नैतिकता के प्रथम अभिप्रकाशन से प्रारंभ होकर वसुधैव कुटुम्बकम के चरम लक्ष्य की ओर गतिमानता ही सामाजिक प्रगति होती है | इस सार्बभौम लक्ष्य के बिपरीत गत्यात्मकता को हम सामाजिक अवनति या समाज विरोधी भावधारा समझ सकते हैं | सामाजिक प्रगति मार्ग मे तरह तरह के प्रलोभनों और आकर्षणों के साथ अलग अलग खेमा जमाये बैठे हुए अनेक समूह लोगो को अपने खेमे मे लेने हेतु प्रयासरत रहते हैं | उनका कहना होता है कि वही ईश्वर के सबसे खास और प्रिय जन हैं और केवल वे ही ईश्वर के बताये रास्ते पर चलने वाले लोग हैं | उक्त समूह विशेष के कतिपय के विधि निषेध भी होते हैं , जिनका अनुपालन सदस्यों को अवश्यमेव करना पड़ेगा , जिसके एवज मे उन्हें कतिपय संरक्षण व लाभ की गारंटी भी दिया जाता है | इन विशिष्ट समूहों को हम मजहब के नाम से जान सकते हैं | अब प्रश्न उठता है कि कहीं मजहब सामाजिक प्रगति मे बाधक तो नहीं होता हैं ? इसका उत्तर निःसंदेह नकारात्मक है | मजहब व्यक्ति को अनेकानेक अच्छाइयों का बहुमूल्य तोहफा तो देता है , पर इसके साथ ही उनकी सोंच को संकुचित भी कर देता है , जिसके फलस्वरूप उनके मन का कोण ३६० डिग्री कभी नहीं बन पाता | ऐसी दशा मे समाज बसुधैव कुटुम्बकम के अपने चरम लक्ष्य यानि पूर्णता को कभी नहीं प्राप्त कर सकेगा | इस प्रकार मजहब निश्चित रूप से सामाजिक प्रगति का विरोधी है |
व्यक्तियों का वह समूह , जो समाज को उसकी पूर्णता व लक्ष्य बिंदु की ओर ले जाने और समाज के प्रारंभ व पूर्णता के अन्तराल को कम करने हेतु सक्रिय व प्रयासरत होते हैं , समाज के नाम से जाने जावेगे |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
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