Saturday, April 10, 2010

अनियंत्रित खनन से बुंदेलखंड के अस्तित्व को खतरा

चित्र यानि हरयाली और कूट यानि पहाड़ के कारण ही चित्रकूट की  सामयिकता है और संप्रति अनियंत्रित और अवैध खनन से, चित्रकूट के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है | पहाड़ों पर हो रहे अनियंत्रित खनन कार्य से कूट यानी पहाड़ तो नष्ट हो ही रहे हैं , चित्र यानी हरियाली और वनस्पति भी नष्टप्राय हो रही है |जहां तेंदू पत्ता के पेड़ होते हैं, केवल वहीँ हरियाली में देखने को मिलती हैं शेष ९५% पेड़ों की पत्तियां तेज गर्मी से  लगभग जल सी जाती हैं और पूरी धरती बंज़र और जली जली सी लगती है |
जून 1998 में इलाहाबाद से चित्रकूट आते समय मुझे  भौंरी गाँव  में 50 फीट लम्बा और 50 फीट चौड़ा पहाड़ इस तरह दिखाई पड़ा जैसे पहाड़ को ही  तरबूज को आधा स्लाइस कर दिया गया  हो | इस हिस्से से सारे पेड़ गिर गए थे, जबकि उसके अगल बगल में काफी पेड़ खड़े थे, गहन पूछताछ पर पता चला की खनन ठेकेदार ने उक्त पहाड़ पर २-३ दिन पहले  डायनामाइट  लगाया था, जिससे पहाड़ पर आसानी से खुदाई करके उसमे से पत्थर की पटिया खनन ठेकेदार निकाल सकें | पहाड़ की यह दुर्दशा देख मुझे अपार कष्ट हुआ और   बुंदेलखंड  के अस्तित्व की रक्षा के लिए बिना सुनवाई का अवसर दिए पहाड़ों पर स्वीकृत सारे खनन पट्टे निरस्त कर दिए | खनन पट्टेदारों को यह भी विकल्प दिया गया कि उन तमाम समतल स्थानों, जहाँ पत्थर उपलव्ध हैं, खनन पट्टा लेकर खुदाई करें, क्योंकि इससे क्षेत्र के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं होगा ऐसा करने से तमाम जलाशय यानि वाटर बाडीज बन जाएगी जो इस क्षेत्र की वाटर रिचार्जिंग के लिए बहुत अधिक उपयोगी होगा |
 उक्त निरस्तीकरण आदेश के खिलाफ सभी खनन पट्टेदारों ने एकजुट एवं लामबंद होकर साम-दाम-दंड का रास्ता अपनाया और असफल होने पर जनप्रतिनिधियों का सहारा लेकर आंदोंलन रत हुए | मुझे अपने पूरे सेवाकाल मे इस प्रकरण मे सर्वाधिक राजनीतिक दबाव झेलना पड़ा था | पर मेरे एकमात्र प्रश्न की जब मनुष्य पहाड़ नहीं बना सकता तो उसे पहाड़ को नष्ट का अधिकार कैसे हो सकता है, से सभी निरुत्तर हो जाते थें | अंततः मामला माननीय सभी उच्च न्यायालय के समक्ष पंहुचा, किन्तु जिलाधिकारी के निर्णय से  पारिस्थितकी लाभ को देखते हुए खनन पट्टेदारों को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली | 

यही स्थिति पूरे बुंदेलखंड की है  भरतकूप, महोबा मे कबरई तथा झाँसी, ललितपुर आदि अन्य स्थानों के पहाड़ बिलकुल नष्ट हों गएँ हैं, जिन्हें देखकर प्रत्येक सहृदय व्यक्ति को रोना आ जाता है
पहाड़ों के नष्ट होबे से धरती का संतुलन बिगड़ जाता है और हम भूकंप आदि प्राकृतिक आपदावों को निमंत्रित कर लेते हैं | डायनामाइट लगाने से पूरा पहाड़ दरक और हिल जाता है और तमाम पेड़ धराशायी हो जाते हैं | पहाड़ों की मिटटी डायनामाइट विस्फोट के बाद काफी नरम एवं भुरभुरी हो जाती है और अगली बरसातों मे बड़े पैमाने पर भूक्षरण होता है, जिससे तमाम वृक्ष उखड़कर गिर जातें हैं |
अतः बुंदेलखंड के पहाड़ों पर खनन कार्य अबिलम्ब बंद कराया जाना अति आवश्यक है | किन्तु राजनीतिज्ञ ,  नौकरशाह एवं खनन माफिया का गठजोर ऐसे किसी भी प्रयास के खिलाफ लामबंद हो जाते है | आज खनन कार्य सरकार और नौकरशाहों के लिए सबसे अधिक मलाईदार कार्य है अतः उनसे इस सम्बन्ध मे कोई उम्मीद रखना बेमानी है |

खनन के समर्थन में बहुत सारे तर्क दिए जाते हैं जैसे इससे निकली मिटटी और पत्थरों से देश का ढांचागत निर्माण होता है और खनन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार मिलते हैं पर यथार्थ में स्थिति बिल्कुल भिन्न है | थोड़े से कानूनी पट्टे लेकर माफिया द्वारा बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जाता है जिससे सरकारी राजस्व को भारी क्षति होती है | माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रेड्डी बंधुओं की बेल्लारी स्थित खानों पर खनन  प्रतिबन्ध और अतिक्रमण की जांच ऐसा ही एक उदाहरण  है | पर इस पिछड़े क्षेत्र की इस  लूट में नेता, प्रशासन, खनन माफिया का गठजोड़ सारे तंत्र को ठेंगा दिखाकर बुंदेलखंड क्षेत्र की धरती को नेस्तनाबूद करने पर तुले हुए है |

खनन क्षेत्र द्वारा बड़े पैमाने पर रोजगार की बात भी बड़ी विचित्र है | इस क्षेत्र में बंधुआ मजदूरी बड़ी व्यापक रूप में फैली है और न्यूनतम श्रम कानूनों का भी पालन नहीं होता और माफिया द्वारा मजदूरों का हर तरह से शोषण होता है | अवैध एवं अवैज्ञानिक खनन से मजदूरों के स्वाथ्य को भारी क्षति पहुँचती है और उनके स्वास्थ्यगत सुविधायों के लिए कोई प्रावधान नहीं होता है इस प्रकार से खनन क्षेत्र द्वारा रोजगार की धारणा पूर्णतया भ्रामक और गलत है |

ढांचागत विकास में गिट्टी और पत्थर का उपयोग बुंदेलखंड से बाहर के क्षेत्र विशेषतया विकसित राज्यों के लिए होता है और इस अवैध खनन से निर्माण कम्पनियों को सस्ता माल और भारी मुनाफ़ा मिलता है| ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा भारत के कच्चे माल से इंग्लैंड के सूती मिल उद्योग का विकास और बुंदेलखंड के अवैध खनन से दुसरे राज्यों के विकास की तुलना आप्रसंगिक नहीं होगी |
पिछड़े  एवं गरीब क्षेत्र में हो रहे इस खतरनाक खेल को बंद करने की जिम्मेदारी हम सभी जागरूक नागरिकों की है और माननीय न्याय पालिका से ही किसी राहत  की उम्मीद की जा सकती है वरना बुंदेलखंड के खनन माफिया रत्नगर्भा धरती को बर्बाद और बेहाल कर देंगे |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

बुंदेलखंड में प्रसूति मृत्यु का अभिशाप

आजादी के 62 वर्ष बाद भी अभी हम महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं कि महिलायें सुरक्षित, स्वस्थ एवं वैज्ञानिक परिवेश में बच्चे को जन्म दे सकें | बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसूति सेवाओं में ढांचातंत्र का नितांत अभाव है और मेडिकल ऑपरेशन से बच्चा पैदा कराने की सुविधा न के बराबर है | सुदूर ग्रामीण अंचलों में गर्भवती महिलाएं जो की दाइयों, मिडवाईफ एवं झोलाछाप डाक्टरों के भरोसे रहती है जो पेचीदे प्रसव में भी निजी स्वार्थवश गर्भवती स्त्री को गंभीर ख़तरा होने तक रोके रहती है | अत्यन्त गंभीर जान का खतरा उत्पन्न होने पर ही दूरस्थ स्थलों पर प्रसव हेतु ले जाने का परामर्श देती है | एक तो आस-पास विशेषज्ञ प्रसव सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं साथ ही खराब सड़क तथा यातायात के साधन की कमी के कारण इतना समय नहीं रहता है कि गर्भवती स्त्री को बड़े शहरों तक ले जाया जा सके इस वजह से से मां अथवा बच्चा और कभी दोनों आसमयिक कालकवलित हो जाते हैं | आकड़ों के अनुसार बुंदेलखंड में 15 -25 % तक प्रसव के मामलों में यही स्थिति उत्पन्न होती है जो सभ्य समाज के लिए अत्यंत शर्मनाक है |
      इस प्रकार कि गंभीर स्थिति के लिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ सामाजिक जागरूकता और जवाबदेही का अभाव है | स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में कुछ ख़ास और प्रभावी कदम नहीं उठाते हैं | जन प्रतिनिधि इस दिशा में पूर्णतया उदासीन रहते हैं क्योंकि इसमें उनको कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं दिखता इस बदहाली में महिलाएं ही भुक्तभोगी होती हैं और उनके इस दर्द के निराकरण के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता |
इस स्थिति का निराकरण तभी संभव हो सकता है जब तहसील स्तर पर पूर्ण सुसज्जित मोबाइल हॉस्पिटल वैन उपलब्ध हों जो संचार माध्यमों से ग्राम स्तर में पूर्णतया जुड़ीं हों | ग्राम स्तर पर दाइयों, आशा कर्मचारियों, मिडवाईफ एवं स्वयंसेवी कार्यकर्ता ऐसे मोबाइल हॉस्पिटल वैन से निरंतर संपर्क में बने रहें इस उत्तरदायित्व की पूर्ति स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रभावी आन्दोलन के माध्यम से ही हो सकती है | औद्योगिक घरानों द्वारा ऐसी स्वयंसेवी संस्थाओं को मोबाइल हॉस्पिटल वैन मय उपकरण, स्टाफ आदि की व्यवस्था करायी जाये तभी वैज्ञानिक ढंग से सुरक्षित प्रसव व्यवस्था संभव हो सकेगी |
सरकार द्वारा भी वर्तमान स्थिति की समीक्षा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए जिससे की बुंदेलखंड की ललनाएं गौरवशाली भविष्य को जन्म देकर क्षेत्र की समृद्ध और ताकतवर विरासत का हिस्सा बना सकें |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Thursday, April 8, 2010

कोल आदिवासियों के वैधानिक दर्जे में विसंगति

भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान कोल आदिवासियों के कल्याण हेतु अनेक कार्य किये और उनका कोल आदिवासियों से बहुत लगाव था | माता सीता ने भी कोल बालाओं के बीच उनके कल्याणार्थ कार्य किये थे | आज भी कोल बालाएं अपने कोल्हाई लोकगीतों मे स्वयं को सीतासखियाँ कहती हैं और अपने लोकगीतों मे विलाप करते हुए कहती हैं कि सीताजी आपकी सीतासखियाँ बहुत दुखीं हैं और बिना तुम्हारे आये हमारे दुखों का निराकरण होना संभव नहीं है | अतः एक बार तुम पुनः आ कर  और अपनी सीतासखियों की दशा सुधार जाओ |

वर्तमान में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद में कोल अनुसूचित जाति और मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के रूप मे वर्गीकृत हैं | दोनों प्रदेशों के कोल एक ही पृष्ठ भूमि  के हैं और  उनकी आपस मे ही शादियाँ भी होती हैं | उनमें  रहन सहन, रीतिरिवाज और सांस्कृतिक समानता भी   है |

ऐसा भी देखने मे आया है कि परिवार का एक भाई उत्तर प्रदेश के गाँव मे रहने के  कारण अनुसूचित जाति का है तो वहीँ उसका दूसरा भाई मध्य प्रदेश मे बार्डर के सटे हुए गाँव मे मकान बनाने के कारण अनुसूचित जनजाति मे आता है | यह नैसर्गिक न्याय एवं समानता के सिद्दांत के एकदम विपरीत है |

जातियों का यह वर्गीकरण भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र मे आता है |  यह विसंगिति कदाचित  म० प्र० में अनुसूचित जन जातियों और उ० प्र० में अनुसूचित जातियों की प्रमुखता से हुई है | भारत सरकार द्वारा इस मामले को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में निर्णित करके इस  विसंगिति को दूर किया जा सकता है |  इस परिप्रेक्ष्य मे भारत सरकार द्वारा अपनी गलती सुधारने का काम अविलम्ब करना चाहिए, ताकि उत्तर प्रदेश के कोलो मे व्याप्त कुंठा को दूर किया जा सके और वे मध्य प्रदेश के कोलो के सामान अनुसूचित जनजाति की  सुविधाएं प्राप्त कर सकें |

दोनों प्रदेशों में जातियों के दर्जे में भिन्नता के अलावा एक ही प्रदेश के विभिन्न जिलों में जातियों को अलग दर्जा प्राप्त हैं | सहरिया जाति बुंदेलखंड क्षेत्र के ललितपुर जनपद मे अनुसूचित जनजाति के रूप मे वर्गीकृत है जबकि के झाँसी जनपद मे सहरिया अनुसूचित जाति के रूप मे वर्गीकृत है | इस प्रकार सहरिया जाति को उत्तर प्रदेश के अन्य जनपदों मे भी अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया जाना न्यायोचित है | इसके अलावा गोंड़ जाति उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद मे अनुसूचित जनजाति तथा ललितपुर मे अनुसूचित जाति के रूप मे वर्गीकृत है
भारत सरकार को इन सभी विसंगतियों को दूर करने हेतु अविलम्ब कदम उठाकर समुदायगत कुंठा को दूर करना चाहिए |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Tuesday, April 6, 2010

शिक्षा का अधिकार कैसे बने वरदान

1 अप्रैल, 2010 भारतीय इतिहास का स्वर्णाक्षरों से लिखा जाने वाला दिन बन गया है, क्योंकि इस तिथि से बहुप्रतीक्षित एवं अतिउपयोगी शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार लोगों को प्राप्त हो गया है |  प्रधानमन्त्री डा० मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्र को किए गए उद्बोधन से इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है | अब 06-14  आयु वर्ग के बच्चों को शिक्षित होने का स्वर्णिम अवसर मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त हो गया है | इस प्रावधान के लागू होने से स्कूल न जाने वाले बच्चे तो स्कूल जायेंगे ही, बीच में विद्यालय छोड़ देने वाले बच्चे भी पुन: शैक्षणिक धारा में आ सकेंगे, बहुत सारे नए विद्यालय खुलेंगे, शिक्षकों की तैनाती होगी, शैक्षणिक तैयारियां सहित भवन/कक्ष बनेंगे | यह स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा कार्य था, जो आजादी के 62 वर्ष बाद अब संपन्न हो रहा है |

नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने मात्र से यह बृहद कार्य संपन्न नही हो सकेगा | इसे अमल में लाने हेतु समुचित वित्तीय प्रावधान हो जाने मात्र से भी यह बृहद उद्देश्य स्वत: नहीं प्राप्त हो जाएगा | इस बृहद उद्येश्य की सम्पूर्ति हेतु राजनैतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी और केंद्र एवं राज्य सरकारों का ताल मेल एवं परस्पर सहयोग भी आवश्यक होगा | सबसे बड़ा कार्य बच्चों एवं अभिभावकों को एतदर्थ मनसा-बाचा-कर्मणा तैयार करना भी होगा |
गोमती नगर, लखनऊ में एक मोची की दुकान संभाल रहे 12 वर्षीय लड़के से पूछने पर पता चला की वह कभी विद्यालय नही गया और न ही किसी ने उसे पढना लिखना ही सिखाया इसके बावजूद यह अपना तथा परिवार के सदस्यों का नाम लिख लेता है और थोड़ा पढ़ लिख भी लेता है | उसी दुकान पर बैठा उसका 10 वर्षीय दोस्त, जो कक्षा 4 तक पढ़कर स्कूल छोड़ चुका है, उससे कम लिखना और पढ़ना जानता है संभव है कि स्कूल छोड़ने के बाद वह पढ़ना और लिखना भूल गया हो | बुंदेलखंड में सरबोझ कार्य में लगे हुए तथा नट- कंजड जैसे तमाम खानाबदोश जनसमुदाय के बारे में भी सोचना होगा | ऐसे बच्चो को शैक्षिक धारा में कैसे लाया जाए , यह एक जटिल प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबको ढूँढना होगा |

वर्ष 1999-2000 में जिलाधिकारी चित्रकूट द्वारा शिक्षा-साक्षरता से अपने अत्यधिक लगाव के चलते उन्होंने शासकीय व्यवस्था एवं नियमों की अनदेखी करके यह फरमान तक जारी कर दिया था कि एक माह में सभी जनपद वासी हस्ताक्षर करना सीख लें, अन्यथा एक माह बाद सरकारी कार्यालय कोई  अंगूठायुक्त  प्रार्थनापत्र स्वीकार नही करेंगे |
उन्होंने कक्षा-3 से ऊपर के समस्त विद्यार्थियों को अपने परिवारजनों तथा घर में काम करने वालों को हस्ताक्षर करना सिखाने हेतु लगा दिया और उनमें से सबसे जल्दी एवं सबसे अच्छा काम करने वाले विद्यार्थी को ग्राम, न्यायपंचायत, ब्लाक, तहसील एवं जिला स्तर पर पुरस्कृत करने का आश्वासन भी दे दिया गया था |
इससे उत्साहित होकर लाखों विद्यार्थी अपने माँ बाप को हस्ताक्षर सिखाने में लग गये | ऐसा करते समय यह सोच भी साथ थी कि उन्हें जिलाधिकारी से पुरस्कार प्राप्त करने हेतु सबसे पहले अपना काम पूरा करना है | ऐसा भी देखने में आया था कि कतिपय माँ बाप को दैनिक व अन्य क्रियायों को रोककर बच्चो की जिद के चलते लिखना सीखना पड़ा | उस समय अदालत में, वकालतनामा, दावा तथा जबाब दावा पर अंगूठा लगा सकता था, पर बयान व बयानहल्फी पर हस्ताक्षर होना अनिवार्य था | सारे वकील तथा पीठासीन अधिकारी इस पुनीत कार्य में लग गये थे |
बैंक कर्मी अंगूठा से पैसा जमा करा सकते थे, पर हस्ताक्षर से ही पैसा निकाल सकते थे | इस प्रकार बैंकों से 2 माह में ही अंगूठा का नामोनिशान मिट गया | चित्रकूट क्षेत्र में उस दौरान साक्षरता अभियान का अजब जुनून जन-जन में व्याप्त था | यहाँ तक दोनों हाथ नहीं होने वाली बरगढ़ गाँव की एक महिला ने दोनों कोहनी से कलम पकड़कर लिखना सीखकर जिलाधिकारी को पत्र भी भेजा | एक अन्य व्यक्ति ने अपने शरीर में बची एक मात्र पैर की दो उँगलियों के बीच कलम फंसाकर लिखना सीखा |

साक्षरता से सशक्तिकरण भी हुआ | मानिकपुर क्षेत्र के हरिजनपुर गाँव की एक महिला रामलली साक्षरता की राह पकड़कर इतनी सशक्त हुई और मानवीय गुणों से ओत-प्रोत हो गई कि सतना के एक बैंक मेनेजर के लड़के, जो ददुआ द्वारा अपहृत होकर उसकी गिरफ्त में था, को पनाह दे बैठी | फिर क्या होना था, ददुआ ने दल सहित रात में उसके घर धावा बोला वह बिल्कुल नहीं डरीं, उल्टे डाकुओं को भागना पड़ा और उसने एक डाकू की बन्दूक भी छीन ली थी | इस महिला को जिलाधिकारी ने बन्दूक दे कर पुरस्कृत किया और प्रदेश सरकार को अपनी संस्तुति भेजकर रामलली को उत्तर प्रदेश स्तरीय महिला सशक्तिकरण अवार्ड दिलवाया |

चित्रकूट जनपद के समस्त अधिकारी, कर्मचारी, स्वयंसेवी संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं, बार एसोसिएसन, बैंक, युवक समुदाय, पत्रकार सहित लगभग 90% जनसँख्या साक्षरता कार्य मे लग गयीं थी और सबमे एक ही जुनून था कि उन्हें अपना शत प्रतिशत योगदान देना है | इस सबका परिणाम यह हुआ कि छः माह के सघन कार्य के परिणाम स्वरूप चित्रकूट जनपद की 32% की आधार साक्षरता दर में 34%की बढोतरी हो गई | इस प्रकार जनपद की साक्षरता दर 66% ( भारत की साक्षरता दर 65%) हो गयी जो की रास्ट्रीय औसत से ज्यादा थी | इतना ही नही महिला साक्षरता 4 गुनी अर्थात 13% से बढ़कर 51% हो गयी |

उपरोक्त घटनाक्रम इसलिए बता रहा हूँ कि इससे कम जुनूनी वातावरण, दृढ़ता तथा इच्छाशक्ति के बगैर शिक्षा के मौलिक अधिकार का लक्ष्य हासिल करना संभव नही हो सकता है | अन्यथा स्थिति में शिक्षा के इस मौलिक अधिकार सम्बन्धी इस अधिनियम की परिणति अन्य अधिनियमों की तरह ही हो जाएगी |

शिक्षा विकास का प्रथम सोपान होता है, अतयव इस बड़े उद्येश्य की प्राप्ति के लिए प्राथमिक विद्यालयों को छोड़कर देश के सारे स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षण संस्थाओं सहित समस्त प्रतिष्ठान /कार्यालय एक वर्ष के लिए बंद कर देने चाहिए और सभी को इस पुनीत कार्य में लगा दिया जाये | उन्हें उनके योगदान के अनुसार ग्रेडिंग करके अगली कक्षाएं भी दी जा सकती हैं |

केंद्र सरकार द्वारा नोडल एजेंसी के रूप में द्रढ़ता का परिचय देना चाहिए और जहां भी शिथिलता व लापरवाही दिखे, शिक्षा के इस मौलिक कार्य के हित में कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए बिना इतनी द्रढ़ता के यह पुनीत कार्य पूरा नहीं हो सकता |

उत्तर प्रदेश में तो इस समय पूरे प्रदेश का ध्यान उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता पार्को- मूर्तियो के निर्माण, जन्म दिन पर चंदा उगाही एवं रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने में लगा हुआ है, ऐसी दशा में क्या उत्तर प्रदेश में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाये जाने की प्राथमिकता मिलेगी, इसमें संदेह लगता है क्यूंकि अभी तक इस अति जनहितकारी प्रावधान का प्रदेश स्तर पर कोई स्वागत किया जाना प्रतीत नहीं होता | प्रदेश सरकार इसे लागू करने हेतु केंद्र से 100% धन मांग रही है क्यूंकि शिक्षा के मौलिक अधिकार का कानून केंद्र सरकार के द्वारा पारित किया गया है, अतेव इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है | उत्तर प्रदेश सरकर के वित्तीय संसाधन उसकी अपनी उपरोक्त प्राथमिकता के लिए है, पर सर्व जन हित कारी इस शिक्षा के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए कोई वित्तीय संसाधन नहीं है | यहाँ उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में मार्च मे समाप्त हुए वित्तीय वर्ष मे 12,000 करोड़ रुपये की धनराशि समर्पित कि गयी जो कदाचित सरकारी मशीनरी के सरकार की उपरोक्तानुसार प्राथमिकता में लगे होने के कारण होना प्रतीत होता है | क्या उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा के मौलिक अधिकार को अपनी प्राथमिकता बनायेगी और यदि नहीं तो क्या केंद्र सरकार इसकी मूक दर्शक बनी रहेगी ? क्या ऐसे मे प्रदेश की जनता अपनी आँखे बंद कर लेगी ?  शिक्षित और जागरूक व्यक्ति अपनी आवाज़ से सर्व शिक्षा अभियान को गति और दिशा देकर शिक्षा के मौलिक अधिकार को विधि पुस्तकों से यथार्थ के धरातल पर उतार कर बुंदेलखंड ही नहीं वरन प्रदेश का रूपांतरण कर सकते है |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा