शिक्षक दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर होता है , जब पूरा देश शिक्षकों का सम्मान कर रहा होता है | इस दिन कुछ चयनित शिक्षकों को उनके सराहनीय प्रयासों के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया जाता है | विभिन्न स्तरों पर अनेकानेक आयोजन होते हैं , जिसमे डा सर्ब्पल्ली राधाकृष्णन ,जिनके जन्मदिन को ही शिक्षक दिवस के रूप मे मनाया जाता है तथा गुरु शिष्य की गौरवशाली परंपरा का स्मरण करते हुए शिक्षकों के योगदान व उनकी समस्यायों पर चर्चा की जाती है और लम्बे चौड़े भाषण देकर शिक्षा दिवस का समापन कर दिया जाता है ,पर शिक्षा के स्वरूप व अपने मूल उद्देश्यों से भटकी मूल्यविहीन शिक्षा की सार्थकता तथा शिक्षा व शिक्षकों के गिरते स्तर पर कोई चिंता नहीं की जाती है | जबकि शिक्षा दिवस के आयोजन की सर्वाधिक प्रासंगिकता इसी बात की ही है | यहाँ हम कुछ इन्हीं विषयों पर चर्चा करेंगे |
आज हमारी शिक्षा व्यवस्था अशिक्षा की ओर ले जा रही है ,क्योंकि आज का क्षात्र शिक्षा प्राप्त करता हुआ जैसे जैसे उच्च मानसिक अधिमान को प्राप्त करता जाता है ,वह तदनुसार अपनी भौतिक आवश्यकताओं को भी बढाता जाता है ,परन्तु शिक्षा व्यवस्था उसकी मनो - भौतिक जरूरतों को पूरा करती हुई प्रतीत नहीं होती | इस प्रकार शिक्षा प्राप्ति से उसे समस्या प्राप्त होती है , जिसके लिए उसे जीवन के यथार्थ मूल्यों (अनुशासन ,चरित्र ,नैतिकता ,विश्वास पात्रता आदि मूल्य ) की कीमत चुकानी पड़ती है | इस प्रकार शिक्षा से मिलती है समस्या ,वह भी जीवन के यथार्थ मूल्यों को खोकर | यदि ऐसा है तो शिक्षा व्यवस्था मे कहीं न कहीं कोई खामी तो ज़रूर है और शिक्षक भी इसके लिए उत्तरदायी माने जायेंगे | तो क्या आज शिक्षक दिवस के महत्वपूर्ण अवसर पर इतने जीते जागते मुद्दे के बारे मे नहीं बिचार किया जाना चाहिए ?
हमारी शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह मानकर चलती है कि बच्चे को पढाया जाता है और सारा पाठ्यक्रम तथा शिक्षण पद्दतियां तदनुसार ही होता हैं | जबकि वास्तविकता इससे बिलकुल भिन्न है | वस्तुतः बच्चा पढाया नहीं जाता वरन वह पढता है | वह सबसे पहले अपनी मा को पढ़ता है , इसके बाद अपने पिता -भाई -बहन -परिवारजनों व संपर्क मे आने वालों को पढता है | इसके बाद वह अपने दोस्तों व पड़ोस को पढ़ता है और स्कूल जाने पर अध्यापक व सहपाठियों को पढ़ता है | सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि सभी इस तथ्य से अनजान रहते हैं कि बच्चा उन्हें या उनसे निरन्तर पढ़ रहा होता है | इस प्रकार वांछनीय व अवांछनीय जो भी उसके समक्ष आता है , बच्चा उसे पढ़ जाता है | इस परिप्रेक्ष्य मे पढ़ाने की आवश्यकता माता - पिता - अध्यापक - पड़ोसियों को है कि बच्चे के अनवरत पढने की प्रवृति के कारण सभी लोग ,जिन्हें बच्चा पढ़ रहा है , बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय बात व व्यवहार न करें , ताकि बच्चा उनसे अवांछनीयता न पढ़ जाय | वस्तुतः पढ़ाने की आवश्यकता बच्चे को बिलकुल ही नहीं है और अच्छा व स्वस्थ परिवेश मिलने पर वह स्वतः पढ़ जावेगा | व्यक्ति अपने बच्चे के बारे मे इस दिशा मे अवश्य सतर्क रहता है और अपने बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय कार्य व्यवहार नहीं आने देता है ,पर वह अन्य सभी बच्चों के बारे मे बिलकुल उदासीन रहता है | यदि अध्यापक की हस्तलिपि ख़राब है तो ब्लेक्बोर्ड पर उसके लिखने पर बच्चे की हस्तलिपि ख़राब होना स्वाभाविक है | यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा जगत की लाखों सालों की यात्रा के बाद भी हम इतना नहीं समझ पाये हैं कि अध्यापक की ख़राब हस्तलिपि का खामियाजा बच्चा क्यों भुगते ? अभी तक हमारी शिक्षा व्यवस्था इतना निषेध नहीं लगा पायी है कि क्षात्र जब तक लिखना पूर्णतया सीख नहीं जाता है , अध्यापक को ब्लेकबोर्ड पर नहीं लिखना चाहिए |
शिक्षा जगत मे छात्र - अनुशासन हीनता की बहुत सारी बातें होती रहती हैं , जबकि लोग अनुशासन का सही मतलब ही नहीं जानते | आटोमिक फालोइंग कमांड आफ द सुपीरियर बाई द इन्फीरियर इज अनुशासन | यहाँ जोर जबरदस्ती का कोई स्थान नहीं और स्वयमेव प्रक्रिया का स्थान प्रमुख है | अब यह विचार करना है कि कौन श्रेष्ट व कौन निम्न है | वरिष्टता क्रम मे सत्वगुण श्रेष्टतम , रजोगुण श्रेष्टतर व तमोगुण श्रेष्ट होता है | तदनुसार सत्वगुणी दूध का भोजन करने वाला बच्चा सबसे शक्तिशाली व श्रेष्टतम होता है | राजसिक यानि अनाज का भोजन करने के कारण उसमे रजोगुण यानि क्रियाशीलता का प्रादुर्भाव हो जाता है ,पर वह श्रेष्टतम से श्रेष्ट्तर स्थिति मे पहुँच जाता है | जवानी के बाद रजोगुण यानि क्रियाशीलता मे कमी व तमोगुण मे अभिबृद्धि का दौर शुरू होता है और श्रेष्ट स्थिति को दर्शाता है | इस प्रकार अध्यापक को छात्रों की अपेक्षाओं का पूर्ण संज्ञान लेकर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए | ऐसा न करने पर अध्यापक को ही अनुशासनहीन माना जावेगा | ऐसी अवस्था मे अध्यापको द्वारा कभी कभी छात्रो पर बलप्रयोग भी किया जाता है और कभी कभी छात्र समूह , जो शक्ति का आगार होता है , द्वारा उक्त बल प्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश अभिव्यक्त कर बैठता है | जिसे लोग अनुशासनहीनता की संज्ञा दे बैठते हैं | बस्तुतः यह अनुशासन हीनता न होकर अनुशासनहीन लोगों द्वारा किये बलप्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश का अभिप्रकाशन मात्र है |
शिक्षको द्वारा आज शिक्षक दिवस पर डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन , चाणक्य , डा कलाम , रविन्द्र नाथ टैगोर , विस्वामित्र ; संदीपनी आदि प्रमुख शिक्षकों का आदर्श अपनाने और चन्द्रगुप्त , राम , कृष्ण सरीखे शिष्य तैयार करने की कोशिश करने का संकल्प लेना चाहिए |
हमारी शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह मानकर चलती है कि बच्चे को पढाया जाता है और सारा पाठ्यक्रम तथा शिक्षण पद्दतियां तदनुसार ही होता हैं | जबकि वास्तविकता इससे बिलकुल भिन्न है | वस्तुतः बच्चा पढाया नहीं जाता वरन वह पढता है | वह सबसे पहले अपनी मा को पढ़ता है , इसके बाद अपने पिता -भाई -बहन -परिवारजनों व संपर्क मे आने वालों को पढता है | इसके बाद वह अपने दोस्तों व पड़ोस को पढ़ता है और स्कूल जाने पर अध्यापक व सहपाठियों को पढ़ता है | सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि सभी इस तथ्य से अनजान रहते हैं कि बच्चा उन्हें या उनसे निरन्तर पढ़ रहा होता है | इस प्रकार वांछनीय व अवांछनीय जो भी उसके समक्ष आता है , बच्चा उसे पढ़ जाता है | इस परिप्रेक्ष्य मे पढ़ाने की आवश्यकता माता - पिता - अध्यापक - पड़ोसियों को है कि बच्चे के अनवरत पढने की प्रवृति के कारण सभी लोग ,जिन्हें बच्चा पढ़ रहा है , बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय बात व व्यवहार न करें , ताकि बच्चा उनसे अवांछनीयता न पढ़ जाय | वस्तुतः पढ़ाने की आवश्यकता बच्चे को बिलकुल ही नहीं है और अच्छा व स्वस्थ परिवेश मिलने पर वह स्वतः पढ़ जावेगा | व्यक्ति अपने बच्चे के बारे मे इस दिशा मे अवश्य सतर्क रहता है और अपने बच्चे के समक्ष कोई अवांछनीय कार्य व्यवहार नहीं आने देता है ,पर वह अन्य सभी बच्चों के बारे मे बिलकुल उदासीन रहता है | यदि अध्यापक की हस्तलिपि ख़राब है तो ब्लेक्बोर्ड पर उसके लिखने पर बच्चे की हस्तलिपि ख़राब होना स्वाभाविक है | यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा जगत की लाखों सालों की यात्रा के बाद भी हम इतना नहीं समझ पाये हैं कि अध्यापक की ख़राब हस्तलिपि का खामियाजा बच्चा क्यों भुगते ? अभी तक हमारी शिक्षा व्यवस्था इतना निषेध नहीं लगा पायी है कि क्षात्र जब तक लिखना पूर्णतया सीख नहीं जाता है , अध्यापक को ब्लेकबोर्ड पर नहीं लिखना चाहिए |
शिक्षा जगत मे छात्र - अनुशासन हीनता की बहुत सारी बातें होती रहती हैं , जबकि लोग अनुशासन का सही मतलब ही नहीं जानते | आटोमिक फालोइंग कमांड आफ द सुपीरियर बाई द इन्फीरियर इज अनुशासन | यहाँ जोर जबरदस्ती का कोई स्थान नहीं और स्वयमेव प्रक्रिया का स्थान प्रमुख है | अब यह विचार करना है कि कौन श्रेष्ट व कौन निम्न है | वरिष्टता क्रम मे सत्वगुण श्रेष्टतम , रजोगुण श्रेष्टतर व तमोगुण श्रेष्ट होता है | तदनुसार सत्वगुणी दूध का भोजन करने वाला बच्चा सबसे शक्तिशाली व श्रेष्टतम होता है | राजसिक यानि अनाज का भोजन करने के कारण उसमे रजोगुण यानि क्रियाशीलता का प्रादुर्भाव हो जाता है ,पर वह श्रेष्टतम से श्रेष्ट्तर स्थिति मे पहुँच जाता है | जवानी के बाद रजोगुण यानि क्रियाशीलता मे कमी व तमोगुण मे अभिबृद्धि का दौर शुरू होता है और श्रेष्ट स्थिति को दर्शाता है | इस प्रकार अध्यापक को छात्रों की अपेक्षाओं का पूर्ण संज्ञान लेकर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए | ऐसा न करने पर अध्यापक को ही अनुशासनहीन माना जावेगा | ऐसी अवस्था मे अध्यापको द्वारा कभी कभी छात्रो पर बलप्रयोग भी किया जाता है और कभी कभी छात्र समूह , जो शक्ति का आगार होता है , द्वारा उक्त बल प्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश अभिव्यक्त कर बैठता है | जिसे लोग अनुशासनहीनता की संज्ञा दे बैठते हैं | बस्तुतः यह अनुशासन हीनता न होकर अनुशासनहीन लोगों द्वारा किये बलप्रयोग के बिरुद्ध आक्रोश का अभिप्रकाशन मात्र है |
शिक्षको द्वारा आज शिक्षक दिवस पर डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन , चाणक्य , डा कलाम , रविन्द्र नाथ टैगोर , विस्वामित्र ; संदीपनी आदि प्रमुख शिक्षकों का आदर्श अपनाने और चन्द्रगुप्त , राम , कृष्ण सरीखे शिष्य तैयार करने की कोशिश करने का संकल्प लेना चाहिए |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
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