Friday, July 2, 2010

जीवन की वास्तविक उपलब्धियां

मनुष्य किसी देश काल खंड का निवासी हो , स्त्री अथवा पुरुष हो , आस्तिक या नास्तिक हो , अध्यात्मिक अथवा भौतिकबादी हो , अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उनके जीवन की वास्तविक उपलब्धियां ही जीवन की वास्तविक कसौटी के रूप मे होती हैं , जिस कसौटी पर खरा उतरने की दशा मे यह सिद्ध होता है  कि जीवन की दिशा और दशा सही है अथवा गलत | कोई भी दर्शन व जीवन पद्धति इसी  कसौटी के आधार पर अपनी सार्थकता तथा उपयोगिता प्रमाणित करती है  | इस प्रकार जीवन की वास्तविक उपलब्धियों की यह कसौटी बहुत प्रासंगिक और उपयोगी है और इसको भली भांति समझना बहुत आवश्यक है |

          जीवन की यह यथार्थ उपलब्धियां केवल तीन हैं | पहली उपलब्धि है प्रफुल्लता | प्रफुल्लता एक बहुत बड़े मायने वाला शब्द है और यह ख़ुशी व प्रसन्नता से एकदम भिन्न है | जब मनस पटल , सम्पूर्ण ह्रदय पटल , सारी धमनियां , सारा स्नायु तंत्र और एक एक रोम खिल उठे और ख़ुशी से नाचने लगे तो समझिये प्रफुल्लता की स्थिति उत्पन्न हो गयी है  | प्रफुल्लता को एक उदाहरण से समझा जा सकता है | एक युद्ध विधवा, जो अपने पति को बहुत चाहती थी , दस साल  से बैधव्य का जीवन व्यतीत कर रही थी | अचानक एक  रात के दो बजे उसके दरवाजे की सांकल बजती है और वह दरवाजा खोलने पर उनीदी आँखों से देखती है कि उसका पति उसके सामने खड़ा है | उस समय उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था | उसका मनस पटल , ह्रदय , सारी धमनिया तथा एक एक रोम खिल उठता है | इसे ही प्रफुल्लता कहते हैं और यह प्रफुल्लता की चरम स्थिति मान सकते हैं | वैसे प्रफुल्लता का एक पल मात्र को पा सकना व्यक्ति  के बस मे नहीं होता है और अरबो खरबों का धन खर्च करके एक सेकण्ड की प्रफुल्लता को नहीं खरीद  सकता | मनुष्य कितना  भी यत्न करके प्रफुल्लता को प्राप्त नहीं कर सकता है | अन्य व्यक्ति ही अनुग्रह करके हमें प्रफुल्लता दे सकता है अथवा प्रफुल्लता छीन सकता है अर्थात दूसरों की कृपा व अनुग्रह से ही प्रफुल्लता मिल सकती है | अब प्रश्न उठता है कि क्या व्यक्ति  प्रफुल्लता प्राप्त किये जाने की दिशा मे कुछ कर सकता है ? उत्तर है हाँ | व्यक्ति दूसरों को प्रफुल्लता देकर प्रफुल्लता की तरंग  उत्पन्न कर सकता हैं , उक्त तरंग अपनी तरंग दैर्घ्य पर अवस्थित उक्त व्यक्ति से टकराकर समान किन्तु बिरोधी प्रतिक्रिया स्वरूप व्यक्ति विशेष के  पास वापस आ जाती है और हमें स्वतः प्रफुल्लता मिल जाती है | इस प्रकार व्यक्ति यदि निरन्तर लोगों को प्रफुल्लता देता रहे तो उसे जीवन मे बराबर प्रफुल्लता मिलती रहेगी और उसका एक तिहाई जीवन सही व सार्थक माना जा सकता है |
          जीवन की दूसरी वास्तविक उपलब्धि है नीद | यदि बिना बहरी कोशिश व प्रयास किये व्यक्ति को भरपूर और निर्बिघ्न नीद आ जाती है तो उसकी जीवन शैली एकदम सही मानी जा सकती है | शुद्ध चित्त एवं आत्मा वाले उक्त व्यक्ति के मन पर बोझ नहीं होता और उसे भरपुर नीद आ जाती है | इसके बिपरीत गलत व धोखा धरही करने वाले व्यक्ति को स्वाभाविक व अपेक्षित नीद मुहैया नहीं होती | इस प्रकार नीद की कसौटी यह तय करती है कि एक तिहाई जीवन पद्धति व रास्ता सही है अथवा नहीं | इसी प्रकार मानसिक शांति , जो मानसिक संतुलन की स्थिति होती है , यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति की जीवन पद्धति सही है अथवा नहीं | यदि जीवन सुख व शांति मय है तो इसका मतलब यही है कि जीवन यापन का तरीका एक तिहाई सही है | 
         इस प्रकार यदि व्यक्ति का जीवन इन तीनो कसौतिओं पर खरा उतरता है तो व्यक्ति को उसी रस्ते का अनुसरण करना चाहिए जिससे उसको यह तीनो उपलब्धियां प्राप्त हुई थी | इसके अतिरिक्त जीवन मे कुछ नहीं चाहिए | इसके लिए किसी गुरु की भी जरुरत नहीं होती है | इसे व्यक्ति को स्वयं ही सीखना पड़ता है और जिसको सीखने मे कई कई जनम लग सकते हैं l जीवन मे इतना ही पाठ सीख लेना पर्याप्त भी है | यह जितना सरल है उतना कठिन भी है |


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

2 comments:

  1. आंखें खोलनेवाला आलेख .. पर आज लोग वास्‍तविक उपलब्धियों को नकारते हुए झूठे सुखों के पीछे पागल हो रहे हैं .. कौन समझाए उनको ??

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  2. मै आप से शत प्रतिशत सहमत हूँ आम आदमी की सच्चाई को दर्शाती एक सुंदर रचना , बधाई

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