सापेक्षिक बुद्धिमता के एक रतर पर सेव के पृथ्वी पर गिरने से संबंधित रहस्य को सबसे पहले समझने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि पृथ्वी के भीतर विद्यमान आकर्षण के कारण सेव पृथ्वी की ओर खिचता चला आता है | यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज थी , जिसपर अनेकानेक वैज्ञानिक अवधारणाएँ व सिद्धांत आधारित हुए | प्रकृति के इस रहस्य को तत्कालीन देश काल पात्र गत सापेक्षिक बुद्धिमता के अनुसार सुलझाने का यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण व सफल प्रयास था | आज की परिष्कृत बुद्धिमता का स्तर इस सम्बन्ध मे एक प्रश्न अवश्य उठाएगा कि यह गुरुत्वाकर्षण वास्तव मे कहाँ से व किस प्रकार उत्पन्न होता है और यह किस प्रकार कार्य करता है | प्रयोगभौमिक आधार पर इसका समुचि त उत्तर मिल पाना कदाचित संभव न हो , परन्तु आज का न्यूटनबादी वैज्ञानिक इतना अवश्य स्पष्ट करेगा कि यह एक पूर्बनिर्धारित सत्य और मान्यता है | कोई यहाँ तक कह सकता है कि यह एक प्राकृतिक नियम है , जिसे सिद्ध करने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही इसे सिद्ध किया जाना संभव ही है | जबकि प्रयोगभौमिक तत्व निरूपण ऐसी किसी पूर्ब मान्यता, पूर्वाग्रह ,तथा पूर्वधारणा को स्वीकार नहीं करता |
उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य मे मैं यहाँ शेव के पृथ्वी पर गिरने से संबंधित रहस्व के सम्बन्ध मे न्यूटन के उपरोक्तानुसार तथ्य निरूपण के क्रम मे मैं यह अवश्य स्पष्ट करना चाहूँगा कि सार्बभौम नैसर्गिक नियम और आज की बुद्धिमता का स्तर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को पूर्णतया नकारता और इसे पूर्णतया असत्य सिद्ध करता हुआ प्रतीत होता है | प्रयोगभौमिकता किसी पूर्व मान् यता एवं पुर्बाग्रह की अपेक्षा नहीं करता | अतः मैं अपने विश्लेषण मे किसी पूर्वमान्यता अथवा पूर्वाग्रह का आलंबन नहीं लूँगा | केवल प्रारंभ करने के लिए एक पूर्वमान्यता की सहायता अवश्य लूंगा जो कालांतर मे स्वतः सिद्ध होकर पूर्ब मान्यता नहीं रह जावेगी |
किसी पदार्थ के सृजन की व्याख्या करने पर यह ज्ञात होता है कि प्रत्येक पदार्थ किसी मूल पदार्थ से अलग हुआ किन्तु मूल पदार्थ से सम्बद्ध रहकर उसके अंश रूप मे ही विद्यमान रहता है | सूर्य से निकली पृथ्वी तथा पृथ्वी से निकला चन्द्रमा आदि इसके उदाहरण हो सकते है | मूल पदार्थ से अलग हुए इस पदार्थ पर चतुर्दिक पड़ने वाला वायुमंडलीय दबाव संतुलन की स्थिति मे एक ऐसे स्थान पर केन्द्रीभूत होकर अवस्थित हो जाता है, जहाँ चतुर्दिक वायुमंडलीय दबाव एक समान अथवा संतुलित हो जाता है | चतुर्दिक पड़ने वाले वायुमंडलीय दबाव की यही संतुलित स्थिति उक्त पदार्थ की स्थिति तथा कक्षा निर्धारित कर देती है | परिणामस्वरूप उसी स्थान व स्थिति मे उक्त पदार्थ अपने मूल पदार्थ (उदगम) के अंश (उपग्रह) के रूप मे उसकी परिक्रमा करने लगता है |
उपरोक्तानुसार परिस्थिति मे उक्त पदार्थ पर चतुर्दिक पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव उक्त पदार्थ के भीतर एक केंद्र बिंदु पर शुन्य प्रभावी हो जावेंगा और एक प्राण केंद्र (नयूक्लियस ) का श्रृजन करेगा जो वायु मंडलीय दबाव के बराबर व प्रतिरोधी दबाव देकर उक्त पदार्थ को सुरक्षा व स्थायित्व प्रदान करेगा | ऐसी स्थिति मे ही उक्त पदार्थ का संरचनात्मक अस्तित्व व स्थायित्व संभव होता है | अर्थात किसी पदार्थ की संरचनात्मक स्थिति इसी बात पर निर्भर करेगा कि उक्त पदार्थ पर पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव और उक्त पदार्थ के प्राणकेंद्र जन्य दबाव मे पूर्ण साम्य की स्थिति हो |
उपरोत से यह प्रमाणित होता है कि प्रत्येक पदार्थ का प्राणकेंद्र कर्षण के बजाय अपकर्षण का कार्य करता है | उसकी प्रकृति किसी अन्य पदार्थ को अपनी ओर खीचने की न होकर अपने से दूर धकेलने की होती है | इस प्रकार किसी प्रकार के कर्षण का अस्तित्व तक उक्त पदार्थ मे नहीं होता है , उक्त पदार्थ का प्राणकेंद्र पदार्थ की सतह अथवा उससे दूर वायुमंडल मे अवस्थित बिभिन्न पदार्थों को अपनी अपकर्षण शक्ति द्वारा दूर धकेलने का ही कार्य करता है | इस प्रकार ब्रह्माण्ड मे पृथ्वी अथवा किसी स्वतन्त्र पदार्थ मे गुरुत्वाकर्षण या कर्षण का अस्तित्व होने का प्रश्न ही नहीं उठता |
अब यहीं हमें वायु मंडलीय दबाव से संबंधित अपनी पूर्वमान्यता को सिद्ध करने का अवसर मिलता हुआ प्रतीत होता है | जैसाकि ऊपर स्पष्ट कर चुका हूँअपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा