Tuesday, September 21, 2010

बाढ़ : दैवी आपदा से अधिक मानव कृत समस्या

 इधर काफी बड़ा भूभाग तथा क्षेत्र बाढ़ से परेसान चल रहा है | बाढ़ग्रस्त लोगों की तकलीफों की कल्पना केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो ऐसी स्थिति से गुज़र चुका हो | बाढ़ प्रलय की स्थिति का थोड़ा बहुत आभास देता है , क्योकि बाढ़ के दौरान ऐसा लगता है कि अब सब कुछ समाप्त होने ही  वाला है , घर -परिवार के लोग तथा जानवरों से नाता छूटने वाला है तथा जीवन लीला बस समाप्त होने वाली है | मुझे भी इस सम्बन्ध मे थोड़ा -बहुत अनुभव इस कारण है कि यस ड़ी यम , ए ड़ी यम , सी ड़ी ओ तथा ड़ी यम के रूप मे मेरी तैनाती गोरखपुर , सिद्दार्थनगर ,कुशीनगर तथा सीतापुर अत्यधिक बाढ़ग्रस्त जनपदों मे रही है और इन सभी जनपदों मे मेरी तैनाती के दौरान भयंकर बाढ़ आई थी और मै बाढ़ राहत व बचाव कार्य से गंभीरता से जुड़ा था | इस प्रकार से बाढ़ की भयावहता , राहत तथा बचाव कार्य का प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ |
           प्रकृति हमारे ऊपर सदा सर्वदा मेहरबान रही है | यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम इन मेहरबानियों से अनजान बने हुए रहते  हैं | प्रकृति ने पृथ्वी पर इस प्रकार की ढलान रखी है  कि कहीं जल भराव की स्थिति न उत्पन्न होने पाये | सर्बे आफ़ इंडिया ने बड़ी मेहनत करके विभिन्न स्थलों की  ढलान को दर्शाते हुए कंटूर लाइन मैप बनाया गया है | यदि इस नक़्शे का उपयोग सड़कों , नहरों , भवनों के अलायमेंट के समय किया जाता तो जल निकासी की समस्या से बचा जा सकता था , पर दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी के पास सर्वे आफ इंडिया का मैप ही नहीं होता | जिले के अधिशाषी अभियंता लोक  निर्माण विभाग के पास ऐसा एकमात्र मैप अवश्य होता है जो उनकी  तिजोरी मे सुरक्षित रखा जाता है , ताकि वी आई पी के आगमन  के समय हेलीकाप्टर का अक्षांश का पता लगाने के लिए उक्त मैप तिजोरी से बाहर निकाला जाता है और काम के बाद उसे फिर तिजोरी मे रख दिया जाता है | इसके अलावा इस अत्यधिक उपयोगी मैप का कभी भी कोई अन्य उपयोग सड़क  , नहर तथा भवन निर्माण हेतु नहीं होता | इसका परिणाम यह होता है कि पूरे देश की ही जल निकासी की व्यवस्था बद से बदतर हो जाती है | यह भी जल भराव तथा बाद की स्थितियां उत्पन्न कर देता है |      
           इस सम्बन्ध मेरा दृढ़ मत रहा है कि बाढ़ दैवी आपदा नहीं है , वरन यह मानवीय कृत्यों का प्रतिफलन है और एक तरह से बाढ़ के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है | पहले भी बाढ़ आती थी , पर शीघ्र ही  बाढ़ का पानी उसी रफ़्तार मे उतर जाता था , जिस रफ़्तार मे बाढ़ आती थी | नदियाँ जहाँ एक ओर बाढ़ लाती थी , वही दूसरी ओर नदियाँ ही जल निकासी का श्रोत भी साबित होती थी | पर आज बाढ़ का पानी कई कई दिनों तक ठहरा रहता है और नदियाँ अब जल निकासी का पहले की तरह काम नहीं कर पाती | मानवीय प्रयासों ने इस दृष्टि से भी नदियों को बहुत अक्षम बना दिया है |
           नदियों पर बांध निर्माण करके मनुष्य द्वारा  नदी को पालतू बनाने जैसा कार्य किया जाना प्रतीत होता है | बांध निर्माण का मुख्यतः दो उद्देश्य होता है | बांध बना कर वस्तुतः नदी  का अधिकांश जल बांध के जलाशय मे रोक लिया जाता है , जिससे नहरे निकाली जाती है  और बिजली पैदा की जाती है | जिससे विकास का मार्ग तो अवश्य प्रशस्त होता है , परन्तु इस प्रकार होने वाले   विकास की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है |
            बांध निर्माण से होता यह है कि नदी का अधिकांश जल जलाशय मे रोक लिया जाता है और नदी मे नाम मात्र का ही जल आ पाता है | इसके परिणाम स्वरूप नदी मे तेज प्रवाह व बहाव लायक जल तो आ ही नहीं पाता | इससे नदी का पेटा पटने लगता है | परिणाम स्वरूप दस लाख क्यूसेक धारक क्षमता वाली नदी की धारक क्षमता घटते घटते दस साल मे मात्र दो लाख क्यूसेक रह जाती है | वर्षा काल मे बांध को बचाने के लिए मजबूरन २ ० सी ५ ० लाख क्यूसेक पानी नदी मे छोड़ना पड़ता है | नदी की धारक क्षमता घट जाने के कारण नदी का यह पानी दूर दराज़ क्षेत्रों मे फ़ैल जाता है और काफी देर तक पानी रुका रहता है , क्योकि धारक क्षमता घटने के कारण नदी जल निकासी का काम भी नहीं कर पाती | इस प्रकार हम नहर से सिचाई करके तथा बिजली बनाकर जितना लोगों को लाभान्वित कराते हैं ,  बाढ़ का हर दृष्टि से तकलीफ झेलकर लोग उक्त लाभ की कई  कई गुनी कीमत चुकाते हैं | इस प्रकार बांध  निर्माण एक घाटे का सौदा सिद्ध होता है |
            प्रकृति सर्बशक्तिमान एवं सर्बभौम सत्ता है और प्रकृति यह नहीं बर्दास्त कर सकती कि  मनुष्य प्रकृति को पालतू बनाये | ऐसा होने पर प्रकृति की प्रतिकूल प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक है | आज अनेक अवसरों पर हम महसूस करते हैं कि प्रकृति हमसे नाराज है और हम प्रायः इसे  दैवी आपदा अथवा प्रकृति का कोप समझ बैठते हैं | यह दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है कि हम अपने को इस बात के लिए दोषी नहीं मानते हैं कि अपने कारनामो की वज़ह से कहीं हमने प्रकृति को कुपित तो नहीं कर दिया  है ? बाढ़ , सूखा , अवर्षण , ग्लोबल वार्निंग , सुनामी तथा भूकंप आदि के लिए कदाचित मनुष्य ही जिम्मेदार होते हैं | आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को  तात्कालिक लाभ के लिए प्रकृति का अप्राकृतिक और अनियंत्रित दोहन करके प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ कर प्रकृति को  कुपित करने का काम नहीं करना चाहिए , ताकि उसके गलत कार्यों की वज़ह से पूरी मनुष्यता को प्रकृति का कहर न झेलना पड़े |
               बांध निर्माण के बाद अब नदियों को जोड़ने की योजना पर विचार हो रहा है जो मनुष्यता के लिए आत्म हत्या करने जैसा कार्य है , क्योकि यह प्राकृतिक व्यवस्था मे बहुत बड़ा हस्तक्षेप माना जाना चाहिए | मनुष्यों को प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए और प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए और ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए , जो प्रकृति के प्रतिकूल हो |           



अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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