Monday, August 2, 2010

चित्रकूट का महातम्य

चित्रकूट धर्मावलम्बियों तथा सैलानियों दोनों के लिए सर्वथा उपयुक्त पर्यटन स्थल है | भगवान राम द्वारा चौदह मे से साढ़े ग्यारह वर्ष का बनवास यहीं बिताने के कारण चित्रकूट का महातम्य  स्थापित हुआ था | भगवान राम के समक्ष कहीं भी जाकर अपना बनवास  बिताने का विकल्प होने के बावजूद उन्होंने चित्रकूट को ही चुना था और चित्रकूट ही आये थे | इस प्रकार चित्रकूट का अपना कोई आकर्षण अवश्य रहा होगा , जिसके कारण भगवान राम चित्रकूट ही आये और अन्यत्र नहीं गए | चित्रकूट नाम मे ही यहाँ की विशेष विशिष्टता निहित है | चित्र से आशय यहाँ की मनोहारी व मनमोहक सुन्दरता से है | यहाँ की चित्रात्मकता हरियाली व मनोरम दृश्यों से रही है | कूट का अर्थ है पर्वत | यहाँ के पर्वत काफी सुगम हैं और उन पर आसानी से चढ़ा जा सकता है | आज का धन लोलुप मानव चित्र और कूट दोनों को नष्ट -भ्रष्ट करने पर अमादा है |  
          राम चरित मानस भारत तथा भारतवासियों की धमनी और भगवान राम आत्मा स्वरूप है | मानस के रचयिता तुलसीदास व कालिदास की कर्मस्थली तथा भगवान राम की क्रियास्थली होने के कारण चित्रकूट की महानता को स्वीकार करना ही पड़ेगा | पूरे चित्रकूट क्षेत्र मे भगवान राम की चरण रज बिखरी हुई है , ऐसा आम जनमानस का विश्वास है | कदाचित इसी कारण चित्रकूट भ्रमण पर आने वाला अधिकांश श्रद्धालु चित्रकूट क्षेत्र मे प्रवेश करते ही अपने जूते उतार कर अपने झोले मे रख लेता है | शायद उसकी सोंच यही होती है कि उनके आराध्य भगवान राम जब यहाँ नंगे पांव चले थे तो वे यहाँ जूता पहनने का पाप कैसे कर सकते हैं ?    
          देश निकाला होने पर रहीम भी चित्रकूट आये थे  | यहाँ वह गुमनामी का जीवन बिताते हुए जीवन यापन हेतु भाड़ झोकने का काम करते थे | एक बार राजा रीवाँ को चित्रकूट भ्रमण करते समय रहीम भाड़ झोकते नज़र आये | रहीम की मर्यादा का ध्यान लिहाज करते हुए कवि रूप मे वह रहीम से बोले " जा के अस भार है सो कत झोंकत भाड़ " इस पर रहीम मुस्कराए और कविता मे ही उत्तर दिया " भार झोंक कर भाड़ मे रहिमन उतरे पार "| रहीम की यह उक्ति भी जन जन मे व्याप्त है :
       ' चित्रकूट मे रमि रहे रहिमन अवध नरेश , जापर बिपदा पडत है सोई आवत यहि देश |'
रहीम और तुलसीदास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रसंग और भी है | चित्रकूट मे एक हाथी पागल हो गया था और उसे मारने का आदेश हो गया था | उस समय रहीम और तुलसीदास दोनों चित्रकूट मे ही थे और वे दोनों हाथी मारने सम्बन्धी फरमान से दोनों बहुत दुखी थे | उसी समय राजा का वहाँ आगमन हुआ | तभी इन पंक्तियों को सुनकर राजा द्वारा हाथी को मारने का फरमान वापस ले लिया गया था | 

         " धूरि उछारत सिर धरत केहि कारन गजराज ,
           जा रज से मुनि तिय तरी सोई ढुंढत गजराज |
 
       चित्रकूट मे रहकर भगवान राम ने त्याग ,तपस्या ,बलिदान ,दुष्टदलन ,जनसेवा तथा समाजसेवा का दृष्टान्त रक्खा था जो मनुष्यता के लिए अनुकरणीय है | भगवान राम ने साधन विहीनता की स्थिति मे सबसे रामराज्य स्थापित किया था और दुष्टदलन करके यहाँ के निवासियों को निर्भय किया था | भगवान राम समाज सेवियों के प्रथम पूर्बज भी थे | हिन्दुओं की चित्रकूट मे अपार श्रद्धा है | चित्रकूट मे प्रतिदिन हजारों तथा अमावस्या के मे लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं और परिक्रमा व दर्शन कर लाभ उठाते हैं | दीपावली की अमावस्या को यहाँ सबसे बड़ा मेला लगता है और कई दिन चलता है |
            

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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