Monday, April 19, 2010

बुंदेलखंड मे अन्ना प्रथा का अभिशाप

अन्ना प्रथा बुंदेलखंड की पिछड़ी कृषि व्यवस्था को दर्शाती है | अन्ना का मतलब है छुट्टा जानवर, जिनकी कोई देखभाल नहीं करता है | बुंदेलखंड मे लोग रबी की फसल कटते ही अपने अपने जानवर चरने के लिए छोड़ देते हैं और उनकी देख भाल नहीं करतें हैं |
इन पशुओं के कारण बुंदेलखंड मे जायद की खेती तो बिलकुल ही नहीं होती है, खरीफ की फसल भी लोग इस लिए नहीं बोते हैं कि छुट्टा जानवर बोई फसल को ही चर् लेंगे |
सिचाई साधनों की कमी के कारण बुंदेलखंड की खेती सामान्यतया वर्षा पर आधारित है
इसके बावजूद वर्षा ऋतु मे इन छुट्टा जानवरों के करण बुंदेलखंड का किसान खरीफ की फसल नहीं बोता है | इस प्रकार अन्ना प्रथा बुंदेलखंड के लिए बहुत बड़ा अभिशाप है | सभी लोग चाहते हैं कि यह कुरीति समाप्त हो जाए, पर इस दिशा में कोई पहल नहीं करता और अधिकाँश लोग रबी की फसल कटते ही अपने अपने जानवर छुट्टा चरने के लिए छोड़ देता है | कुछ प्रगतिशील किसान, जिनके पास अपने सिचाई के साधन होते हैं, इस प्रथा के कारण चाहते हुए जायद एवं खरीफ की फसल नहीं बो पाते हैं | सभी सरकार का मुह ताकते रहते हैं और चाहते हैं कि सरकार ही इस बुरी प्रथा पर नियंत्रण लगाये | सरकार की इस सम्बन्ध मे कोई रूचि नहीं होती है, अतयव सरकार इस सम्बन्ध मे कुछ नहीं करती है, जिसके कारण यह कुप्रथा सालों-साल चलती रहती है |

वस्तुता इस समस्या का हल बुंदेलखंड वासियों के पास ही है | उन्हें चाहिए कि वे अपने जानवर छुट्टा न छोड़े और उन्हें बाँधकर रखें | इस सुझाव पर बुन्देलखंड वासी कह उठेगा कि उसके पास जानवरों को खिलाने के लिए चारा नहीं होने के करण उन्हें अपना जानवर छुट्टा चरने के लिए मजबूरन छोड़ना पड़ता है | बुंदेलखंड मे बहुत सारे जानवर दूध न देने के करण अनुपयोगी समझ लिए जाते हैं | अतः लोग ऐसे जानवरों को छुट्टा चरने के लिए यह समझ कर छोड़ देते हैं के यदि उनके जानवर चरने के बाद वापस आ गए तो ठीक है और यदि जानवर वापस नहीं आते हैं तो यह उससे अधिक ठीक है | इस प्रकार लोग ऐसे जानवरों, जिन्हें वे अनुपयोगी समझते हैं, को छुट्टा चरने हेतु छोड़ देते हैं | वस्तुतः कोई जानवर कभी भी अनुपयोगी नहीं होता है | उसका गोबर व मूत्र ही इतना कीमती होता है कि उसका सदुपयोग करने मात्र से उस जानवर के भोजन की व्यवस्था हो सकती है | उत्तरांचल तथा कुछ एक अन्य राज्यों मे भी गोमूत्र की सरकार द्वारा खरीददारी की व्यवस्था है जो दूध की लगभग आधी कीमत पर सरकारी तौर पर खरीद लिया जाता है, जिसका उपयोग दवाईयां बनाने मे होता है | कुछ बीमारियों का सीधा इलाज गोमूत्र पीने से होता है |
जनपद चित्रकूट मे वर्ष २००१ मे अन्ना प्रथा पर नियंत्रण हेतु मैंने एक योजना बनायीं थी | इस योजना के अंतर्गत मानिकपुर जंगल के निकट रानीपुर मे पशुपालन विभाग के नियंत्रणाधीन गोसदन की लगभग २००० हेक्टेयर भूमि मे चारों तरफ बाड़ा बनाया जाना था, जिसमे चित्रकूट जनपद निवासियों के तीन अनुपयोगी पशुओं को वापस लेकर इस बाड़े मे रखे जाने की योजना थी | इन तीन पशुओं के एवज मे संवंधित किसानो को एक शंकर नस्ल की बछिया या गाय दिए जाने की योजना थी, जिन्हें किसान किसी भी दशा मे छुट्टा चरने के लिए नहीं छोड़ेगा | इस प्रकार चित्रकूट जनपद के अधिकाँश अनुपयोगी जानवरों को वापस लेकर उक्त गोसदन मे रख दिया जाता, जहाँ वे अपनी उपयोगिता के आधार पर अपना भोजन प्राप्त कर पाते | प्रदेश सरकार को मैंने यह योजना भेजी थी
सरकार द्वारा योजना स्वीकृत भी की गयी थी, पर यह योजना अकेले चित्रकूट के लिए ही न स्वीकृत होकर पूरे बुंदेलखंड के सभी जनपदों के लिए यह कहकर स्वीकृत की गयी थी कि सभी जगह अन्ना प्रथा लागू है
यहीं गलती हो गयी थी | चूँकि योजना चित्रकूट जनपद के लिए बनाई गयी थी, प्रथम चरण मे यह योजना चित्रकूट के लिए ही स्वीकृत की जानी चाहिए थी और प्रयोग सफल होने पर अन्य जनपदों मे लागू करनी चाहिए थी
ऐसा न किये जाने से इस योजना का घोर विरोध सभी जनपदों मे यह कह कर हुआ कि वापस लिए गए जानवर वे कहाँ रखेंगें | दूसरी तरफ जिला पंचायत द्वारा उदारतापूर्वक पशु बाड़ा (कांजी हाउस) खुलवाया गया था
इससे अन्ना प्रथा पर काफी हद तक नियंत्रण लग सका था और जिसके फलस्वरूप जायद व खरीफ बड़े पैमाने पर बोया गया था | इस प्रकार के प्रयासों से अन्ना प्रथा पर रोक लग सकती है ,जिससे चित्रकूट जनपद मे उत्पादन और उत्पादकता मे काफी बढ़ोत्तरी हुई थी |

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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