Tuesday, July 20, 2010

सम्यक काल बोध

देश काल पात्र गत सापेक्षिकता ही वास्तव मे सापेक्षिकता का सिद्धांत है | देश काल पात्र गत सापेक्षिक पृष्ठभूमि मे काल का महत्व सर्बाधिक है | देश और पात्र इतने गतिमान व परिवर्तनशील नहीं हैं जितना कि काल | काल निरंतरता मे अबाध गति से बहता जा रहा है | परन्तु देश और पात्र सामान्यतया इस गति से सामंजस्य नहीं रख पाते हैं और इसी अन्तराल जन्य समस्या के कारण काल तत्व सर्बाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हो जाता है | काल मीमांसा से स्पष्ट होता है कि काल निरन्तर गतिमान है और यह किसी देश व पात्र की न तो प्रतीक्षा करता है और न ही किसी के लिए रुकता ही है | अतः सम्यक काल बोध से ही काल समायोजन सहित सम्यक जीवन यापन तथा सही जीवन दर्शन का अपनाना संभव हो सकता है |  

      प्रायः लोग यह कहते हुए पाये जाते हैं कि हम समय गुजार रहे हैं अथवा समय काट रहे हैं | जबकि वास्तविकता यह है कि समय स्वयं गुजर रहा होता है और वह निरन्तर सबको गुजारता तथा काटता हुआ चलता जाता है | यह अवश्य संभव हो सकता है कि इस गुजर रहे समय के साथ हम अपने आप को भी गुजर जाने दें | यही सहज जीवन है और यही अभीष्ट भी होता है | सतत प्रवाहमान समय और देश व पात्र की स्थिरता जन्य अन्तराल की स्थिति मे हम गुजरते समय के साथ अपने को नहीं गुजार पाते हैं और सिनेमा ,कहानी ,उपन्यास ,टेलीविजन व गप शप आदि द्वारा समय गुजारने का कृत्रिम प्रयास करते हैं | यह स्वाभाविकता न होकर अपने को गुमराह करने जैसा कृत्य है | यदि समय गुजारने के लिए उपरोक्तानुसार कार्यकलापो का आलंबन लेने की जरुरत महसूस होने लगे तो निश्चित समझिये कि आप समय के साथ नहीं चल पा रहे हैं और उपरोक्तानुसार अन्तराल की स्थिति उत्पन्न हो गयी है | अतः सर्बप्रथम हमें काल के साथ साथ चलने अर्थात काल से समायोजन की कला सीखनी होगी | समय के साथ गुजरना एक अनवरत बह रही धारा मे बहने जैसी स्थिति है | काल धारा के बिपरीत जाने मे होने वाली श्रम हानि व परेशानी ही इस अन्तराल की स्थिति है |
      समय न कभी रुकता है और न ही किसी की प्रतीक्षा ही करता है | अतः प्रत्येक पात्र को काल की प्रतीक्षा करते हुए इसके गुजर जाने से पहले पकड़ने का प्रयास करना चाहिए | इसको ही अवसर कहते हैं , जिसके पकड़ मे आ जाने की स्थिति मे सफलता हाथ लगती है | अन्यथा स्थिति मे व्यक्ति हाथ मलता और पछताता हुआ रह जाता है | जब हम जानते हैं कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और यह सर्बाधिक महत्वपूर्ण तत्व है , हमें स्वयं समय की इस प्रकार प्रतीक्षा करनी होगी कि यह गुजरने न पावे और समय के पास आते ही इसे पकड़ लेना चाहिए | इसके लिए सही पात्र बनना पड़ेगा और सही देश यानि स्थान पर अवस्थित होना होगा | तभी सम्यक कालबोध की स्थिति मे देश काल पात्र सायुज्य की स्थिति मे सफलता का वरण कारण संभव हो सकेगा |
     सही देश तथा सही पात्र तभी अपना लक्ष्य भेद कर पाते हैं जब सही काल (अवसर )का सम्यक अभिज्ञान कर उसके  गुजर जाने से पहले पकड़ लिया जावे | चूँकि काल निरन्तर प्रवाहमान है , यह न तो किसी के पास जाता है और न ही चेतावनी देकर किसी को इंतजार करने का अवसर ही देता है | अतयव हमें स्वयं समय के पास जाकर उसका इंतजार करना होगा | यदि एक बार समय गुजर गया तो बीता हुआ कालखंड दुबारा हाथ नहीं आता | इस प्रकार हम पाते हैं कि जिन्हें सम्यक कालबोध है , वे कभी असफलता का मुह नहीं देखते |सम्यक देश तथा पात्र सम्यक कालबोध के अभाव मे कुछ हासिल नहीं कर पाते |
       समय के प्रभाव मे अपने को डालकर उसके साथ साथ बहना जीवन को सहज और सुखमय बनता है , यह स्थिति अन्यथा नहीं होती | अतः सफल होने के लिए अपने को समय के प्रवाह मे डालकर बहते रहना चाहिए और सही पात्र बनकर सही स्थान पर सम्यक कालखंड (अवसर )को मजबूती से पकड़ लेना चाहिए | यही सफलता की कुंजी है और यही सफलता का काल भी होता है | सम्यक काल अभिज्ञान ,काल परीक्षण और काल नियंत्रण अत्यावश्यक होता है | काल को समुचित महत्व न देने वालों के हाथ कुछ नहीं आता है और वह हाथ मलता रह जाता है | काल को समुचित महत्व देने वाले किन्तु अपेक्षाकृत अकुशल पात्र को बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है |
      टेलीविजन देखना ,कहानी उपन्यास आदि मनोरंजन के साधनों मे लिप्त व्यक्ति का मन काल अभिज्ञान व काल साक्षित्व हेतु उपलब्ध नहीं होता | इसी दौरान काल प्रवाह मे कोई सही कालखंड यानि उपयुक्त अवसर भी गुजर जाता है और ऐसे मे हम हाथ मलते रह जाते हैं | काल बोध एक शिकार करने जैसा होता है | तनिक सी चूक और लापरवाही से शिकार हाथ से जाता रहता है | ऐसी स्थिति मे पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता और कभी कभी उसी काल यानि अवसर के लिए सदियों तक इंतजार करना पड़ सकता है | यहाँ तक सम्यक कालबोध व काल अभिज्ञान नहीं कर सकने के कारण हम काल कवलित भी हो सकते हैं | अर्थात यदि सही समय पर हम सही पात्र नहीं बन सके तो सफलता से बंचित होना हमारी नियति होगी |
       अब तक हम समझ चुके हैं कि देश काल पात्र के संयोजन पर ही किसी घटना का घटित होना संभव होता है और काल तत्व सर्बाधिक महत्वपूर्ण और गतिशील है | इसके अनुसार चलना चाहिए और समय से आगे रहने की चेष्टा करनी चाहिए | कहने का यही तात्पर्य है कि इससे पहले कि समय आप पर सवार हो , समय पर आप हावी हो जाय |  समय पूर्ब सुचना के बगैर आता और चला जाता है | इस प्रकार किसी कार्य को संभाव्य बनाने के लिए समय को यथेष्ट महत्व देकर समय के अनुसार चलना चाहिए | इस सम्बन्ध मे पर्याप्त सजगता अपेक्षित है | समय का अभिज्ञान एवं प्रतीक्षा एक तपस्या है जो कठिन परिश्रम व चौकन्ना रहने से ही पूरी हो सकती है | यही लगो को निश्चित समय पर मनवांछित प्रतिफल देता है | 
     समय हमेशा घडी के अनुसार ही नहीं चलता है , वरन समय का कभी कभी मानसिक मापन भी होता है | ऐसा कई बार होता है कि किसी अत्यावश्यक कार्यवश यदि किसी स्थान पर पहुचना आवश्यक होने या किसी महत्वपूर्ण व संवेदनशील क्षण पर किसी की प्रतीक्षा करने का कालखंड बहुत लम्बा लगने लगता है | ऐसी स्थिति मे घडी से लगने वाला १५ मिनट का समय साल से अधिक लगने लगता है | ऐसी स्थिति मे मन प्रति पल समय साक्षीत्व करता रहता है | अतः १५ मिनट की दुरी सदियों जितनी लगने लगती है |
       समय के साथ गुजरना एक कला है ,किन्तु काल अभिज्ञान , काल प्रतीक्षा एवं काल साक्षीत्व आवश्यकता व महत्व को कभी भी नहीं भूलना चाहिए | काल देश व पात्र सापेक्ष्य भी है , क्योंकि २५०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित ग्रह पर भगवान बुद्ध आज पैदा हो रहे होंगे |                 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

2 comments:

  1. अच्छी विवेचनात्मक प्रस्तुती ,क्या कोई व्यक्ति आज समय को पकड़कर -सत्य,न्याय,ईमानदारी व देशभक्ति की राह पर चलकर सही मुकाम पर पहुंचा सकता है ,अगर वह व्यक्ति कर्म व वचन से भी पूरी तरह इमानदार है ? आप ज्ञानी और अनुभवी भी है आपके जवाब की प्रतीक्षा रहेगी -मेरा मोब.09810752301 है |

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  2. स्वागतम !

    कालोयं निर्वधिः बहुलाश्च पृथ्वी ।

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