Thursday, August 19, 2010

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान : जगन्नाथ सिंह

राष्ट्रकुल खेलों के परिप्रेक्ष्य मे नई दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्रों को चमकाया जा रहा है, ताकि इस आयोजन के दौरान भ्रमण आने वाले विदेशी भारत के बारे मे अच्छी धारणा लेकर अपने देश वापस जांय | राष्ट्रीय गौरव और आत्म सम्मान के लिए ऐसा करना बहुत आवश्यक और औचित्यपूर्ण है | परन्तु इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि विदेशियों को अपनी गौरवशाली विरासत वाले  स्मारकों ही दिखाया जाना और गुलाम भारत के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के कारनामो और उपलब्धियों को दिखाने से परहेज किया जाना चाहिए | यदि आजादी से पहले के  ब्रिटिश शासनकाल की गौरव गाथा व उपलब्धियों को दिखाया जाता है तो यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का घोर अपमान होगा |
       भारत मे इंडिया गेट एक ऐसा ही स्थल है, जिसे हम प्रत्येक विदेसी को सबसे पहले दिखाते हैं, क्योंकि स्थापत्य कला की दृष्टि से यह अत्यधिक सुन्दर एवं महत्वपूर्ण स्थल है | इंडिया गेट की दीवारों पर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध मे शहीद हुए जवानो के नाम अंकित हैं जो गुलामी के दौरान अंग्रेज शासन की गौरव गाथा के अतिरिक्त कुछ नहीं कहते | इसे सबसे बड़ी गौरव गाथा के रूप मे दर्शाना स्वतन्त्र भारत मे कहाँ तक औचित्यपूर्ण है ? इस समय इंडिया गेट की दीवार पर अंकित नामो को और अधिक चमकाने और उभारने का काम भी चल रहा है जो निःसंदेह उचित नहीं प्रतीत होता है | वस्तुतः इंडिया गेट की दीवारों पर हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम प्रदर्शित किया जाना चाहिए था | हमारे स्वतन्त्र भारत के लिए यह बड़े गौरव की क्या बात होती यदि इसपर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक, राजेंद्र लाहिड़ी, मदन लाल धींगरा, खुदी राम बोस तथा १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, मंगल पाण्डे, नाना फंडनवीश, गॉस खान आदि समस्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम अंकित होता | यह हमारी अस्मिता, राष्ट्रीयता और देश प्रेम का तकाजा भी है | तब इंडिया गेट पहुँच कर इसे देखकर तथा विदेशियों को इंडिया गेट दिखाकर उन्हें इस सम्बन्ध मे बताने मे प्रत्येक भारतीय को गर्व होता | तभी हम राम प्रसाद बिस्मिल की इस ऐतिहासिक कविता को सही अर्थों मे सम्मानपूर्बक स्थापित कर सकते हैं :           
    " शहीदों  की मजारों पर  लगेंगे  हर बरस  मेले,
      वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा "|  
इंदिरा गाँधी द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की शुरुवात करके अज्ञात शहीदों की स्मृतियों को श्रधान्जली देने का सराहनीय प्रयास किया था , पर बिस्मिल की कविता को सार्थकता प्रदान करने के लिए इंडिया गेट से अच्छी दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती है | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

नेताजी सुभाष के बलिदान का अपमान : जगन्नाथ सिंह

नागालैंड की राजधानी कोहिमा मे एक अत्यधिक एवं महत्वपूर्ण स्मारक है, पर्यटक जिसे देखने मे काफी रूचि लेते हैं | यह स्मारक बहुत सुन्दर तो है ही, इसके रख रखाव की व्यवस्था बहुत उत्तम कोटि की है | कोहिमा मे यह स्मारक दिल्ली के इंडिया गेट की तरह ही है | यहाँ एक बहुत बड़ी दीवार पर पीतल की बड़ी चादर पर इंडिया गेट की तरह शहीदों का नाम अंकित है, जिसे बराबर चमकाए रखा जाता है | इस स्मारक पर शहीदों के रूप मे उन सैनिकों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज से हुई अंतिम लडाई मे लोहा लेकर उन्हें हराया था |
      यह बड़े दुःख और लज्जा का विषय है कि हमारी ही धरती पर नेताजी को उनके आखिरी युद्ध मे शिकश्त मिली थी और उन्हें पराजित करने वाले कोई और नहीं अपने ही भारतीय सैनिक थे, जिन्होंने अंग्रेज आकाओं के हुक्म पर  नेताजी से युद्ध किया था | आज अपने स्वतन्त्र भारत मे ऐसे स्मारक का होना नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तथा उनकी आज़ाद हिंद फौज के क्रांतिकारियों के बलिदान का घोर अपमान तो है ही, भारतीयों के दिलों पर राज्य करने वाले नेताजी के बलिदान और योगदान को ही मुह चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत होता है |
        यह भी जानकारी मे आया है कि इस स्मारक का रखरखाव आज भी ब्रिटेन द्वारा ही होता है और इसके रख रखाव हेतु इंग्लॅण्ड से पौंड मे धन सीधे आता है | इससे यह भी प्रमाणित होता है कि आज़ादी से पूर्व अंग्रेजो द्वारा स्थापित परम्पराएँ आज भी यथावत निभायी जा रही है | ऐसी स्थिति मे इस सम्बन्ध मे संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि क्या हम वास्तविक अर्थों मे पूर्णतया स्वतन्त्र हो गए हैं अथवा नहीं ? कुछ भी हो एक स्वतन्त्र नागरिक के रूप मे हमारी सोंच अभी तक विकसित नहीं हो पाई है | 
      यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना की बिभिन्न इकाईयों मे ऐसे अनेक विजय चिन्ह अनुरक्षित अथवा प्रदर्शित हैं जो ब्रिटिश शासनकाल मे उनके नज़रिए से गौरव के प्रतीक हो सकते थे , पर आज स्वतन्त्र भारत मे उक्त विजय चिन्ह राष्ट्रीय विरासत के रूप मे माने जायेंगे और उन्हें राष्ट्रीय संग्रहालयों मे होना चाहिए | एक उदाहरण से मै इसे स्पष्ट करना चाहूँगा |  गोरखा रेजीमेंट की रानीखेत इकाई मे रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त एवं अंग्रेजो के झाँसी विजय के प्रमाणस्वरूप झाँसी का राजदंड अनुरक्षित और प्रदर्शित है | यह रानी  लक्ष्मीबाई और समस्त क्रान्तिकारियों का घोर अपमान है |       
     इस दर्द को समझाने के लिए भारत के देश भक्त नागरिकों से पूछना चाहता हूँ कि जलियांवाला बाग मे जनरल डायर के हुक्म से चली गोलियों से मरने वालो के नामो का उल्लेख अब तक क्यों नहीं हुआ है ? यदि वहाँ जनरल डायर की भव्य मूर्ति बनवाकर उस पर फूल माला पहनाया जावे, तो भारत के राष्ट्र भक्तो को कैसा महसूस होगा | ऐसी स्थिति मे कोहिमा जैसे स्मारकों का ब्रिटिश सरकार के धन से रखरखाव हमारे देशवासियों को कैसे स्वीकार हो सकता है | राष्ट्र भक्तों को इस दिशा मे गंभीरता पूर्बक विचार करके सक्रिय होना आवश्यक है | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा