Friday, October 8, 2010

वृद्ध भ्रान्ति : अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस पर विशेष

       प्रत्येक वर्ष १ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस का आयोजन किया जाता है | इस अवसर पर अपने वरिष्ट नागरिको का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध मे चिंतन करना आवश्यक होता है | मेरी समझ मे एक दिन के सम्मान से अधिक वरिष्ट नागरिकों के बारे मे चिंतन करना अपेक्षाकृत उपयोगी होता प्रतीत होता है | आज का वरिष्ट समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यतया इस बात से सर्बाधिक दुखी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है | इस प्रकार अपने को समाज मे एक तरह से  निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज सर्बाधिक दुखी रहता है | वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है | मेरा उद्देश्य इसी दिशा मे प्रयास करना है | 

                      बृद्ध समाज सामान्यतया एक बीमारी का शिकार है , जिसका इलाज करना आवश्यक है | इस बीमारी का नाम है वृद्ध भांति | प्रत्येक वृद्ध के मन मे यह विचार बैठा हुआ होता है कि उसके बाल धूप मे नहीं सफ़ेद हुए हैं अर्थात अपने सुदीर्घ जीवन मे उन्होंने बहुत सारा अनुभव अर्जित एवं संग्रहीत कर रखा हैं , जो बहुत मूल्यवान एवं उपयोगी है और जिसे वह अपने परिवार तथा समाज को निःशुल्क देना चाहता है | पर वह तब बहुत निराश व दुखी महसूस करता है , जब उसे पता चलता है कि कोई यहाँ तक कि परिवार वाले भी उनके इस अनुभव का कोई लाभ नहीं उठाना चाहता , जबकि अनुभव का यह विशाल आगार घर मे ही संग्रहीत और सहज ही सुलभ होता है  | यही प्रत्येक वृद्ध के मन की पीड़ा होती है और इसी पीड़ा से वह आजीवन कुंठाग्रस्त रहता है |
                      इस परिप्रेक्ष्य मे हमें इस प्राकृतिक एवं नैसर्गिक तथ्य का समुचित संज्ञान लेना आवश्यक प्रतीत होता है कि त्रिगुणात्मिका शक्ति की अवधारणा प्रकृति का सबसे बड़ा सिद्धांत है और तदनुसार गुण श्रेष्टता भी स्वतः प्रमाणित  है | सत्वगुण श्रेष्टतम , रजोगुण श्रेष्ट्रतर तथा तमोगुण श्रेष्ट होता है | भोजन भी तदनुसार तीन श्रेणियों मे विभक्त किया जा सकता है और भोजन के अनुसार ही गुण विकसित होता है | दूध सात्विक भोजन होता है और दूध का सेवन करने वाला बच्चा सत्वगुण संपन्न यानि श्रेष्टतम होता है | थोड़ा बड़ा होकर वही बच्चा अनाज का राजसिक भोजन करने लगता है और तदनुसार रजोगुण संपन्न यानि क्रियाशील हो जाता है | जवानी तक यही क्रम चलता रहता है , यानि सत्वगुण घटता और रजोगुण बढ़ता जाता है | प्रौढ़ावस्था के बाद तमोगुण यानि निष्क्रियता की स्थितियां प्रारंभ हो जाती है | इस दौरान सत्वगुण तो समाप्तप्राय हो जाता है , रजोगुण उत्तरोतर कम होता जाता है और तमोगुण का वर्चश्व बढ़ता जाता है | बालक , युवा तथा वृद्ध की तदनुसार स्थितियां होती है , जिसे लोग समझ नहीं पाते |  इस नैसर्गिक तथ्य से हमें वृद्ध भ्रान्ति को समझने मे सहूलियत होगी |   
            जीवन मे और वरिष्ट नगरको की दृष्टि मे विशेषकर अनुशासन का बहुत महत्व होता है | वरिष्ट के आदेशों व निर्देशों का स्वयमेव कनिष्ट द्वारा पालन करना ही अनुशासन होता है | वरिष्टता क्रम उपरोक्तानुसार नैसर्गिक नियम के अनुसार स्वतः निर्धारित हो चुका है कि बच्चा वरिष्तम , युवा श्रेष्ट्तर तथा वृद्ध श्रेष्ट होते हैं | इस प्रकार निम्न श्रेणी (बृद्ध ) द्वारा उच्च श्रेणी के युवा व बच्चों की भावनाओं व अपेक्षाओं को दृष्टिगत रखते हुए उनके निर्देशों का अनुपालन किया जाना चाहिए , ताकि अनुशासन का वातावरण बन सके और नैसर्गिक नियमो का  पालन भी हो सके | अन्यथा अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न होगी , जिसका सम्पूर्ण उत्तरदायित्व बृद्ध समाज पर ही होगा | इस प्रकार वृद्धों को युवा तथा बच्चों की भावनाओं तथा अपेक्षाओं को भली भांति समझकर तदनुसार कार्यविधि अपनाना चाहिए | तदनुसार दायित्व बोध से अधिक उन्हें कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए | तभी अपने को सबसे श्रेष्ट समझने की बृद्ध समाज के त्रुटिपूर्ण चिंतन मे सुधार आ सकेगा और तभी बृद्ध भ्रान्ति समाप्त हो सकेगी | मात्र  इससे ही उनकी कुंठा तथा संत्रास का निवारण और अनपेक्षित मनस - विकार भी दूर हो सकेगा |                       
--          इसके साथ साथ अपने अर्जित और संग्रहीत वेशकीमती अनुभवों को कूड़ेदान मे फेकने के बजाय उन्हें उपयोग मे लाने की दिशा मे चिंतन करते हुए क्रियाशील हो जाना चाहिए | बृद्ध समाज अपने आप मे इस दिशा मे अपनी सक्षमता को पहचानना चाहिए और इस नए परिवार को शक्तिसंपन्न करने की दिशा मे सक्रिय हो जाना चाहिए | वृद्ध समाज  इसे ही अपने वर्तमान का संकल्प बना लेना चाहिए , तभी यह अति मूल्यवान तबका समाज मे अपना वर्चश्व व उपादेयता पुनः स्थापित कर पायेगा |  


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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