Friday, April 23, 2010

बुंदेलखंड मे भूमि विवाद एवं नक्सलवाद

 बुंदेलखंड मे भूमि से संबंधित समस्याएं व्यापक रूप से जन जन मे फैली हैं | भूमि सम्बन्धी समस्यायों के प्रति प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जहाँ एक ओर ग्रामीणों विशेषकर वंचितों मे निराशा एवं कुंठा का भाव व्याप्त है, वहीँ दूसरी ओर नक्सलवादी संगठन इस तरह के वातावरण मे नक्सलवाद फ़ैलाने की सम्भावना तलाश रहें हैं | बुंदेलखंड के ग्रामीणों का भोलापन और उनकी समस्यायों के प्रति शासन की उदासीनता एवं संवेदनहीनता के कारण यहाँ नक्सलवाद के फैलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है | अतयव बुंदेलखंड के भूमि संबंधित विवादों को संवेदनशीलता पूर्वक निपटाने की बहुत  बड़ी आवश्यकता है |
      बुंदेलखंड मे खेती योग्य अच्छी भूमि की उपलब्धता और इसके लिए मारामारी एक गंभीर समस्या है | ऐसी भूमि पर उच्च वर्ग या तो पहले से काबिज है या तो कोई न कोई कुचक्र रचकर ऐसी भूमि को हथियाना चाहता है | राजस्वकर्मी भी इस उच्च वर्ग से मिलकर उसका ही हित साधक बन जाता है | वह पट्टेदार को उसकी जमीन नापकर ऐसी जगह बता देता है, जहाँ की जमीन ही कंकरीली एवं पथरीली है और ऐसी जमीन पर खेती नहीं हो सकती है | किसान अथक परिश्रम करके उस खराब भूमि को भी खेती के योग्य बना देता है | तब राजस्वकर्मी उसे कोई दूसरी भूमि नापकर बता देता है और उसकी मेहनत करके बनायी गयी भूमि कोई बड़ा आदमी जोतने बोने  लगता है | ऐसे मे उस किसान की कुंठा का सहज मे अनुमान लगाया जा सकता है | इसी समय यदि कोई उग्रबादी संगठन उससे संपर्क करता है तो उक्त किसान का उसकी झोली मे चला जाना स्वाभाविक है | ऐसी परिस्थियों के लिए समाज का उच्च वर्ग तथा प्रशासन ही उत्तरदायी होता है |
       कई बार ग्रामीण विकास योजनाओं के अंतर्गत लिए गए ऋण की वसूली के दौरान कुछ किसान अपनी जमीने खो देते हैं, जबकि कई किसान किसी प्रकार का कर्जा लिए ही नहीं होते हैं | यह भी देखने मे आया है कि बैंक एवं विकास कर्मियों की मिली भगत के कारण फर्जी ऋण प्रार्थनापत्र तैयार करके उस किसान को बकायेदार बना दिया जाता है, ऋण प्रार्थनापत्र पर न तो उसके हस्ताक्षर होते हैं और न ही उसके फोटो ही लगे होते हैं | ऐसे कुछ मामलों की जानकारी मिलने पर अपनी नौकरी  बचाने और जेल जाने से बचने के लिए उक्त किसानो की पूरी बकाया की धनराशि उनके द्वारा जमा कर दी थी | ऐसे कितने मामले पूरे बुंदेलखंड मे होंगें |
      वर्ष १९९८ से २००१ तक ग्रामीण क्षेत्रो मे कई शिविर लगाये गए थे, जिनमे सैकड़ों राजस्व एवं पुलिस कर्मी उपस्थित थे | इन शिविरों मे मौके पर पैमाईश, पट्टा कब्ज़ा एवं कागजाद दुरुस्ती की कारवाही हुई और जिससे हजारों किसान लाभान्वित हुए | इससे वंचितों का अपार उत्साहवर्धन हुआ था | इसके अलावा गरीबों का शोषण करने तथा उनका हक़ मारने वालों के खिलाफ मौके पर दंडात्मक कार्यवाही होने से ऐसे लोगों के हौसले पस्त हुए | इसके फलस्वरूप ऐसा वातावरण बना था कि लोग स्वयं अवैध कब्ज़ा छोड़ने लगें थे और वंचितों को लगने लगा था कि उनके वर्चस्व का समय आ गया है | कमजोर वर्ग ऊपर शिकायत न करे, इस लिए प्रभावशाली वर्ग उनके ही चक्कर लगाने लगा था |
     इसी बीच इटवा डुन्ड़ेला गाँव के कुछ ग्रामीण मुझसे मेरे कार्यालय मे मिले थे, तभी मैंने समझ लिया था कि उनकी समस्याएं काफी गंभीर हैं | अतएव मैंने गाँव जाने का कार्यक्रम बनाया और अपने साथ सैकड़ों कर्मचारियों को भी साथ ले लिया | गाँव मे ९ घंटे की लगातार सुनवाई करके ३०० लोगों की समस्यायों का समाधान देकर पूरे गाँव को ही समस्या विहीन घोषित किया | उस दिन के कार्य से मुझे अपार ख़ुशी मिली थी | मुझे यह भी बताया गया था कि मेरे जाने के बाद उस रात ख़ुशी के मारे गाँव के किसी व्यक्ति को नींद नहीं आयी और आधी रात मे सभी अपने अपने घरों से बाहर निकल आये थे और रात मे ही उनकी पंचायत बैठ गयी | पंचायत ने यह फैसला लिया कि जिन्होंने उन्हें समस्या मुक्त किया है, उनके लिए भी उन्हें कुछ करना चाहिए | अतः उन्होंने अपने गाँव का नाम बदल कर जगन्नाथपुरम रख लिया था, ताकि जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह के द्वारा किये गए कल्याणकारी कार्यों की याद को सदा सर्वदा के लिए सजोंया जा सके |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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