Saturday, January 29, 2011

बुंदेलखंड का अलग राज्य बनाये जाने का औचित्य

बुंदेलखंड आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-भाषायी समानता वाला एक अलग व स्वतन्त्र भौगोलिक प्रक्षेत्र है, जो आजादी के ६३ साल बाद भी उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के मध्य अप्राकृतिक व अवैज्ञानिक रूप से बटा अब तक विकास की बाट जोह रहा है, जबकि देश के अधिकांश हिस्से विकास की राह पर काफी आगे बढ़ गए हैं | इसी कारण बुंदेलखंड आज देश के सबसे गरीब व पिछड़े क्षेत्र के रूप मे जाना-पहचाना जाता है, जबकि प्राकृतिक, वन व खनिज सम्पदा तथा पर्यटन स्थलों की दृष्टि से बुंदेलखंड अत्यधिक समृद्ध है और जिनका उपयोग करके बुंदेलखंड को बहुत अधिक विकसित किया जा सकता है | बुंदेलखंड का इतिहास, संस्कृति, सामाजिक रीति रिवाजों/ परम्पराओं, बोली मे समानता है और लोगों मे अपने पन तथा भावनात्मक एकता की भावना का होना बुंदेलखंड क्षेत्र की विशेषता है |      
               उपरोक्त पृष्ठिभूमि मे बुंदेलखंड के पिछड़ेपन के कारणों एवं उपायों के सम्बन्ध मे  गंभीरतापूर्वक विचार करना बहुत आवश्यक हो गया है | बुंदेलखंड मे उत्तर प्रदेश का झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट जनपद तथा मध्य प्रदेश का दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दमोह, कटनी जनपद, सतना जनपद का चित्रकूट विधान सभा क्षेत्र, गुना जनपद का चंदेरी विधान सभा क्षेत्र, शिवपुरी जनपद का पिछोर विधान सभा क्षेत्र, भिंड जनपद का लहर विधान सभा क्षेत्र, नरसिंह जनपद की गाडरवाला तहसील, विदिशा, साँची, गंज बासौदा क्षेत्र आता है |                                 यह एक निर्विवाद सत्य है कि बुंदेलखंड का विकास तभी संभव हो सकता है, जब पूरी ईमानदारी तथा निष्ठांपूर्वक बुंदेलखंड क्षेत्र की विशिष्ट समस्याओं की पहचान करके उनका समाधान ढूंढने का प्रयास किया जाय | यह तभी संभव हो सकता है, जब उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश से अलग करके बुंदेलखंड राज्य गठित किया जाये और बुंदेलखंड राज्य की धरती पर बैठ कर इस क्षेत्र की समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान की योजना बनाकर बुंदेलखंड के लोगों द्वारा ही सम्पादित किया जाय | तभी इस क्षेत्र के बिपुल संसाधनों का उपयोग करके बुंदेलखंड के लोगों का कल्याण करना संभव हो सकेगा | अभी तक भिन्न आर्थिक-सामाजिक-भौगोलिक परिवेश(लखनऊ-भोपाल) से बुंदेलखंड वासियों के लिए योजना विरचन तथा कार्यान्वयन सम्बन्धी कार्य सम्पादित किये जा रहे हैं | इसी दोष पूर्ण कार्य पद्धति के कारण ही आजादी के ६३ वर्ष तक बुंदेलखंड पिछड़ा का पिछड़ा बना हुआ है और जन अपेक्षाएं निरंतर उपेक्षित हो रही हैं | अतयव बुंदेलखंड की वर्तमान स्थिति को आगे भी अनंत काल तक बनाये रखना औचित्य पूर्ण नही प्रतीत होता है और न ही इस क्षेत्र की जनता ही यह बर्दास्त करेगी |
          उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य मे ही कदाचित बुंदेलखंड आज दोनों राज्यों व केंद्र सरकारों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया है, जो एक दूसरे से आगे बढकर बुंदेलखंड के विकास की बातें कर रही हैं और काफी धनराशियाँ भी आबंटित कर रही है, पर दूरस्थ प्रणाली द्वारा संचालित होने के कारण इन विकास परक प्रयासों का लाभ न तो बुंदेलखंड को मिल पा रहा है और न ही बुंदेलखंड की धरती पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव ही परिलक्षित हो रहा है |  
        देश मे बुंदेलखंड की ही तरह उपेक्षित व पिछड़े क्षेत्रों को अलग करके उत्तराँचल, छत्तीस गढ़, झारखण्ड आदि राज्य बनाये गए हैं | जिसका अत्यधिक सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है | नये राज्यों के बनने के बाद वहां के निवासियों मे अदम्य उत्साह का संचरण हुआ है | इन राज्यों का विकास कई कई गुना बढ गया है और वे अपने पुराने पैत्रिक प्रान्त को विकास की दौड़ मे काफी पीछे छोड़ कर काफी आगे बढ गए हैं | इसका मुख्य कारण अपने राज्य की धरती पर बैठ कर वास्तविक जरूरतों और समस्याओं की पहचान कर सम्यक योजना विरचन एवं कार्यान्वयन द्वारा अपना विकास करना रहा है | अलग राज्य बनने के पश्चात् इन राज्यों के निवासियों मे निजता और आत्म निर्णय का भाव पैदा हुआ है और सभी मिलकर अपने अपने प्रदेशों को तेजी के साथ आगे बढ़ने की ओर चल पड़े हैं |
       बुंदेलखंड की एक विशेष बात यह भी है कि बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश दोनों राज्यों के अंतर्गत आता है | अतयव दोनों प्रदेशों द्वारा समान समस्याओं के सन्दर्भ मे समान, समन्वित व एकीकृत प्रयास नही हो पाता है | इसके अलावा यह भी ध्रुव सत्य है कि अनेकानेक कारणों से दोनों प्रान्त सरकारें यह नहीं चाहती कि उनका कोई अंश उनसे अलग हो | यह भी सही है कि बन व खनिज सम्पदा की दृष्टि से मध्य प्रदेश स्थित बुंदेलखंड अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध है | अतयव बुंदेलखंड के बृहत्तर एकीकरण के फलस्वरूप सम्पूर्ण बुंदेलखंड का सही मायने मे विकास संभव हो सकेगा और संसाधनों की कमी बाधक नही साबित होगी | तब हम देखेंगे कि देश के अन्य नव सृजित प्रदेशों की भांति बुंदेलखंड के लोग भी हीन भावना से उबरकर स्वाभिमान और निजता के भाव से अपना व क्षेत्र का विकास कर सकेगे |                 
          बुंदेलखंड के अलग प्रान्त की मांग करने वाले कई संगठन/ संस्थाएं एतदर्थ कार्य कर रही हैं, उनके प्रयासों मे एकरूपता, समन्वय व परस्पर सहयोग का अभाव देखने मे आ रहा है | अतयव यह आवश्यक प्रतीत होता है कि इस दिशा मे क्रियाशील समस्त संगठन/ संस्थाओं/ व्यक्तियों को चाहिए के वे अपने अहम् को तिलाजली देकर समन्वित, एकीकृत एवं सहयोगात्मक प्रयास करना चाहिए | तभी इस वृहत्तर लक्ष्य को शीघ्रतापूर्वक प्राप्त करना संभव हो सकता है और यही बुंदेलखंड के हित मे है |    

 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

ग्राम सचिवालय:एक यथार्थ परक एवं उपयोगी अवधारणा

 प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र होना एक अनिवार्य अपरिहार्यता है | अर्थात प्राण केंद्र विहीन किसी  संरचना की कल्पना तक नहीं की जा सकती | श्रृष्टि संरचनात्मक विधान मे परमाणु सबसे छोटी इकाई होती है, जिसका भी प्राण केंद्र अवश्यमेव ही होता है | इलेक्ट्रान तथा प्रोटान उक्त परमाणु से सम्बद्ध रहकर उसकी निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | समस्त परमाणुओं का समग्र रूप एक ग्रह यानि पृथ्वी की संरचना को आकार देता है | पृथ्वी का गुरुत्व केंद्र इसका प्राण केंद्र और चन्द्रमा पृथ्वी का इलेक्ट्रान है, जो पृथ्वी के प्राण केंद्र से आबद्ध रहकर पृथ्वी के अंश के रूप मे इसकी निरंतर परिक्रमा करता रहता है | सूर्य सौर्य-मंडल का प्राण केंद्र है और सारे ग्रह-उपग्रह सूर्य से आबद्ध रहकर  सूर्य की निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | ब्रह्माण्ड मे असंख्य सौर-मंडल हैं और समस्त सौर-मंडल एक महा-सौर-मंडल की संरचना करते हैं | महा सूर्य की स्थिति इस महा-सौर-मंडल के  प्राण केंद्र की है और सारे सौर-मंडल इस महा-सूर्य से आबद्ध रहकर महा-सूर्य की निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | यह क्रम आगे भी उस अंतिम सत्ता तक चलता रहता है, जिससे आबद्ध रहकर ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाएं उसकी परिक्रमा करती रहती हैं | यह परम सत्ता पूरे ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं का परिचालन, नियंत्रण तथा पोषण करता है | इस प्रकार यही सर्व शक्तिमान, सर्व विद्यमान एवं सर्व नियंतात्मक सत्ता है |  इसी परम सत्ता को हम-सब परम पुरुष अथवा ब्रह्म के नाम से जानते हैं |
            उपरोक्तानुसार श्रृष्टि संरचना विधान की तरह ही समाज संरचना की भी स्थिति है | परमाणु की तरह ग्राम सबसे छोटी इकाई होती है | ग्राम प्रधान प्रत्येक ग्राम संरचना का प्राण केंद्र होता है | समस्त ग्राम स्तरीय कर्मचारियों की स्थिति प्रधान के सचिवों के समान ही होती है | लेखपाल राजस्व सचिव, ग्राम सेवक विकास सचिव, पंचायत सेवक पंचायत सचिव, बी एच डब्लू स्वास्थ्य सचिव, सींचपाल सिचाई  सचिव, प्रधानाध्यापक शिक्षा सचिव, लाइनमैन विद्युत् सचिव की भांति होते हैं | वास्तव मे ग्राम प्रधानों की स्थिति इन सभी ग्राम स्तरीय सचिवों के अध्यक्ष एवं समन्वयक की तरह  हैं | विकेंद्रीकरण की स्थिति मे अब ग्राम प्रधान पहले से अधिक प्रभावी व शक्तिशाली बन गए हैं और वे ग्राम स्तरीय कर्मचारियों के नियंत्रक बन गए हैं | परन्तु इस स्वस्थ स्थिति का समुचित संज्ञान न तो शासन- प्रशासन को है, और न ही प्रधान व उसके विभिन्न सचिवगण को ही इसका अथोचित सज्ञान होता है | यही कारण है कि उपरोक्तानुसार विभिन्न ग्राम स्तरीय कर्मचारियों एवं विभागों का कार्य कलाप सही ढंग से नहीं हो पा रहा है और विकाश सही व सकारात्मक रूप से नहीं संभव हो पाता है | उपरोक्तानुसार परिस्थितियों मे शासन- प्रशासन विकास का अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने मे असफल होता सा प्रतीत होता है |                  
         १९७९-८२ तक अपर जिलाधिकारी (परियोजना) फतेहपुर के अपने कार्यकाल मे मैंने इस विसंगति को देखा था और इस सम्बन्ध मे गहन अनुशीलन के पश्चात् अपना मत निर्धारित कर लिया था | उस समय मैंने शासन को तत्क्रम मे एक तथ्य परक सुझाव भी भेजा था, पर इस सम्बन्ध मे शासन स्तर से  समुचित पहल अब तक संभव नहीं हो सकी है | यही कारण है कि विकास की यात्रा मे हम आज तक वांक्षित स्तर तक नही पहुँच पाए हैं | तत्क्रम मे मेरा सुझाव था ग्राम सचिवालयों की स्थापना | इस अवधारणा मे मात्र इतनी सी बात है कि यह सर्वमान्य तथ्य है कि ग्राम प्रधान ग्राम पंचायत का अध्यक्ष होता है | इसके अलावा सारे ग्राम स्तरीय कर्मचारी ग्राम प्रधान के सचिव के रूप मे होते हैं | इस तथ्य को प्रधान व उसके सचिवों को भली भाति समझना समझाना आवश्यक है | प्रधान का अपने समस्त सचिवों के साथ सप्ताह मे एक दिन किसी  नियत स्थान पर बैठना आवश्यक है | तभी प्रधान का उनके नियंत्रक व समन्वयक होने की सार्थकता सिद्ध होगी | इसे ही हम ग्राम सचिवालय का