Tuesday, September 14, 2010

हिंदी दिवस का आयोजन पितरपक्ष की तरह

प्रति वर्ष १४ सितम्बर को हिन्ही दिवस तथा पूरे पक्ष हिंदी पखवारे का आयोजन किया जाता है | १४ सितम्बर को ही संबिधान सभा मे हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप मे अंगीकार करते हुए इसे १५ वर्ष तक के लिए संपर्क भाषा बनाया गया था | इसी उपलक्ष मे हिंदी दिवस मनाया जाता है और पूरे पखवारे तक समस्त कार्यालयों , विशेषकर केन्द्रीय कार्यालयों व सार्बजनिक उपक्रमों मे अनेक आयोजन होते हैं | ऐसे आयोजन का मुख्य अतिथि सामान्यतया ऐसा व्यक्ति होता है जो प्रायः हिंदी बोलने व हिंदी मे काम करने से परहेज करता है और अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों मे पढ़ाता है | ऐसा लगता है कि हिंदी दिवस व पखवारा एक रश्म अदायगी के तौर पर मनाया जाता है , जिसमे हिंदी के पक्ष मे भाषणबाजी  व बयानबाजी तो खूब होती है किन्तु हिंदी के हित मे कुछ भी नहीं होता |
             राष्ट्र भाषा किसी देश मुख होता है , जिसे सजा - संवार कर रखा जाता है | राष्ट्र भाषा प्रेम का एक सजीव उदाहरण हमारे समक्ष है | तुर्किस्तान  के आजाद होने पर वहाँ के शासक कमाल पाशा ने जब लोगो की इस सम्बन्ध मे राय ली तो सभी ने तुर्की को १० से ५० वर्ष तक राष्ट्र भाषा बनने की सम्भावना जतायी थी , परन्तु कमाल पाशा ने अपने मत्री भाषा प्रेम तथा दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते घोषित किया कि कि दूसरे दिन सूर्योदय से ही तुर्की  राष्ट्र भाषा घोषित कर दिया था | इतना ही नहीं उन्होंने एक वर्ष तक सारे कार्यालय व शिक्षण संस्थाएं बंद सारे देश वासियों को लोगों को तुर्की परगने के काम मे लगा दिया था | भारत मे भी इसी प्रकार की इच्छाशक्ति की दरकार थी | तभी तो आज़ादी के ६३ साल बाद भी अशिक्षा का बोलबाला आर अंगूठे का वर्चश्व बरक़रार है | भारत मे  न तो किसी को हिंदी से उतना प्यार ही था और न ही ऐसी कोई इच्छा शक्ति ही दृष्टिगोचर हुई है  | यही कारण है कि  हिंदी की स्थिति डांवाडोल बनी हुई है | बिना संज्ञा के कोई प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकता और देश की मजबूती के लिए भाषाई एकता बहुत जरुरी है , अतयव देश हित मे पूरे देश को एकजुट होकर भाषाई एकता को प्रदर्शित करना चाहिए और अपनी अपनी मातृभाषा का पुरजोर प्रयोग एवं विकास करना चाहिए | हिंदी से किसी भाषा को न तो कोई खतरा है और न ही कोई प्रतिद्वंदिता | तो फिर आखिर हिंदी का विरोध क्यों ?
               हिंदी को सबसे अधिक खतरा २% अंग्रेजी दा लोगों से है जो हिंदी को उसका असली हक़ दिलाने के कभी पक्षधर नहीं रहें हैं | आज़ादी के बाद आज भी हिंदी को सबसे ज्यादा खतरा अंग्रेजी और अंग्रेजों से ही है | अंग्रेज अंग्रेजी के जरिये भारत मे अब तक अपनी वापसी की उम्मीद लगाये बैठे हैं | अंग्रेजो का कुत्ता प्रेम प्रसिद्ध है और कदाचित इसी कारण उनमे श्वान वृति आ गयी प्रतीत होती है | कुत्ते की सूंघने का स्वभाव अद्भुत होता है और उसकी जीवन वृति इसी गुण से संचालित होता है | इसलिए कुत्ता जब भी कभी बाहर जाता है तो रास्ते की स्थायी बस्तुओं पर पेशाब करता हुआ जाता है , ताकि सूंघते सूंघते वह वापस आ सके | अंग्रेज भी इसी स्वभाव व विचार से लोक सभा , उच्चतम न्यायालय , लोक सेवा आयोग ,नौकरशाही तथा विश्व विद्द्यालयों मे अंग्रेजी को स्थापित कर गए थे , ताकि कुत्ते के स्वभानुसार उनका पुनरागमन संभव हो सके |  
                देश के गौरव की स्थापना तथा राष्ट्र -प्रेम का तकाजा है कि राष्ट्र भाषा को उसके वास्तविक स्वरूप मे स्थापित किया जाय और हर एक भारतवासी इस दिशा मे अपने दायित्व बोध का प्रदर्शन करे | तभी हिंदी दिवस के आयोजन की सार्थकता होगी |


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा