Tuesday, April 6, 2010

शिक्षा का अधिकार कैसे बने वरदान

1 अप्रैल, 2010 भारतीय इतिहास का स्वर्णाक्षरों से लिखा जाने वाला दिन बन गया है, क्योंकि इस तिथि से बहुप्रतीक्षित एवं अतिउपयोगी शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार लोगों को प्राप्त हो गया है |  प्रधानमन्त्री डा० मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्र को किए गए उद्बोधन से इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है | अब 06-14  आयु वर्ग के बच्चों को शिक्षित होने का स्वर्णिम अवसर मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त हो गया है | इस प्रावधान के लागू होने से स्कूल न जाने वाले बच्चे तो स्कूल जायेंगे ही, बीच में विद्यालय छोड़ देने वाले बच्चे भी पुन: शैक्षणिक धारा में आ सकेंगे, बहुत सारे नए विद्यालय खुलेंगे, शिक्षकों की तैनाती होगी, शैक्षणिक तैयारियां सहित भवन/कक्ष बनेंगे | यह स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा कार्य था, जो आजादी के 62 वर्ष बाद अब संपन्न हो रहा है |

नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने मात्र से यह बृहद कार्य संपन्न नही हो सकेगा | इसे अमल में लाने हेतु समुचित वित्तीय प्रावधान हो जाने मात्र से भी यह बृहद उद्देश्य स्वत: नहीं प्राप्त हो जाएगा | इस बृहद उद्येश्य की सम्पूर्ति हेतु राजनैतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी और केंद्र एवं राज्य सरकारों का ताल मेल एवं परस्पर सहयोग भी आवश्यक होगा | सबसे बड़ा कार्य बच्चों एवं अभिभावकों को एतदर्थ मनसा-बाचा-कर्मणा तैयार करना भी होगा |
गोमती नगर, लखनऊ में एक मोची की दुकान संभाल रहे 12 वर्षीय लड़के से पूछने पर पता चला की वह कभी विद्यालय नही गया और न ही किसी ने उसे पढना लिखना ही सिखाया इसके बावजूद यह अपना तथा परिवार के सदस्यों का नाम लिख लेता है और थोड़ा पढ़ लिख भी लेता है | उसी दुकान पर बैठा उसका 10 वर्षीय दोस्त, जो कक्षा 4 तक पढ़कर स्कूल छोड़ चुका है, उससे कम लिखना और पढ़ना जानता है संभव है कि स्कूल छोड़ने के बाद वह पढ़ना और लिखना भूल गया हो | बुंदेलखंड में सरबोझ कार्य में लगे हुए तथा नट- कंजड जैसे तमाम खानाबदोश जनसमुदाय के बारे में भी सोचना होगा | ऐसे बच्चो को शैक्षिक धारा में कैसे लाया जाए , यह एक जटिल प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबको ढूँढना होगा |

वर्ष 1999-2000 में जिलाधिकारी चित्रकूट द्वारा शिक्षा-साक्षरता से अपने अत्यधिक लगाव के चलते उन्होंने शासकीय व्यवस्था एवं नियमों की अनदेखी करके यह फरमान तक जारी कर दिया था कि एक माह में सभी जनपद वासी हस्ताक्षर करना सीख लें, अन्यथा एक माह बाद सरकारी कार्यालय कोई  अंगूठायुक्त  प्रार्थनापत्र स्वीकार नही करेंगे |
उन्होंने कक्षा-3 से ऊपर के समस्त विद्यार्थियों को अपने परिवारजनों तथा घर में काम करने वालों को हस्ताक्षर करना सिखाने हेतु लगा दिया और उनमें से सबसे जल्दी एवं सबसे अच्छा काम करने वाले विद्यार्थी को ग्राम, न्यायपंचायत, ब्लाक, तहसील एवं जिला स्तर पर पुरस्कृत करने का आश्वासन भी दे दिया गया था |
इससे उत्साहित होकर लाखों विद्यार्थी अपने माँ बाप को हस्ताक्षर सिखाने में लग गये | ऐसा करते समय यह सोच भी साथ थी कि उन्हें जिलाधिकारी से पुरस्कार प्राप्त करने हेतु सबसे पहले अपना काम पूरा करना है | ऐसा भी देखने में आया था कि कतिपय माँ बाप को दैनिक व अन्य क्रियायों को रोककर बच्चो की जिद के चलते लिखना सीखना पड़ा | उस समय अदालत में, वकालतनामा, दावा तथा जबाब दावा पर अंगूठा लगा सकता था, पर बयान व बयानहल्फी पर हस्ताक्षर होना अनिवार्य था | सारे वकील तथा पीठासीन अधिकारी इस पुनीत कार्य में लग गये थे |
बैंक कर्मी अंगूठा से पैसा जमा करा सकते थे, पर हस्ताक्षर से ही पैसा निकाल सकते थे | इस प्रकार बैंकों से 2 माह में ही अंगूठा का नामोनिशान मिट गया | चित्रकूट क्षेत्र में उस दौरान साक्षरता अभियान का अजब जुनून जन-जन में व्याप्त था | यहाँ तक दोनों हाथ नहीं होने वाली बरगढ़ गाँव की एक महिला ने दोनों कोहनी से कलम पकड़कर लिखना सीखकर जिलाधिकारी को पत्र भी भेजा | एक अन्य व्यक्ति ने अपने शरीर में बची एक मात्र पैर की दो उँगलियों के बीच कलम फंसाकर लिखना सीखा |

साक्षरता से सशक्तिकरण भी हुआ | मानिकपुर क्षेत्र के हरिजनपुर गाँव की एक महिला रामलली साक्षरता की राह पकड़कर इतनी सशक्त हुई और मानवीय गुणों से ओत-प्रोत हो गई कि सतना के एक बैंक मेनेजर के लड़के, जो ददुआ द्वारा अपहृत होकर उसकी गिरफ्त में था, को पनाह दे बैठी | फिर क्या होना था, ददुआ ने दल सहित रात में उसके घर धावा बोला वह बिल्कुल नहीं डरीं, उल्टे डाकुओं को भागना पड़ा और उसने एक डाकू की बन्दूक भी छीन ली थी | इस महिला को जिलाधिकारी ने बन्दूक दे कर पुरस्कृत किया और प्रदेश सरकार को अपनी संस्तुति भेजकर रामलली को उत्तर प्रदेश स्तरीय महिला सशक्तिकरण अवार्ड दिलवाया |

चित्रकूट जनपद के समस्त अधिकारी, कर्मचारी, स्वयंसेवी संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं, बार एसोसिएसन, बैंक, युवक समुदाय, पत्रकार सहित लगभग 90% जनसँख्या साक्षरता कार्य मे लग गयीं थी और सबमे एक ही जुनून था कि उन्हें अपना शत प्रतिशत योगदान देना है | इस सबका परिणाम यह हुआ कि छः माह के सघन कार्य के परिणाम स्वरूप चित्रकूट जनपद की 32% की आधार साक्षरता दर में 34%की बढोतरी हो गई | इस प्रकार जनपद की साक्षरता दर 66% ( भारत की साक्षरता दर 65%) हो गयी जो की रास्ट्रीय औसत से ज्यादा थी | इतना ही नही महिला साक्षरता 4 गुनी अर्थात 13% से बढ़कर 51% हो गयी |

उपरोक्त घटनाक्रम इसलिए बता रहा हूँ कि इससे कम जुनूनी वातावरण, दृढ़ता तथा इच्छाशक्ति के बगैर शिक्षा के मौलिक अधिकार का लक्ष्य हासिल करना संभव नही हो सकता है | अन्यथा स्थिति में शिक्षा के इस मौलिक अधिकार सम्बन्धी इस अधिनियम की परिणति अन्य अधिनियमों की तरह ही हो जाएगी |

शिक्षा विकास का प्रथम सोपान होता है, अतयव इस बड़े उद्येश्य की प्राप्ति के लिए प्राथमिक विद्यालयों को छोड़कर देश के सारे स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षण संस्थाओं सहित समस्त प्रतिष्ठान /कार्यालय एक वर्ष के लिए बंद कर देने चाहिए और सभी को इस पुनीत कार्य में लगा दिया जाये | उन्हें उनके योगदान के अनुसार ग्रेडिंग करके अगली कक्षाएं भी दी जा सकती हैं |

केंद्र सरकार द्वारा नोडल एजेंसी के रूप में द्रढ़ता का परिचय देना चाहिए और जहां भी शिथिलता व लापरवाही दिखे, शिक्षा के इस मौलिक कार्य के हित में कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए बिना इतनी द्रढ़ता के यह पुनीत कार्य पूरा नहीं हो सकता |

उत्तर प्रदेश में तो इस समय पूरे प्रदेश का ध्यान उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता पार्को- मूर्तियो के निर्माण, जन्म दिन पर चंदा उगाही एवं रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने में लगा हुआ है, ऐसी दशा में क्या उत्तर प्रदेश में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाये जाने की प्राथमिकता मिलेगी, इसमें संदेह लगता है क्यूंकि अभी तक इस अति जनहितकारी प्रावधान का प्रदेश स्तर पर कोई स्वागत किया जाना प्रतीत नहीं होता | प्रदेश सरकार इसे लागू करने हेतु केंद्र से 100% धन मांग रही है क्यूंकि शिक्षा के मौलिक अधिकार का कानून केंद्र सरकार के द्वारा पारित किया गया है, अतेव इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है | उत्तर प्रदेश सरकर के वित्तीय संसाधन उसकी अपनी उपरोक्त प्राथमिकता के लिए है, पर सर्व जन हित कारी इस शिक्षा के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए कोई वित्तीय संसाधन नहीं है | यहाँ उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में मार्च मे समाप्त हुए वित्तीय वर्ष मे 12,000 करोड़ रुपये की धनराशि समर्पित कि गयी जो कदाचित सरकारी मशीनरी के सरकार की उपरोक्तानुसार प्राथमिकता में लगे होने के कारण होना प्रतीत होता है | क्या उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा के मौलिक अधिकार को अपनी प्राथमिकता बनायेगी और यदि नहीं तो क्या केंद्र सरकार इसकी मूक दर्शक बनी रहेगी ? क्या ऐसे मे प्रदेश की जनता अपनी आँखे बंद कर लेगी ?  शिक्षित और जागरूक व्यक्ति अपनी आवाज़ से सर्व शिक्षा अभियान को गति और दिशा देकर शिक्षा के मौलिक अधिकार को विधि पुस्तकों से यथार्थ के धरातल पर उतार कर बुंदेलखंड ही नहीं वरन प्रदेश का रूपांतरण कर सकते है |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

4 comments:

  1. bahut achha sir......apne to hame ummidon se bhar diya....ye ek bar fir sabit kar dia ki junun ho to koi bhi yojana safal ho sakti hai....dhanwad...

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  2. Great Sir...Agar sab IAS aap jaise ho jaye aur janata aap jaise thinkers, planners, executors ka anusaran kare to wo din door nahi ki humara Bharat developed contries ki list me sabse upper hoga, chitrakoot me aapke yogdan aur apke vichar youths ko kuchh apne desh ke liye karane ke liye insipire karane wale hai, Aur aap prove kar chuke hai ki agar youth ko direction mile to results aate hai, aapki yojna badh leadership aaj bundelkhand ke niwasiyo ko sakht jaroorat hai.

    S K DIXIT

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  3. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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