नाम दे सकते हैं | ग्राम वासियों की सामान्यतया यह शिकायत रहती है कि वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए विभिन्न ग्राम स्तरीय कर्मचारियों का चक्कर लगाते हुए महीनो भटकता रहता है, परन्तु ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता से नहीं मिल पाने के कारण उसका काम नहीं हो पाता है | इसका एक कारण यह भी होता है कि ग्राम स्तरीय कार्यकर्ताओं का कोई निश्चित कार्यालय नहीं होता, जहाँ उससे मिला जा सके | इसके अलावा विभिन्न कर्मचारियों का भी एक दूसरे से काम भी हो सकता है | ऐसी स्थिति मे भी ग्राम सचिवालय स्थापित करने की सार्थकता प्रमाणित होती है |
          यह स्वागत योग्य बात है कि ग्राम सचिवालय की स्थापना के औचित्य के बारे मे आज देर से ही सही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विचार प्रारंभ हो गया है | मुझे तो इससे ही विशेष ख़ुशी मिल रही है कि मेरे तीस साल पुराने चिंतन एवं प्रस्ताव के क्रम मे कमसे कम अब पहल शुरू हो रहा है , पर आशाजनक एवं सार्थक परिणाम पाने के उद्देश्य से ग्राम सचिवालय की अवधारणा को सही परिप्रेक्ष्य मे समझ कर ईमानदारी पूर्वक  कार्यान्वयन सुनिश्चित करना भी बहुत आवश्यक है | 

 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Saturday, January 8, 2011

बचत की आदत:विकास का मूलमंत्र

    संकटकालीन समय तथा भविष्य की आकस्मिक  ज़रूरतों  के लिए बचत करना एक अत्यधिक स्वाभाविक मानव स्वभाव है  और यह विकास एवं कल्याण के लिए बहुत आवश्यक भी  है  | मनुष्यों की बात तो दूर  यहाँ तक कि जानवरों  मे भी संकट काल  के लिए बचत करने की प्रवृति व व्यवहार देखने को मिल जाता  है | गिलहरी, चींटी, ऊंट और हाथी आदि लगभग अधिकांश  जानवरों मे  भविष्य की संकट कालीन स्थिति के लिए संग्रह करने की प्रवृति पाई जाती है | जबकि जानवर वर्तमान मे ही जीते हैं और उनमे भविष्य के लिए चिता करने का भाव व  स्वभाव नहीं होता है | इसे ही हम बचत की सार्वभौम आदत की संज्ञा दे सकते हैं | मनुष्यों मे तो  बचत की आदत एक  अपरिहार्यता  है | अतयव वे मनुष्य,  जिनमे बचत की आदत नहीं होती, जानवरों से भी गए गुजरे माने जावेगें |            
             इस बचत की आदत के  न होने के कारण प्रायः छोटी व सामान्य सी समस्याएं  पहाड़ जैसी दुर्गम एवं कठिन लगने लगती हैं | एक उदाहरण लेकर मैं इसे स्पष्ट करना चाहूँगा | लडकियाँ सामान्यतया इस कारण भार- स्वरूप प्रतीत होती हैं कि उनकी शादी आदि प्रयोजनों  मे काफी खर्चा करना होता है | बचत की यही आदत  लोगों को इस गंभीर  चिंता से मुक्त करा सकती  हैं | लड़की के माता पिता लड़की के जन्म के समय  ही  अपने आर्थिक- सामाजिक स्तर के अनुसार कुछ  हजार अथवा  कुछ  लाख रुपया २० साल के लिए लड़की के नाम सावधि जमा करा देते हैं, तो शादी के समय  अपेक्षित धन की व्यवस्था स्वतः  हो जावेगी | ऐसी स्थिति मे लडकियों को भार स्वरूप समझने की स्थिति नहीं रह जाएगी | इतना ही नहीं , लडको की ही तरह यदि लड़कियों को भी पढ़ा लिखा कर आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बना दिया जाता है तो लड़की भी लड़कों की तरह कमाने योग्य अर्थात asset बन जावेंगी | इससे लड़कों को asset तथा लड़कियों को liability समझ कर दहेज़ लेने व देने की कुरीति को समूल समाप्त करना भी  संभव हो सकता है , क्योंकि दहेज़ का मूल कारण आर्थिक ही है |.   
             अब बचत की इस आदत को न अपनाने के दुष्परिणाम की तरफ यदि हम दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि गरीबों उन्मूलन सहित तमाम ऋण योजनाओं मे किस्त देने हेतु अपेक्षित बचत करना अपरिहार्य  होता है , तभी ऋणी व्यक्ति बैंकों व तहसील का बकायेदार बनकर उत्पीडित होने  तथा वारंट गिरफ़्तारी आदि खतरनाक व घातक हथियारों के आघात से बचा रह सकता है | सरकारी मशीनरी तथा बैंक अपने कर्जों की वापसी हेतु किस्त भुगतान हेतु अपेक्षित धनराशि एकत्रित रखने के आशय से बचत करने की आदत डलवाने का प्रयास नहीं करते जो उनके तथा उनकी संस्था के लिए भी लाभदायक होता है | पर यह लोग कर्जदारों के पास तभी पहुंचते हैं, जब उनके शस्त्रागार मे वारंट- कुर्की- गिरफ़्तारी जैसे मारक व कारगर  हथियार आ जाते हैं | उनका यह व्यवहार मनुष्य का मनुष्य के साथ अपनाने जाने योग्य न होकर जात- शत्रुओं के साथ अपनाने वाले व्यवहार जैसा ही होता है |     
        कुछ लोग तो लोगों द्वारा बचत की आदत डालने के ही पक्षधर नहीं होते | ऐसे चार्वाक दर्शन के मानने वालों का मानना है कि " यावत जीवेत सुखं जीवेत , ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत  |                   भस्मीभूतस्य  देहस्य पुनरागमनं  कुतः | " ऐसी सोंच वाले लोग मनुष्य जाति और मनुष्यता के खतरनाक  शत्रु हैं और इससे मानव का विकास व कल्याण मे सर्वाधिक बाधा पहुंचती है |   
        इसीलिए मानव कल्याण व विकास के हित मे बचपन से ही बचत की आदत डलवाना परिवार, सरकार, समाज तथा शिक्षण संस्थाओं के दायित्व में सामिल होना चाहिए | इसके अलावा बचत की आदत को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक स्तर पर हर प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | बैंकों द्वारा ऋण देने के साथ ही ऋण वापसी हेतु कमसे कम किस्त की धनराशि के बराबर बचत सुनिश्चित कराने का दायित्व भी बहन करना चाहिए और ऋण वापसी न सुनिश्चित हो पाने  की दशा में आधी जिम्मेदारी बैंकों को बहन करना चाहिए |      
          कुछ लोगों का मानना है कि केवल खूब खाते- पीते लोगों द्वारा ही बचत की आदत डालना संभव है जो सही नहीं है | जबकि सही बस्तुस्थिति यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, यहाँ तक कि भिखारी भी बचत कर सकता है और ५० - १०० रूपये का रिकरिंग डिपाजिट का खाता खोलवा कर इस खाते को निरन्तर चला सकता है | इसके लिए सबसे जरुरी चीज है इच्छा शक्ति की, जो हर एक मनुष्य के पास हो सकती है और इसके लिए व्यक्ति का आत्म विश्वास ही अपेक्षित होता है | तभी तो कई भिखारियों के मरने के बाद यह प्रायः देखने मे आता रहता है कि वे अकूत सम्पतियों व बड़े कारोबार के मालिक रहे हैं |     
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा