Friday, May 7, 2010

नीलगाय यानि बनरोज का आतंक

नेशनल पार्क दुधवा तथा जिम कोर्बट मे ३०-४० के झुण्ड मे हिरन तथा इसी तरह चित्रकूट तथा बांदा जनपदों मे भी यमुना के किनारे मैंने झुण्ड मे बनरोज यानी नीलगाय देखे है | लोग सामान्यतया नीलगाय को गाय समझने की भूल करते हैं | जबकि नीलगाय यानी बनरोज गाय प्रजाति का जानवर बिलकुल ही  नहीं हैं , बरन नीलगाय हिरन प्रजाति का जानवर हैं | आम लोग बनरोज का नाम नीलगाय होने  के कारण भ्रमवश इसे गाय मान लेते हैं , जो बिलकुल गलत है और इस गलतफहमी का दूर होना बहुत जरुरी है |
         बनरोज फसलों को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं | बुंदेलखंड मे सिचाई के साधनों का नितांत अभाव है | ऐसी स्थिति मे यहाँ फसले उगाना बड़ा कठिन कार्य होता है ,ऐसे मे किसान का फसलो से अत्यधिक लगाव होना स्वाभाविक है | यदि कठिन परिश्रम से उगाई गयी उसकी फसल को कोई नष्ट कर दे ,तो उसके कष्ट का सहज मे अनुमान लगाया जा सकता है | बनरोज यही काम करता है और उसकी फसल को बिलकुल नष्ट कर देता है | इस प्रकार बनरोज खेती और किसानो का बहुत बड़ा दुश्मन है | बुंदेलखंड का किसान बनरोज की इस समस्या से अत्यधिक परेसान रहता है और वह चाहता है कि सरकार उसकी इस समस्या का समाधान करे | वैसे इस समस्या का समाधान किसान के पास ही है और इसके लिए उसको सरकार का मुंह देखने की जरूरत नहीं है | सरकार ने यह आदेश कर रखा है कि प्रत्येक किसान अपनी फसल को बचाने के लिए बनरोज को मार सकता है और उसे इस सम्बन्ध मे जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है | वैसे इसमें कुछ व्यावहारिक कठिनाई आती है कि कदाचित किसान को यह बताना पड़े कि बनरोज उसकी फसल को नुक्सान पहुँचा चुका है या नुक्सान पहुँचाने वाला है | इस कठिनाई के कारण उसे बनरोज को मारने की अनुमति मागने मे उसे संकोच हो सकता है और उसे अनुमति मिलने मे बिलम्ब व कठिनाई भी  हो सकती है | इसी परिप्रेक्ष्य मे जिलाधिकारी चित्रकूट के रूप मे मैंने यह आदेश कर रखा था कि अपने फसल की रक्षा के लिए किसान बिना अनुमति प्राप्त किये बनरोज मार सकता है बशर्ते वह बनरोज मारने के २४ घंटे के भीतर थाने , बी डी ओ या उपजिलाधिकारी को इस सम्बन्ध मे सूचना दे दे | ऐसी स्थिति मे उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो सकती | इस व्यावहारिक आदेश के कारण उनकी फसलो की रक्षा हो सकी थी | यदि सरकार के आदेश मे ही इस प्रकार की व्यावहारिकता का समावेश हो जाता तो शासन के आदेश की मंशा तो पूरी ही हो जाती और किसानो की फसल भी बच जाती |
               मै कुछ समय पहले चित्रकूट गया था तो लोगों ने यह समस्या फिरसे मेरे समक्ष रखी थी | मेरे द्वारा पहले जैसा समाधान देने पर मुझे बताया गया कि उन्होंने जब बनरोज को मार कर इसकी सुचना दी थी तो कुछ लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी थी तो कुछ लोग १०-१५ हजार खर्च करके ही जेल जाने से बच सके थे | इस प्रकार शासन को अपने आदेश को लागू होने योग्य बनाए जाने तथा किसानो को इस समस्या के समाधान हेतु कमर कसने की जरूरत है | तभी इस इस समस्या का समाधान पाया जा सकता है |
        
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Tuesday, May 4, 2010

बुंदेलखंड की गर्मी मे पेयजल समस्या

बुंदेलखंड मे सामान्यतया वर्ष भर पीने के पानी की कमी रहती है ,पर गर्मियों मे तो मनुष्यों तथा पशुओं को पेयजल का गंभीर संकट झेलना पड़ता है | पाठा क्षेत्र मे तो गर्मियों मे पीने के लिए त्राहि त्राहि मच जाती है | लोगों को पानी लेने कई कई मील पैदल जाना पड़ता है या बैलगाड़ियों से पानी ढ़ोना पड़ता है | पाठा क्षेत्र के अधिकांश हैंडपंप तथा कुएं सूख जाते है | लोगों को पानी खरीदना भी पड़ता है | कुछ प्रभावशाली लोग तो पानी को अपने वर्चस्व का हथियार एवं हथकंडा बना कर अपनी राजनीति की रोटी सेंकते हैं |
        एक समय एशिया की सबे बड़ी पेयजल योजना के रूप मे जानी जाने वाली पाठा पेयजल योजना भी पूरे पाठा क्षेत्र की प्यास नहीं बुझा सकी  है | इस योजना मे सामिल काफी गाँव इससे तनिक भी लाभान्वित नहीं हुए हैं | काफी गावों मे पाइप भी बिछाया गया था , पर जब इन गाँव मे कभी पानी नहीं पहुँचा तो गाँव तथा विभाग वालो ने चोरी करके पाइप लाइन ही उखाड़ ली ,जिसके चलते उन गावों मे पानी पहुँचने की संभावना ही समाप्त हो गयी | यह योजना काफी पुरानी हो गयी है , इसके नलकूपों की क्षमता मे काफी कमी आ गयी है और योजनान्तर्गत मशीने भी काफी जर्जर हो गयी है | अतयव  क्षेत्र के लिए सबसे अधिक उपयोगी पाठा जलकल योजना का पुनर्गठन एवं बिस्तारीकरण अत्यावश्यक है | योजना से उन गावों को भी लाभान्वित किया जाना चाहिए जो पाइप उखाड़ने आदि कारणों से इस योजना के लाभों से बंचित रह गए हैं | सर्बाधिक लाभकारी इस योजना मे धन की कमी नहीं होनी चाहिए |
        भूमिगत जलखोजी विभागों द्वारा खोदे गए कई टेस्ट नलकूप अप्रयुक्त पड़े हुए हैं , जबकि उनमे पर्याप्त जल उपलब्ध है | उनका उपयोग कर उनसे कई गावों को पेयजल  मुहय्या कराया जा सकता है | ऐसे कई टेस्ट नलकूपों की तलाश कर उनका उपयोग कर कई गाँव पहले भी लाभान्वित कराये जा चुके है | बिजली की कमी के कारण भी योजना का पूरा  पूरा लाभ नहीं मिल पाता है | अतः इस दिशा मे बिचार कर कार्यवाही किया जाना आवश्यक है |
       गर्मी मे अचानक यह सूचना मिलती है कि अमुक गाँव के सारे कुएं सूख गए हैं , पर कुओं  मे जलस्तर नीचे जाने की प्रवृति काफी दिनों से चल रही होगी| यदि ऐसे प्रत्येक गाँव ,जहाँ कुएं सूख जाते हैं ,के जलस्तर नीचे जाने की प्रतिदिन की मानिटरिंन की जाती तो अचानक सभी कुओं के सूख जाने की स्थितियों से बचा जा सकता था | इस प्रकार के दैनिक अनुश्रवण की जिम्मेदारी स्वयंसेवी संगठनो को भी सौंपी जा सकती है | सूखते जा रहे कुओं मे एक एक करके ब्लास्टिंग करके उनकी गहराई बढ़ाई जा सकती है | इस प्रकार यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि गाँव के सारे कुएं  एक साथ न सूखने पायें | इस प्रकार की सतर्क दृष्टि रख कर कार्यवाही करने से यह तो सुनिश्चित ही किया जा सकता है कि किसी गाँव मे बाहर से पानी लाने की नौबत न आये | हैंडपंप के सन्दर्भ मे भी इसी प्रकार की कार्यवाही  की जानी चाहिए |
           बुंदेलखंड मे अनेक प्राकृतिक जलश्रोत हैं , जिनका विवेकपूर्ण उपयोग तो किया जाना चाहिए , उनके संरक्षण एवं दुरूपयोग पर सतर्क दृष्टि भी रखी जानी चाहिए | चित्रकूट जनपद मे गुन्ता बाँध एवं रसिन बाँध प्राकृतिक जलश्रोतों के उदहारण हैं | इस तरह के बहुत सारे जल श्रोत हैं | अनुसूया पहाड़ से निकले जलश्रोतों से मन्दाकिनी नदी बनी है | अनुसूया आश्रम मे हुए बेतहाशा निर्माण से प्राकृतिक जलश्रोत अवरुद्ध हो रहा है और मन्दाकिनी नदी , जो कि गंगा नदी की तरह चित्रकूट की प्राणधारा है , के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है | चित्रकूट के श्रद्धालुओ तथा सरकार को बिचार कर कठोर कदम उठाने चाहिए | मन्दाकिनी की सफाई से जरुरी है मन्दाकिनी के अस्तित्व की रक्षा करना |                       
          गर्मिओं मे पशुओं के लिए पानी पीने की समस्या और गंभीर होती है | वे इस हेतु आवाज नहीं उठा सकते | अतयव उनके बारे मे हमें ही बिचार करके व्यवस्था करनी होंगी| ऐसे समस्त समस्याग्रस्त गावों मे किसी बड़े पेंड की छाया मे चरही बनवाना लाभदायक होगा |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Monday, May 3, 2010

ब्रान ड्रेन यानि श्रम पलायन

     ब्रेन ड्रेन की बहु चर्चित समस्या से हम सभी पूर्णतया परिचित हैं | ब्रेन ड्रेन यानी बुद्धि पलायन की समस्या अपने स्वरूप, प्रभाव तथा विस्तार में इतनी खतरनाक नहीं है , जितनी कि ब्रान ड्रेन की समस्या | भारत मे बुद्धि एवं बुद्धिमता इतनी ज्यादा है कि कितनी भी बुद्धि यहाँ से पलायन कर जाय, देश पर इसका तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता | कुछ बूंदे निकाल लेने से जिस तरह समुद्र पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है, उसी प्रकार इस महान देश से कुछ बुद्धजीवियों के बाहर चले जाने से देश पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता | अतः बुद्धि पलायन देश के लिए कोई विशेष चिंता का विषय नहीं है |
     ब्रान ड्रेन यानी श्रम पलायन बहुत बड़े क्षेत्र तक फैली हुई एवं बहुत बड़े पैमाने पर व्याप्त समस्या है| श्रम पलायन समस्या की गंभीरता बुद्धि पलायन की तुलना मे हजारों गुना अधिक बड़ी है | संतुलित आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्य मे यह समस्या सबसे बड़ा अभिशाप सिद्ध हुई है | कहने का तात्पर्य यह है कि यह समस्या ब्रेन ड्रेन की तुलना मे न केवल कई गुना खतरनाक है, वरन इसका फैलाव बहुत बड़े क्षेत्र एवं पैमाने पर है | परन्तु दोनों समस्याओं का मूल आधार मुख्यतया आर्थिक है | वैसे बुद्धि एवं श्रम की प्रवृति सभ्यता के स्तरीकरण से जुडी है | यह प्रवृति ग्रामीण सभ्यता से शहरी सभ्यता और शहरी सभ्यता से और अधिक विकसित सभ्यता की ओर जाने की है |
      यह कहावत बिल्कुल सही है कि चिराग तले अँधेरा होता है और ड्योढ़ी के बिल्कुल पार कुछ दिखाई नहीं देता | ब्रेन ड्रेन क्षितिज जितनी दूर की समस्या है, इसलिए इस ओर सबका ध्यान चला जाता है , परन्तु ड्योढ़ी के बिल्कुल पार की ब्रान ड्रेन की समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता | यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम अभी तक इस समस्या की समुचित पहचान नहीं कर पायें हैं और इस समस्या के समाधान के प्रति गंभीर नहीं हैं | करीब तीन सौ वर्षो से यह समस्या चली रही है | जब अंग्रेज सोना कमाने (मजदूरी सोने मे मिलेगी ) की लालच देकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उडीसा एवं बुंदेलखंड, जहाँ गरीबी ज्यादा रही है, से सस्ते मजदूर के रूप मे बहुत सारे भारतीयों को विदेश ले गए थे, जो आज प्रवासी भारतीय के रूप मे जाने जाते हैं | आजकल ऐसे क्षेत्रों का श्रमिक थोड़ी ज्यादा मजदूरी के प्रलोभन मे कोलकोता, मुंबई, दिल्ली, सूरत और पंजाब आदि शहरों को चला जाता है और इन विकसित क्षेत्रों के विकास मे चार चाँद लगाता है |
      मजदूरी हेतु बाहर जाने वाला इन क्षेत्रों का श्रमिक अपने अपने क्षेत्र के श्रम समुदाय का मक्खन होता है, जिसका लाभ भी विकसित क्षेत्रो को ही मिलता है | ऐसे श्रमिकों की जन्मभूमि अपने सर्वाधिक पुष्ट (मक्खन ) श्रम के लिए तरसती रहती है, क्योंकि उसके हिस्से मे केवल छाछ ही आता है और मक्खन तो श्रम पलायन की प्रक्रिया द्वारा बाहर जाकर विकसित क्षेत्रों को और अधिक विकसित बनाता है और उनका अपना क्षेत्र अविकसित ही बना रहता है | ऐसा श्रमिक, जो अपने निवास क्षेत्र की पूर्ण उपेक्षा करके बड़े शहरों के विकास एवं सौन्दर्य बढ़ाने का माध्यम बनता है, बड़े शहरों मे तिरस्कार एवं उपेक्षा का वर्ताव झेलता है | वह उत्तर भारतीय होने का अभिशाप भी झेलता है और इन क्षेत्रो के मूल निवासियों से कृतज्ञता के व्यवहार की जगह उनके अत्याचार का दंश भी भोगता है | वह भईया व मघय्या जैसे उपेक्षित विशेषणों से विभूषित होकर भी बिना विचलित हुए इन शहरों की प्रभुता ,समृद्धि एवं सौन्दर्य को अपने खून पसीने से सींच कर उनमे चार चाँद लगाता  जा रहा है |
         यह पलायित श्रम अपने अविकसित क्षेत्र का सर्वाधिक पुष्टता कारक तत्व होता है | दूसरे शब्दों में इन्हें उनके पिछड़े क्षेत्र का मक्खन कहा जा सकता है | अपने क्षेत्र का सर्वाधिक पुष्ट तत्व होने के बावजूद  एवं अपनी सस्ती सौदेबाजी की ( बारगेनिंग पॉवर ) के कारण ही यह श्रमिक विकसित क्षेत्र में जाकर श्रम प्रतियोगिता में आगे रहता है और अपने अविकसित क्षेत्र के पिछड़ेपन की कीमत पर विकसित क्षेत्रों की समृद्धि तथा सौंदर्य का साधन बनता है | यह स्थिति अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण और अवांछित भी है | यदि हम अविकसित क्षेत्रों को विकसित करके संतुलित आर्थिक विकास का सपना साकार करना चाहते हैं , तो सर्वप्रथम इन अविकसित क्षेत्रों के सर्वाधिक पुष्टता कारक तत्व यानी श्रम के पलायन को रोकना होगा | यदि ऐसा न किया गया तो अविकसित क्षेत्र का पूरा का पूरा मक्खन विकसित क्षेत्र के हिस्से में आता रहेगा और अविकसित क्षेत्र को अपने बचे कुचे छाछ से ही संतोष करना पड़ेगा | इस प्रकार विकसित और अविकसित क्षेत्रों की खाई मे कभी भी कमी नही हो सकेगी , वरन यह बराबर बढती ही जायेगी | अतः संतुलित आर्थिक विकास के उद्द्येश्य से सर्वप्रथम इस श्रम पलायन की प्रवत्ति के ऊपर हमें प्रभावी ढंग से अंकुश लगाना पड़ेगा , जिसके परिणामस्वरूप अविकसित क्षेत्रों के विकास की संभावना एवं वातावरण बन सकेगा |
     इस  महान उद्द्येश्य की प्राप्ति की दिशा में क़ानून तक बनाया जाना चाहिए | परन्तु यह भी सच है की कोई क़ानून की प्रवत्ति पर नियंत्रण करने में कभी सहायक नही हुआ है | अत्यो इस श्रम पलायन के कारक तत्वों की चांबान करके तदनुसार उपचार ढूँढना अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है | वैसे अधिक मजदूरी मिलने के कारण ही श्रमिक बाहर चला जाता है यदि उतनी ही आकर्षक मजदूरी के अवसर उनके घर के आसपास उपलब्ध करा दिए जाएँ तो वे अपना घर बार छोड़कर क्यों प्रवासिय होंगे | अभी तक हमारे आर्थिक विकास कार्यक्रमों का लाभ अविकसित क्षेत्रों के अवशिष्ट जनों को मिलता आया है जो अपनी कुंद शमता के कारण न केवल सार्वजनिक धन के दुरूपयोग का माध्यम बनते आये हैं , इससे उनका तथा क्षेत्र को कोई लाभ नही मिल पता है | यदि आर्थिक विकास कार्यक्रमों का लाभ इन मक्खंरूपी श्रमिकों को दिया जाय तो वे अपनी देख रेख में १-२ अति अविकसित व्यक्तियों को भी लाभान्वित कर सकेंगे | इससे अविकसित क्षेत्रों का विकास भी हो सकेगा | इन पलायन किये गए श्रमिकों को इस प्रकार पुनर्वासित करने के उपरान्त गरीबी रेखा के नीचे के अव्शिश्त्जनों के विकास का कार्यक्रम हाथ में लिया जा सकता है जिसमे उनमें जोखिम उठाने की कमी की प्रतिपूर्ति भी इन कुशल श्रमिकों के द्वारा करायी जा सकती है | इससे सार्वजानिक धन का सदुपयोग तो होगा ही गरीबी रेखा के नीचे के लक्षित परिवारों को वास्तविक रूप में लाभान्वित किया जा सकेगा | इस प्रक्रिया से विकास कार्यक्रमों के प्रभाव के वाश्पायन से बचा जा सकेगा और सीमित साधनों का दुरुपयोग रोककर उनसे अधिकाधिक लाभ लिया जा सकेगा |
                             इसके लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों को नए सिरे से संगठित करना पड़ेगा , जिससे इसका लाभ बिचौलियों को न जा सके | इसके लिए १००-१५० व्यक्तियों के लिए स्थानीय कचे माल पर आधारित उद्योग स्थापित किया जा सकता है जैसे चित्रकूट में आंवले के लाखों पेड़ जंगले में है जिनपर आधारित उद्योग धंधा स्थापित किया जा सकता है इसी प्रकार यहाँ जड़ी बूटियों के काम को हाथ में लेकर क्षेत्रवासियों तथा क्षेत्र को लाभान्वित किया जा सकता है | उद्योग धंधों के विकेन्द्रीयकरण से संतुलित आर्थिक विकास का सपना सार्थक किया जा सकता है ओर श्रम पलायन की प्रवत्ति पर भी कारगर ढंग से रोक लगायी जा सकती है |  सामाजिक समस्याएँ

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा