Thursday, May 20, 2010

शिक्षा के सही मायने

आज जब शिक्षा का मौलिक अधिकार कानून को अमली जामा पहनाने की तैयारी चल रही है , शिक्षा के वर्तमान स्वरूप एवं स्थिति की ईमानदारी और निष्पक्षता से समीक्षा की जानी अत्यावश्यक है | मुझे लगता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था अशिक्षा की ओर ले जा रही है | शिक्षा के उच्च से उच्चतर स्तर की ओर बढ़ते हुए हमारे कदम जीवन के यथार्थ मूल्यों को खोते जा रहें है | वस्तुतः जीवन के यथार्थ मूल्यों (चरित्र, अनुशासन, विश्वासपात्रता आदि यथार्थ मूल्य ) की कीमत पर हमें शिक्षा मिलती है वह भी समस्या के लिए | यानि जीवन के यथार्थ मूल्यों की तिलांजलि देकर हमें शिक्षा मिलती है, जिससे हमें समस्याएं ही हासिल होती हैं | इस प्रकार हमारी आज की शिक्षा समाधान मूलक न होकर समस्या मूलक ही है | हम इसे दूसरे तरीके से भी समझ सकते है |  हाईस्कूल स्तर तक शिक्षा प्राप्त करने वाले क्षात्र जब इंटर व बी. ए. पास करता है तो उसकी भौतिक और मानसिक जरुरत बढ़ जाती है , पर सामान्यतया शिक्षा व्यवस्था उसकी समस्याओ के समाधान हेतु तैयार नहीं करती | इस प्रकार अधिक शिक्षित होकर वह अपेक्षाकृत अधिक  समस्याग्रस्त हो जाता है |
         यहाँ हम एक उदाहरण लेते हैं | पहले ट्रेन मे टू टायर डिब्बा होता था , जिसमे ऊपर एक व्यक्ति सोता था और नीचे चार व्यक्ति बैठते थे | ऊपर लेटे हुए व्यक्ति को चैन कि नीद तभी आती है , जब उसे विश्वास हो जाता है कि नीचे बैठे लोग कम पढ़े और सीधे - सादे हैं | थोड़ी देर मे कुछ क्षात्र आकर बैठ जाते है तो उसकी नीद इस कारण दूर भाग जाती है क्योंकि उसका यह विश्वास बना हुआ है कि यह पढ़े लिखे लोग कुछ भी गड़बड़ी कर सकते हैं | इस प्रकार विश्वासपात्रता के मानवीय गुण को खोकर वह अशिक्षा की ओर जाता हुआ प्रतीत होता है | उसी ट्रेन के डिब्बे मे कुछ लडकिया बिना भय के बैठी हुई थी , उसी समय उन क्षात्रों के आ  जाने के कारण वे भयग्रस्त चितित हो जाती हैं  , क्योंकि उन्हें पहले बैठे हुए बिना पढ़े देहातियों के चरित्र पर पूरा भरोसा था , किन्तु क्षात्रो के चरित्र पर उन्हें भरोसा नहीं होता | इस प्रकार क्षात्रो ने विश्वासपात्रता का गुण खो दिया प्रतीत होता है |
     हमारी शिक्षा व्यवस्था यह मानकर चलती है कि बच्चे को पढाया जाता है और यही शिक्षा का सबसे बड़ा दोष है| इस बिचारधारा पर आधारित शिक्षा दोषपूर्ण बनकर रह जाती है और वांक्षित परिणाम देने मे सक्षम नहीं हो पा रही है |  जबकि हकीकत यह है कि बच्चा पढ़ता है , वह सबसे पहले मा को , उसके बाद पिता भाई बहन परिवारजन पड़ोसियों अध्यापक और सहपाठियों को पढ़ता है | उक्त सभी लोग इस तथ्य से सर्बथा अनजान रहते हैं कि बच्चा उनसे  निरन्तर पढ़ रहा है | यदि वे गलत आचरण करेंगे  तो बच्चा उनसे गलत और यदि वे सही होते हैं तो उनसे बच्चा सही पढ़ेगा | इसलिए बच्चे को पढने का स्वस्थ एवं उपयुक्त वातावरण देना सभी की सामूहिक उत्तरदायित्व है और इस तथ्य के दृष्टिगत कि बच्चा उनसे और उन्हें निरन्तर पढ़ रहा है , सभी को सतर्क रहना है , ताकि बच्चे को अवान्क्षनीयता पढने को बिलकुल ही न मिले और बच्चा वांछनीयता ही पढ़े | अतयव माता पिता , परिवारजनों , पड़ोसियों , तथा अध्यापको को एतदर्थ पढाया जाना अत्यावश्यक है | इस प्रकार पढाये जाने की जरुरत माता पिता , परिवारजनों , पड़ोसियों तथा अध्यापको को है , ताकि बच्चो को पढने का उपयुक्त वातावरण मिल सके और बच्चा अवांछनीयता पढने से बच सके |
     इस प्रकार शिक्षा पर पुनर्विचार करके इसे नए सिरे से परिभाषित किये  जाने की जरुरत है | इसी समय इस बिंदु पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए कि शिक्षा का बस्तुतः क्या प्रयोजन है और क्या शिक्षा व्यवस्था उक्त प्रयोजन के लिए  तैयार कराती है अथवा नहीं ? आज के भौतिक युग मे रोजगार एवं सुखी जीवन ही सबसे जरुरी है | अतयव 
  शिक्षा का मुख्यतया यही प्रवोजन होना चाहिए | यानि शिक्षा रोजगार परक होनी चाहिए | इसके लिए भाषा ज्ञान एवं बुद्धि विकास तो अपेक्षित होता ही है | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Wednesday, May 19, 2010

उपयोगी और सारगर्भित वेबसाइट : अपना बुंदेलखंड.कॉम

पहली बार बुंदेलखंड पर सम्पूर्ण वेबसाइट "अपना बुंदेलखंड.कॉम " शुरू की गयी है इसके सम्पादक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जगन्नाथ सिंह जी है जो पूर्व जिलाधिकारी व प्रदेश के पूर्व प्रमुख सचिव गृह रह चुके हैं | इसमें उनका ब्लॉग भी समाहित है | बुंदेलखंड इतना पिछड़ा क्षेत्र है की इसके बारे में राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है | जगन्नाथ सिंह जी की सरकारी सेवा का लंबा कार्यकाल बुंदेलखंड में ही बीता है | वे निरंतर 5 सालों तक चित्रकूट धाम कर्वी मंडल मुख्यालय पर तथा तदोपरांत झाँसी जनपद में जिलाधिकारी के पद पर तैनात रहे | जिज्ञासु और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होने के कारण इस दौरान उन्होंने बुंदेलखंड के बारे में बहुत सारी जानकारी एकत्र की, जिन्हें वे अपने ब्लॉग और वेबसाइट में प्रयोग कर रहे हैं | वेबसाइट पर बुंदेलखंड से जुड़ी तमाम जानकारियाँ जैसे बुंदेलखंड का इतिहास, भूगोल, पर्यावरण, बुंदेलखंड के जिलों के बारें में सारी जानकारी, बुंदेलखंड में चल रहीं विकास योजनायें और उनकी प्रगति, बुंदेलखंड और उनके जिलों की पांच प्रमुख खबर आदि उपलब्ध हैं | साथ ही साथ ब्लॉग पर जल संकट, जल संरक्षण, रैन वाटर हार्वेस्टिंग, भुखमरी, मजदूरों का पलायन आदि तमाम विषयों को समाहित किया गया है | ख़ास बात ये है की इसे रोज अपडेट किया जाता है जिससे पड़ने वालों को हर दिन नवीनतम व ताज़ा जानकारी उपलब्ध होती है | जहाँ ये वेबसाइट बुंदेलखंड पर समग्र जानकारियों की तलब रखने वालों के लिए अनुपम और उपयोगी है, वहीँ उन छात्र- छात्राओं व शोधार्थियों के लिए भी वरदान की तरह है, जो अभी तक इस तरह की जानकारियों के लिए यहाँ वहां भटकते थे |
अधिक जानकारी के लिए ApnaBundelkhand.com पर लोग ऑन करें |

दैनिक जागरण, झाँसी (दिनांक 12.05.2010) के सौजन्य से 

Monday, May 17, 2010

बुंदेलखंड मे जैविक खेती

वर्तमान में जैविक खेती सभी स्तरों पर चर्चा का विषय बनी हुई है और इस क्षेत्र मे थोड़ा बहुत काम भी चल रहा है| पर इस दिशा मे विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने तथा प्रचार-प्रसार की बहुत जरुरत है| बुंदेलखंड मे जैविक खेती की सार्थकता अन्य क्षेत्रों से अपेक्षाकृत अधिक है और यहाँ छुटपुट रूप से प्रचलित भी है| झाँसी मे अपने जिलाधिकारी के कार्यकाल के दौरान मुझे जानकारी मिली थी कि बबीना क्षेत्र के किसी गाँव (नाम याद नहीं) मे जैविक खेती हो रही है | झाँसी मेडिकल कालेज, बुंदेलखंड विश्वविद्द्यालय व झाँसी में स्थित इंजीनियरिंग कालेज के प्राध्यापक जैविक खेती वाले इस गाँव मे पहुँच कर किसानो के जैविक अनाज को बड़ी कीमत पर खरीद कर अपनी गाड़ियों मे ले आते थे | इससे किसानो को अपने जैविक अनाज का ड्योढ़ा दूना मूल्य मिल रहा था | इस घटना से प्रभावित होकर मैंने झाँसी के प्रत्येक ब्लाक के कम से कम एक गाँव मे जैविक खेती अपनाने हेतु किसानो को प्रेरित करके उसे जैविक गाँव घोषित कराये जाने का अभियान चलाया था|

मेरे एक आई.ए.एस. अधिकारी मित्र के बीमार पिता को देखने अस्पताल जाने पर मुझे पता चला था कि उनके पिताजी बहुत ही नियमित और संयमी जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति थे| अतयव वह बहुत दुखी थे कि ऐसी जीवन शैली अपनाने के बावजूद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी कैसे हुई? उन्होंने गहन चिंतन के उपरांत पहुंचे अपने निष्कर्ष से मुझे इस प्रकार अवगत कराया था कि अनाज के साथ अंग्रेजी खादें और कीटनाशक दवाएं उनके शरीर मे पहुँचाने के कारण उन्हें कैसर हुआ था | वह एक महान वैद्य भी थे | मेरी मुलाकात के दो दिन बाद ही वह दिवंगत हो गए थे | मुझे उनके कथन पर पूर्ण विश्वास है और मेरा यह दृढ मत है कि आज की बड़ी-बड़ी और खतरनाक बीमारियाँ आज उपजाए जा रहे दूषित अनाजो के कारण हैं | यदि हम जैविक अन्न खाते हैं तो हम तमाम खतरनाक बीमारियों से बचे रह सकते हैं | उन्होंने मरने से पहले अपने बेटे को अपनी अंतिम इच्छा बताई थी कि वह जैविक खेती व जैविक अन्न के क्षेत्र में काम को अवश्य करें | उनके आई.ए.एस बेटे ने उनकी इच्छा को सम्मान देते हुए आई.ए.एस की नौकरी छोड़ कर जैविक खेती और जैविक अनाज को लोगों तक पहुंचाने के काम को पूरी ईमानदारी से करना शुरू कर दिया |
      उपरोक्तानुसार परिस्थियों मे पूरे देश को मिलकर देश के किसानो को राज़ी एवं प्रेरित करके जैविक खेती के पक्ष मे वातावरण एवं परिवेश बनना चाहिए, क्योंकि मनुष्य के जीवन एवं स्वास्थ्य से ज्यादा मूल्यवान कुछ भी नहीं है | सरकारों, कृषि विभागों एवं वैज्ञानिकों को देश एवं लोकहित मे इस दिशा मे भरपूर प्रयास करना चाहिए | बुंदेलखंड मे जैविक खेती का वातावरण बना बनाया है, क्योंकि यहाँ सिचाई के साधनों की कमी है | कम सिचाई से जैविक खेती अच्छी तरह हो सकती है | अनआर्गनिक खेती कम सिचाई से संभव नहीं होती | अतः बुंदेलखंड यदि चाहे तो जैविक खेती करके पूरे उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य की रक्षा का बीड़ा उठा सकता है |
      सरकार भी कदाचित बुंदेलखंड मे जैविक खेती के महत्त्व को समझ गई है और राज्य स्तर पर बुंदेलखंड के लिए एक जैविक कृषि बोर्ड बनाया गया है | जिसमे कदाचित 500 करोंड़ धनराशि की व्यवस्था है, परन्तु इस योजना का कहीं भी कोई प्रचार-प्रसार नहीं है | इससे इस बात का भय लगता है कि कहीं यह योजना भी अन्य योजनाओं की तरह कागजी तो नहीं है | इसके साथ सरकार की इच्छाशक्ति होती नहीं नज़र आती | अतयव कृषको, जनता एवं स्वयं सेवी संस्थाओं को मिलकर इस दिशा मे कमर कसनी  होगा |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Sunday, May 16, 2010

सम्यक एवं समग्र दृष्टि

  सभ्यता के प्रथम प्रभात मे आदि मानव के मन मष्तिष्क मे उत्पन्न प्रारंभिक प्रश्नों का समुचित व संतोषजनक उत्तर आज तक नहीं मिल पाया है | अध्यात्म तथा विज्ञानं दोनों ही उन प्रश्नों का उत्तर देने मे असमर्थ रहें है | यह प्रश्न जीवन और मृत्यु , मै कौन हूँ , मुझे बनाने वाला कौन है , मनोविज्ञान एवं व्यवहार, श्रृष्टि कैसे बनी और श्रृष्टि नियंता कौन है , मनुष्य का यंत्रीकरण स्वरूप तथा ईश्वर का मानवीकृत स्वरूप आदि अनेक प्रश्न हैं जो पहले भी उठते थे और वही प्रश्न आज भी अनुत्तरित रूप मे  विद्यमान हैं | ऐसा क्या कारण  है कि हमें उन प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है ? ऐसा नहीं है कि इन आदि प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने का कोई प्रयास नहीं किया गया | प्रारंभ से मानव मनीषा इस दिशा मे प्रयासरत रही है | वैज्ञानिक और अध्यात्मविद अपने अपने तरीके से प्रयासरत रहे , पर अर्धजगत मे सीमित रहते हुए प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने  के कारण दोनों सही उत्तर तक नहीं पहुँच सके थे | यदि गंभीरता एवं ईमानदारी से विचार करें तो हम सहज ही समझ पाएंगे कि विज्ञानं और अध्यात्म दोनों अर्ध जगत तक सीमित हैं | विज्ञानं की पहुँच बुद्धि और अध्यात्म बोधी , जहाँ बुद्धि यानि विज्ञानं का क्षेत्र समाप्त हो जाता है, का क्षेत्र प्रारंभ होता है  | जैसे दोनों भागो का संज्ञान लिए बिना किसी  सिक्के की कल्पना नहीं की जा सकती , दो पहियों के बिना किसी वाहन की कल्पना नहीं की जा सकती ,वैसे ही विज्ञानं और अध्यात्म के संविलयन के बिना सम्यक व सम्पूर्ण दृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती है | जब तक सम्यक व सम्पूर्ण दृष्टि नहीं होगी , तब तक आदि प्रश्नों सहित आज प्रस्तुत प्रश्नों का उत्तर नहीं पाया जा सकता है | अतयव वैज्ञानिक - अध्यात्मिक (बुद्धि - बोधी ) के समवेत दृष्टिकोण एवं नजरिये को अपनाना अपरिहार्य है | तभी हम समग्र दृष्टि से समग्रता का आत्मसात करके सम्यक समाधान पा सकेगे |
       उपरोक्तानुसार सम्यक एवं समग्र दृष्टि बहुत उपयोगी  एवं आवश्यक है , क्योंकि इसके बिना हमें सम्यक समाधान नहीं मिल सकता और हम केवल समस्या के चक्रव्यूह मे ही उलझे रहेगे | यदि हम विश्व पटल पर दृष्टिपात करे तो हाँ पायेगे कि शिक्षा, समाज , स्वास्थ्य , राजनीति , विज्ञानं , पर्यावरण , आर्थिक आदि समस्त क्षेत्रो मे कही कोई सम्पूर्ण एवं दोषरहित व्यवस्था नहीं है | सही मायने मे प्रत्येक क्षेत्र  मे समाधान से अधिक समस्याएं हैं | कही कोई पूर्णता नहीं है और ट्रायल एंड एरर का रास्ता अपनाते हुए हम निरतर प्रयोगधर्मी बने हुए हैं | हम जीवन के यथार्थ एवं मानवीय मूल्यों की कीमत पर शिक्षा पाते हैं , वह भी समस्या के लिए || इस प्रकार हमारी शिक्षा व्यवस्था समाधानमूलक न होकर समस्यामूलक ही अधिक  है | इसी प्रकार जैसे जैसे चिकित्सा के क्षेत्र मे खोजकर हम  एक बड़ी बीमारी का निदान ढूँढ़ पाते हैं , उससे ज्यादा खतरनाक नयी बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं | समाज के क्षेत्र मे विश्व मे कही भी परिवार एवं विवाह संस्था की पूर्णता के दर्शन नहीं होते | पर्यावरण , विज्ञानं तथा राजनीति की चर्चा बेमानी ही समझनी चाहिए |
      इस प्रकार बर्तमान परिदृश्य मे यही समझ मे आता है कि विज्ञानं - अध्यात्म के संविलयन से प्राप्त सम्यक एवं समग्र दृष्टि से ही हम हर क्षेत्र मे समाधान एवं पूर्णता पा सकेगे | अतयव हमें अपने नजरिये मे परिवर्तन करके नए तरीके से अनुत्तरित प्रश्नों के सही उत्तर ढूंढने होंगे तथा समस्याओं का समाधान प्राप्त करना होगा | 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा