Saturday, May 15, 2010

ग्रामीण ऋणग्रस्तता , साहूकारी और किसान क्रेडिट कार्ड

ग्रामीण क्षेत्रो विशेषकर बुंदेलखंड मे गरीबी अपेक्षाकृत अधिक है | यहाँ के ग्रामीणों मे बचत की आदत बिलकुल ही नहीं है और उनकी स्थिति बचत करने लायक भी नहीं है | ऐसी स्थिति मे उनके पास कोई धनराशि एकत्रित नहीं होती , जिसे वे बीमारी आदि आकस्मिक जरूरतों मे खर्च कर सके | शादी , बीमारी आदि अवसरों पर होने वाले आकस्मिक एवं बड़े खर्चो हेतु अपेक्षित धनराशि उनके पास बिलकुल नहीं होती | ऐसी स्थिति मे उन्हें इन आकस्मिक प्रयोजनों हेतु उसे गावं  के प्रभावशाली एवं धनवान व्यक्तियों से कर्ज  लेना पड़ता है और कभी कभार साहूकारों से भी कर्जा लेना पड़ता है | बुंदेलखंड मे तो दादू ( गाँव का दबंग व्यक्ति ) भी साहूकार बन जाता है | इन सभी की ब्याज दरें बहुत अधिक होती है | कर्ज मे ली गयी यह धनराशि अनुत्पादक कार्यो पर व्यय होने के कारण इनसे कोई आमदनी नहीं होती ,जिससे कर्जा वापस करने हेतु कभी वे सक्षम नहीं हो पाते | उनकी कमर तो व्याज चुकाने हेतु धन एकत्र करने मे ही झुक जाती है | मूलधन वापसी के बारे मे वे सोंच नहीं सकते | इसी कर्ज और ब्याज के चक्रव्यूह मे फंसे इस ग्रामीण को परिथितियाँ उसे एक तरह कर्जदार का बंधुआ भी बना देती है | 
      वैसे साहूकारी अधिनियम मे पंजीकृत साहूकार ही साहूकारी व्यवसाय कर सकते हैं | परन्तु साहूकारी अधिनियम मे पजीकरण कराये बिना तमाम साहूकार बुंदेलखंड मे कार्य कर रहे हैं | लागों की अज्ञानता और शिकायत न करने के कारण ही कदाचित इन गैर कानूनी साहूकारों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो पाती है | इस ऋण ग्रस्तता से त्रस्त बुंदेलखंड का ग्रामीण कभी तो अपनी जमीन खो देता है तो कभी ऋण दाता आजीवन बंधुआ बन कर रह जीता है | कभी कभी तो वह आत्महत्या कर बैठता है | एक बहुत ही शर्मनाक प्रकरण चित्रकूट मे मेरे संज्ञान मे आया था | लगभग ४० साल पहले की यह घटना है ,जब एक ग्रामीण अपने बच्चे के इलाज के लिए १०० रूपये मागने एक दादू के पास गया तो उक्त दादू ने उसकी बेटी को उपने पास गिरवी रख कर १०० रूपये का कर्ज दिया था | उसकी बेटी लगभग ३० साल तक उक्त दादू का घरेलु काम और उसकी कामेक्षा पूरी करते हुए ३ बच्चे भी पैदा किया , फिर भी १००  रूपये का कर्ज नहीं उतरा | यह है ग्रामीण ऋण ग्रस्तता का सबसे भयानक चेहरा | ऐसे कई उदाहरण तलाश करने पर मिल जायेंगे |
        गाँव स्तर पर बैंक खुल जाने पर इस समस्या पर कुछ रोक तो अवश्य लगी है , पर अभी भी यह समस्या समाप्त नहीं हो पायी है | बैंको ने भी उन्हें लाभान्वित करने के बजाय ऋण ग्रस्तता से ही जकड रखा है | बैंक किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से गांवों मे भी उपभोक्ता संस्कृति तथा चार्वाक का भोगबाद ले आयें है | क्रेडिट कार्ड से शादी व्याह , मुंडन कनछेदन , मोटर  साइकिल खरीदने आदि पर खुलकर अनुत्पादक व्यय कर रहे है , जिनसे कर्ज चुकाने हेतु कोई आय श्रृजन नहीं होता | गाँव का व्यक्ति इतना पढ़ा लिखा और जागरूक नहीं होता कि वह किसान क्रेडिट कार्ड की किस्तें समय से जमा कर सके | इसके चलते ब्याज दर ब्याज एवं अर्थदंड आदि के कारण उसकी देनदारियां बढती जाती है और वह ऋण ग्रस्तता के उस मुकाम पर पहुँच जाता है जहाँ उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता और आत्महत्या करने के अलावा उसके समक्ष कोई विकल्प नहीं बचता है | आज इस तरह आत्महत्या के कगार पर बुंदेलखंड के ही हजारों लोग खड़े दिखाई पड़ेगे | यदि कुछ साल पहले सरकार ऋण माफ़ी की योजना न लाती तो अकेले बुंदेलखंड मे हजारो किसान अत्म्हात्याया कर चुके होते  | आज भी लोग सरकार की ऋण माफ़ी योजना पुनः आने की आस लगाये बैठे हैं और इसी उम्मीद मे कर्ज की किस्तों का भुगतान नहीं कर रहें हैं |इस प्रकार किसान क्रेडिट कार्ड वस्तुतः लोगों को ग्रामीण ऋण ग्रस्तता से मुक्त कराने नहीं बरन चार्वाक दर्शन के अनुसार उन्हें और अधिक ऋण ग्रस्त बनाने वाला कदम के अलावा कुछ नहीं है | इसी प्रकार सरकार की ऋण माफ़ी योजना ग्रामीणों के लिए हितकारी न होकर घातक ही सिद्ध हो रही है |
       आवश्यकता इस बात की है कि लोगो को अपनी आवश्यकताएं कम करके अपनी आय तक सीमित रखने का पाठ पढ़ाने तथा तदनुसार परिथितियाँ उत्पन्न करने का सरकार द्वारा प्रयास करना चाहिए | वस्तुतः जीवन का लक्ष्य भोग न होकर संतुष्टि है और संतुष्टि आवश्यकताओं को बढ़ाने के बजाय उन्हें सीमित व नियंत्रित करने मे निहित होती है | अतः सरकारों को पुनर्विचार करके जनहित के अनुकूल नीतियाँ बनानी चाहिए , जिससे जनता को लाभ ही लाभ हो |  

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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