Thursday, July 22, 2010

राजनीति और धन की वापसी ; समस्या का स्थायी समाधान

व्यक्ति ,समाज तथा देश की अधिकांश समस्याएं राजनीति और धन के अत्यधिक प्रभाव व वर्चस्व के कारण है | साधन के रूप मे इन दोनों की जरुरत अवस्य है , पर आज धन व राजनीति का वर्चस्व अत्यधिक बढ़ गया है और दोनों साधन से साध्य बनकर प्रत्येक क्षेत्र मे बुराइयाँ व समस्याएं ही  उत्पन्न कर रहें हैं | इससे आम आदमी तथा किसान सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है और किंकर्तव्यमूढ़ बना हुआ है | वह आज महगाई से सर्बाधिक प्रभावित  तथा त्रस्त है और इस किसान व आम आदमी को महगाई से राहत दिलाना मेरा विशेष प्रयोजन है | वस्तुतः महगाई को बढ़ाने मे यही धन व राजनीति ही मुख्यतया जिम्मेदार है | अतयव महगाई और अधिकांश समस्याओं का समाधान पाने के लिए धन व राजनीति के प्रभाव को कम करने तथा इनकी साध्य से साधन के स्तर तक वापसी अत्यावश्यक है | 
      बढ़ते मुद्रा प्रसार ,नकली नोटों का बड़े पैमाने पर प्रचलन , काले धन की सामानांतर अर्थ व्यवस्था ,गलत आर्थिक नीतियाँ ,गैर ज़िम्मेदाराना राजनीतिक बयानबाजियां तथा शासको के अहम् व सनक भरी योजनाओं का कार्यान्वयन महगाई बढ़ाने वाले प्रमुख कारक सिद्ध हो रहे हैं | महगाई का कोई खास असर अमीरों पर नहीं होने के कारण वे तत्क्रम मे उदासीन रहते हैं | महगाई से सबसे ज्यादा परेशान आम आदमी और किसान असंगठित होने के कारण महगाई के बिरुद्ध एकजुट होकर अपना विरोध दर्ज नहीं करा पाते | विपक्ष द्वारा महगाई को सरकार के विरुद्ध प्रयोग किया जाने वाला केवल एक हथियार ही समझा जाता है | जिसके कारण महगाई निरन्तर बढती जा रही है और इस पर नियंत्रण किये जाने के विषय मे कोई कारगर एवं परिणामदायक उपाय नहीं हो रहे है | इसी कारण महगाई सर्बाधिक चिंता का विषय बनी हुई है | 
       आम आदमी और किसान हमारी प्राथमिकता का केंद्र बिंदु होने के कारण सर्बप्रथम हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेते हैं | अभी तक सरकारे अमीन के माध्यम से लगान नगद वसूलती हैं और छोटे किसानो को लगान से छुट दी जाती है | ग्रामीण क्षेत्रों मे सीलिंग भी लागू है और किसानो को एक  निश्चित सीमा से अधिक भूमि रखने पर पाबन्दी है ,पर खेत के सदुपयोग न करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है | सीलिंग का यह तरीका सही नहीं है | सीलिंग मे अधिकतम भूमि रखने की सीमा रखने के बजाय प्रति मानक बीघा न्यूनतम उत्पादन करने का प्रतिबन्ध लगाया जाना अधिक उचित है | इसका परिणाम यह होगा कि न्यूनतम उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु कृषि उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने का एक स्वाभाविक वातावरण बनेगा और सकल कृषि उत्पादन मे बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना होगी | इससे सीलिंग को एक कारगर एवं तर्कसंगत आधार मिल सकेगा ,क्योकि जो न्यूनतम उत्पादन नहीं करेगा ,उसकी कृषि भूमि सरकार द्वारा अपने कब्जे मे लेकर भूमिहीनों तथा खेतिहर मजदूरो मे बाँट दी जावेगी और खेतो पर वास्तविक किसानो का ही कब्ज़ा होगा | जब प्रति मानक बीघा न्यूनतम उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित हो जावेगा तो लगान व गल्ला वसूली भी उक्त आधार पर आसानी से हो सकेगी जो सामान्यतया न्यूनतम उत्पादन १० प्रतिशत होगा बिना किसी भेदभाव के सभी किसानो से वसूल किया जावेगा | इस प्रकार लगान तथा गल्ला वसूली स्वतः हो जाएगी | इस वसूल किये गए गल्ले से लगान सहित अन्य सरकारी देयों का समायोजन करने के बाद जो धन देय होगा उसे नकद न देकर खाद बीज आदि निवेश प्राप्त करने हेतु कूपन दे दिया जावेगा | इसके बाद का अवशेष नकद भुगतान कर दिया जावेगा | मानक बीघा का न्यूनतम उपज निर्धारण ,बोये गए फसल का व्योरा तैयार करने सहित लगान व गल्ला वसूली तथा गल्ले का भण्डारण आदि कार्य सरकारी कर्मचारियों के बजाय गाँव के ही एक ठेकेदार द्वारा किये जायेगे | इसके लिए इसे १ या २ प्रतिशत कमीशन भी दिया जावेगा | यह गाँव का सबसे महत्वपूर्ण व इमानदार व्यक्ति होगा | अतयव इसी व्यक्ति को ग्राम स्तर का राजनीतिक अधिकार भी सौंप दिया जावेगा | ऐसी स्थिति मे प्रधान का अलग से चुनाव कराने की आवश्यकता नहीं होगी और ग्राम स्तर पर राजनीति की स्वतः वापसी संभव हो जाएगी | यही सभी प्रधान मिलकर  क्रमशः न्याय पंचायत , ब्लाक ,जिला,राज्य तथा देश का प्रतिनिधि भी चुनेगे और सरकार बनाने का महत्वपूर्ण दायित्व निभायेगे | इससे चुनाव बिहीन राजनीतिक तथा धन विहीन आर्थिक व्यवस्था लागू हो सकेगी | तभी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे के मेहता के आवश्यकता विहीनता की ओर ले जाने सम्बन्धी आर्थिक सिद्दांत पर अमल हो सकेगा| इससे मानव सच्चे अर्थों मे खुशहाली के रास्ते पर चल पड़ेगा और वास्तविक प्रजातंत्र तथा रामराज्य का सुख भोगेगा |    
     

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Wednesday, July 21, 2010

सम्यक राजनीति एवं अर्थ बोध

आजकल धन और राजनीति का वर्चस्व बहुत अधिक बढ़ गया है | धन के बढे हुए वर्चस्व के कारण आज यह युग वैश्य युग बन गया प्रतीत होता है ,क्योंकि आज धन ही मूल्यांकन की कसौटी बन गयी है और धनवान की ही समाज मे सर्बाधिक प्रतिष्ठा है | परिवार मे भी कमाऊ पुत्र का ही वर्चस्व रहता है | यहाँ तक मा का स्नेह भी निस्वार्थ न रहकर पैसे की तराजू मे ही तुलता है अर्थात मा भी उसी बच्चे को सर्बाधिक प्यार करती है जो सबसे ज्यादा पैसा कमाकर लाता है | कहने का तात्पर्य यही है कि यह अर्थ युग बन गया है और इसी कारण लोगो मे धन कमाने की होड़ सी लगी हुई प्रतीत होती है | आज धन मानवीय मूल्यों ,मानवीय संबंधों तथा सामजिक स्तरीकरण का स्थापित आधार बन गयाहै | इसके कारण व्यक्तिगत ,सामाजिक और नैतिक मूल्यों मे बहुत अधिक गिरावट देखने को मिल रही है | प्रत्येक क्षेत्र मे मे इसके बिस्तार एवं प्रभाव के कारण पूरी की पूरी व्यवस्था ही संक्रमित एवं दूषित हो गयी है |राजनीति का भी प्रभाव व प्रभुत्व धन की ही तरह सर्ब व्याप्त है | प्रत्येक क्षेत्र मे राजनीति ने अपनी पैठ बनाकर अपना वर्चस्व कायम कर रखा है | इससे कोई क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है | यहाँ तक पति पत्नी के शयन कक्ष तक इसकी पहुँच संभव हो चुकी है | 
       उपरोक्त से यह स्वतः स्पष्ट है कि धन और राजनीति बर्तमान समय की सबसे बड़ी बुराईयां हैं और इन दोनों बुराईयों पर नियंत्रण पाना बहुत आवश्यक है | यह भी एक नंगा सच है कि व्यक्तिगत व सामाजिक क्षेत्र मे धन और राजनीति की साधन के रूप मे जरुरत होती है | जब तक यह दोनों साधन के रूप मे हैं हैं ,तब तक यह दोनों उपयोगी हैं | परन्तु धन व राजनीति जब साधन के बजाय साध्य बन जाती हैं ,तो ये व्यक्ति व समाज के लिए हितकर नहीं रह जाती हैं | अतयव आज इन पर नियंत्रण करना इस दृष्टि से आवश्यक है कि यह दोनों साधन के रूप मे इनकी उपयोगिता बनी रहें और यह साध्य न बनने पायें |
      व्यष्टि और समष्टिगत क्षेत्र से धन व राजनीति की वापसी लोकहित मे बहुत जरुरी है | पर यह अत्यधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है ,क्योंकि इन दोनों की जड़े बहुत गहरी हैं और सम्पूर्ण व्यवस्था को ही जकड रखा है |अतयव इन दोनों के विरुद्ध कार्यवाही होने पर व्यवस्था ही इनके साथ खड़ी हो जाएगी | अतयव इस प्रयोजन से एक नई व्यवस्था का प्रावधान करना होगा |
वैसे इस समस्या का वास्तविक समाधान है | राजनीति और धर्म की वापसी तथा साधन के रूप मे उनकी प्रतिष्ठा करना | यह एक अत्यधिक दुरूह कार्य है , क्योकि जब बुराइयों की जड़े काफी गहराई तक चली जाती हैं तो उन्हें जड़ समेत उखाड़ना बहुत कठिन हो जाता है |


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

बिवाह की प्रास्थिति तथा बैवाहिक सामंजस्य

प्रेम संसार की अमूल्य निधि है जो ईस्वरीय विधान के अनुसार एक ईश्वर का सबसे अनुपम उपहार है | कहते हैं की स्त्री पुरुष के जोड़े स्वर्ग मे बनते हैं और बिवाह द्वारा वे एक दूसरे से मिलते हैं | बिवाह की संस्था प्रेमी युगल को साधिकार प्रेम की अनुज्ञा प्रदान करता है और परिवार की संस्था मे पूर्ण व वास्तविक प्रवेश दिलाता है | मनुष्य का अस्तित्व स्पंदनयुक्त अर्थात तरंगवत है ,दूसरे शब्दों मे मनुष्य वस्तुतः मनो भौतिक आत्मिक तरंगो व स्पंदन का एक स्वरूप मात्र होता है | एक स्त्री व पुरुष के मनो भौतिक आत्मिक तरंगो के समानान्तरीकरण अर्थात पूर्णरूपेण विलय कराने वाली प्रक्रिया को बिवाह  कहते हैं | विश्व के समस्त देशों एवं समाजों मे बिवाह  की अवधारणा तथा प्रक्रिया अलग अलग है | प्रत्येक देश व समाज मे बिवाह एक संस्कार एवं उत्सव के रूप मे मनाया जाता है और यह सभी लोगो को अपनी खुशियों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी होता है |
      पहले माता पिता तथा परिवार लड़की के लिए लड़का ढूंढते  और फिर बिवाह संपन्न कराते थे | तब लड़की लड़के को शादी से पहले मिलकर एक दूसरे को समझने बूझने तथा पसंद नापसंद करने का कोई अवसर नहीं होता था | आज भी भारत मे अधिकांश शादियाँ इसी प्रकार तय और संपन्न होती हैं | पढ़े लिखे व प्रगतिशील समाज मे प्रेम विवाह अधिक होते हैं और ऐसे अधिकांश बिवाहों मे परिवार भी सामिल होता है | मुस्लिम  समाज मे बिवाह एक समझौता व अनुबंध होता है और बिवाह  के वक्त लड़के व लड़की की रजामंदी अवश्य पूंछी जाती है | 
     सही मायनो मे देखा जाय तो भारत सहित विश्व के प्रत्येक देश मे बिवाह की संस्था को सही तथा मजबूत बनाने का कोई प्रयास किया गया नहीं प्रतीत होता | तभी वैवाहिक सामंजस्य की कमी प्रायः दिखाई पड़ती है | होना यह चाहिए कि शादी के बाद लड़का व लड़की दोनों का अस्तित्व विलीन होकर एकाकार  हो जावे | इस प्रकार बिवाह का वास्तविक मतलब एक दूसरे मे विलय हो जाना ही है | यही सर्वथा वांछनीय भी है | तभी पूर्ण वैवाहिक व पारिवारिक सामंजस्य की स्थितियां बन सकेगी | जबकि वास्तविकता यह है कि विलय होने की स्थिति बन ही नहीं पाती और पति व पत्नी अपने अपने अहम् को सेते रहते हैं | जिससे बैवाहिक सामंजस्य का परिवेश बन ही नहीं पाता | इतना ही नहीं आज राजनीति का प्रदूषण इतना अधिक बढ़ गया है कि पति पत्नी के शयन कक्षों तक राजनीति ने अपना स्थान बना लिया है और दाम्पत्य जीवन मे कूटनीतिक हथियार का प्रयोग बहुत बढ़ गया है | यह काफी खतरनाक स्थिति को उजागर करता है और इसका समाधान ढूँढना आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि आजकल वैवाहिक असंतुलन एवं पारिवारिक बिघटन की स्थितियां चहु ओर दृष्टिगोचर हो रहीं हैं | यह परिवार ,समाज व देश सभी के लिए घातक है | परिवार व समाज मे अपवाद स्वरूप घटित घटनाओं को ही प्रमुखता देकर बनाये जा रहे टेलीविजन सीरियल भी वैवाहिक सम्बन्ध ,परिवार व समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहे हैं | सरकार द्वारा जनहित मे ऐसे टी बी सीरियल के प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगाने का काम किया जाना चाहिए | 
      यह प्रश्न दिमाग मे उठाना स्वाभाविक है कि क्या बैवाहिक सामंजस्य स्थापित करने तथा पारिवारिक व सामाजिक  बिघटन को रोकने की दिशा मे कुछ किया जा सकता है अथवा नहीं ? सौभाग्य बश इसका उत्तर सकारात्मक है | इस दिशा मे सर्बप्रथम बिवाह की संस्था को सही व उपयुक्त स्थिति मे स्थापित करनी पड़ेगी | जब बिवाह  दो मन दो शरीर व दो आत्मा के सायुज्य की स्थिति है तो विवाह की शैली भी तदनुसार होनी चाहिए | बिवाह से पहले लड़का लड़की द्वारा एक दूसरे को खूब समझ लेना चाहिए और शादी के बाद अपने अहम् को दरकिनार करके एक दूसरे का भरपूर ध्यान रखना चाहिए | इसे प्रोलांग कोर्टशिप मैरेज कह सकते हैं | इसमें लड़का लड़की साल छः महीना एक दूसरे से मिलते हुए एक दूसरे की भावना व बिचार को समझने बूझने का प्रयास करेगे और एक दूसरे की माता पिता से भी मिलते रहेंगे | इस दौरान एक दूसरे से जुड़ने के सम्बन्ध मे लड़का लड़की तथा उनके माता पिता सुविचारित व उचित फैसला ले सकेगे | इस प्रकार लिए गए  फैसले के फलस्वरूप शादी करके बाद मे पूरी जिन्दगी पछताने तथा घुट घुट कर जीने की स्थितियों से बचा जा सकता है |     


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

Tuesday, July 20, 2010

सम्यक काल बोध

देश काल पात्र गत सापेक्षिकता ही वास्तव मे सापेक्षिकता का सिद्धांत है | देश काल पात्र गत सापेक्षिक पृष्ठभूमि मे काल का महत्व सर्बाधिक है | देश और पात्र इतने गतिमान व परिवर्तनशील नहीं हैं जितना कि काल | काल निरंतरता मे अबाध गति से बहता जा रहा है | परन्तु देश और पात्र सामान्यतया इस गति से सामंजस्य नहीं रख पाते हैं और इसी अन्तराल जन्य समस्या के कारण काल तत्व सर्बाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हो जाता है | काल मीमांसा से स्पष्ट होता है कि काल निरन्तर गतिमान है और यह किसी देश व पात्र की न तो प्रतीक्षा करता है और न ही किसी के लिए रुकता ही है | अतः सम्यक काल बोध से ही काल समायोजन सहित सम्यक जीवन यापन तथा सही जीवन दर्शन का अपनाना संभव हो सकता है |  

      प्रायः लोग यह कहते हुए पाये जाते हैं कि हम समय गुजार रहे हैं अथवा समय काट रहे हैं | जबकि वास्तविकता यह है कि समय स्वयं गुजर रहा होता है और वह निरन्तर सबको गुजारता तथा काटता हुआ चलता जाता है | यह अवश्य संभव हो सकता है कि इस गुजर रहे समय के साथ हम अपने आप को भी गुजर जाने दें | यही सहज जीवन है और यही अभीष्ट भी होता है | सतत प्रवाहमान समय और देश व पात्र की स्थिरता जन्य अन्तराल की स्थिति मे हम गुजरते समय के साथ अपने को नहीं गुजार पाते हैं और सिनेमा ,कहानी ,उपन्यास ,टेलीविजन व गप शप आदि द्वारा समय गुजारने का कृत्रिम प्रयास करते हैं | यह स्वाभाविकता न होकर अपने को गुमराह करने जैसा कृत्य है | यदि समय गुजारने के लिए उपरोक्तानुसार कार्यकलापो का आलंबन लेने की जरुरत महसूस होने लगे तो निश्चित समझिये कि आप समय के साथ नहीं चल पा रहे हैं और उपरोक्तानुसार अन्तराल की स्थिति उत्पन्न हो गयी है | अतः सर्बप्रथम हमें काल के साथ साथ चलने अर्थात काल से समायोजन की कला सीखनी होगी | समय के साथ गुजरना एक अनवरत बह रही धारा मे बहने जैसी स्थिति है | काल धारा के बिपरीत जाने मे होने वाली श्रम हानि व परेशानी ही इस अन्तराल की स्थिति है |
      समय न कभी रुकता है और न ही किसी की प्रतीक्षा ही करता है | अतः प्रत्येक पात्र को काल की प्रतीक्षा करते हुए इसके गुजर जाने से पहले पकड़ने का प्रयास करना चाहिए | इसको ही अवसर कहते हैं , जिसके पकड़ मे आ जाने की स्थिति मे सफलता हाथ लगती है | अन्यथा स्थिति मे व्यक्ति हाथ मलता और पछताता हुआ रह जाता है | जब हम जानते हैं कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और यह सर्बाधिक महत्वपूर्ण तत्व है , हमें स्वयं समय की इस प्रकार प्रतीक्षा करनी होगी कि यह गुजरने न पावे और समय के पास आते ही इसे पकड़ लेना चाहिए | इसके लिए सही पात्र बनना पड़ेगा और सही देश यानि स्थान पर अवस्थित होना होगा | तभी सम्यक कालबोध की स्थिति मे देश काल पात्र सायुज्य की स्थिति मे सफलता का वरण कारण संभव हो सकेगा |
     सही देश तथा सही पात्र तभी अपना लक्ष्य भेद कर पाते हैं जब सही काल (अवसर )का सम्यक अभिज्ञान कर उसके  गुजर जाने से पहले पकड़ लिया जावे | चूँकि काल निरन्तर प्रवाहमान है , यह न तो किसी के पास जाता है और न ही चेतावनी देकर किसी को इंतजार करने का अवसर ही देता है | अतयव हमें स्वयं समय के पास जाकर उसका इंतजार करना होगा | यदि एक बार समय गुजर गया तो बीता हुआ कालखंड दुबारा हाथ नहीं आता | इस प्रकार हम पाते हैं कि जिन्हें सम्यक कालबोध है , वे कभी असफलता का मुह नहीं देखते |सम्यक देश तथा पात्र सम्यक कालबोध के अभाव मे कुछ हासिल नहीं कर पाते |
       समय के प्रभाव मे अपने को डालकर उसके साथ साथ बहना जीवन को सहज और सुखमय बनता है , यह स्थिति अन्यथा नहीं होती | अतः सफल होने के लिए अपने को समय के प्रवाह मे डालकर बहते रहना चाहिए और सही पात्र बनकर सही स्थान पर सम्यक कालखंड (अवसर )को मजबूती से पकड़ लेना चाहिए | यही सफलता की कुंजी है और यही सफलता का काल भी होता है | सम्यक काल अभिज्ञान ,काल परीक्षण और काल नियंत्रण अत्यावश्यक होता है | काल को समुचित महत्व न देने वालों के हाथ कुछ नहीं आता है और वह हाथ मलता रह जाता है | काल को समुचित महत्व देने वाले किन्तु अपेक्षाकृत अकुशल पात्र को बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है |
      टेलीविजन देखना ,कहानी उपन्यास आदि मनोरंजन के साधनों मे लिप्त व्यक्ति का मन काल अभिज्ञान व काल साक्षित्व हेतु उपलब्ध नहीं होता | इसी दौरान काल प्रवाह मे कोई सही कालखंड यानि उपयुक्त अवसर भी गुजर जाता है और ऐसे मे हम हाथ मलते रह जाते हैं | काल बोध एक शिकार करने जैसा होता है | तनिक सी चूक और लापरवाही से शिकार हाथ से जाता रहता है | ऐसी स्थिति मे पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता और कभी कभी उसी काल यानि अवसर के लिए सदियों तक इंतजार करना पड़ सकता है | यहाँ तक सम्यक कालबोध व काल अभिज्ञान नहीं कर सकने के कारण हम काल कवलित भी हो सकते हैं | अर्थात यदि सही समय पर हम सही पात्र नहीं बन सके तो सफलता से बंचित होना हमारी नियति होगी |
       अब तक हम समझ चुके हैं कि देश काल पात्र के संयोजन पर ही किसी घटना का घटित होना संभव होता है और काल तत्व सर्बाधिक महत्वपूर्ण और गतिशील है | इसके अनुसार चलना चाहिए और समय से आगे रहने की चेष्टा करनी चाहिए | कहने का यही तात्पर्य है कि इससे पहले कि समय आप पर सवार हो , समय पर आप हावी हो जाय |  समय पूर्ब सुचना के बगैर आता और चला जाता है | इस प्रकार किसी कार्य को संभाव्य बनाने के लिए समय को यथेष्ट महत्व देकर समय के अनुसार चलना चाहिए | इस सम्बन्ध मे पर्याप्त सजगता अपेक्षित है | समय का अभिज्ञान एवं प्रतीक्षा एक तपस्या है जो कठिन परिश्रम व चौकन्ना रहने से ही पूरी हो सकती है | यही लगो को निश्चित समय पर मनवांछित प्रतिफल देता है | 
     समय हमेशा घडी के अनुसार ही नहीं चलता है , वरन समय का कभी कभी मानसिक मापन भी होता है | ऐसा कई बार होता है कि किसी अत्यावश्यक कार्यवश यदि किसी स्थान पर पहुचना आवश्यक होने या किसी महत्वपूर्ण व संवेदनशील क्षण पर किसी की प्रतीक्षा करने का कालखंड बहुत लम्बा लगने लगता है | ऐसी स्थिति मे घडी से लगने वाला १५ मिनट का समय साल से अधिक लगने लगता है | ऐसी स्थिति मे मन प्रति पल समय साक्षीत्व करता रहता है | अतः १५ मिनट की दुरी सदियों जितनी लगने लगती है |
       समय के साथ गुजरना एक कला है ,किन्तु काल अभिज्ञान , काल प्रतीक्षा एवं काल साक्षीत्व आवश्यकता व महत्व को कभी भी नहीं भूलना चाहिए | काल देश व पात्र सापेक्ष्य भी है , क्योंकि २५०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित ग्रह पर भगवान बुद्ध आज पैदा हो रहे होंगे |                 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

श्रृष्टि संरचना , श्रृष्टि चक्र , श्रृष्टि नियंत्रण तथा ब्रह्म बोध

संरचना बिधान मे प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का होना अनिवार्यता है अर्थात प्राण केंद्र विहीन किसी संरचना की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं | प्रत्येक संरचना के प्राण केंद्र की धुरी से आबद्ध होकर उस संरचना का अंश इलेक्ट्रान - प्रोटान अथवा उपग्रह के रूप मे निरन्तर उसकी परिक्रमा करता रहता है | परमाणु श्रृष्टि की सबसे छोटी संरचना है | पदार्थ पर चारो ओर से पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव उसके भीतर एक प्राण केंद्र , जो  पदार्थ की संरचना की स्थिरता बनाये रखने हेतु वायु मंडलीय दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव देने का कार्य करता है , को उत्पन्न करता है |   इलेक्ट्रान व प्रोटान इस संरचना के अंश के रूप मे परमाणु के प्राण केंद्र की परिक्रमा करते रहते हैं | पृथ्वी समस्त परमाणुओं का समेकित स्वरूप है और चन्द्रमा पृथ्वी के प्राण केंद्र से आबद्ध होकर इसकी परिक्रमा करता है | सौर मंडल मे सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और सारे ग्रह व उपग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे होते हैं | महा सौर मंडल मे महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक सौर मंडल महा  सूर्य की ग्रहों की भाति परिक्रमा कर रहे होते हैं | इसी प्रकार महा महा सौर मंडल मे महा महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक महा सौर मंडल ग्रहों की भाति इस महा महा सौर मंडल की परिक्रमा कर रहे होते हैं | इसी प्रकार महानतम सौर मंडल मे महानतम सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है | अनेकानेक  महा महा सौर मंडल और  ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाये इस परम प्राण केंद्र की परिक्रमा कर रही होती हैं |
      इस परम प्राण केंद्र की तरंग दैर्घ्य ( बेब लेंथ ) ब्रह्माण्ड की हरेक संरचना तक होने के कारण यह सर्ब व्याप्त है | सर्बाधिक तरंग दैर्घ्य वाली यह शक्ति ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को परिचालित , संचालित एवं नियंत्रित करने वाली होने के कारण यह सर्ब शक्तिमान है | यही परम प्राण केंद्र ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को शक्ति प्रदान करता है और उनकी गत्यात्मकता को नियंत्रित करता है | इस प्रकार सर्ब व्यापकता , सर्ब शक्ति मानता और सर्ब नियंता होना इसका प्रमुख गुण है |
       सर्ब नियंता , सर्ब व्यापकता एवं सर्ब शक्तिमानता इस परम प्राण केंद्र अथवा परम सिद्धांत के गुण बोध मात्र को स्पष्ट करता है , पर इससे इस सत्ता के स्वरूप का आभास नहीं होता | सापेक्ष जगत मे समस्त सीधी रेखा लगने वाली समस्त तरंगें वस्तुतः सीधी रेखाएं न होकर किसी बड़े बृत की त्रिज्याएँ मात्र होती हैं | केवल अनंत तरंग दैर्घ्य वाली त्रिज्या  ही सीधी रेखा मे हो सकती है | इस प्रकार यह परम प्राण केंद्र , परम सिद्धांत एक सीधी रेखा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | इस प्रकार निरपेक्ष तरंग दर्घ्य वाली सत्ता ही सीधी रेखा मे हो सकती है | अब प्रश्न उठता है कि सीधी रेखा मे क्या हो सकता  है ? कोई भी भौतिक , मानसिक सापेक्ष संरचना सीधी रेखा मे नहीं हो सकती | सीधी रेखा मे केवल संचेतना अथवा पुरुष ही हो सकता है |  अतयव इस अनंत शक्ति सत्ता को हम परम पुरुष अथवा ईश्वर का नाम  दे सकते हैं |    
       यह परम चेतना , परम पुरुष तथा परम सिद्धांत बिना किसी परम कारक तत्व के कार्य नहीं कर सकता है | सत-राज-तम की त्रिगुणात्मकता शक्ति स्वरूपा प्रकृति ही वह परम कारक व परम परिचालक के रूप मे पुरुष को शक्ति प्रदान करते हुए संचालित करती है | यह प्रकृति अपने त्रिगुणात्मक स्पन्दंयुक्त कार्य विधान द्वारा सदैव क्रियाशील रहती है | प्रारंभ मे प्रकृति के आन्तरिक त्रिगुणात्मक स्पंदन के बावजूद परम पुरुष अप्रतिहत रहता है | यह प्रकृति की निष्क्रियता की वह स्थिति है , जहाँ परम पुरुष से अलग प्रकृति का कोई अलग तथा उद्भासित अस्तित्व नहीं होता है | दूसरे शब्दों मे परम पुरुष की देह मे प्रकृति सुषुप्ति की स्थिति मे विद्यमान रहती है | यहाँ प्रकृति और परम पुरुष की स्थिति कागज के दो पृष्ठों या सिक्के के दोनों भाग की तरह संपृक्त होती है और जिसका बिलगाव नहीं होता | इसे निर्गुण ब्रह्म की स्थिति कही जा सकती है जो श्रृष्टि स्पंदन के ठहराव की स्थिति है |  
       परम पुरुष की इच्छा जागने पर प्रकृति का त्रिगुणात्मक स्पंदन सक्रिय हो उठता है और तरंग सायुज्य की प्रक्रिया द्वारा परम पुरुष सगुण रूप धारण करना प्रारंभ करता है | सर्बप्रथम परम पुरुष प्रकृति के सत गुण स्पंदन से सायुज्य करके सगुण ब्रह्म का स्वरूप धारण करेगा | बाद में रज गुण और अंत में तम गुण सायुज्य स्थापित करेगा | यह भूमा मन की स्थिति होगी जो सगुण ब्रह्म की सूक्ष्म तम स्थिति होगी | इसके उपरांत तमो गुण का प्रभाव निरंतर बढ़ता जाता है और शेष दोनों गुण उत्तरोतर सुसुप्त होते जाते हैं | इस स्थूलीकरण की प्रक्रिया में सर्बप्रथम आकाश तत्व (ध्वनी स्पंदन ) वायु तत्व (स्पर्श स्पंदन ) ,अग्नि तत्व (दृश्य स्पंदन ) ,जल तत्व (घ्राण स्पंदन )तथा छिति तत्व (स्वाद स्पंदन )अतिरिक्त रूप मे स्थान पाते हैं | परम सिद्धांत ( परम पुरुष )पर परम कारक (प्रकृति )के परम स्थूलीकरणकी अंतिम स्थिति छिति तत्व की है |
         इस परम सूक्ष्म से स्थूल तक की यात्रा की अंतिम परिणति छिति तत्व है , जिस पर चारो ओर से वायु मंडलीय दबाव पड़ता है जो पृथ्वी के भीतर एक बिंदु पर प्रतिफलित होकर प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का निर्माण करता है जो पृथ्वी के ढांचागत स्थायित्व के लिए वायु मंडलीय दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव उत्पन्न करता है | तभी एक पदार्थ का ढांचागत स्थायित्व बना रहना संभव होता है |एक अन्य स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ पदार्थ के प्राण केंद्र का बहिर्मुखी दबाव वायु मंडल  के अंतर्मुखी दबाव से अधिक है | ऐसी स्थिति मे पदार्थ का संरचनात्मक अस्तित्व बनाये रखने के उद्देश्य से उक्त पदार्थ का एक अंश अलग होकर इतना दूर चला जाता है ,जहाँ उसके पहुचने से पदार्थ के संरचनात्मक संतुलन मे सामंजस्य स्थापित हो जाताहै | पदार्थ का उक्त अंश पदार्थ के प्राण केंद्र से ही आबद्ध होकर उसी पदार्थ के उपग्रह व ग्रह के रूप मे उसकी परिक्रमा करने लगता है | इस प्रक्रिया को जदास्फोत कहते  हैं और विखंडन की इसी प्रक्रिया से श्रृष्टि मे विकास और  गुणन प्रभाव देखने को मिलता है | एक से अनेक होने की यह प्रक्रिया ब्रह्माण्ड मे निरन्तर चलती रहती है | 
     अब एक ऐसी स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ वायु मंडलीय दबाव पदार्थ के प्राण केंद्र के बहिर्मुखी दबाव से काफी अधिक है | ऐसी स्थिति मे पदार्थ के संकुचन की प्रक्रिया मे अणुकर्षण व अणुसंघात की स्थिति उत्पन्न होगी | जिसके फलस्वरूप पहले छिति चूर्ण तत्पश्चात छिति तत्व मे अवस्थित पांच महाभूतो का सुप्त स्पंदन जागृत हो उठेगा और उपयुक्त संयोजन के फलस्वरूप जीव उत्पन्न होने की सम्भावना होगी | सर्बप्रथम प्रकृति के तम गुण से सायुज्य होगा | तत्पश्चात जड़ संघात के फलस्वरूप एककोशीय अमीबा बहुकोशीय होकर जैविक विकास का मार्ग प्रशस्त्र करेगा | जीव विकास की इस प्रक्रिया मे पहले वनस्पति फिर जलचर फिर पशु और सबसे बाद मे मनुष्य उत्पन्न होगा | यही जैविक विकास की प्रक्रिया और क्रम है |
      इस जड़ संघात की प्रक्रिया के पश्चात् मनस संघात की परिस्थितियां उत्पन्न होंगी | मनस संघात की इस प्रक्रिया मे सर्बप्रथम वनस्पति मन फिर पशु मन फिर मानव मन उत्पन्न होगा | कालांतर मे विकसित बुद्धि का मानव बोधि और आध्यात्म का आलंबन लेकर सापेक्षिकता के बंधन से मुक्त होकर ब्रह्म लींन हो जायेगा | यह पूर्ण स्थूल से परम सूक्ष्म (पुरुष) तक की आरोही यात्रा का क्रम है | 
    निर्गुण ब्रह्म की स्थिति ठहराव (pause) की स्थिति है | इस क्रिया विहीनता की स्थिति मे ही शक्ति संचयन होता है | इसके पश्चात् चरम बिंदु से चरम स्थूल छिति तत्व की अवरोही क्रम और छिति तत्व के स्थूलीकरण से ब्रह्मलीन होने की आरोही क्रम की यात्रा चलती रहती है | इसे ही श्रृष्टि चक्र या ब्रहास्पंदन समझ सकते हैं |                

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