Tuesday, December 21, 2010

शाश्वत वाणी उपवन : एक साहित्यिक उद्यान


इतिहास की विरासत को सजोना और इसे संरक्षित करना जहाँ एक ओर मानव स्वभाव है, वहीँ ऐसा करना समाज और  सरकार का परम दायित्व  भी  है | इतिहास की ही तरह  साहित्य की विरासत को सहेजना भी आती आवश्यक  होता है |  कमसे कम सौ या दो सौ सालों तक सामान्य जन मानस के जीवन मे अभिव्याप्त हो जाने वाला साहित्य  शाश्वत वाणी बन जाता  है | तब वे आप्त वचन, सूक्ति व प्रमाण बनकर जन जीवन का हिस्सा बन जाते हैं |
                       इस शाश्वत वाणी से वैश्विक जनमानस को जोड़ना और उनका अधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित करना एक सामाजिक दायित्व भी होता है | इसी सामाजिक दायित्व का सम्यक निर्वहन किये जाने के उद्देश्य से किसी बड़े पार्क मे एक शाश्वत वाणी उपवन निर्मित किये जाने की योजना को आकार  देने का सम्यक  विचार समाज व सरकारों के समक्ष रखना चाहता हूँ | वेद व्यास, वाल्मीकि , कबीर,  गोस्वामी  तुलसीदास  , सूरदास , मीरा,  नानक , दादू , रैदास , रहीम , रसखान , बिहारी भूषण, अमीर खुसरो , भारतेंदु ,  निराला , जय शंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा,  सुमित्रा नंदन पन्त, मैथिली शरण गुप्त , दिनकर , सोहनलाल द्विवेदी , ग़ालिब , मेरे , आग , इक़बाल ,  घाघ, आदि ३०- ४० कविगण को इस योजना का अंग बनाया जा सकता है |              
                       शाश्वत वाणी उपवन की इस योजना मे एक बड़े पार्क को शाश्वत वाणी उपवन नाम से साहित्यिक उद्यान के रूप मे विकसित किया जावेगा | यह उपवन उतने खण्डों (काम्प्लेक्स) मे विभक्त होगा, जितने साहित्यकारों को इस इस योजना में संम्मिलित किये जाने की योजना बनायीं जाती है | प्रत्येक साहित्यकार का अपना अलग व स्वतन्त्र काम्प्लेक्स होगा , जिसके बीचोबीच उस साहित्यकार की भव्य प्रतिमा होगी और प्रतिमा के नीचे तथा बगल मे साहित्यकार के परिचय सहित उनकी शाश्वत वाणी आकर्षक रूप मे प्रदर्शित की जावेगी | उक्त खण्ड के एक ओर उनके वास्तविक जीवन शैली से मिलता जुलता एक कुञ्ज बनाया जायेगा , जिसमे बैठने की उचित व्यवस्था सहित उक्त साहित्यकार के गीतों के कैसेट निरन्तर बजते रहेंगे | वहाँ बैठने वालों को उक्त साहित्यकार के सानिध्य का अहसास हो, ऐसी व्यवस्था होगी | यह उपवन इतना आकर्षक व उपयोगिता परक होगा कि इस उपवन मे जाने वाला व्यक्ति समस्त काम्प्लेक्स मे होता हुआ कमसे कम तीन घंटे वहा बंधकर रहे और बाहर साहित्यिक बनकर ही निकले |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

बुंदेलखंड मे खाद- बीज की किल्लत


 इसे बुंदेलखंड के किसानो का दुर्भाग्य ही कहा जावेगा कि वर्षा पर पूर्णतया आश्रित खेती वाले बुंदेलखंड क्षेत्र का किसान वर्षा ऋतु  मे अपने खेतो मे इस कारण खरीफ की फसलें नहीं लेता , क्योंकि यहाँ प्रचलित अन्ना प्रथा यानि छुट्टा पशुओं की समस्या के कारण बहुत कम लोग खरीफ की फसल बोते हैं और सामान्यतया खेत खाली रखते हैं  | ऐसी स्थिति मे बुंदेलखंड का किसान मुख्यतया रबी की फसल पर ही निर्भर रहता है और वह खरीफ की कमी की भरपायी रबी की फसल से ही कर लेने को आतुर रहता है | इस प्रकार रबी की फसल बुंदेलखंड के किसानो के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है |
              इसलिए रबी बुंदेलखंड की मुख्य फसल होतो है , अतयव रबी में खाद- बीज आदि कृषि निवेशो की उपलब्धता सर्बाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके लिए किसान सरकार व कृषि एजेंसियों पर पूर्णतया निर्भर रहता है | पर सरकार तथा कृषि संस्थाओं की सोची समझी चल व कुचक्र के कारण बुंदेलखंड में खाद - बीज आदि कृषि निवेशों की निरंतर किल्लत बनी रहती है और यह स्थिति बुंदेलखंड के किसान की कमर तोड़ देती है और रबी उत्पादन , जो बुंदेलखंड के किसानो का एकमात्र सहारा होता है , प्रतिकूल ढंग से प्रभावित होता है | यह प्रत्येक वर्ष का रोना है और इसे  दोहराने की परंपरा सी बन गयी है | 
        खाद- बीज- सिचाई- कीटनाशको का प्रबंधन ही खेती है और इन सबके लिए उसे सरकार तथा कृषि सस्थाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है | वैसे खेती मे समयबद्धता का बहुत बड़ा महत्व होता है, परन्तु रबी फसल के सन्दर्भ मे यह समयबद्धता अपेक्षाकृत सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होती  है और इस दृष्टि से  तनिक भी लापरवाही व बिलम्ब बड़ा घातक सिद्ध होता है और सम्पूर्ण रबी की  व्यवस्था को ही छिन्न भिन्न कर देता है | सरकारी तंत्र एवं एग्रो एजेंसियां इस समयबद्धता के प्रति बिलकुल लापरवाह होती हैं और प्रायः ऐन मौके पर और कभी कभी जानबूझ कर लापरवाही व  उदासीनता बरतने की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं | इसी कारण समय पर निवेशों कीअपरिहार्य उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती और रबी के पूरे कृषि प्रबंध को ही चौपट कर देता है | ऐसा करना रबी के लिए घातक तो होता ही है और कभी कभी किसान की कमर ही तोड़ देता है |    
 
अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा