भारत मे इंडिया गेट एक ऐसा ही स्थल है, जिसे हम प्रत्येक विदेसी को सबसे पहले दिखाते हैं, क्योंकि स्थापत्य कला की दृष्टि से यह अत्यधिक सुन्दर एवं महत्वपूर्ण स्थल है | इंडिया गेट की दीवारों पर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध मे शहीद हुए जवानो के नाम अंकित हैं जो गुलामी के दौरान अंग्रेज शासन की गौरव गाथा के अतिरिक्त कुछ नहीं कहते | इसे सबसे बड़ी गौरव गाथा के रूप मे दर्शाना स्वतन्त्र भारत मे कहाँ तक औचित्यपूर्ण है ? इस समय इंडिया गेट की दीवार पर अंकित नामो को और अधिक चमकाने और उभारने का काम भी चल रहा है जो निःसंदेह उचित नहीं प्रतीत होता है | वस्तुतः इंडिया गेट की दीवारों पर हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम प्रदर्शित किया जाना चाहिए था | हमारे स्वतन्त्र भारत के लिए यह बड़े गौरव की क्या बात होती यदि इसपर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक, राजेंद्र लाहिड़ी, मदन लाल धींगरा, खुदी राम बोस तथा १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, मंगल पाण्डे, नाना फंडनवीश, गॉस खान आदि समस्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम अंकित होता | यह हमारी अस्मिता, राष्ट्रीयता और देश प्रेम का तकाजा भी है | तब इंडिया गेट पहुँच कर इसे देखकर तथा विदेशियों को इंडिया गेट दिखाकर उन्हें इस सम्बन्ध मे बताने मे प्रत्येक भारतीय को गर्व होता | तभी हम राम प्रसाद बिस्मिल की इस ऐतिहासिक कविता को सही अर्थों मे सम्मानपूर्बक स्थापित कर सकते हैं :
" शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा "|
इंदिरा गाँधी द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की शुरुवात करके अज्ञात शहीदों की स्मृतियों को श्रधान्जली देने का सराहनीय प्रयास किया था , पर बिस्मिल की कविता को सार्थकता प्रदान करने के लिए इंडिया गेट से अच्छी दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती है |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा