Tuesday, March 30, 2010

पृथ्वी दिवस (अर्थ-आवर) और बुंदेलखंड


दिनांक 27 मार्च 2010 को विश्व में पृथ्वी दिवस  मनाया गया, इस दिन रात को 8.30 बजे से 9.30 (अर्थ-आवर) तक दुनियाभर में बिजली बंद रखी गयी इस बेहद संवेदनशील एवं महत्त्वपूर्ण घटना से बुंदेलखंडवासी जहाँ एक ओर अनजान रहे, वहीँ दूसरी ओर पृथ्वी दिवस से वे अपना सरोकार जोड़ नहीं पाए | कारण स्पष्ट है कि बुंदेलखंड, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र, जहाँ बिजली उपलब्ध नहीं है और विद्युत आपुर्ति की स्थिति अपर्याप्त व अनियमित है, के लिए पृथ्वी दिवस का ये संकल्प कोई विशेष मायने नहीं रखता |

          वस्तुतः पृथ्वी दिवस की बुंदेलखंड के लिए अधिक प्रासंगिकता है, पर उस रूप में नहीं, जिस रूप में पूरे विश्व ने पृथ्वी दिवस बनाया | समानता एवं नैसर्गिक न्याय की दृष्टि से पृथ्वी दिवस पर ये सोचा जाना चाहिए था की बुंदेलखंड को भी पृथ्वी के अन्य भू-भाग की भांति बिजली मिले | यदि यहाँ तत्काल विद्युतीकरण एवं विद्युत आपूर्ति संभव नहीं है तो इसका वैकल्पिक हल ढूँढा जाना चाहिए |
       बुंदेलखंड का ग्रामीण क्षेत्र दूर-दूर तक अन्धकार में डूबा रहता है तो क्या इसका कोई समाधान नहीं है ? मानव उत्पादित  विद्युत की उपलब्धता सीमित है, पर सौर ऊर्जा की उपलब्धता असीमित है | ऐसी स्थिति में बुंदेलखंड के सुदूरवर्ती गॉवों में सौर ऊर्जा के संयंत्र उपलब्ध करा के गॉवों की सड़क एवं गलियों में   नयूनतम  प्रकाश व्यवस्था की जा सकती है | पार्कों, मूर्तियों के निर्माण  जैसे अनपेक्षित एवं अनुपयोगी कार्यों के बजाय यदि वही धन बुंदेलखंड के ग्रामों में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में इस्तेमाल हो तो इन क्षेत्रों में अन्धकार को दूर किया जा सकता है |

        बुंदेलखंड में कई अविद्युतीकृत ग्रामों के विद्यालयों में वायरिंग करके पंखे, लाईट आदि लगाये गए है और कंप्यूटर आदि की आपुर्ति कर दी गयी है लेकिन जब गावों में बिजली की सुविधा नहीं है तो वायरिंग कराकर विद्युत उपकरणों को उपलब्ध कराने का क्या प्रयोजन ? क्या यह जनता के धन का दुरुपयोग नहीं है ? यदि सरकार जनता के धन का इस तरह दुरुपयोग बंदकर जनता से असम्बद्ध कार्यों पर हो रहे अपव्यय को रोक दे तो बुंदेलखंड का अन्धकार दूर किया जा सकता है | इसके अलावा औद्योगिक घरानों को प्रेरित करके सरकारें सौर ऊर्जा के इस काम में उन्हें लगा सकती हैं | परन्तु इसके लिए उन्हें अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनसे पार्टी चंदा लेने के बजाय अन्धकार दूर कराने संबंधी इस अत्याधिक जनोपयोगी कार्य पर प्राथमिकता देनी होगी |

      इस प्रकार बुंदेलखंड का अन्धकार दूर होकर न सिर्फ प्रकाश आयेगा वरन यह गौरवशाली भूमि इस विश्व का हिस्सा बन आगामी वर्षों में पृथ्वी दिवस में सक्रिय भागीदारी भी कर सकेगी |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Monday, March 29, 2010

लाइसेंस - बंधुआ प्रथा का अंत

बुंदेलखंड वीर भूमि रही है और कदाचित इसी कारण यहाँ के निवासियों में शस्त्र लाइसेंस की बड़ी चाहत देखने को मिलती है | बुंदेलखंड क्षेत्र में पैदल, साइकिल तथा जीपों में बन्दूक लेकर चलते हुए बहुत सारे लोग दिखाई पड़ते हैं जो बाहरी लोगों के लिए एक अचम्भा और स्थानीय लोगों के लिए एक स्टेटस सिम्बल होता है |  जिनके पास समुचित घर और खाने-पहनने की समुचित व्यवस्था नही है वे  भी किसी भी कीमत पर शस्त्र लाइसेंस चाहते हैं चाहे इसके लिए  ज़मीन भी बेंचनी पड़े |  इसी यथार्थ और विडंबना की अभिव्यक्ति श्री कैलाश मडवैय्या ने निम्न पंक्तियों में की है:

                                                            बैरी इतै बड़ात ना तै नई इतै कुसाय,
                                                            वोउत खेतन मे खडग बंदूकें जम आयं |

बुंदेलखंड क्षेत्र में शस्त्र और शास्त्र की बड़ी पुरानी परंपरा रही है पर आधुनिक समय में शस्त्रों के बेढब प्रदर्शन और सामाजिक आवश्यकता क्षेत्र के पिछड़ेपन को दर्शाती है | डाकू ग्रस्त क्षेत्र होने से उपजी  भयग्रस्तता के फलस्वरूप भी लोगों को हथियारों की आवश्यकता महसूस होती है | इस समस्या का एक और पहलू है, वैध हथियार लाइसेंसों की बदौलत मिलता रोजगार जो यहाँ के बेरोजगार नवयुवकों को सूरत, मुंबई, दिल्ली,  पंजाब आदि स्थानों पर सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने में मददगार होतें हैं |
           शस्त्र लाइसेंस प्राप्त करने की प्रबल लालसा के कारण लोग  इस दिशा में सांगोपांग प्रयास करतें हैं | उसे ऐसे प्रभावी व्यक्ति की तलाश रहती है जो जिलाधिकारी या अन्य अधिकारियों से अच्छा रसूक रखता हो और उसे शस्त्र लाइसेंस दिला सकता हो | जहां उसे ऐसा व्यक्ति विशेषतया राजनेता दिखाई पड़ता है , वह पूर्ण समर्पण कर उसके साथ लग लेता है | ऐसा राजनेता भी यह जानते हुए भी कि वह लाइसेंस नही दिला सकता , उस व्यक्ति को अपना लाइसेंस  बंधुआ बनाकर वर्षों  तक उससे तरह तरह के बेगार लेता रहता है | तथाकथित राजनेता तरह तरह की झूठी कहानियाँ सुना कर उन व्यक्तिओं का  आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार  बनाता है |  कभी जोड़-तोड़ अपने प्रभाव, जुगाड़ व दलाली की बदौलत एकाध व्यक्ति को शस्त्र लाइसेंस अगर मिल गया तो  लोगों की नज़र में वह राजनेता और अधिक महत्त्वपूर्ण व मूल्यवान हो जाता है |
                             
         एक दशक पहले चित्रकूट जनपद में एक विचित्र घटना घटी | कारगिल युद्ध  हेतु धन एकत्र करने के वास्ते राष्ट्रीय सहयोग राशि और चंदे के आधार पर उपयुक्त पात्रों को लाइसेंस दिए गए और सिर्फ दो दिन में हजारों बंधुआ शस्त्र लाइसेंस मुक्त हो गए |  इसके फलस्वरूप चित्रकूट जनपद में लाइसेंस बंधुआ प्रथा एवं दादू प्रथा का अंत हो गया और वर्ष २००२ में अपराधों का  ग्राफ  गिर कर लगभग १०% ही रह गया | पिछड़े क्षेत्रों में शोषण के अनेक आयाम होते हैं | विकास से पुनर्जागरण और परिणामतः शोषण से मुक्ति होती है जो एक निरंतर प्रक्रिया है | बुंदेलखंड को ऐसे और भी कई शोषकों से मुक्ति और जागरूक नेतृत्व का इंतज़ार है |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा