Sunday, May 16, 2010

सम्यक एवं समग्र दृष्टि

  सभ्यता के प्रथम प्रभात मे आदि मानव के मन मष्तिष्क मे उत्पन्न प्रारंभिक प्रश्नों का समुचित व संतोषजनक उत्तर आज तक नहीं मिल पाया है | अध्यात्म तथा विज्ञानं दोनों ही उन प्रश्नों का उत्तर देने मे असमर्थ रहें है | यह प्रश्न जीवन और मृत्यु , मै कौन हूँ , मुझे बनाने वाला कौन है , मनोविज्ञान एवं व्यवहार, श्रृष्टि कैसे बनी और श्रृष्टि नियंता कौन है , मनुष्य का यंत्रीकरण स्वरूप तथा ईश्वर का मानवीकृत स्वरूप आदि अनेक प्रश्न हैं जो पहले भी उठते थे और वही प्रश्न आज भी अनुत्तरित रूप मे  विद्यमान हैं | ऐसा क्या कारण  है कि हमें उन प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है ? ऐसा नहीं है कि इन आदि प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने का कोई प्रयास नहीं किया गया | प्रारंभ से मानव मनीषा इस दिशा मे प्रयासरत रही है | वैज्ञानिक और अध्यात्मविद अपने अपने तरीके से प्रयासरत रहे , पर अर्धजगत मे सीमित रहते हुए प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने  के कारण दोनों सही उत्तर तक नहीं पहुँच सके थे | यदि गंभीरता एवं ईमानदारी से विचार करें तो हम सहज ही समझ पाएंगे कि विज्ञानं और अध्यात्म दोनों अर्ध जगत तक सीमित हैं | विज्ञानं की पहुँच बुद्धि और अध्यात्म बोधी , जहाँ बुद्धि यानि विज्ञानं का क्षेत्र समाप्त हो जाता है, का क्षेत्र प्रारंभ होता है  | जैसे दोनों भागो का संज्ञान लिए बिना किसी  सिक्के की कल्पना नहीं की जा सकती , दो पहियों के बिना किसी वाहन की कल्पना नहीं की जा सकती ,वैसे ही विज्ञानं और अध्यात्म के संविलयन के बिना सम्यक व सम्पूर्ण दृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती है | जब तक सम्यक व सम्पूर्ण दृष्टि नहीं होगी , तब तक आदि प्रश्नों सहित आज प्रस्तुत प्रश्नों का उत्तर नहीं पाया जा सकता है | अतयव वैज्ञानिक - अध्यात्मिक (बुद्धि - बोधी ) के समवेत दृष्टिकोण एवं नजरिये को अपनाना अपरिहार्य है | तभी हम समग्र दृष्टि से समग्रता का आत्मसात करके सम्यक समाधान पा सकेगे |
       उपरोक्तानुसार सम्यक एवं समग्र दृष्टि बहुत उपयोगी  एवं आवश्यक है , क्योंकि इसके बिना हमें सम्यक समाधान नहीं मिल सकता और हम केवल समस्या के चक्रव्यूह मे ही उलझे रहेगे | यदि हम विश्व पटल पर दृष्टिपात करे तो हाँ पायेगे कि शिक्षा, समाज , स्वास्थ्य , राजनीति , विज्ञानं , पर्यावरण , आर्थिक आदि समस्त क्षेत्रो मे कही कोई सम्पूर्ण एवं दोषरहित व्यवस्था नहीं है | सही मायने मे प्रत्येक क्षेत्र  मे समाधान से अधिक समस्याएं हैं | कही कोई पूर्णता नहीं है और ट्रायल एंड एरर का रास्ता अपनाते हुए हम निरतर प्रयोगधर्मी बने हुए हैं | हम जीवन के यथार्थ एवं मानवीय मूल्यों की कीमत पर शिक्षा पाते हैं , वह भी समस्या के लिए || इस प्रकार हमारी शिक्षा व्यवस्था समाधानमूलक न होकर समस्यामूलक ही अधिक  है | इसी प्रकार जैसे जैसे चिकित्सा के क्षेत्र मे खोजकर हम  एक बड़ी बीमारी का निदान ढूँढ़ पाते हैं , उससे ज्यादा खतरनाक नयी बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं | समाज के क्षेत्र मे विश्व मे कही भी परिवार एवं विवाह संस्था की पूर्णता के दर्शन नहीं होते | पर्यावरण , विज्ञानं तथा राजनीति की चर्चा बेमानी ही समझनी चाहिए |
      इस प्रकार बर्तमान परिदृश्य मे यही समझ मे आता है कि विज्ञानं - अध्यात्म के संविलयन से प्राप्त सम्यक एवं समग्र दृष्टि से ही हम हर क्षेत्र मे समाधान एवं पूर्णता पा सकेगे | अतयव हमें अपने नजरिये मे परिवर्तन करके नए तरीके से अनुत्तरित प्रश्नों के सही उत्तर ढूंढने होंगे तथा समस्याओं का समाधान प्राप्त करना होगा | 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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