Thursday, September 30, 2010

चिकित्सा का अधिकार बनना चाहिए मौलिक अधिकार

     घरेलु कामगरों , मजदूरों तथा ग्रामीणों के संपर्कों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि ९०% जनता का न तो कोई चिकित्सक होता है और न ही उन्हें किसी प्रकार की चिकित्सकीय सुविधा ही मुहैया हो पाती है | यह बेचारे सामान्यतया झोला छाप डाक्टरों तथा नीम हकीमो से अपना इलाज कराने को विवश होते हैं | यही उनके एकमात्र सहारा होते हैं और गंभीर बीमारियों मे यही उनकी जान लेवा भी साबित होते हैं | अधिकांश निजी चिकित्सक शहरों मे ही रहकर इलाज करते हैं और उनकी मरीजों को देखने की फीस भी बहुत अधिक होती है | उनकी फीस देने और उनके परामर्श पर दवा खरीदने की क्षमता इन ९०% लोगों के सामर्थ्य से बाहर होती है | सरकारी अस्पतालों पर लोगो का विश्वास नहीं बन पा रहा है और वे लोगो की अपेक्षाएं पूरी करने मे सफल होते नहीं दिखाई देते हैं | 

                   अभी कुछ महीनो पहले शिक्षा के अधिकार का अधिनियम बना था और इस समय खाद्य सुरक्षा पर और बड़ी गंभीरता से बहस चल रही है और निकट भविष्य मे खाद्य सुरक्षा पर अधिनियम  बन जाने की उम्मीद है | बस्तुतः सबसे ज्यादा जरुरत स्वास्थ्य सुरक्षा की है , क्योकि स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति पूर्णतया चिकित्सक पर निर्भर होता है , जबकि उत्पादक होने के कारण  खाद्य सुरक्षा के सन्दर्भ मे व्यक्ति काफी हद तक स्वावलंबी होता है | हकीकी यह भी है कि बिमारिओं  से मरने वालों की सख्या सबसे अधिक होती है , जबकि भूख से मरने वालों की संख्या नाम मात्र की ही होती है | इस प्रकार खाद्य सुरक्षा से पहले स्वास्थ्य सुरक्षा के सन्दर्भ मे कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है | आम व्यक्ति को सरकार से सबसे बड़ी अपेक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा की है , अन्यथा उनके लिए सरकार की कोई खास जरुरात नहीं है | अतयव आम आदमी की सबसे बड़ी जरुरत पर विशेष और सबसे पहले ध्यान देना चाहिए |  

 अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

1 comment:

  1. मैं मानता हूँ कि भूख के कारण ही अधिकतर बीमारियाँ आती हैं.. तो अगर हम बिमारी के जड़ यानी भूख कि कमी को ही खत्म कर देंगे तो बिमारी फैलेगी ही नहीं..
    वैसे तो बिमारी होने के एक नहीं अनेक कारण हैं.. इसलिए किसी एक ही मुद्दे पर चर्चा करने से सफलता हासिल नहीं होगी... सभी बातों पर गौर करके ही काम करना बेहतर रहेगा...

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