमता घटने के कारण नदी जल निकासी का काम भी नहीं कर पाती | इस प्रकार हम नहर से सिचाई करके तथा बिजली बनाकर जितना लोगों को लाभान्वित कराते हैं , बाढ़ का हर दृष्टि से तकलीफ झेलकर लोग उक्त लाभ की कई कई गुनी कीमत चुकाते हैं | इस प्रकार बांध निर्माण एक घाटे का सौदा सिद्ध होता है |
प्रकृति सर्बशक्तिमान एवं सर्बभौम सत्ता है और प्रकृति यह नहीं बर्दास्त कर सकती कि मनुष्य प्रकृति को पालतू बनाये | ऐसा होने पर प्रकृति की प्रतिकूल प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक है | आज अनेक अवसरों पर हम महसूस करते हैं कि प्रकृति हमसे नाराज है और हम प्रायः इसे दैवी आपदा अथवा प्रकृति का कोप समझ बैठते हैं | यह दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है कि हम अपने को इस बात के लिए दोषी नहीं मानते हैं कि अपने कारनामो की वज़ह से कहीं हमने प्रकृति को कुपित तो नहीं कर दिया है ? बाढ़ , सूखा , अवर्षण , ग्लोबल वार्निंग , सुनामी तथा भूकंप आदि के लिए कदाचित मनुष्य ही जिम्मेदार होते हैं | आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को तात्कालिक लाभ के लिए प्रकृति का अप्राकृतिक और अनियंत्रित दोहन करके प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ कर प्रकृति को कुपित करने का काम नहीं करना चाहिए , ताकि उसके गलत कार्यों की वज़ह से पूरी मनुष्यता को प्रकृति का कहर न झेलना पड़े |
बांध निर्माण के बाद अब नदियों को जोड़ने की योजना पर विचार हो रहा है जो मनुष्यता के लिए आत्म हत्या करने जैसा कार्य है , क्योकि यह प्राकृतिक व्यवस्था मे बहुत बड़ा हस्तक्षेप माना जाना चाहिए | मनुष्यों को प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए और प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए और ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए , जो प्रकृति के प्रतिकूल हो |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Tuesday, September 14, 2010
हिंदी दिवस का आयोजन पितरपक्ष की तरह
देश के गौरव की स्थापना तथा राष्ट्र -प्रेम का तकाजा है कि राष्ट्र भाषा को उसके वास्तविक स्वरूप मे स्थापित किया जाय और हर एक भारतवासी इस दिशा मे अपने दायित्व बोध का प्रदर्शन करे | तभी हिंदी दिवस के आयोजन की सार्थकता होगी |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Monday, September 6, 2010
शिक्षक दिवस पर विशेष : शिक्षक तथा शिक्षाविदों के दायित्व
हमारी शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह मानकर चलती है कि बच्चे को पढाया जाता है और सारा पाठ्यक्रम तथा शिक्षण पद्दतियां तदनुसार ही होता हैं | जबकि वास्तविकता इससे बिलकुल भिन्न है | वस्तुतः बच्चा पढाया नहीं जाता वरन वह पढता है | वह सबसे पहले अपनी मा को पढ़ता है , इसके बाद अपने पिता -भाई -बहन -परिवारजनों व संपर्क मे आने वालों को पढता है | इसके बाद वह अपने दोस्तों व पड़ोस को पढ़ता है और स्कूल जाने पर अध्यापक व सहपाठियों को पढ़ता है | सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि सभी इस तथ्य से अनजान रहते हैं कि बच्चा उन्हें या उनसे निरन्तर पढ़ रहा होता है | इस प्रकार वांछनीय व अवांछनीय जो भी उसके समक्ष आता है , बच्चा उसे पढ़ जाता है | इस परिप्रेक्ष्य मे पढ़ाने की आवश्यकता माता - पिता - अध्यापक - पड़ोसियों को है कि बच्चे के अनवरत पढने की प्रवृति के कारण सभी लोग ,जिन्हें बच्चा पढ़ रहा है , बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय बात व व्यवहार न करें , ताकि बच्चा उनसे अवांछनीयता न पढ़ जाय | वस्तुतः पढ़ाने की आवश्यकता बच्चे को बिलकुल ही नहीं है और अच्छा व स्वस्थ परिवेश मिलने पर वह स्वतः पढ़ जावेगा | व्यक्ति अपने बच्चे के बारे मे इस दिशा मे अवश्य सतर्क रहता है और अपने बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय कार्य व्यवहार नहीं आने देता है ,पर वह अन्य सभी बच्चों के बारे मे बिलकुल उदासीन रहता है | यदि अध्यापक की हस्तलिपि ख़राब है तो ब्लेक्बोर्ड पर उसके लिखने पर बच्चे की हस्तलिपि ख़राब होना स्वाभाविक है | यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा जगत की लाखों सालों की यात्रा के बाद भी हम इतना नहीं समझ पाये हैं कि अध्यापक की ख़राब हस्तलिपि का खामियाजा बच्चा क्यों भुगते ? अभी तक हमारी शिक्षा व्यवस्था इतना निषेध नहीं लगा पायी है कि क्षात्र जब तक लिखना पूर्णतया सीख नहीं जाता है , अध्यापक को ब्लेकबोर्ड पर नहीं लिखना चाहिए |
शिक्षा जगत मे छात्र - अनुशासन हीनता की बहुत सारी बातें होती रहती हैं , जबकि लोग अनुशासन का सही मतलब ही नहीं जानते | आटोमिक फालोइंग कमांड आफ द सुपीरियर बाई द इन्फीरियर इज अनुशासन | यहाँ जोर जबरदस्ती का कोई स्थान नहीं और स्वयमेव प्रक्रिया का स्थान प्रमुख है | अब यह विचार करना है कि कौन श्रेष्ट व कौन निम्न है | वरिष्टता क्रम मे सत्वगुण श्रेष्टतम , रजोगुण श्रेष्टतर व तमोगुण श्रेष्ट होता है | तदनुसार सत्वगुणी दूध का भोजन करने वाला बच्चा सबसे शक्तिशाली व श्रेष्टतम होता है | राजसिक यानि अनाज का भोजन करने के कारण उसमे रजोगुण यानि क्रियाशीलता का प्रादुर्भाव हो जाता है ,पर वह श्रेष्टतम से श्रेष्ट्तर स्थिति मे पहुँच जाता है | जवानी के बाद रजोगुण यानि क्रियाशीलता मे कमी व तमोगुण मे अभिबृद्धि का दौर शुरू होता है और श्रेष्ट स्थिति को दर्शाता है | इस प्रकार अध्यापक को छात्रों की अपेक्षाओं का पूर्ण संज्ञान लेकर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए | ऐसा न करने पर अध्यापक को ही अनुशासनहीन माना जावेगा | ऐसी अवस्था मे अध्यापको द्वारा कभी कभी छात्रो पर बलप्रयोग भी किया जाता है और कभी कभी छात्र समूह , जो शक्ति का आगार होता है , द्वारा उक्त बल प्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश अभिव्यक्त कर बैठता है | जिसे लोग अनुशासनहीनता की संज्ञा दे बैठते हैं | बस्तुतः यह अनुशासन हीनता न होकर अनुशासनहीन लोगों द्वारा किये बलप्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश का अभिप्रकाशन मात्र है |
शिक्षको द्वारा आज शिक्षक दिवस पर डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन , चाणक्य , डा कलाम , रविन्द्र नाथ टैगोर , विस्वामित्र ; संदीपनी आदि प्रमुख शिक्षकों का आदर्श अपनाने और चन्द्रगुप्त , राम , कृष्ण सरीखे शिष्य तैयार करने की कोशिश करने का संकल्प लेना चाहिए |
Thursday, August 19, 2010
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान : जगन्नाथ सिंह
भारत मे इंडिया गेट एक ऐसा ही स्थल है, जिसे हम प्रत्येक विदेसी को सबसे पहले दिखाते हैं, क्योंकि स्थापत्य कला की दृष्टि से यह अत्यधिक सुन्दर एवं महत्वपूर्ण स्थल है | इंडिया गेट की दीवारों पर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध मे शहीद हुए जवानो के नाम अंकित हैं जो गुलामी के दौरान अंग्रेज शासन की गौरव गाथा के अतिरिक्त कुछ नहीं कहते | इसे सबसे बड़ी गौरव गाथा के रूप मे दर्शाना स्वतन्त्र भारत मे कहाँ तक औचित्यपूर्ण है ? इस समय इंडिया गेट की दीवार पर अंकित नामो को और अधिक चमकाने और उभारने का काम भी चल रहा है जो निःसंदेह उचित नहीं प्रतीत होता है | वस्तुतः इंडिया गेट की दीवारों पर हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम प्रदर्शित किया जाना चाहिए था | हमारे स्वतन्त्र भारत के लिए यह बड़े गौरव की क्या बात होती यदि इसपर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक, राजेंद्र लाहिड़ी, मदन लाल धींगरा, खुदी राम बोस तथा १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, मंगल पाण्डे, नाना फंडनवीश, गॉस खान आदि समस्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम अंकित होता | यह हमारी अस्मिता, राष्ट्रीयता और देश प्रेम का तकाजा भी है | तब इंडिया गेट पहुँच कर इसे देखकर तथा विदेशियों को इंडिया गेट दिखाकर उन्हें इस सम्बन्ध मे बताने मे प्रत्येक भारतीय को गर्व होता | तभी हम राम प्रसाद बिस्मिल की इस ऐतिहासिक कविता को सही अर्थों मे सम्मानपूर्बक स्थापित कर सकते हैं :
" शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा "|
इंदिरा गाँधी द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की शुरुवात करके अज्ञात शहीदों की स्मृतियों को श्रधान्जली देने का सराहनीय प्रयास किया था , पर बिस्मिल की कविता को सार्थकता प्रदान करने के लिए इंडिया गेट से अच्छी दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती है |
नेताजी सुभाष के बलिदान का अपमान : जगन्नाथ सिंह
यह बड़े दुःख और लज्जा का विषय है कि हमारी ही धरती पर नेताजी को उनके आखिरी युद्ध मे शिकश्त मिली थी और उन्हें पराजित करने वाले कोई और नहीं अपने ही भारतीय सैनिक थे, जिन्होंने अंग्रेज आकाओं के हुक्म पर नेताजी से युद्ध किया था | आज अपने स्वतन्त्र भारत मे ऐसे स्मारक का होना नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तथा उनकी आज़ाद हिंद फौज के क्रांतिकारियों के बलिदान का घोर अपमान तो है ही, भारतीयों के दिलों पर राज्य करने वाले नेताजी के बलिदान और योगदान को ही मुह चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत होता है |
यह भी जानकारी मे आया है कि इस स्मारक का रखरखाव आज भी ब्रिटेन द्वारा ही होता है और इसके रख रखाव हेतु इंग्लॅण्ड से पौंड मे धन सीधे आता है | इससे यह भी प्रमाणित होता है कि आज़ादी से पूर्व अंग्रेजो द्वारा स्थापित परम्पराएँ आज भी यथावत निभायी जा रही है | ऐसी स्थिति मे इस सम्बन्ध मे संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि क्या हम वास्तविक अर्थों मे पूर्णतया स्वतन्त्र हो गए हैं अथवा नहीं ? कुछ भी हो एक स्वतन्त्र नागरिक के रूप मे हमारी सोंच अभी तक विकसित नहीं हो पाई है |
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना की बिभिन्न इकाईयों मे ऐसे अनेक विजय चिन्ह अनुरक्षित अथवा प्रदर्शित हैं जो ब्रिटिश शासनकाल मे उनके नज़रिए से गौरव के प्रतीक हो सकते थे , पर आज स्वतन्त्र भारत मे उक्त विजय चिन्ह राष्ट्रीय विरासत के रूप मे माने जायेंगे और उन्हें राष्ट्रीय संग्रहालयों मे होना चाहिए | एक उदाहरण से मै इसे स्पष्ट करना चाहूँगा | गोरखा रेजीमेंट की रानीखेत इकाई मे रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त एवं अंग्रेजो के झाँसी विजय के प्रमाणस्वरूप झाँसी का राजदंड अनुरक्षित और प्रदर्शित है | यह रानी लक्ष्मीबाई और समस्त क्रान्तिकारियों का घोर अपमान है |
इस दर्द को समझाने के लिए भारत के देश भक्त नागरिकों से पूछना चाहता हूँ कि जलियांवाला बाग मे जनरल डायर के हुक्म से चली गोलियों से मरने वालो के नामो का उल्लेख अब तक क्यों नहीं हुआ है ? यदि वहाँ जनरल डायर की भव्य मूर्ति बनवाकर उस पर फूल माला पहनाया जावे, तो भारत के राष्ट्र भक्तो को कैसा महसूस होगा | ऐसी स्थिति मे कोहिमा जैसे स्मारकों का ब्रिटिश सरकार के धन से रखरखाव हमारे देशवासियों को कैसे स्वीकार हो सकता है | राष्ट्र भक्तों को इस दिशा मे गंभीरता पूर्बक विचार करके सक्रिय होना आवश्यक है |
Tuesday, August 10, 2010
शाकाहार बनाम मांसाहार : जगन्नाथ सिंह
हिंसा बनाम अहिंसा : जगन्नाथ सिंह
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Friday, August 6, 2010
दहेज़ प्रथा के खात्मे की ओर पहल : जगन्नाथ सिंह
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Monday, August 2, 2010
झाँसी का राजदंड : जगन्नाथ सिंह
चित्रकूट का महातम्य
देश निकाला होने पर रहीम भी चित्रकूट आये थे | यहाँ वह गुमनामी का जीवन बिताते हुए जीवन यापन हेतु भाड़ झोकने का काम करते थे | एक बार राजा रीवाँ को चित्रकूट भ्रमण करते समय रहीम भाड़ झोकते नज़र आये | रहीम की मर्यादा का ध्यान लिहाज करते हुए कवि रूप मे वह रहीम से बोले " जा के अस भार है सो कत झोंकत भाड़ " इस पर रहीम मुस्कराए और कविता मे ही उत्तर दिया " भार झोंक कर भाड़ मे रहिमन उतरे पार "| रहीम की यह उक्ति भी जन जन मे व्याप्त है :
Monday, July 26, 2010
मोक्ष की अवधारणा ; प्रास्थिति और प्रक्रिया
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Thursday, July 22, 2010
राजनीति और धन की वापसी ; समस्या का स्थायी समाधान
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
Wednesday, July 21, 2010
सम्यक राजनीति एवं अर्थ बोध
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा