Friday, October 8, 2010

समाज एवं सामाजिक प्रगति

            नैतिकता के प्रथम अभिप्रकाशन से समाज का जन्म होता है और यही समाज यात्रा का प्रारंभ बिंदु होता है | जंगल मे अकेले पूर्णतया स्वेच्छाचारी  जीवन व्यतीत कर रहे आदि मानव के मन मे जब पहले पहल  समूह हित मे निजी स्वार्थ को त्यागने का विचार उत्पन्न हुआ होगा  , वह समाज यात्रा का प्राम्भ विन्दु था और तभी समाज का जन्म भी हुआ था | वसुधैव कुटुम्बकम, जहाँ सारी संकीर्णताओं से रहित होकर मन का कोण ३६० डिग्री का बन जाता है , समाज यात्रा का चरम विन्दु होता है | यह सामाजिक पूर्णता का परिचायक और समाज का अंतिम लक्ष्य बिंदु भी होता है | 

              नैतिकता के प्रथम अभिप्रकाशन से प्रारंभ होकर वसुधैव कुटुम्बकम के चरम लक्ष्य की ओर गतिमानता ही सामाजिक प्रगति होती है | इस सार्बभौम लक्ष्य के बिपरीत गत्यात्मकता  को हम सामाजिक अवनति या समाज विरोधी भावधारा समझ सकते हैं | सामाजिक प्रगति मार्ग मे तरह तरह के प्रलोभनों और आकर्षणों के साथ अलग अलग खेमा जमाये बैठे हुए अनेक समूह लोगो को अपने खेमे मे लेने हेतु प्रयासरत रहते हैं | उनका कहना होता है कि वही ईश्वर के सबसे खास और प्रिय जन हैं और केवल वे ही ईश्वर के बताये रास्ते पर चलने वाले लोग हैं | उक्त समूह विशेष के कतिपय के विधि निषेध भी होते हैं , जिनका अनुपालन सदस्यों को अवश्यमेव करना पड़ेगा , जिसके एवज मे उन्हें कतिपय संरक्षण व लाभ की गारंटी भी दिया जाता है | इन विशिष्ट समूहों को हम मजहब के  नाम से जान सकते हैं | अब प्रश्न उठता है कि कहीं मजहब सामाजिक प्रगति मे बाधक तो नहीं होता  हैं ? इसका उत्तर निःसंदेह  नकारात्मक है | मजहब व्यक्ति को अनेकानेक अच्छाइयों का बहुमूल्य तोहफा तो देता है , पर इसके साथ ही उनकी सोंच को संकुचित भी  कर देता है , जिसके फलस्वरूप उनके मन का कोण ३६० डिग्री कभी नहीं बन पाता |  ऐसी दशा मे समाज बसुधैव कुटुम्बकम के अपने चरम लक्ष्य यानि पूर्णता  को कभी  नहीं प्राप्त कर सकेगा  | इस प्रकार मजहब निश्चित रूप से सामाजिक प्रगति का विरोधी है |
                व्यक्तियों का वह समूह , जो समाज को उसकी पूर्णता व लक्ष्य बिंदु की ओर ले जाने और समाज के प्रारंभ व पूर्णता के अन्तराल को कम करने हेतु सक्रिय व प्रयासरत होते हैं , समाज के नाम से जाने जावेगे |


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

गति और प्रगति

           हर गति प्रगति नहीं है | गति के बहुत अधिक या सर्वाधिक होने के बावजूद यह आवश्यक  नहीं कि यह प्रगति ही हो |  किसी गति की दिशा और दशा के आधार पर ही आकलन करके यह कहा जा सकता है कि अमुक गति प्रगति है अथवा नहीं ? लक्ष्य की ओर गतिमानता ही वस्तुतः प्रगति है | गति लक्ष्याभिमुखी अथवा लक्ष्याविमुखी  दोनों ही प्रकार की हो सकती है | सामान्य से दस या सौ गुना रफ़्तार वाला वाहन भी , यदि उसका रुख लक्ष्य की विपरीत दिशा मे है , तदनुरूप रफ़्तार मे लक्ष्य से दूर होता जायेगा |

             विश्व के पश्चिमी देशों की गति तो बहुत है , पर लक्ष्य विहीन अथवा लक्ष्य के बिपरीत रुख होने के कारण उतनी ही तेज रफ़्तार से वे जीवन के वास्तविक लक्ष्यों से दूर होते जा रहे हैं | जीवन का वास्तविक लक्ष्य है प्रफुल्लता , आनंद , नीद , संतोष और मानसिक शांति | जिसे पश्चिमी देशों के लोग खोते जा रहे हैं | प्रफुल्लता और आनंद की विचारधारा से ही वे सर्वथा अनभिग्य हैं और इनसे उनका नाता एकदम टुटा हुआ है , उनके जीवन मे मानसिक शांति तो बिलकुल है ही नहीं  और संतोष से उनका पूर्ण अपरिचय ही होता है | नीद की गोलियों के बिना वहां  किसी को नीद नहीं आती | उनके पास तो होती है बस मानसिक अशांति और फ्रस्ट्रेशन | ऐसी स्थिति मे पश्चिम की अति तीव्र गति को  हम प्रगति कदापि नहीं  कह सकते हैं ? तभी तो पश्चिम के लोग भारत के अध्यात्म , योग और भारतीय दर्शन की ओर झुक रहे हैं और भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु बनने का वातावरण बन गया है | परन्तु यहाँ एक बड़ा खतरा भी उत्पन्न हो गया है कि बाबा रामदेव सरीखे कतिपय अपवादों को छोड़कर भारत के बहुत सारे योग व अध्यात्म गुरु विदेशियों की इस भावना का भरपूर शोषण व दोहन भी कर रहे हैं और भारत की छवि धूमिल करने कर सकते हैं |
            इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र मे लक्ष्य का निर्धारण किया जाना अत्यावश्यक है तभी प्रत्येक क्षेत्र यथा शिक्षा , स्वास्थ्य , विकास , राजनीति , विज्ञानं आदि क्षेत्र  की गति को प्रगति अथवा अन्यथा समझने की स्थिति बन सकेगी और तदनुसार प्रत्येक क्षेत्र के क्रिया कलापों का सम्यक मूल्याकन करना भी संभव हो सकता है |  
             यह तो एक पक्ष है | केवल पश्चिमी देशों का जीवन दर्शन एवं जीवन शैली ही दोषपूर्ण है और भारत के लोग सही व दूध के धुले हैं | यह एक अर्धसत्य है | भारत के लोग भी उतने ही गलत हैं , जितने कि पश्चिमी देशों के लोग | भारत के लोग पश्चिम का अन्धानुकरण करके उनके जैसा बनते जा रहे हैं | पश्चिम के लोग जिन बातों को बहुत पहले छोड़ चुके हैं , भारत के लोग उन्हें ही अपनाने मे गर्ब महसूस करते हैं | उनकी भाषा , रहन सहन व संस्कृति को अपनाने मे हम बहुत आतुर रहते हैं और अपनी अच्छाइयों , जिन्हें आज विदेशी लोग अपनाना चाह रहे हैं , हम उन्ही अच्छाइयों को भूलते और छोड़ते चले जा रहे हैं | अब हमारी स्थिति भी पाश्चात्य लोगों की तरह होती जा रही है और अब हमें भी नीद के लिए नीद की गोलियों की ज़रूरत पड़ने लगी है और उन्ही की तरह अनिद्रा , मानसिक अशांति तथा फ्रस्ट्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं |   


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

भारत की सुरक्षा और अस्मिता से जुडी विशिष्ट पहचान संख्या योजना


          भारत के नागरिको की अस्मिता एवं पहचान की समस्या निरंतर बनी रहती थी , जिसका खामियाजा नागरिको को समय - समय पर भुगतना पड़ता रहा है | संविधान मे प्रदत्त मौलिक अधिकारों के बावजूद इस पहचान के संकट के चलते भारत का नागरिक अपने को पूर्णतया स्वतन्त्र महसूस व साबित करने मे अपने को सक्षम नहीं पाता था | व्यक्ति प्रायः एकाध बार पुलिस के हत्थे अवश्य  चढ़ चुका होता है और उसे बेतुके सवालों का सामना करना पड़ चुका होता है अथवा पड़ सकता है | यां सवालात हैं कि  तुम कौन हो , कहाँ से आ रहे हो , क्या नाम है , तुम अवश्य कोई चोर हो , तुम्हारे अन्य चोर साथी कहाँ हैं ? ऐसी स्थितियों मे हम अपने को बड़ी असहाय स्थिति मे पाते हैं और पुलिस को पूर्णतया संतुष्ट करने मे समर्थ नहीं महसूस करते | इस पहचान के संकट के कारण हम कभी कभी अपने देश मे ही बेगानापान महसूस करने हेतु बाध्य होते  हैं | 
              भारत सरकार नागरिकों को पहचान पत्र प्रदान करने की दिशा मे काफी समय से चितित रही है और अंततः वह समय आ ही गया , जब देश  के प्रत्येक नागरिक को विशिष्ट पहचान पत्र देने का निर्णय लेकर नागरिकता को सम्मान प्रदान किया जा रहा है | प्रधान मंत्री एवं यु पी ए अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने महाराष्ट्र के नान्दुवर जिले के तेंभली गाँव , जिसकी ९७% जनसँख्या आदिबासी है , मे २९ सितम्बर  को विशिष्ट संख्या वाले पहचान पत्र योजना का शुभारम्भ करते हुए उदघाटन कर चुके हैं | सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है और आजादी के ६३ साल बाद ही सही , इस सबसे जरुरी काम को अंजाम दिया जा रहा है | अब किसी भारतीय को रोककर कोई पुलिस कर्मी कोई ऊल जलूल सवाल नहीं पूछ  सकेगा और अब कोई अपने को असहाय स्थिति मे नहीं महसूस करेगा |
            विशिष्ट संख्या वाले पहचानपत्र मिलने के बाद अब किसी को बैंक व अदालतों मे अपनी  पहचान के लिए वकीलं तथा गवाहों  की जरुरत नहीं होगी | अब प्रत्येक भारतीय संविधान मे प्रदत्त मौलिक अधिकारों का सम्यक एवं पूर्ण उपयोग कर सकेगा तथा सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने से अब कोई बंचित नहीं होगा | यह पूरे विश्व की सबसे अभिनव एवं महत्वाकांक्षी योजना है | अतयव प्रत्येक भारतवासी को चाहिए कि वह इस यूनिक आइ यु डी अर्थात विशिष्ट संख्या वाले पहचान पत्र प्राप्त करने हेतु जागरूक रहकर स्वयं भी प्रयासरत हो जाये | सरकार को भी इस अत्यधिक उपयोगी परियोजना को युद्ध स्तर पर शीघ्रता से पूर्ण कराना चाहिए | 
              इस परियोजना मे बायोमीट्रिक डाटा इस्तेमाल किया जावेगा | इस बायोमीट्रिक डाटा मे अँगुलियों के निशान तथा आँख की पुतली का स्कैन किया जायेगा | अपराध नियंत्रण , आतंकबाद तथा देश की सुरक्षा की दिशा मे इससे बहुत मदद मिल सकेगी | इस प्रकार संचार क्रांति तथा आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हुए यह विश्व की सबसे बड़ी और अभिनव परियोजना बन गयी है |  
           १२ अंको वाला यह पहचान पत्र पूरे देश एवं पूरी दुनिया में व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करेगा और बिना कुछ बोले बताये इससे जाना जा सकेगा कि अमुक व्यक्ति भारतीय है और भारत के अमुक प्रान्त , अमुक जनपद , अमुक थाना , अमुक गाँव का अमुक नामधारी व्यक्ति है | इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है कि एक भारतीय विदेश के किसी दूरस्थ स्थान पर यदि वेहोश हो जाता है , तो इस पहचान पत्र से ही यह पता चल जायेगा कि अमुक बेहोश व्यक्ति भारतीय है और भारत के अमुक प्रान्त , अमुक जनपद , अमुक थाने  के अमुक गाँव का अमुक नामधारी व्यक्ति है | इससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि यह परियोजना  व्यक्ति तथा देश के लिए कितना उपयोगी है |r अब कोई विदेशी आतंकवादी द्वारा मुंबई मे ताज होटल जैसी घटना को अंजाम देने की बात दूर है , देश मे घुसकर अपनी पहचान बिलकुल ही नहीं छुपा पावेगा | 


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

वृद्ध भ्रान्ति : अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस पर विशेष

       प्रत्येक वर्ष १ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस का आयोजन किया जाता है | इस अवसर पर अपने वरिष्ट नागरिको का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध मे चिंतन करना आवश्यक होता है | मेरी समझ मे एक दिन के सम्मान से अधिक वरिष्ट नागरिकों के बारे मे चिंतन करना अपेक्षाकृत उपयोगी होता प्रतीत होता है | आज का वरिष्ट समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यतया इस बात से सर्बाधिक दुखी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है | इस प्रकार अपने को समाज मे एक तरह से  निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज सर्बाधिक दुखी रहता है | वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है | मेरा उद्देश्य इसी दिशा मे प्रयास करना है | 

                      बृद्ध समाज सामान्यतया एक बीमारी का शिकार है , जिसका इलाज करना आवश्यक है | इस बीमारी का नाम है वृद्ध भांति | प्रत्येक वृद्ध के मन मे यह विचार बैठा हुआ होता है कि उसके बाल धूप मे नहीं सफ़ेद हुए हैं अर्थात अपने सुदीर्घ जीवन मे उन्होंने बहुत सारा अनुभव अर्जित एवं संग्रहीत कर रखा हैं , जो बहुत मूल्यवान एवं उपयोगी है और जिसे वह अपने परिवार तथा समाज को निःशुल्क देना चाहता है | पर वह तब बहुत निराश व दुखी महसूस करता है , जब उसे पता चलता है कि कोई यहाँ तक कि परिवार वाले भी उनके इस अनुभव का कोई लाभ नहीं उठाना चाहता , जबकि अनुभव का यह विशाल आगार घर मे ही संग्रहीत और सहज ही सुलभ होता है  | यही प्रत्येक वृद्ध के मन की पीड़ा होती है और इसी पीड़ा से वह आजीवन कुंठाग्रस्त रहता है |
                      इस परिप्रेक्ष्य मे हमें इस प्राकृतिक एवं नैसर्गिक तथ्य का समुचित संज्ञान लेना आवश्यक प्रतीत होता है कि त्रिगुणात्मिका शक्ति की अवधारणा प्रकृति का सबसे बड़ा सिद्धांत है और तदनुसार गुण श्रेष्टता भी स्वतः प्रमाणित  है | सत्वगुण श्रेष्टतम , रजोगुण श्रेष्ट्रतर तथा तमोगुण श्रेष्ट होता है | भोजन भी तदनुसार तीन श्रेणियों मे विभक्त किया जा सकता है और भोजन के अनुसार ही गुण विकसित होता है | दूध सात्विक भोजन होता है और दूध का सेवन करने वाला बच्चा सत्वगुण संपन्न यानि श्रेष्टतम होता है | थोड़ा बड़ा होकर वही बच्चा अनाज का राजसिक भोजन करने लगता है और तदनुसार रजोगुण संपन्न यानि क्रियाशील हो जाता है | जवानी तक यही क्रम चलता रहता है , यानि सत्वगुण घटता और रजोगुण बढ़ता जाता है | प्रौढ़ावस्था के बाद तमोगुण यानि निष्क्रियता की स्थितियां प्रारंभ हो जाती है | इस दौरान सत्वगुण तो समाप्तप्राय हो जाता है , रजोगुण उत्तरोतर कम होता जाता है और तमोगुण का वर्चश्व बढ़ता जाता है | बालक , युवा तथा वृद्ध की तदनुसार स्थितियां होती है , जिसे लोग समझ नहीं पाते |  इस नैसर्गिक तथ्य से हमें वृद्ध भ्रान्ति को समझने मे सहूलियत होगी |   
            जीवन मे और वरिष्ट नगरको की दृष्टि मे विशेषकर अनुशासन का बहुत महत्व होता है | वरिष्ट के आदेशों व निर्देशों का स्वयमेव कनिष्ट द्वारा पालन करना ही अनुशासन होता है | वरिष्टता क्रम उपरोक्तानुसार नैसर्गिक नियम के अनुसार स्वतः निर्धारित हो चुका है कि बच्चा वरिष्तम , युवा श्रेष्ट्तर तथा वृद्ध श्रेष्ट होते हैं | इस प्रकार निम्न श्रेणी (बृद्ध ) द्वारा उच्च श्रेणी के युवा व बच्चों की भावनाओं व अपेक्षाओं को दृष्टिगत रखते हुए उनके निर्देशों का अनुपालन किया जाना चाहिए , ताकि अनुशासन का वातावरण बन सके और नैसर्गिक नियमो का  पालन भी हो सके | अन्यथा अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न होगी , जिसका सम्पूर्ण उत्तरदायित्व बृद्ध समाज पर ही होगा | इस प्रकार वृद्धों को युवा तथा बच्चों की भावनाओं तथा अपेक्षाओं को भली भांति समझकर तदनुसार कार्यविधि अपनाना चाहिए | तदनुसार दायित्व बोध से अधिक उन्हें कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए | तभी अपने को सबसे श्रेष्ट समझने की बृद्ध समाज के त्रुटिपूर्ण चिंतन मे सुधार आ सकेगा और तभी बृद्ध भ्रान्ति समाप्त हो सकेगी | मात्र  इससे ही उनकी कुंठा तथा संत्रास का निवारण और अनपेक्षित मनस - विकार भी दूर हो सकेगा |                       
--          इसके साथ साथ अपने अर्जित और संग्रहीत वेशकीमती अनुभवों को कूड़ेदान मे फेकने के बजाय उन्हें उपयोग मे लाने की दिशा मे चिंतन करते हुए क्रियाशील हो जाना चाहिए | बृद्ध समाज अपने आप मे इस दिशा मे अपनी सक्षमता को पहचानना चाहिए और इस नए परिवार को शक्तिसंपन्न करने की दिशा मे सक्रिय हो जाना चाहिए | वृद्ध समाज  इसे ही अपने वर्तमान का संकल्प बना लेना चाहिए , तभी यह अति मूल्यवान तबका समाज मे अपना वर्चश्व व उपादेयता पुनः स्थापित कर पायेगा |  


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