Saturday, May 15, 2010

ग्रामीण ऋणग्रस्तता , साहूकारी और किसान क्रेडिट कार्ड

ग्रामीण क्षेत्रो विशेषकर बुंदेलखंड मे गरीबी अपेक्षाकृत अधिक है | यहाँ के ग्रामीणों मे बचत की आदत बिलकुल ही नहीं है और उनकी स्थिति बचत करने लायक भी नहीं है | ऐसी स्थिति मे उनके पास कोई धनराशि एकत्रित नहीं होती , जिसे वे बीमारी आदि आकस्मिक जरूरतों मे खर्च कर सके | शादी , बीमारी आदि अवसरों पर होने वाले आकस्मिक एवं बड़े खर्चो हेतु अपेक्षित धनराशि उनके पास बिलकुल नहीं होती | ऐसी स्थिति मे उन्हें इन आकस्मिक प्रयोजनों हेतु उसे गावं  के प्रभावशाली एवं धनवान व्यक्तियों से कर्ज  लेना पड़ता है और कभी कभार साहूकारों से भी कर्जा लेना पड़ता है | बुंदेलखंड मे तो दादू ( गाँव का दबंग व्यक्ति ) भी साहूकार बन जाता है | इन सभी की ब्याज दरें बहुत अधिक होती है | कर्ज मे ली गयी यह धनराशि अनुत्पादक कार्यो पर व्यय होने के कारण इनसे कोई आमदनी नहीं होती ,जिससे कर्जा वापस करने हेतु कभी वे सक्षम नहीं हो पाते | उनकी कमर तो व्याज चुकाने हेतु धन एकत्र करने मे ही झुक जाती है | मूलधन वापसी के बारे मे वे सोंच नहीं सकते | इसी कर्ज और ब्याज के चक्रव्यूह मे फंसे इस ग्रामीण को परिथितियाँ उसे एक तरह कर्जदार का बंधुआ भी बना देती है | 
      वैसे साहूकारी अधिनियम मे पंजीकृत साहूकार ही साहूकारी व्यवसाय कर सकते हैं | परन्तु साहूकारी अधिनियम मे पजीकरण कराये बिना तमाम साहूकार बुंदेलखंड मे कार्य कर रहे हैं | लागों की अज्ञानता और शिकायत न करने के कारण ही कदाचित इन गैर कानूनी साहूकारों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो पाती है | इस ऋण ग्रस्तता से त्रस्त बुंदेलखंड का ग्रामीण कभी तो अपनी जमीन खो देता है तो कभी ऋण दाता आजीवन बंधुआ बन कर रह जीता है | कभी कभी तो वह आत्महत्या कर बैठता है | एक बहुत ही शर्मनाक प्रकरण चित्रकूट मे मेरे संज्ञान मे आया था | लगभग ४० साल पहले की यह घटना है ,जब एक ग्रामीण अपने बच्चे के इलाज के लिए १०० रूपये मागने एक दादू के पास गया तो उक्त दादू ने उसकी बेटी को उपने पास गिरवी रख कर १०० रूपये का कर्ज दिया था | उसकी बेटी लगभग ३० साल तक उक्त दादू का घरेलु काम और उसकी कामेक्षा पूरी करते हुए ३ बच्चे भी पैदा किया , फिर भी १००  रूपये का कर्ज नहीं उतरा | यह है ग्रामीण ऋण ग्रस्तता का सबसे भयानक चेहरा | ऐसे कई उदाहरण तलाश करने पर मिल जायेंगे |
        गाँव स्तर पर बैंक खुल जाने पर इस समस्या पर कुछ रोक तो अवश्य लगी है , पर अभी भी यह समस्या समाप्त नहीं हो पायी है | बैंको ने भी उन्हें लाभान्वित करने के बजाय ऋण ग्रस्तता से ही जकड रखा है | बैंक किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से गांवों मे भी उपभोक्ता संस्कृति तथा चार्वाक का भोगबाद ले आयें है | क्रेडिट कार्ड से शादी व्याह , मुंडन कनछेदन , मोटर  साइकिल खरीदने आदि पर खुलकर अनुत्पादक व्यय कर रहे है , जिनसे कर्ज चुकाने हेतु कोई आय श्रृजन नहीं होता | गाँव का व्यक्ति इतना पढ़ा लिखा और जागरूक नहीं होता कि वह किसान क्रेडिट कार्ड की किस्तें समय से जमा कर सके | इसके चलते ब्याज दर ब्याज एवं अर्थदंड आदि के कारण उसकी देनदारियां बढती जाती है और वह ऋण ग्रस्तता के उस मुकाम पर पहुँच जाता है जहाँ उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता और आत्महत्या करने के अलावा उसके समक्ष कोई विकल्प नहीं बचता है | आज इस तरह आत्महत्या के कगार पर बुंदेलखंड के ही हजारों लोग खड़े दिखाई पड़ेगे | यदि कुछ साल पहले सरकार ऋण माफ़ी की योजना न लाती तो अकेले बुंदेलखंड मे हजारो किसान अत्म्हात्याया कर चुके होते  | आज भी लोग सरकार की ऋण माफ़ी योजना पुनः आने की आस लगाये बैठे हैं और इसी उम्मीद मे कर्ज की किस्तों का भुगतान नहीं कर रहें हैं |इस प्रकार किसान क्रेडिट कार्ड वस्तुतः लोगों को ग्रामीण ऋण ग्रस्तता से मुक्त कराने नहीं बरन चार्वाक दर्शन के अनुसार उन्हें और अधिक ऋण ग्रस्त बनाने वाला कदम के अलावा कुछ नहीं है | इसी प्रकार सरकार की ऋण माफ़ी योजना ग्रामीणों के लिए हितकारी न होकर घातक ही सिद्ध हो रही है |
       आवश्यकता इस बात की है कि लोगो को अपनी आवश्यकताएं कम करके अपनी आय तक सीमित रखने का पाठ पढ़ाने तथा तदनुसार परिथितियाँ उत्पन्न करने का सरकार द्वारा प्रयास करना चाहिए | वस्तुतः जीवन का लक्ष्य भोग न होकर संतुष्टि है और संतुष्टि आवश्यकताओं को बढ़ाने के बजाय उन्हें सीमित व नियंत्रित करने मे निहित होती है | अतः सरकारों को पुनर्विचार करके जनहित के अनुकूल नीतियाँ बनानी चाहिए , जिससे जनता को लाभ ही लाभ हो |  

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Friday, May 14, 2010

वृक्षारोपण एवं पर्यावरण

बुंदेलखंड पहले बहुत हरा भरा एवं खुबसूरत क्षेत्र होता था ,किन्तु आज बुंदेलखंड बृक्ष विहीन क्षेत्र सा लगता है | अनियंत्रित खनन ने जहाँ यहाँ के पहाड़ों को नष्ट करके इसकी सुन्दरता को कम कर दिया है , वहीँ बृक्षों की अवैध कटानों ने यहाँ की हरियाली को समाप्त करके इसे सूखा क्षेत्र बना दिया है | गर्मी के दिनों मे  केवल तेंदू पत्ता के पेंड़ों के कारण ही थोड़ी बहुत हरियाली दिखाई देती है | कम बृक्ष होने के कारण वर्षा भी कम होती है | अतयव बृक्षों का बहुत बड़े पैमाने पर रोपण किया जाना यहाँ की सबसे बड़ी जरूरत है|
      वैसे तो बृक्षों के रोपण पर सरकार का भी बहुत जोर है , परन्तु सरकारी कार्यक्रम लक्ष्य पर आधारित होते है और लक्ष्य पूरा होने मात्र से सरकार संतुष्ट हो जाती है | अतयव सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य पूरा होने पर लक्ष्य पूरा करने वाले ही इसे भूल जाते हैं और अगले वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने मे जुट जाते हैं | जिसके कारण पहले लगाये  गए बृक्षों का रख रखाव व रक्षा नहीं हो पाती और कराये गए वृक्षारोपण का प्रभाव पूर्णतया वाष्पायित हो जाता है | इस कारण लगाये अधिकांश बृक्ष नष्ट हो जाते हैं | यदि सरकार द्वारा प्रारंभ से लगवाये गए बृक्षों का सज्ञान लिया जाये तो देश की धरती  के हर इंच पर पेंड लगे हुए प्रतीत होंगे , जबकि जमीनी हकीकत इसके बिलकुल बिपरीत दिखाई देती है |
     बृक्ष लगाना हमारे जीवन और खुशहाली से जुड़ा कार्य है ,अतयव इसे सरकार के भरोसे छोड़ देना उपरोक्तानुसार स्थिति  के परिप्रेक्ष्य मे आत्महत्या के समान है | अतः इस कार्य को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता का कार्य मानकर जनता को इस काम को अपने हाथ मे लेना पड़ेगा | तभी यथार्थ मे पेंड लगेगे और पेंड लगने के बाद जीवित भी रहेगे व उनका समुचित रखरखाव संभव हो सकेगा  |
     मुझे इससे जुड़े एक प्रेरक प्रसंग का स्मरण हो रहा है | भगवान् बुद्ध एक समय अपने एक शिष्य के अत्यधिक अनुरोध पर उसके पुत्र के जन्म दिन के  उत्सव मे शामिल हुए थे | शिष्य अतिथियों की आवभगत से मुक्त होकर जब बुद्ध भगवान के समक्ष पंहुचा तो जन्मदिन मानाने मे व्यस्त होने के कारण उनसे क्षमा याचना की | मुस्काते हुए भगवान ने कहा कि क्या जन्मदिन मना लिया और जन्मदिन  पर क्या किया | इस पर शिष्य ने सोचा कि भगवान को क्या यह बताना उचित होगा कि उसने खा लिया और खिला दिया ? संकोच वश उसने घबराते हुए पूछ ही लिया कि भगवान क्या जन्मदिन नहीं मानना चाहिए ? इसपर भगवान ने जो उत्तर दिया वह पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सन्देश था |  भगवान बुद्ध ने बताया कि हर एक मनुष्य को जन्मदिन अनिवार्यतः मानना चाहिए और अपने जन्मदिन पर व जन्मदिन न पता होने पर जन्मदिन के उपलक्ष्य मे एक पेंड अवश्य लगाना चाहिए | जन्मदिन के अवसर पर उसे हिसाब लगाना चाहिए कि उसकी उम्र कितनी हो गयी है और क्या उसने आज तक उतनी संख्या मे पेंड लगा लिए हैं ? इसमें कोई कमी है तो उसे इसी वर्ष या अगले २-३ वर्षों मे पूरा करने की कार्ययोजना बना लेनी चाहिए | यदि भगवान बुद्ध की इस सीख को सभी लोग अमल मे आयें तो २-३ वर्षों मे बुंदेलखंड ही क्या पूरा प्रदेश व देश ही हरियाली से लहलहा उठेगा और पर्यावरण का संकट तो छू मंतर हो जाएगा | इस प्रकार से होने वाला वृक्षारोपण जन्मदिन से जूडा होने के कारण नष्ट होने भय से मुक्त रहेगा |
       चित्रकूट जनपद मे जिलाधिकारी के रूप मे मैंने इस महामंत्र का प्रयोग किया था , जिसके बहुत ही आशाजनक परिणाम देखने को मिले थे | स्कूलों के छोटे छोटे बच्चों को भगवान बुद्ध की इस कहानी के माध्यम से इस कार्यक्रम से जोड़ा गया था | इसके परिणामस्वरूप बच्चो ने न केवल अपना वरन परिवार के हर सदस्य से उनका जन्मदिन मनवाया , क्योकि बच्चो को जन्मदिन मनाना सबसे अच्छा लगता है | इसके फक्स्वरूप बहुत सारे पेंड लगे थे और पर्यावरण मे बहुत सकारात्मक परिवर्तन हुए थे | यहाँ तक कि जनपद का अधिकतम तापमान २ डिग्री प्रति वर्ष के अनुसार कम हुआ था | एक सुबह मै इलाहाबाद से चित्रकूट आ रहा था , उस समय रस्ते मे ५०० बच्चे एक हाथ मे बस्ता और एक हाथ मे पेंड लिए हुए दिखाई दिए थे | इस दृश्य ने मुझे इस कार्यक्रम की सफलता के प्रति आश्वस्त किया था |
         एक अन्य प्रसंग का यहाँ स्मरण करना प्रासंगिक प्रतीत होता है | एक अस्सी साल के बूढ़े से उसके पोते ने पूंछा कि बाबा आप आम का पेंड क्यों लगा रहें हैं , जबकि पेंड मे आम का फल आने के समय तक उसका फल खाने के लिए आप शायद जिन्दा ही नहीं होंगे | इस पर उस बृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैंने उन  पेंड़ों के फल खाए हैं , जिन्हें मैंने नहीं लगाया था | इसी प्रकार मेरे द्वारा लगाये गए पेंड़ो के फल तुम और तुम्हारी अगली पीढ़ी खाएगी |    
         कुछ प्रचलित रीतिरिवाज एवं परम्पराएँ भी इस दिशा मे रचनात्मक एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं  है| ,पर उनका प्रभाव एक उसी क्षेत्र विशेष तक सीमित है | अतः इस सम्बन्ध मे सम्पूर्ण जानकारियां एकत्र कर पूरे देश को लाभान्वित करना चाहिए | इस प्रकार का एक उदाह की प्रजाति का चयन कर लेना उचित होगा | सीमा रूबा का पेंड बुंदेलखंड  मे लगाए जाने के कई लाभ हो सकते हैं | इसे  वर्षा कराने वाला पेंड यानि रेन ट्री भी कहा जाता है | इससे अधिक वर्षा तो होती है , सौ साल की आयु वाला यह पेंड पांच साल से आमदनी भी देने लगता है | अतःबुंदेलखंड मे इसका अधिक से अधिक पेंड लगाया जाना भी बहुत हितकारी होगा | इसी तरह सबसे ज्यादा वाटर रिचार्जिंग कराने वाले बरगद और पीपल के अधिक से अधिक पेंड़ों का लगाया जाना बहुत ही लाभकारी होगा | यह प्रमाणित है कि जहाँ जहाँ पीपल और बरगद के ज्यादा पेंड होते हैं , वहाँ वहाँ भूमिगत जलस्तर अपेक्षानुसार ऊपर होता है और जहाँ यह दोनों पेंड बहुत कम होते हैं . वहाँ भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला जाता है | इस प्रकार बुंदेलखंड मे विशेषतया इन तीनो पेंड़ों को अधिक से अधिक लगाना चाहिए |  

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Thursday, May 13, 2010

प्रधानी (पंचवर्षीय एवं त्रिस्तरीय ) चुनाव

उत्तर प्रदेश मे प्रधानी का चुनावी महासमर कुछ ही महीने दूर है | वैसे यह ग्राम पंचायत , क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत तीनो का एक साथ चुनाव होने के कारण त्रिस्तरीय है | परन्तु ग्रामप्रधान का चुनाव ही सबसे महत्वपूर्ण एवं मुख्य होता है | क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत के चुनाव ग्राम पंचायत चुनाव के साथ साथ स्वतः संपन्न हो जाते हैं | चूँकि ग्राम स्तर पर १००% लोग चुनाव मे दिलचस्पी लेते हैं और वे किसी न किसी के साथ होते हैं , प्रदेश का असली चुनाव यही होता है | इस चुनाव मे गावों का वातावरण बहुत ही गर्म एवं तनावपूर्ण हो जाता है | कभी कभी यह चुनाव खूनी जंग का रूप भी धारण कर लेता है और इस चुनाव मे चुनावी संघर्ष एवं हत्याएं भी सबसे अधिक होती है |
 
             पहले प्रधानी के लिए प्रत्याशी ही बड़ी मुश्किल से मिलते थे और सामान्यतया लोग प्रधान बनना झंझट का कार्य मानकर इससे कतराते थे | तब लोग सामान्यतया काफी मान मुनव्वल करके किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को प्रधान चुन लेते थे और इस प्रकार चयनित प्रधान निरन्तर कई कई पंचवर्षीय तक प्रधान बना रहता था | परन्तु विकेंद्रीकरण सम्बन्धी संबिधान संशोधन के बाद लोगों मे प्रधान बनने हेतु एक होड़ की प्रवृत देखने को मिल रही है | अब प्रधानो को बहुत सारे अधिकार मिल गएँ हैं और बहुत बड़े बजटीय प्राबधान पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त हो गया है | राष्ट्रपति से लेकर निम्नतम जन प्रतिनिधियों मे से अकेला प्रधान ही एकमात्र जन प्रतिनिधि है जिसे वित्तीय अधिकार प्राप्त है | आज बहुत सारे क्रियाकलाप ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र मे आ गएँ हैं और उन कार्यों से संबंधित समस्त ग्राम स्तरीय कर्मचारी प्रधान के नियंत्रण मे आ गएँ हैं | आज मनरेगा सहित अनेक योजनाओं का धन ग्राम पंचायत को आता है और ग्राम पंचायत को योजनाओं के चयन और उनके कार्यान्वयन का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गया है | इस प्रकार प्रधान का पद बहुत अधिक लाभकारी एवं आकर्षक बन गया है | इसी कारण प्रधानी के चुनाव मे मारामारी की स्थिति देखने को मिल रही है |
              प्रधान का पद चूँकि एक बहुत बड़ा शक्ति केंद्र बन गया है ,प्रधान को अपने पाले मे लाने की प्रतिद्वंदिता बिभिन्न राजनितिक दलों मे भी देखने को मिल रही है | यद्यपि प्रधान पद को अराजनीतिक माना गया है , परन्तु बिभिन्न राजनीतिक दल इस पद के किसी दावेदार की प्रत्याशिता तथा चुनाव मे परोक्ष रूप से गहरी रूचि लेते हैं और उक्त दल के कर्यकर्ता उसके सहायतार्थ लग जाते हैं | अभी चुनाव मे लगभग ६ माह शेष  हैं , किन्तु राजनितिक दल अभी से भावी प्रधान पर डोरें डालना शुरू कर दिया है |
             आज ग्राम पंचायतों मे इतना अधिक पैसा आ गया है कि साइकिल से चलने वाला व्यक्ति प्रधान बनते ही मोटर साइकिल से चलने लगता है और उसका कच्चा मकान पक्का बन जाता है | इसी तरह उसके रहन सहन के स्तर मे काफी सुधार आ जाता है | यदि उसे दुसरे पंचवर्षीय के लिए प्रधान बनने का अवसर मिलता है तो वह टू व्हीलर से फॉर व्हीलर पर चलने लगता है  , जबकि ७-८ पंचवर्षीय तक निरन्तर प्रधान बने रहने वाले पहले के प्रधान की स्थिति अपरिवर्तनीय रहती थी | आज के प्रधान कि खुशहाली को देखकर लोग प्रधान के पद को ललचाई दृष्टि से देखने लगें हैं | इस चकाचौंध से आकर्षित तथा गाँव मे वर्चश्व कायम करने के उद्देश्य से आज हर कोई प्रधान बनने की लालसा रखता है |
           बुंदेलखंड मे प्रधानी का चुनाव अत्यधिक संघर्षशील होता है | गत पंचवर्षीय चुनाव के समय सपा की सरकार थी , अतयव उस चुनाव मे सपा के वर्चश्व वाले प्रधान चुने गए थे | इस समय बसपा की सरकार है , अतयव बसपा सरकार होने का प्रभाव बर्तमान पंचवर्षीय चुनाव मे पड़ना स्वाभाविक है | चुनाव से ६ माह पहले अभी से इस सम्बन्ध मे जोड़ तोड़ ,भावी प्रत्याशियों पर डोरे डालने तथा चुनावी गणित पर काम शुरू हो गया है |
            इस समय चक्रानुसार आरक्षण के अनुसार सीटों का निर्धारण सम्बन्धी कार्य हो रहा है और यही सबसे क्रिटिकल क्षण है , जिसमे चुनाव की तय्यारी कर रहे व्यक्तियों के भविष्य का इस प्रकार निर्धारण हो रहा है  कि कौन सीट सामान्य रहेगी और कौन सीट आरक्षित | बर्तमान प्रधानो मे तो सबसे अधिक खलबली इसी समय है कि उनकी सीट यथावत रहेगी और वे पुनः प्रधान बन सकेगे या नहीं | इस समय सभी साम , दाम तथा दंड के द्वारा अपने हित मे सीटो का निर्धारण कराने के लिए जोड़ तोड़ करने मे लगें हैं |       
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Wednesday, May 12, 2010

ग्राम सचिवालय : एक अभिनव अवधारणा

 बिना प्राणकेंद्र के कोई संरचना नहीं हो सकती है ,यानी प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र अवश्य होता है | संरचना बिधान मे श्रृष्टि की सबसे छोटी इकाई परमाणु है ,जिसका प्राणकेंद्र और उसकी परिक्रमा करते हुए इलेक्ट्रान व प्रोटान परमाणु की पूर्ण संरचना का आभाष देते हैं | इसी तरह सामजिक - राजनीतिक संरचना की सबसे छोटी इकाई होती है ग्राम और ग्राम सचिवालय | प्रधान इस ग्राम सचिवालय का प्राणकेंद्र है और इस प्राणकेंद्र की परिक्रमा करने वाले इलेक्ट्रान व प्रोटान हैं इसके सचिव गण | ग्राम पंचायत विकास अधिकारी प्रधान का मुख्य सचिव होता है | लेखपाल  राजस्व सचिव , सींचपाल सिचाई सचिव , बी एच डब्लू स्वास्थ्य सचिव , पचायत सेवक पंचायत सचिव ,लाइनमैन ऊर्जा सचिव ,प्रधानाचार्य शिक्षा सचिव , कांस्टेबिल सुरक्षा सचिव आदि आदि अनेक सचिव ग्राम सचिवालय के अंग होते हैं जो प्रधान के सचिव के रूप मे कार्यरत होते हैं | यह एक आदर्श स्थिति को दर्शाता है जो कदाचित प्रधान व अधिकांश सचिवों के संज्ञान तक नहीं होता और तदनुसार यह व्यवस्था परिकल्पित ढंग से कार्य नहीं करती है | जब तक सभी घटक सम्यक रूप से इस अवधारणा से नहीं जुड़ेंगे , ग्रामों का यथोचित विकास संभव नहीं होगा और ग्राम सचिवालय की वास्तविक रूप से स्थापना नहीं हो सकेगी |
      यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ग्राम सचिवालय का मुखिया अपने सचिवों के साथ कभी नहीं बैठता और सचिव गण उसे कभी कोई परामर्श व सहायता नहीं देते | अतः सरकार को इस स्वस्थ व्यवस्था को उसके यथार्थ रूप मे लागू करना आवश्यक है ,तभी उपरोक्तानुसार प्राण केन्द्रीय संरचना विधान स्थापित होगा | इससे सबसे प्रारंम्भिक इकाई मजबूत होगी और इससे उच्च ,उच्चतर तथा उच्चतम इकाईयां भी मजबूत होंगी | ग्राम , न्याय पंचायत ,क्षेत्र पंचायत ,जिला पंचायत मे से प्रत्येक इकाई अपने से ऊपर की इकाई की परिक्रमा करने वाले इलेक्ट्रान के समान ही है | इस प्रकार निम्नतर इकाई की मजबूती उच्चतर इकाई को स्वतः मजबूत करेगा | अतयव निम्नतम इकाई को सुदृढ़  आधार प्रदान करना अति आवश्यक है | यह इस इकाई के गठन तथा कार्य प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करके किया जा सकता है | 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Tuesday, May 11, 2010

स्थानीय रोजगार के अवसर

हमारे गावों  मे रोजगार के अवसर उपलब्ध न होने के कारण यहाँ का श्रमिक घर द्वार छोड़ कर पलायन कर जाता है | यह पलायन करने वाला श्रमिक श्रम समुदाय का मक्खन होता है , जिसके बाहर चले जाने के फलस्वरूप गाँव के हिस्से मे छाछ ही बचता है | जिससे उक्त गाँव के विकास की सम्भावना क्षीण हो जाती है | अतयव इस मक्खन रूपी श्रमिक के पलायन को रोकने तथा नवजवानों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है | स्थानीय स्तर पर उद्द्योग स्थापित करने हेतु कुछ न कुछ कच्चा माल अवश्य उपलब्ध होता है , जिससे रोजगार के समुचित अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं |
            उदाहरण के लिए हम चित्रकूट जनपद को लेते हैं | यहाँ उद्द्योगों का नितांत आभाव है | काफी पहले बर्गड़ मे कांटिनेंटल फ्लोट ग्लास फैक्ट्री लगाई गयी थी , परन्तु अदूरदर्शिता के कारण यह फैक्ट्री एक दिन भी नहीं चल पायी और यह फैक्ट्री आज उजाड़ स्थिति मे खड़ी है , जबकि इसके बिलकुल निकट इसके लिए आवश्यक कच्चा माल सिल्का सैंड प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है | इस फैक्ट्री को पुनः चालू किया जा सकता है | किसी उत्साही उद्द्योगपति को आमंत्रित करके उसे इस फैक्ट्री को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है | उसे प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा हर प्रकार की छूट तथा सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए | अतः जनपद मे रोजगार सृजन की दृष्टि से इस ग्लास फैक्ट्री को तत्काल प्रारंभ कराया जाना आवश्यक है |
         यहाँ के जंगलों मे आंवला , महुआ के लाखों लाखों पेंड तथा जडी बूटियाँ पर्याप्त मात्रा मे पायी जाती हैं | अतः आंवला , महुआ तथा जड़ी बूटियों पर आधारित उद्द्योग तो सरलता से स्थापित किये ही जा सकते हैं | इससे हजारों लोगों को तो रोजगार दिया ही जा सकता है | सरकार को इन तीनो क्षेत्रों मे उद्द्योग लगाने हेतु समुचित प्रोत्साहन एवं छूट देकर उद्द्योग पतियों की व्यवस्था करनी होगी | परन्तु इस दिशा मे सरकार को ही पहल करनी होगी |
        बृक्ष लगा कर भी स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है | सीमा रूबा नामक बृक्ष लगाकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सकते है | इस पेंड की आयु सौ साल की होती है और पांचवे साल से इससे आमदनी होनी शुरू हो जाती है | सीमा रूबा को वर्षा कराने वाला पेंड (रेन ट्री) भी कहा जाता है  क्योंकि इसके लगाने से वर्षात बढ़ जाती है | इस दृष्टि से भी बुंदेलखंड मे इस बृक्ष का लगाया जाना अति लाभकारी है | सरकार की ओर से इस दिशा मे गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से भी पहल की जानी आवश्यक होगी | सरकार के प्रयासों तथा प्रोत्साहन के फलस्वरूप क्षेत्र वासियों द्वारा भी सीमा रूबा का बृक्ष लगाए जाने का वातावरण तैयार होगा | बन विभाग द्वारा इस बृक्ष का अधिकाधिक रोपण किया जाना चाहिए | पर्यावरण की दृष्टि से भी इस बृक्ष का लगाया जाना बहुत लाभकारी होगा |
         पशुपालन के द्वारा भी रोजगार एवं आमदनी बढ़ाई जा सकती है | ईमू पक्षी के पालन से लोगों विशेषकर गरीबों की आमदनी काफी बढ़ाई जा सकती है | इसके अंडे की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अधिक मांग है | एक अंडे की कीमत २००० रूपये है और यह पक्षी साल मे ३० अंडे देता है | इस प्रकार ईमू पालन से प्रति वर्ष ६०००० रुपये की आय हो सकती है | गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम मे इसे लक्षित वर्ग को देकर उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर पहुँचाया जा सकता है | इस कार्यक्रम से काफी बिदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी |
         यह उदाहरण और दृष्टान्त मात्र है | स्थानीय स्तर पर अन्य क्षेत्र व क्रियाकलाप भी हो सकते हैं | अन्य जनपदों मे इसी तरह की संभावना एवम क्षेत्र तलाशें जा सकते हैं |   

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा