Thursday, May 13, 2010

प्रधानी (पंचवर्षीय एवं त्रिस्तरीय ) चुनाव

उत्तर प्रदेश मे प्रधानी का चुनावी महासमर कुछ ही महीने दूर है | वैसे यह ग्राम पंचायत , क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत तीनो का एक साथ चुनाव होने के कारण त्रिस्तरीय है | परन्तु ग्रामप्रधान का चुनाव ही सबसे महत्वपूर्ण एवं मुख्य होता है | क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत के चुनाव ग्राम पंचायत चुनाव के साथ साथ स्वतः संपन्न हो जाते हैं | चूँकि ग्राम स्तर पर १००% लोग चुनाव मे दिलचस्पी लेते हैं और वे किसी न किसी के साथ होते हैं , प्रदेश का असली चुनाव यही होता है | इस चुनाव मे गावों का वातावरण बहुत ही गर्म एवं तनावपूर्ण हो जाता है | कभी कभी यह चुनाव खूनी जंग का रूप भी धारण कर लेता है और इस चुनाव मे चुनावी संघर्ष एवं हत्याएं भी सबसे अधिक होती है |
 
             पहले प्रधानी के लिए प्रत्याशी ही बड़ी मुश्किल से मिलते थे और सामान्यतया लोग प्रधान बनना झंझट का कार्य मानकर इससे कतराते थे | तब लोग सामान्यतया काफी मान मुनव्वल करके किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को प्रधान चुन लेते थे और इस प्रकार चयनित प्रधान निरन्तर कई कई पंचवर्षीय तक प्रधान बना रहता था | परन्तु विकेंद्रीकरण सम्बन्धी संबिधान संशोधन के बाद लोगों मे प्रधान बनने हेतु एक होड़ की प्रवृत देखने को मिल रही है | अब प्रधानो को बहुत सारे अधिकार मिल गएँ हैं और बहुत बड़े बजटीय प्राबधान पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त हो गया है | राष्ट्रपति से लेकर निम्नतम जन प्रतिनिधियों मे से अकेला प्रधान ही एकमात्र जन प्रतिनिधि है जिसे वित्तीय अधिकार प्राप्त है | आज बहुत सारे क्रियाकलाप ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र मे आ गएँ हैं और उन कार्यों से संबंधित समस्त ग्राम स्तरीय कर्मचारी प्रधान के नियंत्रण मे आ गएँ हैं | आज मनरेगा सहित अनेक योजनाओं का धन ग्राम पंचायत को आता है और ग्राम पंचायत को योजनाओं के चयन और उनके कार्यान्वयन का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गया है | इस प्रकार प्रधान का पद बहुत अधिक लाभकारी एवं आकर्षक बन गया है | इसी कारण प्रधानी के चुनाव मे मारामारी की स्थिति देखने को मिल रही है |
              प्रधान का पद चूँकि एक बहुत बड़ा शक्ति केंद्र बन गया है ,प्रधान को अपने पाले मे लाने की प्रतिद्वंदिता बिभिन्न राजनितिक दलों मे भी देखने को मिल रही है | यद्यपि प्रधान पद को अराजनीतिक माना गया है , परन्तु बिभिन्न राजनीतिक दल इस पद के किसी दावेदार की प्रत्याशिता तथा चुनाव मे परोक्ष रूप से गहरी रूचि लेते हैं और उक्त दल के कर्यकर्ता उसके सहायतार्थ लग जाते हैं | अभी चुनाव मे लगभग ६ माह शेष  हैं , किन्तु राजनितिक दल अभी से भावी प्रधान पर डोरें डालना शुरू कर दिया है |
             आज ग्राम पंचायतों मे इतना अधिक पैसा आ गया है कि साइकिल से चलने वाला व्यक्ति प्रधान बनते ही मोटर साइकिल से चलने लगता है और उसका कच्चा मकान पक्का बन जाता है | इसी तरह उसके रहन सहन के स्तर मे काफी सुधार आ जाता है | यदि उसे दुसरे पंचवर्षीय के लिए प्रधान बनने का अवसर मिलता है तो वह टू व्हीलर से फॉर व्हीलर पर चलने लगता है  , जबकि ७-८ पंचवर्षीय तक निरन्तर प्रधान बने रहने वाले पहले के प्रधान की स्थिति अपरिवर्तनीय रहती थी | आज के प्रधान कि खुशहाली को देखकर लोग प्रधान के पद को ललचाई दृष्टि से देखने लगें हैं | इस चकाचौंध से आकर्षित तथा गाँव मे वर्चश्व कायम करने के उद्देश्य से आज हर कोई प्रधान बनने की लालसा रखता है |
           बुंदेलखंड मे प्रधानी का चुनाव अत्यधिक संघर्षशील होता है | गत पंचवर्षीय चुनाव के समय सपा की सरकार थी , अतयव उस चुनाव मे सपा के वर्चश्व वाले प्रधान चुने गए थे | इस समय बसपा की सरकार है , अतयव बसपा सरकार होने का प्रभाव बर्तमान पंचवर्षीय चुनाव मे पड़ना स्वाभाविक है | चुनाव से ६ माह पहले अभी से इस सम्बन्ध मे जोड़ तोड़ ,भावी प्रत्याशियों पर डोरे डालने तथा चुनावी गणित पर काम शुरू हो गया है |
            इस समय चक्रानुसार आरक्षण के अनुसार सीटों का निर्धारण सम्बन्धी कार्य हो रहा है और यही सबसे क्रिटिकल क्षण है , जिसमे चुनाव की तय्यारी कर रहे व्यक्तियों के भविष्य का इस प्रकार निर्धारण हो रहा है  कि कौन सीट सामान्य रहेगी और कौन सीट आरक्षित | बर्तमान प्रधानो मे तो सबसे अधिक खलबली इसी समय है कि उनकी सीट यथावत रहेगी और वे पुनः प्रधान बन सकेगे या नहीं | इस समय सभी साम , दाम तथा दंड के द्वारा अपने हित मे सीटो का निर्धारण कराने के लिए जोड़ तोड़ करने मे लगें हैं |       
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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