Wednesday, July 21, 2010

बिवाह की प्रास्थिति तथा बैवाहिक सामंजस्य

प्रेम संसार की अमूल्य निधि है जो ईस्वरीय विधान के अनुसार एक ईश्वर का सबसे अनुपम उपहार है | कहते हैं की स्त्री पुरुष के जोड़े स्वर्ग मे बनते हैं और बिवाह द्वारा वे एक दूसरे से मिलते हैं | बिवाह की संस्था प्रेमी युगल को साधिकार प्रेम की अनुज्ञा प्रदान करता है और परिवार की संस्था मे पूर्ण व वास्तविक प्रवेश दिलाता है | मनुष्य का अस्तित्व स्पंदनयुक्त अर्थात तरंगवत है ,दूसरे शब्दों मे मनुष्य वस्तुतः मनो भौतिक आत्मिक तरंगो व स्पंदन का एक स्वरूप मात्र होता है | एक स्त्री व पुरुष के मनो भौतिक आत्मिक तरंगो के समानान्तरीकरण अर्थात पूर्णरूपेण विलय कराने वाली प्रक्रिया को बिवाह  कहते हैं | विश्व के समस्त देशों एवं समाजों मे बिवाह  की अवधारणा तथा प्रक्रिया अलग अलग है | प्रत्येक देश व समाज मे बिवाह एक संस्कार एवं उत्सव के रूप मे मनाया जाता है और यह सभी लोगो को अपनी खुशियों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी होता है |
      पहले माता पिता तथा परिवार लड़की के लिए लड़का ढूंढते  और फिर बिवाह संपन्न कराते थे | तब लड़की लड़के को शादी से पहले मिलकर एक दूसरे को समझने बूझने तथा पसंद नापसंद करने का कोई अवसर नहीं होता था | आज भी भारत मे अधिकांश शादियाँ इसी प्रकार तय और संपन्न होती हैं | पढ़े लिखे व प्रगतिशील समाज मे प्रेम विवाह अधिक होते हैं और ऐसे अधिकांश बिवाहों मे परिवार भी सामिल होता है | मुस्लिम  समाज मे बिवाह एक समझौता व अनुबंध होता है और बिवाह  के वक्त लड़के व लड़की की रजामंदी अवश्य पूंछी जाती है | 
     सही मायनो मे देखा जाय तो भारत सहित विश्व के प्रत्येक देश मे बिवाह की संस्था को सही तथा मजबूत बनाने का कोई प्रयास किया गया नहीं प्रतीत होता | तभी वैवाहिक सामंजस्य की कमी प्रायः दिखाई पड़ती है | होना यह चाहिए कि शादी के बाद लड़का व लड़की दोनों का अस्तित्व विलीन होकर एकाकार  हो जावे | इस प्रकार बिवाह का वास्तविक मतलब एक दूसरे मे विलय हो जाना ही है | यही सर्वथा वांछनीय भी है | तभी पूर्ण वैवाहिक व पारिवारिक सामंजस्य की स्थितियां बन सकेगी | जबकि वास्तविकता यह है कि विलय होने की स्थिति बन ही नहीं पाती और पति व पत्नी अपने अपने अहम् को सेते रहते हैं | जिससे बैवाहिक सामंजस्य का परिवेश बन ही नहीं पाता | इतना ही नहीं आज राजनीति का प्रदूषण इतना अधिक बढ़ गया है कि पति पत्नी के शयन कक्षों तक राजनीति ने अपना स्थान बना लिया है और दाम्पत्य जीवन मे कूटनीतिक हथियार का प्रयोग बहुत बढ़ गया है | यह काफी खतरनाक स्थिति को उजागर करता है और इसका समाधान ढूँढना आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि आजकल वैवाहिक असंतुलन एवं पारिवारिक बिघटन की स्थितियां चहु ओर दृष्टिगोचर हो रहीं हैं | यह परिवार ,समाज व देश सभी के लिए घातक है | परिवार व समाज मे अपवाद स्वरूप घटित घटनाओं को ही प्रमुखता देकर बनाये जा रहे टेलीविजन सीरियल भी वैवाहिक सम्बन्ध ,परिवार व समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहे हैं | सरकार द्वारा जनहित मे ऐसे टी बी सीरियल के प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगाने का काम किया जाना चाहिए | 
      यह प्रश्न दिमाग मे उठाना स्वाभाविक है कि क्या बैवाहिक सामंजस्य स्थापित करने तथा पारिवारिक व सामाजिक  बिघटन को रोकने की दिशा मे कुछ किया जा सकता है अथवा नहीं ? सौभाग्य बश इसका उत्तर सकारात्मक है | इस दिशा मे सर्बप्रथम बिवाह की संस्था को सही व उपयुक्त स्थिति मे स्थापित करनी पड़ेगी | जब बिवाह  दो मन दो शरीर व दो आत्मा के सायुज्य की स्थिति है तो विवाह की शैली भी तदनुसार होनी चाहिए | बिवाह से पहले लड़का लड़की द्वारा एक दूसरे को खूब समझ लेना चाहिए और शादी के बाद अपने अहम् को दरकिनार करके एक दूसरे का भरपूर ध्यान रखना चाहिए | इसे प्रोलांग कोर्टशिप मैरेज कह सकते हैं | इसमें लड़का लड़की साल छः महीना एक दूसरे से मिलते हुए एक दूसरे की भावना व बिचार को समझने बूझने का प्रयास करेगे और एक दूसरे की माता पिता से भी मिलते रहेंगे | इस दौरान एक दूसरे से जुड़ने के सम्बन्ध मे लड़का लड़की तथा उनके माता पिता सुविचारित व उचित फैसला ले सकेगे | इस प्रकार लिए गए  फैसले के फलस्वरूप शादी करके बाद मे पूरी जिन्दगी पछताने तथा घुट घुट कर जीने की स्थितियों से बचा जा सकता है |     


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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