Tuesday, December 21, 2010

बुंदेलखंड मे खाद- बीज की किल्लत


 इसे बुंदेलखंड के किसानो का दुर्भाग्य ही कहा जावेगा कि वर्षा पर पूर्णतया आश्रित खेती वाले बुंदेलखंड क्षेत्र का किसान वर्षा ऋतु  मे अपने खेतो मे इस कारण खरीफ की फसलें नहीं लेता , क्योंकि यहाँ प्रचलित अन्ना प्रथा यानि छुट्टा पशुओं की समस्या के कारण बहुत कम लोग खरीफ की फसल बोते हैं और सामान्यतया खेत खाली रखते हैं  | ऐसी स्थिति मे बुंदेलखंड का किसान मुख्यतया रबी की फसल पर ही निर्भर रहता है और वह खरीफ की कमी की भरपायी रबी की फसल से ही कर लेने को आतुर रहता है | इस प्रकार रबी की फसल बुंदेलखंड के किसानो के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है |
              इसलिए रबी बुंदेलखंड की मुख्य फसल होतो है , अतयव रबी में खाद- बीज आदि कृषि निवेशो की उपलब्धता सर्बाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके लिए किसान सरकार व कृषि एजेंसियों पर पूर्णतया निर्भर रहता है | पर सरकार तथा कृषि संस्थाओं की सोची समझी चल व कुचक्र के कारण बुंदेलखंड में खाद - बीज आदि कृषि निवेशों की निरंतर किल्लत बनी रहती है और यह स्थिति बुंदेलखंड के किसान की कमर तोड़ देती है और रबी उत्पादन , जो बुंदेलखंड के किसानो का एकमात्र सहारा होता है , प्रतिकूल ढंग से प्रभावित होता है | यह प्रत्येक वर्ष का रोना है और इसे  दोहराने की परंपरा सी बन गयी है | 
        खाद- बीज- सिचाई- कीटनाशको का प्रबंधन ही खेती है और इन सबके लिए उसे सरकार तथा कृषि सस्थाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है | वैसे खेती मे समयबद्धता का बहुत बड़ा महत्व होता है, परन्तु रबी फसल के सन्दर्भ मे यह समयबद्धता अपेक्षाकृत सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होती  है और इस दृष्टि से  तनिक भी लापरवाही व बिलम्ब बड़ा घातक सिद्ध होता है और सम्पूर्ण रबी की  व्यवस्था को ही छिन्न भिन्न कर देता है | सरकारी तंत्र एवं एग्रो एजेंसियां इस समयबद्धता के प्रति बिलकुल लापरवाह होती हैं और प्रायः ऐन मौके पर और कभी कभी जानबूझ कर लापरवाही व  उदासीनता बरतने की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं | इसी कारण समय पर निवेशों कीअपरिहार्य उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती और रबी के पूरे कृषि प्रबंध को ही चौपट कर देता है | ऐसा करना रबी के लिए घातक तो होता ही है और कभी कभी किसान की कमर ही तोड़ देता है |    
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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