Friday, May 14, 2010

वृक्षारोपण एवं पर्यावरण

बुंदेलखंड पहले बहुत हरा भरा एवं खुबसूरत क्षेत्र होता था ,किन्तु आज बुंदेलखंड बृक्ष विहीन क्षेत्र सा लगता है | अनियंत्रित खनन ने जहाँ यहाँ के पहाड़ों को नष्ट करके इसकी सुन्दरता को कम कर दिया है , वहीँ बृक्षों की अवैध कटानों ने यहाँ की हरियाली को समाप्त करके इसे सूखा क्षेत्र बना दिया है | गर्मी के दिनों मे  केवल तेंदू पत्ता के पेंड़ों के कारण ही थोड़ी बहुत हरियाली दिखाई देती है | कम बृक्ष होने के कारण वर्षा भी कम होती है | अतयव बृक्षों का बहुत बड़े पैमाने पर रोपण किया जाना यहाँ की सबसे बड़ी जरूरत है|
      वैसे तो बृक्षों के रोपण पर सरकार का भी बहुत जोर है , परन्तु सरकारी कार्यक्रम लक्ष्य पर आधारित होते है और लक्ष्य पूरा होने मात्र से सरकार संतुष्ट हो जाती है | अतयव सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य पूरा होने पर लक्ष्य पूरा करने वाले ही इसे भूल जाते हैं और अगले वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने मे जुट जाते हैं | जिसके कारण पहले लगाये  गए बृक्षों का रख रखाव व रक्षा नहीं हो पाती और कराये गए वृक्षारोपण का प्रभाव पूर्णतया वाष्पायित हो जाता है | इस कारण लगाये अधिकांश बृक्ष नष्ट हो जाते हैं | यदि सरकार द्वारा प्रारंभ से लगवाये गए बृक्षों का सज्ञान लिया जाये तो देश की धरती  के हर इंच पर पेंड लगे हुए प्रतीत होंगे , जबकि जमीनी हकीकत इसके बिलकुल बिपरीत दिखाई देती है |
     बृक्ष लगाना हमारे जीवन और खुशहाली से जुड़ा कार्य है ,अतयव इसे सरकार के भरोसे छोड़ देना उपरोक्तानुसार स्थिति  के परिप्रेक्ष्य मे आत्महत्या के समान है | अतः इस कार्य को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता का कार्य मानकर जनता को इस काम को अपने हाथ मे लेना पड़ेगा | तभी यथार्थ मे पेंड लगेगे और पेंड लगने के बाद जीवित भी रहेगे व उनका समुचित रखरखाव संभव हो सकेगा  |
     मुझे इससे जुड़े एक प्रेरक प्रसंग का स्मरण हो रहा है | भगवान् बुद्ध एक समय अपने एक शिष्य के अत्यधिक अनुरोध पर उसके पुत्र के जन्म दिन के  उत्सव मे शामिल हुए थे | शिष्य अतिथियों की आवभगत से मुक्त होकर जब बुद्ध भगवान के समक्ष पंहुचा तो जन्मदिन मानाने मे व्यस्त होने के कारण उनसे क्षमा याचना की | मुस्काते हुए भगवान ने कहा कि क्या जन्मदिन मना लिया और जन्मदिन  पर क्या किया | इस पर शिष्य ने सोचा कि भगवान को क्या यह बताना उचित होगा कि उसने खा लिया और खिला दिया ? संकोच वश उसने घबराते हुए पूछ ही लिया कि भगवान क्या जन्मदिन नहीं मानना चाहिए ? इसपर भगवान ने जो उत्तर दिया वह पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सन्देश था |  भगवान बुद्ध ने बताया कि हर एक मनुष्य को जन्मदिन अनिवार्यतः मानना चाहिए और अपने जन्मदिन पर व जन्मदिन न पता होने पर जन्मदिन के उपलक्ष्य मे एक पेंड अवश्य लगाना चाहिए | जन्मदिन के अवसर पर उसे हिसाब लगाना चाहिए कि उसकी उम्र कितनी हो गयी है और क्या उसने आज तक उतनी संख्या मे पेंड लगा लिए हैं ? इसमें कोई कमी है तो उसे इसी वर्ष या अगले २-३ वर्षों मे पूरा करने की कार्ययोजना बना लेनी चाहिए | यदि भगवान बुद्ध की इस सीख को सभी लोग अमल मे आयें तो २-३ वर्षों मे बुंदेलखंड ही क्या पूरा प्रदेश व देश ही हरियाली से लहलहा उठेगा और पर्यावरण का संकट तो छू मंतर हो जाएगा | इस प्रकार से होने वाला वृक्षारोपण जन्मदिन से जूडा होने के कारण नष्ट होने भय से मुक्त रहेगा |
       चित्रकूट जनपद मे जिलाधिकारी के रूप मे मैंने इस महामंत्र का प्रयोग किया था , जिसके बहुत ही आशाजनक परिणाम देखने को मिले थे | स्कूलों के छोटे छोटे बच्चों को भगवान बुद्ध की इस कहानी के माध्यम से इस कार्यक्रम से जोड़ा गया था | इसके परिणामस्वरूप बच्चो ने न केवल अपना वरन परिवार के हर सदस्य से उनका जन्मदिन मनवाया , क्योकि बच्चो को जन्मदिन मनाना सबसे अच्छा लगता है | इसके फक्स्वरूप बहुत सारे पेंड लगे थे और पर्यावरण मे बहुत सकारात्मक परिवर्तन हुए थे | यहाँ तक कि जनपद का अधिकतम तापमान २ डिग्री प्रति वर्ष के अनुसार कम हुआ था | एक सुबह मै इलाहाबाद से चित्रकूट आ रहा था , उस समय रस्ते मे ५०० बच्चे एक हाथ मे बस्ता और एक हाथ मे पेंड लिए हुए दिखाई दिए थे | इस दृश्य ने मुझे इस कार्यक्रम की सफलता के प्रति आश्वस्त किया था |
         एक अन्य प्रसंग का यहाँ स्मरण करना प्रासंगिक प्रतीत होता है | एक अस्सी साल के बूढ़े से उसके पोते ने पूंछा कि बाबा आप आम का पेंड क्यों लगा रहें हैं , जबकि पेंड मे आम का फल आने के समय तक उसका फल खाने के लिए आप शायद जिन्दा ही नहीं होंगे | इस पर उस बृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैंने उन  पेंड़ों के फल खाए हैं , जिन्हें मैंने नहीं लगाया था | इसी प्रकार मेरे द्वारा लगाये गए पेंड़ो के फल तुम और तुम्हारी अगली पीढ़ी खाएगी |    
         कुछ प्रचलित रीतिरिवाज एवं परम्पराएँ भी इस दिशा मे रचनात्मक एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं  है| ,पर उनका प्रभाव एक उसी क्षेत्र विशेष तक सीमित है | अतः इस सम्बन्ध मे सम्पूर्ण जानकारियां एकत्र कर पूरे देश को लाभान्वित करना चाहिए | इस प्रकार का एक उदाह की प्रजाति का चयन कर लेना उचित होगा | सीमा रूबा का पेंड बुंदेलखंड  मे लगाए जाने के कई लाभ हो सकते हैं | इसे  वर्षा कराने वाला पेंड यानि रेन ट्री भी कहा जाता है | इससे अधिक वर्षा तो होती है , सौ साल की आयु वाला यह पेंड पांच साल से आमदनी भी देने लगता है | अतःबुंदेलखंड मे इसका अधिक से अधिक पेंड लगाया जाना भी बहुत हितकारी होगा | इसी तरह सबसे ज्यादा वाटर रिचार्जिंग कराने वाले बरगद और पीपल के अधिक से अधिक पेंड़ों का लगाया जाना बहुत ही लाभकारी होगा | यह प्रमाणित है कि जहाँ जहाँ पीपल और बरगद के ज्यादा पेंड होते हैं , वहाँ वहाँ भूमिगत जलस्तर अपेक्षानुसार ऊपर होता है और जहाँ यह दोनों पेंड बहुत कम होते हैं . वहाँ भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला जाता है | इस प्रकार बुंदेलखंड मे विशेषतया इन तीनो पेंड़ों को अधिक से अधिक लगाना चाहिए |  

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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