Friday, August 6, 2010

दहेज़ प्रथा के खात्मे की ओर पहल : जगन्नाथ सिंह

दहेज़ प्रथा भारतीय जनमानस का एक बहुत बड़ा अभिशाप है और इसके चलते हर बेटी के माता पिता परेशान एवं चिंताग्रस्त रहते हैं |सभी इसे सामाजिक कुरीति यहाँ तक कि इसे समाज का कोढ़ मानते हैं ,पर कोई इसके खिलाफ जेहाद छेड़ने का संकल्प लेने की हिम्मत कोई नहीं करता | भारत का प्रत्येक व्यक्ति इस परिप्रेक्ष्य मे दोहरा चरित्र जीता है | लड़की का बाप होने की हैसियत से वह दहेज़ प्रथा का घोर विरोधी होता है ,किन्तु लड़के के पिता के रूप मे वही व्यक्ति दहेज़ लेने से बिलकुल भी परहेज नहीं करता ,वरन दहेज़ लेने के सम्बन्ध मे वही पहल करता हुआ नज़र आता है | इस दहेज़ का वास्तविक अभिशाप महिलाओं को ही सबसे अधिक झेलना पड़ता है और इसका सीधा प्रभाव स्त्रियों पर ही होता है ,पर इस कुप्रथा के मूल मे स्त्रियाँ ही होती हैं | यदि गहराई से मंथन किया जाय , तो इस कुप्रथा के लिए सर्वाधिक यहाँ तक कि ८० % स्त्रियाँ ही जिम्मेदार हैं | इसी प्रकार महिला उत्पीडन के क्षेत्र मे भी पुरुषों के बजाय महिलाएं ही सर्वाधिक जिम्मेदार होती हैं | अतयव महिला वर्ग को ही सबसे पहले निर्णय लेना पड़ेगा कि उन्हें किसी महिला के उत्पीडन का कारण व माध्यम नहीं बनना है और स्वयं सहित किसी भी महिला के उत्पीडन को किसी दशा मे बर्दास्त नहीं करना है | केवल यही एक कदम दहेज़ प्रथा पर अंकुश लगाने हेतु पर्याप्त है | यदि ऐसा संभव हुआ तो इस कुप्रथा पर लगाम कसने के लिए कुछ और करने की जरुरत ही नहीं होगी |
      वैसे गहराई से बिचार करने से स्पष्ट होता है कि दहेज़ का मूल कारण आर्थिक है | इस वैश्य (captalist) युग मे भारतीय समाज भी पूर्णतया  व्यावसायिक बन गया है | यहाँ लड़के को एसेट और लड़की को लाइबिलिटी समझा जाता है | कमाने के कारण लड़के को कमाऊ पूत अर्थात एसेट और लड़की को गृहणी होने के फलस्वरूप तथा पति के ऊपर आर्थिक रूप पर पूर्णतया निर्भर रहने के कारण बोझ स्वरूप यानि लाइबिलिटी माना जाता है | यदि लड़कियां पढ़ लिखकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन जाती हैं तो वे स्वतः एसेट बन जाएँगी और तब दहेज़ की सम्भावना नहीं होगी | इस दृष्टि से स्त्री शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता से दहेज़ की बुराई को समूल नष्ट किया जा सकता है | ऐसा देखा भी जाता है कि लड़की जब पढ़ कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाती है तो उसकी शादी बिना दहेज़ के संपन्न हो जाती है |
     दहेज़ की इस कुरीति के विरुद्ध वातावरण बनाये जाने के उद्देश्य से इसे एक जनांदोलन के रूप मे  चलाये जाने की बहुत बड़ी आवश्यकता है | युवा शक्ति को एकजुट होकर दहेज़ के विरुद्ध  जेहाद छेड़ने का काम अपने हाथ मे लेना चाहिए | युवा पीढ़ी के ऊपर लगने वाले कई आरोपों के दाग को वे इस महान काम से मिटा सकते हैं | दहेज़ मागने , दहेज़ लेने , दहेज़ देने , दहेज़ के कारण उत्पीडन तथा दहेज़ हत्या आदि कार्यों पर युवा व युवती वर्ग समूह बनाकर काम करेगे और दहेज़ की कुप्रथा का खात्मा करके ही दम लेंगे |
   सामाजिक संगठन व संस्थाएं तथा स्वयं सेवी संस्थाएं अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों के अलावा इस पुनीत कार्य मे भी अपना योगदान दे | विभिन्न जाति समाजो द्वारा सामूहिक विवाह आयोजनों तथा दहेज़ लेने व देने वालों के विरुद्ध जाति व समाजगत प्रतिबंधों द्वारा दहेज़ प्रथा पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण पाया जा सकता है |     
     मीडिया के इस काम मे लग जाने से तो सारा काम बड़ी आसानी से हो जावेगा | तमाम कानूनों के होते हुए सरकारी निष्क्रियता के कारण ही इस  कुरीति ने इतना  विकराल रूप धारण कर लिया है | अतः मीडिया , युवा - युवतियों तथा स्वमसेवी संस्थाओं द्वारा सरकारों को भी इस दिसा मे जाग्रत ; क्रियाशील तथा मजबूर करना पड़ेगा | तभी लक्ष्यानुसार वांछित परिणाम प्राप्त हो सकेगा | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Monday, August 2, 2010

झाँसी का राजदंड : जगन्नाथ सिंह

हाल मे ही मेरे एक मित्र ने मुझसे सवाल किया कि आप झाँसी के जिलाधिकारी रह चुके हैं तो आपको पता होगा कि झाँसी का राजदंड कहाँ है ? मेरे द्वारा अनभिज्ञता व्यक्त किये जाने पर उनके द्वारा बताया गया कि झाँसी का राजदंड गोरखा रेजिमेंट की रानीखेत यूनिट मे एक वार मेमोरिअल (विजय चिन्ह )के रूप मे रक्खा है जो यह प्रमाणित करता है कि इस यूनिट ने झाँसी राज्य पर फतह हासिल किया था और झाँसी पर कब्ज़ा किया था | वार मेमोरियल सेना की सबंधित यूनिट के लिए अत्यधिक गर्ब की वस्तु हुआ करती है और उक्त यूनिट के जवान इससे उत्साहित होते हैं , अतयव इसे प्रदर्शन की वस्तु भी माना जाता है | मेरे मित्र को रानीखेत भ्रमण के अवसर पर उन्हें झाँसी का राज दंड इसी रूप मे  दिखाया गया था , जिससे वह काफी दुखी हुए थे |  
      आजाद भारत  मे अब तथ्यों तथा वस्तुओं के मायने बदल गए हैं | झाँसी राज्य पर विजय प्राप्त करना और राज दंड को कब्जे मे लेकर उसे वार मेमोरियल के रूप मे प्रदर्शित करना तथा इस कारनामे पर सेना की अमुक रेजिमेंट तथा यूनिट को गर्ब करना आज स्वतन्त्र भारत मे अराष्ट्रीय और राष्ट्रद्रोह के समान है | एक अन्य उदाहरण लेते हैं | जलियावाला बाग़ मे गोली चलाने का हुक्म जनरल डायर ने दिया था ,पर गोली चलाने वाले हाथ भारतीय थे | ऐसी बर्बरतापूर्ण कार्यवाही पर भारतीय सेना की संबंधित इकाई को गर्ब करना और वहाँ हासिल हुई वस्तुओं को विजय चिन्ह के रूप मे प्रदर्शित करना कहाँ तक उचित है ?    
       झाँसी के राज दंड की तरह सेना के पास बहुत सारे प्रतीक तथा बस्तुएं हो सकते हैं , जिन्हें आज विजय चिन्ह के रूप मे प्रदर्शित किया जाता है ,जबकि वे आज स्वतन्त्र भारत मे विजय चिन्ह के बजाय  कायरता ,बर्बरता ,अत्याचार और राष्ट्रद्रोह के प्रतीक ही माने जावेगे | अतयव सेना तथा संस्कृति विभाग को चाहिए कि वे ऐसे मामलों की गहन छानबीन करके उन्हें तलाशें और ऐसे राष्ट्रीय प्रतीकों को उनके उचित स्थानों पर रखवाने की व्यवस्था करे और संग्रहालयों मे उन्हें ससम्मान  प्रदर्शित किया जावे | अतयव यह उचित प्रतीत होता है कि झाँसी के राज दंड को झाँसी  संग्रहालय मे शीघ्रातिशीघ्र रखवा दिया जाय |   
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

चित्रकूट का महातम्य

चित्रकूट धर्मावलम्बियों तथा सैलानियों दोनों के लिए सर्वथा उपयुक्त पर्यटन स्थल है | भगवान राम द्वारा चौदह मे से साढ़े ग्यारह वर्ष का बनवास यहीं बिताने के कारण चित्रकूट का महातम्य  स्थापित हुआ था | भगवान राम के समक्ष कहीं भी जाकर अपना बनवास  बिताने का विकल्प होने के बावजूद उन्होंने चित्रकूट को ही चुना था और चित्रकूट ही आये थे | इस प्रकार चित्रकूट का अपना कोई आकर्षण अवश्य रहा होगा , जिसके कारण भगवान राम चित्रकूट ही आये और अन्यत्र नहीं गए | चित्रकूट नाम मे ही यहाँ की विशेष विशिष्टता निहित है | चित्र से आशय यहाँ की मनोहारी व मनमोहक सुन्दरता से है | यहाँ की चित्रात्मकता हरियाली व मनोरम दृश्यों से रही है | कूट का अर्थ है पर्वत | यहाँ के पर्वत काफी सुगम हैं और उन पर आसानी से चढ़ा जा सकता है | आज का धन लोलुप मानव चित्र और कूट दोनों को नष्ट -भ्रष्ट करने पर अमादा है |  
          राम चरित मानस भारत तथा भारतवासियों की धमनी और भगवान राम आत्मा स्वरूप है | मानस के रचयिता तुलसीदास व कालिदास की कर्मस्थली तथा भगवान राम की क्रियास्थली होने के कारण चित्रकूट की महानता को स्वीकार करना ही पड़ेगा | पूरे चित्रकूट क्षेत्र मे भगवान राम की चरण रज बिखरी हुई है , ऐसा आम जनमानस का विश्वास है | कदाचित इसी कारण चित्रकूट भ्रमण पर आने वाला अधिकांश श्रद्धालु चित्रकूट क्षेत्र मे प्रवेश करते ही अपने जूते उतार कर अपने झोले मे रख लेता है | शायद उसकी सोंच यही होती है कि उनके आराध्य भगवान राम जब यहाँ नंगे पांव चले थे तो वे यहाँ जूता पहनने का पाप कैसे कर सकते हैं ?    
          देश निकाला होने पर रहीम भी चित्रकूट आये थे  | यहाँ वह गुमनामी का जीवन बिताते हुए जीवन यापन हेतु भाड़ झोकने का काम करते थे | एक बार राजा रीवाँ को चित्रकूट भ्रमण करते समय रहीम भाड़ झोकते नज़र आये | रहीम की मर्यादा का ध्यान लिहाज करते हुए कवि रूप मे वह रहीम से बोले " जा के अस भार है सो कत झोंकत भाड़ " इस पर रहीम मुस्कराए और कविता मे ही उत्तर दिया " भार झोंक कर भाड़ मे रहिमन उतरे पार "| रहीम की यह उक्ति भी जन जन मे व्याप्त है :
       ' चित्रकूट मे रमि रहे रहिमन अवध नरेश , जापर बिपदा पडत है सोई आवत यहि देश |'
रहीम और तुलसीदास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रसंग और भी है | चित्रकूट मे एक हाथी पागल हो गया था और उसे मारने का आदेश हो गया था | उस समय रहीम और तुलसीदास दोनों चित्रकूट मे ही थे और वे दोनों हाथी मारने सम्बन्धी फरमान से दोनों बहुत दुखी थे | उसी समय राजा का वहाँ आगमन हुआ | तभी इन पंक्तियों को सुनकर राजा द्वारा हाथी को मारने का फरमान वापस ले लिया गया था | 

         " धूरि उछारत सिर धरत केहि कारन गजराज ,
           जा रज से मुनि तिय तरी सोई ढुंढत गजराज |
 
       चित्रकूट मे रहकर भगवान राम ने त्याग ,तपस्या ,बलिदान ,दुष्टदलन ,जनसेवा तथा समाजसेवा का दृष्टान्त रक्खा था जो मनुष्यता के लिए अनुकरणीय है | भगवान राम ने साधन विहीनता की स्थिति मे सबसे रामराज्य स्थापित किया था और दुष्टदलन करके यहाँ के निवासियों को निर्भय किया था | भगवान राम समाज सेवियों के प्रथम पूर्बज भी थे | हिन्दुओं की चित्रकूट मे अपार श्रद्धा है | चित्रकूट मे प्रतिदिन हजारों तथा अमावस्या के मे लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं और परिक्रमा व दर्शन कर लाभ उठाते हैं | दीपावली की अमावस्या को यहाँ सबसे बड़ा मेला लगता है और कई दिन चलता है |
            

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