Saturday, January 8, 2011

बचत की आदत:विकास का मूलमंत्र

    संकटकालीन समय तथा भविष्य की आकस्मिक  ज़रूरतों  के लिए बचत करना एक अत्यधिक स्वाभाविक मानव स्वभाव है  और यह विकास एवं कल्याण के लिए बहुत आवश्यक भी  है  | मनुष्यों की बात तो दूर  यहाँ तक कि जानवरों  मे भी संकट काल  के लिए बचत करने की प्रवृति व व्यवहार देखने को मिल जाता  है | गिलहरी, चींटी, ऊंट और हाथी आदि लगभग अधिकांश  जानवरों मे  भविष्य की संकट कालीन स्थिति के लिए संग्रह करने की प्रवृति पाई जाती है | जबकि जानवर वर्तमान मे ही जीते हैं और उनमे भविष्य के लिए चिता करने का भाव व  स्वभाव नहीं होता है | इसे ही हम बचत की सार्वभौम आदत की संज्ञा दे सकते हैं | मनुष्यों मे तो  बचत की आदत एक  अपरिहार्यता  है | अतयव वे मनुष्य,  जिनमे बचत की आदत नहीं होती, जानवरों से भी गए गुजरे माने जावेगें |            
             इस बचत की आदत के  न होने के कारण प्रायः छोटी व सामान्य सी समस्याएं  पहाड़ जैसी दुर्गम एवं कठिन लगने लगती हैं | एक उदाहरण लेकर मैं इसे स्पष्ट करना चाहूँगा | लडकियाँ सामान्यतया इस कारण भार- स्वरूप प्रतीत होती हैं कि उनकी शादी आदि प्रयोजनों  मे काफी खर्चा करना होता है | बचत की यही आदत  लोगों को इस गंभीर  चिंता से मुक्त करा सकती  हैं | लड़की के माता पिता लड़की के जन्म के समय  ही  अपने आर्थिक- सामाजिक स्तर के अनुसार कुछ  हजार अथवा  कुछ  लाख रुपया २० साल के लिए लड़की के नाम सावधि जमा करा देते हैं, तो शादी के समय  अपेक्षित धन की व्यवस्था स्वतः  हो जावेगी | ऐसी स्थिति मे लडकियों को भार स्वरूप समझने की स्थिति नहीं रह जाएगी | इतना ही नहीं , लडको की ही तरह यदि लड़कियों को भी पढ़ा लिखा कर आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बना दिया जाता है तो लड़की भी लड़कों की तरह कमाने योग्य अर्थात asset बन जावेंगी | इससे लड़कों को asset तथा लड़कियों को liability समझ कर दहेज़ लेने व देने की कुरीति को समूल समाप्त करना भी  संभव हो सकता है , क्योंकि दहेज़ का मूल कारण आर्थिक ही है |.   
             अब बचत की इस आदत को न अपनाने के दुष्परिणाम की तरफ यदि हम दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि गरीबों उन्मूलन सहित तमाम ऋण योजनाओं मे किस्त देने हेतु अपेक्षित बचत करना अपरिहार्य  होता है , तभी ऋणी व्यक्ति बैंकों व तहसील का बकायेदार बनकर उत्पीडित होने  तथा वारंट गिरफ़्तारी आदि खतरनाक व घातक हथियारों के आघात से बचा रह सकता है | सरकारी मशीनरी तथा बैंक अपने कर्जों की वापसी हेतु किस्त भुगतान हेतु अपेक्षित धनराशि एकत्रित रखने के आशय से बचत करने की आदत डलवाने का प्रयास नहीं करते जो उनके तथा उनकी संस्था के लिए भी लाभदायक होता है | पर यह लोग कर्जदारों के पास तभी पहुंचते हैं, जब उनके शस्त्रागार मे वारंट- कुर्की- गिरफ़्तारी जैसे मारक व कारगर  हथियार आ जाते हैं | उनका यह व्यवहार मनुष्य का मनुष्य के साथ अपनाने जाने योग्य न होकर जात- शत्रुओं के साथ अपनाने वाले व्यवहार जैसा ही होता है |     
        कुछ लोग तो लोगों द्वारा बचत की आदत डालने के ही पक्षधर नहीं होते | ऐसे चार्वाक दर्शन के मानने वालों का मानना है कि " यावत जीवेत सुखं जीवेत , ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत  |                   भस्मीभूतस्य  देहस्य पुनरागमनं  कुतः | " ऐसी सोंच वाले लोग मनुष्य जाति और मनुष्यता के खतरनाक  शत्रु हैं और इससे मानव का विकास व कल्याण मे सर्वाधिक बाधा पहुंचती है |   
        इसीलिए मानव कल्याण व विकास के हित मे बचपन से ही बचत की आदत डलवाना परिवार, सरकार, समाज तथा शिक्षण संस्थाओं के दायित्व में सामिल होना चाहिए | इसके अलावा बचत की आदत को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक स्तर पर हर प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | बैंकों द्वारा ऋण देने के साथ ही ऋण वापसी हेतु कमसे कम किस्त की धनराशि के बराबर बचत सुनिश्चित कराने का दायित्व भी बहन करना चाहिए और ऋण वापसी न सुनिश्चित हो पाने  की दशा में आधी जिम्मेदारी बैंकों को बहन करना चाहिए |      
          कुछ लोगों का मानना है कि केवल खूब खाते- पीते लोगों द्वारा ही बचत की आदत डालना संभव है जो सही नहीं है | जबकि सही बस्तुस्थिति यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, यहाँ तक कि भिखारी भी बचत कर सकता है और ५० - १०० रूपये का रिकरिंग डिपाजिट का खाता खोलवा कर इस खाते को निरन्तर चला सकता है | इसके लिए सबसे जरुरी चीज है इच्छा शक्ति की, जो हर एक मनुष्य के पास हो सकती है और इसके लिए व्यक्ति का आत्म विश्वास ही अपेक्षित होता है | तभी तो कई भिखारियों के मरने के बाद यह प्रायः देखने मे आता रहता है कि वे अकूत सम्पतियों व बड़े कारोबार के मालिक रहे हैं |     
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा