Monday, March 29, 2010

लाइसेंस - बंधुआ प्रथा का अंत

बुंदेलखंड वीर भूमि रही है और कदाचित इसी कारण यहाँ के निवासियों में शस्त्र लाइसेंस की बड़ी चाहत देखने को मिलती है | बुंदेलखंड क्षेत्र में पैदल, साइकिल तथा जीपों में बन्दूक लेकर चलते हुए बहुत सारे लोग दिखाई पड़ते हैं जो बाहरी लोगों के लिए एक अचम्भा और स्थानीय लोगों के लिए एक स्टेटस सिम्बल होता है |  जिनके पास समुचित घर और खाने-पहनने की समुचित व्यवस्था नही है वे  भी किसी भी कीमत पर शस्त्र लाइसेंस चाहते हैं चाहे इसके लिए  ज़मीन भी बेंचनी पड़े |  इसी यथार्थ और विडंबना की अभिव्यक्ति श्री कैलाश मडवैय्या ने निम्न पंक्तियों में की है:

                                                            बैरी इतै बड़ात ना तै नई इतै कुसाय,
                                                            वोउत खेतन मे खडग बंदूकें जम आयं |

बुंदेलखंड क्षेत्र में शस्त्र और शास्त्र की बड़ी पुरानी परंपरा रही है पर आधुनिक समय में शस्त्रों के बेढब प्रदर्शन और सामाजिक आवश्यकता क्षेत्र के पिछड़ेपन को दर्शाती है | डाकू ग्रस्त क्षेत्र होने से उपजी  भयग्रस्तता के फलस्वरूप भी लोगों को हथियारों की आवश्यकता महसूस होती है | इस समस्या का एक और पहलू है, वैध हथियार लाइसेंसों की बदौलत मिलता रोजगार जो यहाँ के बेरोजगार नवयुवकों को सूरत, मुंबई, दिल्ली,  पंजाब आदि स्थानों पर सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने में मददगार होतें हैं |
           शस्त्र लाइसेंस प्राप्त करने की प्रबल लालसा के कारण लोग  इस दिशा में सांगोपांग प्रयास करतें हैं | उसे ऐसे प्रभावी व्यक्ति की तलाश रहती है जो जिलाधिकारी या अन्य अधिकारियों से अच्छा रसूक रखता हो और उसे शस्त्र लाइसेंस दिला सकता हो | जहां उसे ऐसा व्यक्ति विशेषतया राजनेता दिखाई पड़ता है , वह पूर्ण समर्पण कर उसके साथ लग लेता है | ऐसा राजनेता भी यह जानते हुए भी कि वह लाइसेंस नही दिला सकता , उस व्यक्ति को अपना लाइसेंस  बंधुआ बनाकर वर्षों  तक उससे तरह तरह के बेगार लेता रहता है | तथाकथित राजनेता तरह तरह की झूठी कहानियाँ सुना कर उन व्यक्तिओं का  आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार  बनाता है |  कभी जोड़-तोड़ अपने प्रभाव, जुगाड़ व दलाली की बदौलत एकाध व्यक्ति को शस्त्र लाइसेंस अगर मिल गया तो  लोगों की नज़र में वह राजनेता और अधिक महत्त्वपूर्ण व मूल्यवान हो जाता है |
                             
         एक दशक पहले चित्रकूट जनपद में एक विचित्र घटना घटी | कारगिल युद्ध  हेतु धन एकत्र करने के वास्ते राष्ट्रीय सहयोग राशि और चंदे के आधार पर उपयुक्त पात्रों को लाइसेंस दिए गए और सिर्फ दो दिन में हजारों बंधुआ शस्त्र लाइसेंस मुक्त हो गए |  इसके फलस्वरूप चित्रकूट जनपद में लाइसेंस बंधुआ प्रथा एवं दादू प्रथा का अंत हो गया और वर्ष २००२ में अपराधों का  ग्राफ  गिर कर लगभग १०% ही रह गया | पिछड़े क्षेत्रों में शोषण के अनेक आयाम होते हैं | विकास से पुनर्जागरण और परिणामतः शोषण से मुक्ति होती है जो एक निरंतर प्रक्रिया है | बुंदेलखंड को ऐसे और भी कई शोषकों से मुक्ति और जागरूक नेतृत्व का इंतज़ार है |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा  

No comments:

Post a Comment