Tuesday, April 20, 2010

डाकू हो या पुलिस- ग्रामीणों के लिए एक ओर कुआँ तो दूसरी ओर खाई


बुंदेलखंड के अधिकाँश जनपद अपनी विशेष भोगौलिक स्थिति के कारण डाकुओ की शरण स्थली बने हुए है | इसी  कारण इन जनपदों में डाकू विरोधी अधिनियम ( एंटी डकैती एक्ट) लागू है, जिसके अंतर्गत पुलिस डाकू समस्या को समाप्त करने  की बजाए इसका दुरूपयोग करती हुई देखी गई है
डकैती विरोधी अधिनियम की धारा 216 पुलिस को यह अधिकार देती है की वह डाकुओ के मददगारो के विरुद्ध कार्यवाही कर सकते है | डाकुओ को खाना खिलाने एवं मदद करने का आरोप बुंदेलखंड  के किसी भी व्यक्ति पर आसानी से लगाया जा सकता है और किसी भी व्यक्ति को उक्त अधिनियम की धारा 216 के शिकंजे में जकड़ा जा सकता है | पुलिस द्वारा अपने इस अधिकार का प्रयोग पुलिस बल के शक्ति प्रदर्शन, शोषण, उत्पीडन और धन दोहन हेतु किया जाता है | इस धारा का दुरूपयोग सत्तापक्ष के लोग पुलिस के माध्यम से अपने विरोधियो को फ़साने तथा परेशान करने हेतु भी खूब करते है | अधिनियम की मंशा के अनुरूप इस धारा का उपयोग शायद ही कभी अपवाद स्वरुप होता है | इस धारा के अंतर्गत कार्यवाही के कारण पुलिस का जन विरोधी चेहरा उभरकर सामने आता है जिसके कारण पुलिस से जनता डरने लगती है और उससे अपनी दूरी बना लेती है |

बुंदेलखंडवासीओं का तर्क है की पुलिस अधीक्षक भी यदि सुदूर गाँव में मकान बनाकर आम आदमी की भांति रहें तो वह भी डाकुओ की मांग पर उन्हें भोजन देने से मना नहीं कर पाएँगे | ऐसी स्थिति में डाकुओ को भोजन देने की मांग का प्रतिकार कोई ग्रामीण कैसे कर सकता है | अतएव मात्र इसी  कारण उसको २१६ के अंतर्गत अपराधी नहीं मान लिया जाना चाहिए | डाकू भोजन करने बाद जाते समय ग्रामीणों के 500 रु० के खर्च के एवज में 1000 रु० या उससे अधिक दे जाते है, वही दूसरे दिन पुलिस के आने पर उनकी इच्छा अनुसार उन्हें भोजन कराने के बाद भी लोग 216 के प्रकोप से नहीं बच पाते उल्टा  इससे बचने के लिए उन्हें काफी धन खर्च करना पड़ता है, ऐसी दशा में जनता पुलिस को अपना शत्रु तथा डाकुओ को अपना मित्र समझने लगती है | वह मानने लगती है की डाकुओ से अधिक पुलिस का उत्पीडन उन्हें परेशान करता है | यही कारण रहा कि डाकू नियंत्रण संबंधी कार्य में पुलिस को जनता का कोई सहयोग नहीं मिल पाता है जबकि एस० टी० एफ़० , जिनका स्थानीय पुलिस की तरह  चेहरा नहीं होता है, को जनता का समुचित सहयोग मिलता है और जिसका उपयोग एस० टी० एफ़० डाकुओ के विरुद्ध हथियार के रूप में करती है और डाकुओ पर सफलता पूर्वक नकेल डाल देती है | यही कारण है की स्थानीय पुलिस अरबों-करोडो रु० खर्च करके भी डाकू ददुआ का फोटो तक एकत्र नहीं कर पायी, वही एस० टी० एफ़० ने एक साल से भी कम समय में ददुआ जैसे डाकू को मार गिराया |
बुंदेलखंड में शेर या चीता से अधिक 216 का खतरा है इसी कारण इस क्षेत्र की जनता 216 के दुरुपयोग से सदा त्रस्त रहती है |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा समाज

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