यह भी एक सच है कि परिवहन विभाग का प्रवर्तन अधिकारी माह मे लगभग 3000 वाहनों को ही चेक कर सकता है, जबकि उसके कार्यक्षेत्र मे लाख से अधिक वाहन चलते हैं | ऐसी दशा मे उक्त अधिकारी अधिक से अधिक वाहनों को कवर करना चाहता है | अतः बड़ी बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनियों से वह माहवारी बांध लेता है, जिससे बड़ी कम्पनियों के वाहन क़ानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए बिना किसी भये के सीना तान कर चले जाते हैं | जबकि अधिकारी फुटकर वाहनों को मामूली जुर्मो मे चलान कर अपना कोटा पूरा करता है | इस प्रकार की कार्यवाही पर सबकी नजर रहती है, अतयव प्रवर्तन अधिकारी की सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मनोबल पर बहुत बुरा असर पड़ता है और वह समाज से खुलकर नजर नहीं मिला सकता है | ऐसे व्यक्ति से हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह कानून का पालन कराएगा | यह तो मात्र उदहारण है | इसी तरह की स्थितियां अन्य विभागों जैसे कि पुलिस, आबकारी, सप्लाई, ट्रेड टैक्स, इनकम टैक्स आदि विभागों की प्रवर्तन मशीनरी की भी होती है |
जहाँ तक पुलिस विभाग का प्रश्न है, सर्वाधिक कानूनों को लागू करने तथा उल्लंघन होने की दशा मे दंडात्मक कार्यवाही करने की जिम्मेदारी इसी विभाग की है | इसके विपरीत पुलिस अधिकारियो के पास प्रवर्तन कार्य के लिए बिलकुल समय नहीं होता है | वे वीआईपी एवं कानून व्यवस्था सहित नेताओं व पत्रकारों से समायोजन करने मे ही इतने व्यस्त रहते है कि अन्य कार्यो हेतु उन्हें समय नहीं मिलता | उनके द्वारा किये गए कार्यों का उच्चाधिकारियों द्वारा मूल्यांकन की दोषपूर्ण प्रक्रिया भी प्रवर्तन अधिकारी का मनोबल एवं कार्यक्षमता गिराने वाली सिद्ध होती है | पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी के पास मूल्यांकन की दुधारी तलवार होती है, जिसका वह मनमाफिक इस्तेमाल कर सकता है | अर्थात एक पुलिस अधिकारी खुश होने पर अपने अधीनस्त के कार्य पर उसे शाबाशी दे सकता है और नाराज होने पर उसी कार्य पर उसे कठोर दंड भी दे सकता है | यानि वह यह कहकर शाबाशी देता है कि तुमने रात रात भर जागकर बहुत सारे डकैतों एवं चोरों को पकड़कर अपराधियों के हौसले पस्त कियें हैं | वही अथवा अन्य अधिकारी नाराज होने पर उसी अधिकारी को दण्डित कर सकता है कि तुम्हारे कार्यकाल मे अपराध बहुत बढ़ गए हैं और तुम्हे पद पर रहने का कोई हक़ नहीं है | मूल्यांकन के इस दोषपूर्ण अधिकार के कारण उच्चाधिकारियों की जी हजूरी की प्रवृति भी पुलिस विभाग मे खूब दिखाई पड़ती है, जिससे भी विभाग की कार्य क्षमता प्रतिकूल ढंग से प्रभावित होती है |
उपरोक्त के अलावा पुलिस विभाग के उपनिरीक्षक तक को वाहनों को चेकिंग करने एवं मौके पर जुर्माना वसूलने का अधिकार मिल जाने से पूरी पुलिस फ़ोर्स का आधा समय इसी काम मे लग जाता है, क्योंकि कुछ ख़ास कारणों से इसमें सब की विशेष रूचि होती है | इसके कारण भी पुलिस को उसके असली कामो के लिए समय नहीं मिल पाता है और इससे उसकी कार्य क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा
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