Saturday, January 29, 2011

बुंदेलखंड का अलग राज्य बनाये जाने का औचित्य

बुंदेलखंड आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-भाषायी समानता वाला एक अलग व स्वतन्त्र भौगोलिक प्रक्षेत्र है, जो आजादी के ६३ साल बाद भी उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के मध्य अप्राकृतिक व अवैज्ञानिक रूप से बटा अब तक विकास की बाट जोह रहा है, जबकि देश के अधिकांश हिस्से विकास की राह पर काफी आगे बढ़ गए हैं | इसी कारण बुंदेलखंड आज देश के सबसे गरीब व पिछड़े क्षेत्र के रूप मे जाना-पहचाना जाता है, जबकि प्राकृतिक, वन व खनिज सम्पदा तथा पर्यटन स्थलों की दृष्टि से बुंदेलखंड अत्यधिक समृद्ध है और जिनका उपयोग करके बुंदेलखंड को बहुत अधिक विकसित किया जा सकता है | बुंदेलखंड का इतिहास, संस्कृति, सामाजिक रीति रिवाजों/ परम्पराओं, बोली मे समानता है और लोगों मे अपने पन तथा भावनात्मक एकता की भावना का होना बुंदेलखंड क्षेत्र की विशेषता है |      
               उपरोक्त पृष्ठिभूमि मे बुंदेलखंड के पिछड़ेपन के कारणों एवं उपायों के सम्बन्ध मे  गंभीरतापूर्वक विचार करना बहुत आवश्यक हो गया है | बुंदेलखंड मे उत्तर प्रदेश का झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट जनपद तथा मध्य प्रदेश का दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दमोह, कटनी जनपद, सतना जनपद का चित्रकूट विधान सभा क्षेत्र, गुना जनपद का चंदेरी विधान सभा क्षेत्र, शिवपुरी जनपद का पिछोर विधान सभा क्षेत्र, भिंड जनपद का लहर विधान सभा क्षेत्र, नरसिंह जनपद की गाडरवाला तहसील, विदिशा, साँची, गंज बासौदा क्षेत्र आता है |                                 यह एक निर्विवाद सत्य है कि बुंदेलखंड का विकास तभी संभव हो सकता है, जब पूरी ईमानदारी तथा निष्ठांपूर्वक बुंदेलखंड क्षेत्र की विशिष्ट समस्याओं की पहचान करके उनका समाधान ढूंढने का प्रयास किया जाय | यह तभी संभव हो सकता है, जब उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश से अलग करके बुंदेलखंड राज्य गठित किया जाये और बुंदेलखंड राज्य की धरती पर बैठ कर इस क्षेत्र की समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान की योजना बनाकर बुंदेलखंड के लोगों द्वारा ही सम्पादित किया जाय | तभी इस क्षेत्र के बिपुल संसाधनों का उपयोग करके बुंदेलखंड के लोगों का कल्याण करना संभव हो सकेगा | अभी तक भिन्न आर्थिक-सामाजिक-भौगोलिक परिवेश(लखनऊ-भोपाल) से बुंदेलखंड वासियों के लिए योजना विरचन तथा कार्यान्वयन सम्बन्धी कार्य सम्पादित किये जा रहे हैं | इसी दोष पूर्ण कार्य पद्धति के कारण ही आजादी के ६३ वर्ष तक बुंदेलखंड पिछड़ा का पिछड़ा बना हुआ है और जन अपेक्षाएं निरंतर उपेक्षित हो रही हैं | अतयव बुंदेलखंड की वर्तमान स्थिति को आगे भी अनंत काल तक बनाये रखना औचित्य पूर्ण नही प्रतीत होता है और न ही इस क्षेत्र की जनता ही यह बर्दास्त करेगी |
          उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य मे ही कदाचित बुंदेलखंड आज दोनों राज्यों व केंद्र सरकारों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया है, जो एक दूसरे से आगे बढकर बुंदेलखंड के विकास की बातें कर रही हैं और काफी धनराशियाँ भी आबंटित कर रही है, पर दूरस्थ प्रणाली द्वारा संचालित होने के कारण इन विकास परक प्रयासों का लाभ न तो बुंदेलखंड को मिल पा रहा है और न ही बुंदेलखंड की धरती पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव ही परिलक्षित हो रहा है |  
        देश मे बुंदेलखंड की ही तरह उपेक्षित व पिछड़े क्षेत्रों को अलग करके उत्तराँचल, छत्तीस गढ़, झारखण्ड आदि राज्य बनाये गए हैं | जिसका अत्यधिक सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है | नये राज्यों के बनने के बाद वहां के निवासियों मे अदम्य उत्साह का संचरण हुआ है | इन राज्यों का विकास कई कई गुना बढ गया है और वे अपने पुराने पैत्रिक प्रान्त को विकास की दौड़ मे काफी पीछे छोड़ कर काफी आगे बढ गए हैं | इसका मुख्य कारण अपने राज्य की धरती पर बैठ कर वास्तविक जरूरतों और समस्याओं की पहचान कर सम्यक योजना विरचन एवं कार्यान्वयन द्वारा अपना विकास करना रहा है | अलग राज्य बनने के पश्चात् इन राज्यों के निवासियों मे निजता और आत्म निर्णय का भाव पैदा हुआ है और सभी मिलकर अपने अपने प्रदेशों को तेजी के साथ आगे बढ़ने की ओर चल पड़े हैं |
       बुंदेलखंड की एक विशेष बात यह भी है कि बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश दोनों राज्यों के अंतर्गत आता है | अतयव दोनों प्रदेशों द्वारा समान समस्याओं के सन्दर्भ मे समान, समन्वित व एकीकृत प्रयास नही हो पाता है | इसके अलावा यह भी ध्रुव सत्य है कि अनेकानेक कारणों से दोनों प्रान्त सरकारें यह नहीं चाहती कि उनका कोई अंश उनसे अलग हो | यह भी सही है कि बन व खनिज सम्पदा की दृष्टि से मध्य प्रदेश स्थित बुंदेलखंड अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध है | अतयव बुंदेलखंड के बृहत्तर एकीकरण के फलस्वरूप सम्पूर्ण बुंदेलखंड का सही मायने मे विकास संभव हो सकेगा और संसाधनों की कमी बाधक नही साबित होगी | तब हम देखेंगे कि देश के अन्य नव सृजित प्रदेशों की भांति बुंदेलखंड के लोग भी हीन भावना से उबरकर स्वाभिमान और निजता के भाव से अपना व क्षेत्र का विकास कर सकेगे |                 
          बुंदेलखंड के अलग प्रान्त की मांग करने वाले कई संगठन/ संस्थाएं एतदर्थ कार्य कर रही हैं, उनके प्रयासों मे एकरूपता, समन्वय व परस्पर सहयोग का अभाव देखने मे आ रहा है | अतयव यह आवश्यक प्रतीत होता है कि इस दिशा मे क्रियाशील समस्त संगठन/ संस्थाओं/ व्यक्तियों को चाहिए के वे अपने अहम् को तिलाजली देकर समन्वित, एकीकृत एवं सहयोगात्मक प्रयास करना चाहिए | तभी इस वृहत्तर लक्ष्य को शीघ्रतापूर्वक प्राप्त करना संभव हो सकता है और यही बुंदेलखंड के हित मे है |    

 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

ग्राम सचिवालय:एक यथार्थ परक एवं उपयोगी अवधारणा

 प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र होना एक अनिवार्य अपरिहार्यता है | अर्थात प्राण केंद्र विहीन किसी  संरचना की कल्पना तक नहीं की जा सकती | श्रृष्टि संरचनात्मक विधान मे परमाणु सबसे छोटी इकाई होती है, जिसका भी प्राण केंद्र अवश्यमेव ही होता है | इलेक्ट्रान तथा प्रोटान उक्त परमाणु से सम्बद्ध रहकर उसकी निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | समस्त परमाणुओं का समग्र रूप एक ग्रह यानि पृथ्वी की संरचना को आकार देता है | पृथ्वी का गुरुत्व केंद्र इसका प्राण केंद्र और चन्द्रमा पृथ्वी का इलेक्ट्रान है, जो पृथ्वी के प्राण केंद्र से आबद्ध रहकर पृथ्वी के अंश के रूप मे इसकी निरंतर परिक्रमा करता रहता है | सूर्य सौर्य-मंडल का प्राण केंद्र है और सारे ग्रह-उपग्रह सूर्य से आबद्ध रहकर  सूर्य की निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | ब्रह्माण्ड मे असंख्य सौर-मंडल हैं और समस्त सौर-मंडल एक महा-सौर-मंडल की संरचना करते हैं | महा सूर्य की स्थिति इस महा-सौर-मंडल के  प्राण केंद्र की है और सारे सौर-मंडल इस महा-सूर्य से आबद्ध रहकर महा-सूर्य की निरन्तर परिक्रमा करते रहते हैं | यह क्रम आगे भी उस अंतिम सत्ता तक चलता रहता है, जिससे आबद्ध रहकर ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाएं उसकी परिक्रमा करती रहती हैं | यह परम सत्ता पूरे ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं का परिचालन, नियंत्रण तथा पोषण करता है | इस प्रकार यही सर्व शक्तिमान, सर्व विद्यमान एवं सर्व नियंतात्मक सत्ता है |  इसी परम सत्ता को हम-सब परम पुरुष अथवा ब्रह्म के नाम से जानते हैं |
            उपरोक्तानुसार श्रृष्टि संरचना विधान की तरह ही समाज संरचना की भी स्थिति है | परमाणु की तरह ग्राम सबसे छोटी इकाई होती है | ग्राम प्रधान प्रत्येक ग्राम संरचना का प्राण केंद्र होता है | समस्त ग्राम स्तरीय कर्मचारियों की स्थिति प्रधान के सचिवों के समान ही होती है | लेखपाल राजस्व सचिव, ग्राम सेवक विकास सचिव, पंचायत सेवक पंचायत सचिव, बी एच डब्लू स्वास्थ्य सचिव, सींचपाल सिचाई  सचिव, प्रधानाध्यापक शिक्षा सचिव, लाइनमैन विद्युत् सचिव की भांति होते हैं | वास्तव मे ग्राम प्रधानों की स्थिति इन सभी ग्राम स्तरीय सचिवों के अध्यक्ष एवं समन्वयक की तरह  हैं | विकेंद्रीकरण की स्थिति मे अब ग्राम प्रधान पहले से अधिक प्रभावी व शक्तिशाली बन गए हैं और वे ग्राम स्तरीय कर्मचारियों के नियंत्रक बन गए हैं | परन्तु इस स्वस्थ स्थिति का समुचित संज्ञान न तो शासन- प्रशासन को है, और न ही प्रधान व उसके विभिन्न सचिवगण को ही इसका अथोचित सज्ञान होता है | यही कारण है कि उपरोक्तानुसार विभिन्न ग्राम स्तरीय कर्मचारियों एवं विभागों का कार्य कलाप सही ढंग से नहीं हो पा रहा है और विकाश सही व सकारात्मक रूप से नहीं संभव हो पाता है | उपरोक्तानुसार परिस्थितियों मे शासन- प्रशासन विकास का अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने मे असफल होता सा प्रतीत होता है |                  
         १९७९-८२ तक अपर जिलाधिकारी (परियोजना) फतेहपुर के अपने कार्यकाल मे मैंने इस विसंगति को देखा था और इस सम्बन्ध मे गहन अनुशीलन के पश्चात् अपना मत निर्धारित कर लिया था | उस समय मैंने शासन को तत्क्रम मे एक तथ्य परक सुझाव भी भेजा था, पर इस सम्बन्ध मे शासन स्तर से  समुचित पहल अब तक संभव नहीं हो सकी है | यही कारण है कि विकास की यात्रा मे हम आज तक वांक्षित स्तर तक नही पहुँच पाए हैं | तत्क्रम मे मेरा सुझाव था ग्राम सचिवालयों की स्थापना | इस अवधारणा मे मात्र इतनी सी बात है कि यह सर्वमान्य तथ्य है कि ग्राम प्रधान ग्राम पंचायत का अध्यक्ष होता है | इसके अलावा सारे ग्राम स्तरीय कर्मचारी ग्राम प्रधान के सचिव के रूप मे होते हैं | इस तथ्य को प्रधान व उसके सचिवों को भली भाति समझना समझाना आवश्यक है | प्रधान का अपने समस्त सचिवों के साथ सप्ताह मे एक दिन किसी  नियत स्थान पर बैठना आवश्यक है | तभी प्रधान का उनके नियंत्रक व समन्वयक होने की सार्थकता सिद्ध होगी | इसे ही हम ग्राम सचिवालय का नाम दे सकते हैं | ग्राम वासियों की सामान्यतया यह शिकायत रहती है कि वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए विभिन्न ग्राम स्तरीय कर्मचारियों का चक्कर लगाते हुए महीनो भटकता रहता है, परन्तु ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता से नहीं मिल पाने के कारण उसका काम नहीं हो पाता है | इसका एक कारण यह भी होता है कि ग्राम स्तरीय कार्यकर्ताओं का कोई निश्चित कार्यालय नहीं होता, जहाँ उससे मिला जा सके | इसके अलावा विभिन्न कर्मचारियों का भी एक दूसरे से काम भी हो सकता है | ऐसी स्थिति मे भी ग्राम सचिवालय स्थापित करने की सार्थकता प्रमाणित होती है |
          यह स्वागत योग्य बात है कि ग्राम सचिवालय की स्थापना के औचित्य के बारे मे आज देर से ही सही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विचार प्रारंभ हो गया है | मुझे तो इससे ही विशेष ख़ुशी मिल रही है कि मेरे तीस साल पुराने चिंतन एवं प्रस्ताव के क्रम मे कमसे कम अब पहल शुरू हो रहा है , पर आशाजनक एवं सार्थक परिणाम पाने के उद्देश्य से ग्राम सचिवालय की अवधारणा को सही परिप्रेक्ष्य मे समझ कर ईमानदारी पूर्वक  कार्यान्वयन सुनिश्चित करना भी बहुत आवश्यक है | 

 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Saturday, January 8, 2011

बचत की आदत:विकास का मूलमंत्र

    संकटकालीन समय तथा भविष्य की आकस्मिक  ज़रूरतों  के लिए बचत करना एक अत्यधिक स्वाभाविक मानव स्वभाव है  और यह विकास एवं कल्याण के लिए बहुत आवश्यक भी  है  | मनुष्यों की बात तो दूर  यहाँ तक कि जानवरों  मे भी संकट काल  के लिए बचत करने की प्रवृति व व्यवहार देखने को मिल जाता  है | गिलहरी, चींटी, ऊंट और हाथी आदि लगभग अधिकांश  जानवरों मे  भविष्य की संकट कालीन स्थिति के लिए संग्रह करने की प्रवृति पाई जाती है | जबकि जानवर वर्तमान मे ही जीते हैं और उनमे भविष्य के लिए चिता करने का भाव व  स्वभाव नहीं होता है | इसे ही हम बचत की सार्वभौम आदत की संज्ञा दे सकते हैं | मनुष्यों मे तो  बचत की आदत एक  अपरिहार्यता  है | अतयव वे मनुष्य,  जिनमे बचत की आदत नहीं होती, जानवरों से भी गए गुजरे माने जावेगें |            
             इस बचत की आदत के  न होने के कारण प्रायः छोटी व सामान्य सी समस्याएं  पहाड़ जैसी दुर्गम एवं कठिन लगने लगती हैं | एक उदाहरण लेकर मैं इसे स्पष्ट करना चाहूँगा | लडकियाँ सामान्यतया इस कारण भार- स्वरूप प्रतीत होती हैं कि उनकी शादी आदि प्रयोजनों  मे काफी खर्चा करना होता है | बचत की यही आदत  लोगों को इस गंभीर  चिंता से मुक्त करा सकती  हैं | लड़की के माता पिता लड़की के जन्म के समय  ही  अपने आर्थिक- सामाजिक स्तर के अनुसार कुछ  हजार अथवा  कुछ  लाख रुपया २० साल के लिए लड़की के नाम सावधि जमा करा देते हैं, तो शादी के समय  अपेक्षित धन की व्यवस्था स्वतः  हो जावेगी | ऐसी स्थिति मे लडकियों को भार स्वरूप समझने की स्थिति नहीं रह जाएगी | इतना ही नहीं , लडको की ही तरह यदि लड़कियों को भी पढ़ा लिखा कर आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बना दिया जाता है तो लड़की भी लड़कों की तरह कमाने योग्य अर्थात asset बन जावेंगी | इससे लड़कों को asset तथा लड़कियों को liability समझ कर दहेज़ लेने व देने की कुरीति को समूल समाप्त करना भी  संभव हो सकता है , क्योंकि दहेज़ का मूल कारण आर्थिक ही है |.   
             अब बचत की इस आदत को न अपनाने के दुष्परिणाम की तरफ यदि हम दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि गरीबों उन्मूलन सहित तमाम ऋण योजनाओं मे किस्त देने हेतु अपेक्षित बचत करना अपरिहार्य  होता है , तभी ऋणी व्यक्ति बैंकों व तहसील का बकायेदार बनकर उत्पीडित होने  तथा वारंट गिरफ़्तारी आदि खतरनाक व घातक हथियारों के आघात से बचा रह सकता है | सरकारी मशीनरी तथा बैंक अपने कर्जों की वापसी हेतु किस्त भुगतान हेतु अपेक्षित धनराशि एकत्रित रखने के आशय से बचत करने की आदत डलवाने का प्रयास नहीं करते जो उनके तथा उनकी संस्था के लिए भी लाभदायक होता है | पर यह लोग कर्जदारों के पास तभी पहुंचते हैं, जब उनके शस्त्रागार मे वारंट- कुर्की- गिरफ़्तारी जैसे मारक व कारगर  हथियार आ जाते हैं | उनका यह व्यवहार मनुष्य का मनुष्य के साथ अपनाने जाने योग्य न होकर जात- शत्रुओं के साथ अपनाने वाले व्यवहार जैसा ही होता है |     
        कुछ लोग तो लोगों द्वारा बचत की आदत डालने के ही पक्षधर नहीं होते | ऐसे चार्वाक दर्शन के मानने वालों का मानना है कि " यावत जीवेत सुखं जीवेत , ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत  |                   भस्मीभूतस्य  देहस्य पुनरागमनं  कुतः | " ऐसी सोंच वाले लोग मनुष्य जाति और मनुष्यता के खतरनाक  शत्रु हैं और इससे मानव का विकास व कल्याण मे सर्वाधिक बाधा पहुंचती है |   
        इसीलिए मानव कल्याण व विकास के हित मे बचपन से ही बचत की आदत डलवाना परिवार, सरकार, समाज तथा शिक्षण संस्थाओं के दायित्व में सामिल होना चाहिए | इसके अलावा बचत की आदत को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक स्तर पर हर प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | बैंकों द्वारा ऋण देने के साथ ही ऋण वापसी हेतु कमसे कम किस्त की धनराशि के बराबर बचत सुनिश्चित कराने का दायित्व भी बहन करना चाहिए और ऋण वापसी न सुनिश्चित हो पाने  की दशा में आधी जिम्मेदारी बैंकों को बहन करना चाहिए |      
          कुछ लोगों का मानना है कि केवल खूब खाते- पीते लोगों द्वारा ही बचत की आदत डालना संभव है जो सही नहीं है | जबकि सही बस्तुस्थिति यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, यहाँ तक कि भिखारी भी बचत कर सकता है और ५० - १०० रूपये का रिकरिंग डिपाजिट का खाता खोलवा कर इस खाते को निरन्तर चला सकता है | इसके लिए सबसे जरुरी चीज है इच्छा शक्ति की, जो हर एक मनुष्य के पास हो सकती है और इसके लिए व्यक्ति का आत्म विश्वास ही अपेक्षित होता है | तभी तो कई भिखारियों के मरने के बाद यह प्रायः देखने मे आता रहता है कि वे अकूत सम्पतियों व बड़े कारोबार के मालिक रहे हैं |     
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Tuesday, December 21, 2010

शाश्वत वाणी उपवन : एक साहित्यिक उद्यान


इतिहास की विरासत को सजोना और इसे संरक्षित करना जहाँ एक ओर मानव स्वभाव है, वहीँ ऐसा करना समाज और  सरकार का परम दायित्व  भी  है | इतिहास की ही तरह  साहित्य की विरासत को सहेजना भी आती आवश्यक  होता है |  कमसे कम सौ या दो सौ सालों तक सामान्य जन मानस के जीवन मे अभिव्याप्त हो जाने वाला साहित्य  शाश्वत वाणी बन जाता  है | तब वे आप्त वचन, सूक्ति व प्रमाण बनकर जन जीवन का हिस्सा बन जाते हैं |
                       इस शाश्वत वाणी से वैश्विक जनमानस को जोड़ना और उनका अधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित करना एक सामाजिक दायित्व भी होता है | इसी सामाजिक दायित्व का सम्यक निर्वहन किये जाने के उद्देश्य से किसी बड़े पार्क मे एक शाश्वत वाणी उपवन निर्मित किये जाने की योजना को आकार  देने का सम्यक  विचार समाज व सरकारों के समक्ष रखना चाहता हूँ | वेद व्यास, वाल्मीकि , कबीर,  गोस्वामी  तुलसीदास  , सूरदास , मीरा,  नानक , दादू , रैदास , रहीम , रसखान , बिहारी भूषण, अमीर खुसरो , भारतेंदु ,  निराला , जय शंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा,  सुमित्रा नंदन पन्त, मैथिली शरण गुप्त , दिनकर , सोहनलाल द्विवेदी , ग़ालिब , मेरे , आग , इक़बाल ,  घाघ, आदि ३०- ४० कविगण को इस योजना का अंग बनाया जा सकता है |              
                       शाश्वत वाणी उपवन की इस योजना मे एक बड़े पार्क को शाश्वत वाणी उपवन नाम से साहित्यिक उद्यान के रूप मे विकसित किया जावेगा | यह उपवन उतने खण्डों (काम्प्लेक्स) मे विभक्त होगा, जितने साहित्यकारों को इस इस योजना में संम्मिलित किये जाने की योजना बनायीं जाती है | प्रत्येक साहित्यकार का अपना अलग व स्वतन्त्र काम्प्लेक्स होगा , जिसके बीचोबीच उस साहित्यकार की भव्य प्रतिमा होगी और प्रतिमा के नीचे तथा बगल मे साहित्यकार के परिचय सहित उनकी शाश्वत वाणी आकर्षक रूप मे प्रदर्शित की जावेगी | उक्त खण्ड के एक ओर उनके वास्तविक जीवन शैली से मिलता जुलता एक कुञ्ज बनाया जायेगा , जिसमे बैठने की उचित व्यवस्था सहित उक्त साहित्यकार के गीतों के कैसेट निरन्तर बजते रहेंगे | वहाँ बैठने वालों को उक्त साहित्यकार के सानिध्य का अहसास हो, ऐसी व्यवस्था होगी | यह उपवन इतना आकर्षक व उपयोगिता परक होगा कि इस उपवन मे जाने वाला व्यक्ति समस्त काम्प्लेक्स मे होता हुआ कमसे कम तीन घंटे वहा बंधकर रहे और बाहर साहित्यिक बनकर ही निकले |

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बुंदेलखंड मे खाद- बीज की किल्लत


 इसे बुंदेलखंड के किसानो का दुर्भाग्य ही कहा जावेगा कि वर्षा पर पूर्णतया आश्रित खेती वाले बुंदेलखंड क्षेत्र का किसान वर्षा ऋतु  मे अपने खेतो मे इस कारण खरीफ की फसलें नहीं लेता , क्योंकि यहाँ प्रचलित अन्ना प्रथा यानि छुट्टा पशुओं की समस्या के कारण बहुत कम लोग खरीफ की फसल बोते हैं और सामान्यतया खेत खाली रखते हैं  | ऐसी स्थिति मे बुंदेलखंड का किसान मुख्यतया रबी की फसल पर ही निर्भर रहता है और वह खरीफ की कमी की भरपायी रबी की फसल से ही कर लेने को आतुर रहता है | इस प्रकार रबी की फसल बुंदेलखंड के किसानो के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है |
              इसलिए रबी बुंदेलखंड की मुख्य फसल होतो है , अतयव रबी में खाद- बीज आदि कृषि निवेशो की उपलब्धता सर्बाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके लिए किसान सरकार व कृषि एजेंसियों पर पूर्णतया निर्भर रहता है | पर सरकार तथा कृषि संस्थाओं की सोची समझी चल व कुचक्र के कारण बुंदेलखंड में खाद - बीज आदि कृषि निवेशों की निरंतर किल्लत बनी रहती है और यह स्थिति बुंदेलखंड के किसान की कमर तोड़ देती है और रबी उत्पादन , जो बुंदेलखंड के किसानो का एकमात्र सहारा होता है , प्रतिकूल ढंग से प्रभावित होता है | यह प्रत्येक वर्ष का रोना है और इसे  दोहराने की परंपरा सी बन गयी है | 
        खाद- बीज- सिचाई- कीटनाशको का प्रबंधन ही खेती है और इन सबके लिए उसे सरकार तथा कृषि सस्थाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है | वैसे खेती मे समयबद्धता का बहुत बड़ा महत्व होता है, परन्तु रबी फसल के सन्दर्भ मे यह समयबद्धता अपेक्षाकृत सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होती  है और इस दृष्टि से  तनिक भी लापरवाही व बिलम्ब बड़ा घातक सिद्ध होता है और सम्पूर्ण रबी की  व्यवस्था को ही छिन्न भिन्न कर देता है | सरकारी तंत्र एवं एग्रो एजेंसियां इस समयबद्धता के प्रति बिलकुल लापरवाह होती हैं और प्रायः ऐन मौके पर और कभी कभी जानबूझ कर लापरवाही व  उदासीनता बरतने की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं | इसी कारण समय पर निवेशों कीअपरिहार्य उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती और रबी के पूरे कृषि प्रबंध को ही चौपट कर देता है | ऐसा करना रबी के लिए घातक तो होता ही है और कभी कभी किसान की कमर ही तोड़ देता है |    
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Monday, December 13, 2010

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पूर्णतया गलत , तो फिर क्या

यह विश्व ब्रह्माण्ड सार्बभौम नैसर्गिक नियमो से संचालित होता है और रहस्यों का अपूर्व भंडार  है , जिसको समझने- समझाने मे अनेकानेक दार्शनिक व वैज्ञानिक अपना जीवन समर्पित करते रहते हैं | अपनी  बौद्धिक एवं बोधिक क्षमता के सीमान्तर्गत  कतिपय रहस्यों से पर्दा उठाने मे वे कभी कभार  सफल भी हो जाते हैं | मानव बुद्धि की क्षमता देश- काल- पात्र गत सापेक्षिकता से प्रतिहत और तदनुसार बहुत अधिक सीमित होती  है | मनुष्य अपनी सापेक्ष स्थिति तथा सीमित बौद्धिक  क्षमता के अनुसार सापेक्षिक अंश तक ही विभिन्न रहस्यों का भेदन कर पाता है | इस सापेक्षिक बुद्धिमता के स्तर मे  परिवर्तन की स्थिति मे पूर्ब स्थापित तथ्य निरूपण सामान्यतया असत्य साबित होते जाते रहते हैं | यही चिंतन के विकास का क्रम एवं प्रक्रिया है, जो अनवरत  चलता रहता  है और आगे भी चलता रहेगा |
          सापेक्षिक बुद्धिमता के एक रतर पर सेव के पृथ्वी पर गिरने से  संबंधित रहस्य को सबसे पहले समझने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि पृथ्वी के भीतर विद्यमान आकर्षण के कारण सेव पृथ्वी की ओर खिचता चला आता है | यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज थी , जिसपर अनेकानेक वैज्ञानिक अवधारणाएँ व सिद्धांत आधारित हुए | प्रकृति के इस रहस्य को तत्कालीन देश काल पात्र गत सापेक्षिक बुद्धिमता के अनुसार सुलझाने का यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण व सफल प्रयास था | आज की परिष्कृत बुद्धिमता का स्तर इस सम्बन्ध मे एक  प्रश्न अवश्य उठाएगा  कि यह गुरुत्वाकर्षण वास्तव मे कहाँ से व किस प्रकार उत्पन्न होता है और यह किस प्रकार कार्य करता है | प्रयोगभौमिक आधार पर इसका समुचित उत्तर मिल पाना कदाचित संभव न हो , परन्तु आज का न्यूटनबादी वैज्ञानिक इतना अवश्य  स्पष्ट करेगा कि यह एक पूर्बनिर्धारित सत्य और मान्यता है | कोई यहाँ तक कह सकता है कि यह एक प्राकृतिक नियम है , जिसे सिद्ध करने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही इसे सिद्ध किया जाना संभव ही है | जबकि प्रयोगभौमिक तत्व निरूपण ऐसी  किसी पूर्ब मान्यता, पूर्वाग्रह ,तथा पूर्वधारणा को स्वीकार नहीं करता |
         उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य मे  मैं यहाँ शेव के पृथ्वी पर गिरने से संबंधित रहस्व के सम्बन्ध मे न्यूटन के उपरोक्तानुसार तथ्य निरूपण के क्रम मे मैं यह अवश्य स्पष्ट करना चाहूँगा कि सार्बभौम नैसर्गिक नियम और आज की बुद्धिमता का स्तर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को पूर्णतया नकारता  और इसे पूर्णतया असत्य सिद्ध करता हुआ  प्रतीत होता है | प्रयोगभौमिकता किसी पूर्व मान्यता एवं पुर्बाग्रह की अपेक्षा नहीं करता | अतः मैं अपने विश्लेषण मे किसी पूर्वमान्यता अथवा पूर्वाग्रह  का आलंबन नहीं लूँगा | केवल प्रारंभ करने के लिए एक पूर्वमान्यता की सहायता अवश्य लूंगा जो कालांतर मे स्वतः सिद्ध होकर पूर्ब मान्यता नहीं रह जावेगी | 
         किसी पदार्थ के सृजन की व्याख्या करने पर यह ज्ञात होता है कि प्रत्येक पदार्थ किसी मूल पदार्थ से अलग हुआ  किन्तु मूल पदार्थ से सम्बद्ध रहकर उसके अंश रूप मे ही विद्यमान रहता है | सूर्य से निकली पृथ्वी तथा पृथ्वी से निकला चन्द्रमा आदि इसके उदाहरण हो सकते है | मूल पदार्थ से अलग हुए इस  पदार्थ पर चतुर्दिक पड़ने वाला वायुमंडलीय  दबाव संतुलन की स्थिति मे एक ऐसे स्थान पर केन्द्रीभूत  होकर अवस्थित हो जाता है, जहाँ चतुर्दिक वायुमंडलीय  दबाव एक समान अथवा संतुलित हो जाता है | चतुर्दिक पड़ने वाले  वायुमंडलीय  दबाव की यही संतुलित स्थिति उक्त पदार्थ की स्थिति तथा कक्षा निर्धारित कर देती है | परिणामस्वरूप उसी स्थान व स्थिति मे उक्त पदार्थ अपने मूल पदार्थ (उदगम) के अंश (उपग्रह) के रूप मे उसकी परिक्रमा करने लगता है |     
            उपरोक्तानुसार परिस्थिति मे उक्त पदार्थ पर  चतुर्दिक पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव उक्त पदार्थ के भीतर एक केंद्र बिंदु पर शुन्य प्रभावी हो जावेंगा और एक प्राण केंद्र (नयूक्लियस ) का श्रृजन करेगा जो वायु मंडलीय दबाव के बराबर व प्रतिरोधी दबाव देकर उक्त पदार्थ को सुरक्षा व स्थायित्व प्रदान करेगा | ऐसी स्थिति मे ही उक्त पदार्थ का संरचनात्मक अस्तित्व व स्थायित्व संभव होता है | अर्थात किसी पदार्थ की संरचनात्मक स्थिति इसी बात पर निर्भर करेगा  कि उक्त पदार्थ पर पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव और उक्त पदार्थ के प्राणकेंद्र जन्य दबाव मे पूर्ण साम्य की स्थिति हो |
           उपरोत से यह प्रमाणित होता है कि प्रत्येक पदार्थ का प्राणकेंद्र कर्षण के बजाय अपकर्षण का कार्य करता है | उसकी प्रकृति किसी अन्य पदार्थ को अपनी ओर खीचने की न होकर अपने से दूर धकेलने की होती है | इस प्रकार किसी प्रकार के कर्षण का अस्तित्व तक उक्त पदार्थ मे नहीं होता है , उक्त पदार्थ का प्राणकेंद्र पदार्थ की सतह अथवा उससे दूर वायुमंडल मे अवस्थित बिभिन्न पदार्थों को अपनी अपकर्षण शक्ति द्वारा दूर धकेलने का ही कार्य करता है | इस प्रकार ब्रह्माण्ड मे पृथ्वी अथवा किसी स्वतन्त्र पदार्थ मे गुरुत्वाकर्षण या कर्षण का अस्तित्व होने का प्रश्न ही नहीं उठता  |
           अब यहीं हमें वायु मंडलीय दबाव से संबंधित अपनी पूर्वमान्यता को सिद्ध करने का  अवसर  मिलता हुआ प्रतीत होता है | जैसाकि ऊपर  स्पष्ट कर चुका हूँ
 कि प्रत्येक स्वतन्त्र पदार्थ का प्राण केंद्र अपकर्षण का कार्य करता है और यह अपकर्षण तरंग अपनी तरंग दैर्घ्य के अनुसार काफी दूर तक प्रभावी होती  है | परन्तु प्राण केंद्र से दूरी के अनुसार इसकी प्रभाव शीलता मे उत्तरोत्तर ह्राश की स्थिति दृष्टिगोचर होती प्रतीत होती है | श्रृष्टि मे अवस्थित असख्य पदार्थों का प्राणकेन्द्रीय अपकर्षण असंख्य तरंगो के प्रतिफलन के फलस्वरूप ऐसी तरंगे उद्भूत करती  हैं , जो पारस्परिक दबाव के रूप मे प्रत्येक पदार्थ को प्रभावित करने लगती है | स्थूलतः इसी को हम वायुमंडलीय दबाव के रूप समझ  सकते हैं | पर इसे ब्रह्मान्दिक अपकर्षण शक्ति के रूप मे अभिहत करना अधिक यथेष्ट होगा | क्योंकि यह शक्ति वायुमंडल से परे भी विद्यमान एवं कार्यरत रहती है | इस प्रकार पृथ्वी से ऊंचाई पर जाने पर बैरोमीटर के पारे  का कम होना वायु मंडलीय दबाव की कमी को दर्शाने के बजाय पृथ्वी के प्राण केन्द्रीय अपकर्षण शक्ति  का घटना  दर्शाता है | इस प्रकार वायुमंडलीय दबाव का सिद्धांत भी गलत मान्यता पर आधारित हुआ प्रतीत होता हैं | प्रकृति के अन्य रहस्यों तथा विज्ञानं के अन्य सिद्धांतों की भी उपरोक्तानुसार पुनर्समीक्षा किया  जाना अपेक्षित  एवं अपरिहार्य प्रतीत होती है 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Saturday, October 23, 2010

खुद अपने को बचाना : एक घातक कदम

 सामान्यतया लोग असफलताओं, दुर्घटनाओं या गलतियों के लिए स्वयं को कभी दोषी नहीं मानते और अपने प्रति पक्षपाती रवैये के कारण अपने को साफ साफ बचा जाते हैं | प्रत्येक दुर्घटना व गलती होने की स्थिति मे दूसरों पर दोष मढ़ने की प्रवृति प्रायः सबमे दिखाई पड़ती है | यह निःसंदेह अत्यधिक   घातक और अस्वस्थ स्थिति व प्रक्रिया होती है और इससे किसी का भला होने की बिलकुल सम्भावना नहीं होती |

                 वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति का अपने ऊपर ही पूरा- वश होता है और वह अपने बारे मे ही पूरी पूरी जिम्मेदारी ले सकता है | शराब पीकर खतरनाक ढंग से वाहन चलाता हुआ व्यक्ति यदि आप से टकरा जाता है अथवा  अचानक आई खराबी के कारण वह अपने वाहन पर नियंत्रण न रख सकने के कारण दर्घटना कर देता है,  तो ऐसी स्थिति मे हम सभी सामान्यतया उक्त वाहन चालक को दोषी मान बैठते हैं और अपने को इस सम्बन्ध मे दायित्व बोध से पूरा- पूरा मुक्त साबित करते अथवा  समझ लेते हैं | ऐसी सोंच ही दुर्घटनात्मक और अत्यधिक घातक होती है |

              वस्तुतः प्रत्येक दुर्घटना के सन्दर्भ मे हर हाल मे व्यक्ति को दूसरों पर दोषारोपण दोषी समझने के बजाय स्वयं अपने आप को ही दोषी व जिम्मेदार मानना चाहिए कि हमने इस सम्भावना को ध्यान मे रखकर वाहन क्यों नहीं चलाया कि दूसरा वाहन चालक शराब पीकर वाहन चला रहा हो सकता है और  उसके वाहन मे अचानक आई तकनीकी खराबी की सम्भावना के दृष्टिगत रखते हुए  हमें स्वयं सतर्क रहना चाहिए था | अर्थात दूसरे वाहन चालकों की गलतियों के लिए भी स्वयं को ही जिम्मेदार समझना चाहिए | ऐसी भावना और मनोवृति हमें हमेशा दुर्घटनाओं से बचाती रहेगी |

              ऐसी परिस्थियों मे हमें सोचना चाहिए कि हमारा उद्देश्य वाहन चलते समय दुर्घटना से बचना है और यह तभी संभव है,  जब हम प्रत्येक दुर्घटनात्मक परिस्थियों के लिए खुद अपने को ही जिम्मेदार माने और  दूसरों पर दोषारोपण करने की प्रवृति छोड़ें | अन्यथा हम दुर्घटनाओं से नहीं बच सकते | अर्थात वाहन चलाते वक्त विचार करना चाहिए कि हमने क्यों नहीं सोंचा कि अन्य वाहन चालक ने शराब पी रखी हो या उसके वाहन मे अचानक ब्रेक फेल होने जैसी तकनीकी खराबी भी आ गयी हो | इन सभी सम्भावनाओं का पूर्वानुमान करके वाहन चलाने की जिम्मेदारी खुद आपकी अपनी ही है , तभी आप दुर्घटनाओं से बच सकेगें | अच्छा चालक वही है जो प्रत्येक आसन्न या घटित दुर्घटना के लिए दूसरे को दोषी ठहराने के बजाय अपने को ही जिम्मेदार समझता है, क्योंकि दूसरों की गलती का खामियाजा तो आपको ही भुगतना होता है  | ऐसी सोंच वाला व्यक्ति हमेशा दुर्घटना से बचा रहता है और जीवन मे कभी भी दुर्घटना का शिकार नहीं होता |

             दुर्घटना के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों मे भी यह मनोवृति काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है और हम जीवन की अनेकानेक दुर्घटनाओं से बच सकते हैं | ऐसी परिस्थियों मे व्यक्ति दूसरों को उत्तरदायी मानने के बजाय सबसे पहले यदि खुद अपने बारे मे सोंचने लगे कि वह प्रकरण मे कहीं वह स्वयं तो जिम्मेदार नहीं है अथवा वह स्वयं किस अंश तक जिम्मेदार है ? इसके बाद दूसरों की जिम्मेदारी के सम्बन्ध मे विचार करना चाहिए | इस मनोवृति से जीवन की तमाम समस्याएं खेल खेल मे सुलझ जावेंगी और तनाव मुक्त जीवन का लक्ष्य भी प्राप्त करना संभव हो सकेगा |