Monday, July 26, 2010

मोक्ष की अवधारणा ; प्रास्थिति और प्रक्रिया

मोक्ष मानव जीवन यात्रा की अंतिम मंजिल और अध्यात्मिक क्षेत्र की चरम स्थिति है | इसे अलग अलग स्थानों पर अलग अलग नामो से समझा और पुकारा गया है| इसे निर्वाण , कैवल्य , ब्रह्मलीन ,परम गति ,मुक्ति और मोक्ष नामो से जाना जाता है | पर मोक्ष को समझना और समझाना दोनों ही  बहुत ही दुष्कर कार्य है | ब्रह्माण्ड मे सब कुछ तरंगवत है और ब्रह्म तरंग सबसे बड़ी तरंग है | प्रत्येक तरंग की तीन स्थितियां होती है | एक सामान्य तरंग की निम्नतम एवं प्रथम स्थिति है ठहराव | ठहराव की यह स्थिति क्रिया विहीनता का कालखंड होता है और इसी क्रिया विहीनता या ठहराव की स्थिति मे शक्ति संचयन होता है | क्रिया विहीनता की अवधि तथा इसकी सघनता यह निर्धारित करती है कि कितना शक्ति संचयन होता है | इस ठहराव के बाद तरंग का ऊर्ध्वगामी होना दूसरी स्थिति है | प्रथम चरण यानि ठहराव की स्थिति मे हुआ शक्ति संचयन यह तय करेगा कि यह ऊर्ध्वगामी क्रम कितनी दूरी और देर तक रहेगा | जहाँ यह संचित शक्ति समाप्त हो जाएगी ,वही से तीसरा अवरोही क्रम प्रारंभ होकर ठहराव की स्थिति तक चलेगा | तत्पश्चात तरंग का दूसरा क्रम पहले की तरह चलेगा और अनवरत तीसरी चौथी पांचवी .....तरंगो का क्रम चलता रहेगा |
         एक उदाहरण से इसे भलीभांति समझा जा सकता है | इस देश मे इमरजेंसी के बाद जनता दल सरकार द्वारा सत्ता से बाहर किये जाने के बाद इंदिरा गाँधी के लिए यह कालखंड ठहराव यानि क्रिया विहीनता का समय था | सौभाग्य से क्रिया विहीनता या शक्ति संचयन का यह कालखंड थोड़ा बड़ा हो गया था | इस दौरान हुए शक्ति संचयन के फलस्वरूप इंदिरा गाँधी और तेजी से उभरी और इस दौरान ही उन्होंने कई बड़े काम किये |
       ब्रह्म तरंग की स्थिति सामान्य तरंग से थोड़ी भिन्न है ,किन्तु ठहराव , अवरोह तथा आरोह की तीनो स्थितियां वहाँ भी विद्यमान रहती हैं | अंतर बस इतना ही है कि ब्रह्म तरंग मे  ठहराव की स्थिति के बाद अवरोह यानि परम सूक्ष्म (परम पुरुष ) से परम स्थूल (पृथ्वी तत्व ) तक का क्रम चलता है ,जबकि अन्य समस्त तरंगो मे ठहराव के बाद आरोह का क्रम पहले आता है | आरोह क्रम मे परम स्थूल (पृथ्वी) से परम सूक्ष्म (मोक्ष )तक का क्रम चलता है | इसे ही श्रृष्टि चक्र एवं ब्रह्मस्पंदन कह सकते हैं |
      मोक्ष को समझने के लिए विज्ञानं के नियमो का सहारा लेना पड़ेगा जो प्रकृति का भी नियम है | विज्ञानं का नियम है कि हर क्रिया की समान व बिरोधी प्रतिक्रिया होती है | जीवन मे क्षण प्रतिक्षण क्रियाओं का क्रम चलता रहता है | बिना क्रिया किये एक सेकण्ड भी हमारा अस्तित्व नहीं रह सकता |  जहा क्रिया संपन्न होती है , वहा प्रतिक्रिया का होना अवश्यमभाबी है | हम रोजमर्रा के जीवन मे देखते हैं कि कतिपय और सामान्यतया अधिकांश क्रियाओं के समक्ष समान और बिरोधी प्रतिक्रियाएं तत्काल अभिव्यक्त न होकर भविष्य के लिए स्थानांतरित हो जाती हैं | यह स्थगित प्रतिक्रियाएं अवचेतन स्तर पर बीज रूप में विद्यमान रहती हैं और अपने स्वभावानुसार धीरे धीरे परिपक्व होती रहती हैं | पूर्णतया परिपक्व होने पर यह तत्समय घटित होने वाली किसी समानांतर क्रिया की प्रतिक्रिया को समान व विरोधी प्रतिक्रिया नहीं रहने देता ,वरन अभिव्यक्त होकर उक्त प्रतिक्रिया के साथ सायुज्य स्थापित कर लेता है और इसमें घनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रतिफलन ला देता है | अर्थात थोड़ा कर्म करके बहुत अधिक प्रतिक्रिया और बहुत अधिक क्रिया करके बहुत कम प्रतिक्रिया होने की स्थितियां बहुधा देखने को मिलती रहती हैं | प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपने व अपनों के सदर्भ मे ऐसा होते देख चुका होता  है , क्योंकि ऐसा अक्सर होता रहता है और ऐसा पहले स्तगित प्रतिक्रिया के परिपक्व होने के बाद अभिव्यक्त होने के कारण होता है | स्थगित प्रतिक्रियाओं का कई जन्मो का संचित एक बहुत बड़ा स्टाक जमा रहता है और इस प्रतिक्रिया कोष को अभिव्यक्त करने के लिए अनेको जन्म लेने की आवश्यकता होगी | जीवित रहने तक प्रतिपल क्रिया संपन्न होते रहने के कारण प्रतिक्रिया का यह संचित स्टाक निरन्तर बढ़ता रहता है | जब तक यह पूरा स्टाक समाप्त नहीं होता ,हम सापेक्षिकता की स्थिति मे ही बने रहेगे और मुक्त नहीं हो सकेगे | 
      मोक्ष की दिशा मे दो समस्याओं का सामना करना होता है | पहली समस्या यह है कि जीवित रहने तक तथा जीवित रहने के लिए हमें कर्म करना ही पड़ेगा और कर्मफल भी भोगना पड़ेगा जो बंधनकारी होता है | अतयव कर्म की एक ऐसी तकनीक अपनानी होगी , जिसमे कर्म तो हो पर यह बंधनकारी न हो और हमें कर्मफल न भोगना पड़े | भगवान कृष्ण ने इसी समस्या के निराकरण के लिए ही गीता मे  कर्मयोग का उपदेश दिया था | ब्राह्मी भाव से कर्म करने यानि निष्काम कर्म करने से कर्मफल के सम्बन्ध मे चिंता करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए , क्योकि निष्काम कर्म की स्थिति मे कर्मफल ब्रह्म को ही स्वतः समर्पित हो जावेगा | दूसरे रूप मे इसे ही ब्रह्मचर्य भी कहा जा सकता है | ब्रह्मचर्य का तात्पर्य है ब्रह्म को चरना | चरने का मतलब होता है खाते खाते चलते रहना अर्थात ब्राह्मी भाव से कर्म करना | इस ब्रह्मचर्य की प्रक्रिया मे प्रत्येक कार्य मे ब्राह्मी भाव आरोपित करके  कार्य करना चाहिए | अर्थात कर्म समय यह भाव होना चाहिए कि ब्रह्म ही कर्ता हैं ,अतयव कर्मफल भी ब्रह्म के लिए ही होगा | 
        इसे दूसरी तरह से भी समझा जा सकता है | अभिव्यक्ति प्रतीकीकरण (symbalisation) के अलावा कुछ भी नहीं है | यह प्रतीकीकरण तीन स्तरों पर संपन्न होता है | प्रथम स्तर पर भौतिक प्रतीकीकरण है | समस्त घटित होने वाले  कर्म अथवा क्रियाएं इसी स्तर की मानी जावेगी | दूसरा स्तर मानस प्रतीकीकरण का है , जहाँ प्रतिक्रिया  या संस्कार जगत अवस्थित होता है | इस स्तर पर जन्म जन्मान्तरों की स्थगित प्रतिक्रियाएं अर्थात संस्कार संचित रहता है | तीसरा स्तर अध्यात्मिक प्रतीकीकरण है जो निरपेक्ष होने के कारण दुबारा अभिव्यक्ति नहीं पाता है | भौतिक प्रतीकीकरण का मानस प्रतीकीकरण होना अनिवार्यता है | कालांतर मे मानस प्रतीकीकरण का पुनः भौतिक प्रतीकी करण होना भी अपरिहार्यता है | गीता के उपदेश निष्काम कर्म अर्थात ब्रह्मचर्य के पालन द्वारा हम भौतिक प्रतीतीकरण को बिना मानस प्रतीकीकरण किये सीधे अध्यात्मिक प्रतीकीकरण मे स्थानांतरित कर दिया जाता है | सापेक्षिकता से परे इस अध्यात्मिक प्रतीकीकरण के पुनः अभिव्यक्त होने की सम्भावना नहीं होगी |
      मोक्ष की दिशा मे दूसरी समस्या है , अनगिनत जन्मो की संचित प्रतिक्रियाओं अर्थात संस्कारों के विपुल भंडार को समाप्त करना | यह सबसे कठिन काम है और इसमें कोई शार्टकट नहीं है | तीन तरह की  प्रक्रियाओं को अपनाकर यह अति दुष्कर कार्य संपन्न किया जा सकता है | सबसे पहले मनो आध्यत्मिक समानान्तरण प्रक्रिया अर्थात आध्यात्मिक साधना द्वारा मानस प्रतीकीकरण को आध्यात्मिक प्रतीकीकरण मे स्थान्तरण करने से उनका पुनः भौतिक प्रतीकीकरण संभव नहीं होगा | इसी साधनात्मक  प्रक्रिया के द्वारा ही मानस प्रतीकीकरण के भौतिक प्रतीकीकरण की प्रक्रिया को त्वरण देने से यह कार्य शीघ्रता से संपन्न होगा | तीसरा कदम विपस्सना को अपनाना होगा | इन तीनो कदमो का यह प्रतिफल होगा कि एक दिन स्थगित प्रतिक्रिया व संस्कार का सम्पूर्ण संचित कोष समाप्त हो चुका होगा | निष्काम कर्म योग से नई प्रतिक्रिया के सृजन व स्थगित होने की सम्भावना पर पहले ही सफलता प्राप्त की जा चुकी है | अतयव अब ऐसी स्थिति आ चुकी है ,जहाँ कुछ भोगने को शेष नहीं बचता और व्यक्ति सापेक्षिकता से ऊपर पहुँच चुका होता है | यही कैवल्य , निर्वाण , मुक्ति ,मोक्ष तथा ब्रह्मलीन होने की स्थिति है , जो व्यक्ति की परम गति तथा अंतिम मंजिल है | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा