Thursday, July 15, 2010

जनसँख्या नियंत्रण पर बेमतलब हंगामा ; विश्व जनसँख्या दिवस पर विशेष

भारत ही नहीं बिश्व स्वास्थ्य संगठन सहित पूरे पश्चिमी देश भारत की जनसँख्या बृद्धि से न जाने क्यों बहुत परेशान है | जब से यह चिंता और उक्त चिंता के फलस्वरूप जनसँख्या नियंत्रण के  युद्ध स्तरीय प्रयास चल रहे हैं , तबसे ही जनसँख्या ज्यादा बढ़ी है | तो कही यह सारा प्रपंच भारत की जनसँख्या को ज्यादा बढ़ाने की साजिश तो नहीं है ? वैसे जिस बात की जोर शोर से चर्चाएँ होती है और जिस पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु बल दिया जाता है , वह निरन्तर बढता ही चला जाता है जैसे कि एड्स तथा भ्रष्टाचार | इन दोनों को नियंत्रित करने की जितनी ज्यादा कोशिशें की जा रही हैं  तथा चर्चाएँ की जा रही है , एड्स और भ्रष्टाचार उससे भी अधिक तेज रफ़्तार मे बढता जा रहा है | जनसँख्या बृद्धि के सबंध मे भी ठीक वैसा ही होना प्रतीत हो रहा है | आखिर विश्व स्वास्थ्य संगठन , अमेरिका सहित सारे पश्चिमी देश इस बारे मे हमसे भी ज्यादा परेशान और चिंतित क्यों हैं ?  हम भारतबासी भी बिना सोचे समझे उनके स्वर मे स्वर मिलाने लगते हैं | कहीं यह चिंता भारत मे तेजी से बढ़ रही मुसलमानों की आबादी के सम्बन्ध मे हिन्दुओं तथा गरीबों की बढ़ रही जनसँख्या के सम्बन्ध मे अमीरों की चिंता जैसी तो नहीं है | वस्तुतः हम भारतीयों को हीन भावना से ग्रषित करने की पश्चिमी देशों की यह सोची समझी चाल मात्र प्रतीत होती है |  
        अब हम पूरी गंभीरता से जनसँख्या के अन्य पहलुओं पर बिचार करते हैं | जनसँख्या के सम्बन्ध मे माल्थस सबसे बड़ा अर्थशास्त्री हुआ है | जिसका कहना है कि जनसँख्या ज्यामितीय (२ ४ ८ १६ ...) ढंग से और खाद्य सामिग्री गणितीय ( १ २ ३ ४ ५ ...) रूप मे बढती है | अतयव खाद्य उत्पादन से सामंजस्य रखने के लिए जनसँख्या नियंत्रण आवश्यक है | माल्थस की यह अवधारणा अत्यधिक पिछड़ी सोंच पर आधारित था , जिसे भारत मे हुई हरित क्रांति ने ही झुठला दिया था | उस समय नई और वैज्ञानिक खेती ने खाद्य उत्पादन के क्षेत्र मे एक क्रांति ला दिया था | उक्त हरित क्रांति से लगभग ५० साल बाद भी हम नई खेती के तरीको को मात्र २५ - ३० प्रतिशत खेतो तक ही ले जा पायें है | इससे यह स्वतः प्रमाणित है कि इस सम्बन्ध मे प्रकृति न कि माल्थस का सिद्धांत कार्यरत है | प्रकृति हर बच्चे को एक मुह के साथ दो हाथ देकर पैदा करती है और आवश्यकता अविष्कार की जननी है ,का प्राकृतिक नियम व्यक्ति के लिए भोजन जुटता है | अभी तो कृषि के क्षेत्र मे और भी अविष्कार होने हैं और समुद्री भोज्य पदार्थों की ओर अभी ध्यान ले जाने की जरुरत ही नहीं पड़ी है | सिंथेटिक फ़ूड यानि टेबलेट का तो आना शेष है | ऐसे मे भोज्य पदार्थो की संभावित कमी के कारण हमें जनसँख्या की भयावहता  से घबराने की कोई जरुरत नहीं है |  
        सृष्टि को प्रकृति चलाती है न कि विश्व स्वास्थ्य संगठन | गोहत्या पर प्रतिबन्ध के बावजूद गायों की सख्या निरन्तर कम होती जा रही है और भैसों की संख्या तेजी से बढ़ रही है , जिनकी हत्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है | मुर्गे और बकरे रोज करोडो की संख्या मे कटते हैं , फिर भी | उनकी तादात उससे भी  तेज रफ़्तार मे बढ़ रही है | यह भी आश्चर्यजनक है कि घोड़ों की कभी हत्या नहीं हुई , पर उनकी आबादी मे बेतहाशा कमी आई है | ४० -५० साल पहले हर गोंव मे कम से कम एक घोडा होता ही था , पर आज ९९ प्रतिशत गावों से घोड़े गायब हो गए हैं | एक्के तांगे भी बहुत घट गए हैं और आज यह कही दिखाई नहीं देते | फ़ौज मे भी घोड़े बहुत कम कर दिए गए हैं | आखिर घोड़ो की इस आशातीत कमी का क्या कारण है ? वस्तुतः प्रकृति जिन्हें जरुरी समझती है , उन्हें ही रखती है और  जिनकी जरुरत नहीं होती . उन्हें कम अथवा समाप्त कर देती है | यदि हम जनसँख्या पर प्रतिबन्ध लगाते हैं तो प्रकृति की इच्छा के बिपरीत जाने पर हमें असफलता ही हाथ लगेगी | प्रकृति द्वारा ऐसा न चाहने पर प्रकृति एक साथ २ - ३ बच्चे पैदा कराएगी और यही हो रहा है |
      जनसँख्या नियंत्रण से जरुरी बहुत सारे मुद्दे हैं और इन अत्यधिक जरुरी मुद्दों की ओर ध्यान दिया जाना समय की मांग है | इस प्रकरण मे इतना अवश्य जरुरी है कि हमें अपने परिवार को नियोजित व योजनाबद्ध ढंग से चलने पर ध्यान देना चाहिए | पढ़े लिखे लोगो के कम बच्चे होते हैं तो लोगो का ध्यान पढ़ने लिखने की ओर ले जाना चाहिए |         
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

No comments:

Post a Comment