Monday, June 28, 2010

उपभोक्ता संस्कृति और आम जनमानस

 व्यक्ति यानि उपभोक्ता की  जरुरत रोटी , कपडा ,मकान . शिक्षा ,  स्वास्थ्य . मनोरंजन , रोजगार तथा सामाजिक सुरक्षा आदि तक ही सीमित होती है |  सामान्य प्रयासों से इन सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है | परन्तु मनुष्य इससे भी संतुष्ट नहीं होता | मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि मनुष्य की  आवश्यकता जीवन मे संतुष्टि प्राप्त करना ही है | यही संतुष्टि ही मनुष्य के जीवन की वास्तविक उपलब्धि होती है , जो जीवन को सुखमय अथवा दुखमय बनाती है | यह पूर्णतया व्यक्तिनिष्ट  और मनुष्य की सोंच पर आधारित होती है | इस दृष्टि से मनुष्य के लिए वही स्थिति व परिवेश अभीष्ट व हितकर होता है जो उसे संतुष्टि दे सके और वह सब अवांछित होता है जो उसे संतुष्टि से दूर रखता है | कदाचित इसी कारण प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे के मेहता ने अर्थशास्त्र को आवश्यकता विहीनता की ओर ले जाने वाला शास्त्र बताया था | मेरी समझ मे जे के मेहता की यह अवधारणा भौतिक , मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णतया सही प्रतीत होती है | दूसरे शब्दों मे यदि कहा जाय तो  आवश्यकताओं की प्रवृति असीम की ओर जाने की होती हैं और इन असीम आवश्यकताओं से समायोजन करने की कला सीखने से ही जीवन मे संतुष्टि व सुख प्राप्त हो सकता है | वैसे हमारे चारो ओर का परिवेश इसके विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न कर रखी है और यही है आज की उपभोक्ता संस्कृति | आज मनुष्य अपने को वस्तुतः बाजार मे खड़ा हुआ पाता है और उसके चारो ओर खरीदने और बेचने के अलावा कुछ और होता हुआ  नजर नहीं आता | प्रिंट और इलेक्ट्रानिक  मीडिया मे  विज्ञापन के अलावा कुछ खास नहीं होता , जिसमे सब कुछ बेच देने की होड़ लगी हुई सी प्रतीत होती है | मानव मनोविज्ञान , संवेग , प्रेरणा एवं प्रवृति को दृष्टिगत रखकर अत्यधिक आकर्षक  विज्ञापन बनाये जाते हैं , जिनका उद्देश्य उपभोक्ता को रिझाने , बरगलाने तथा प्रेरित करना होता है और उनकी कोशिश जरूरतों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की होती है |  
        स्त्री का आकर्षण चूँकि संसार मे सर्बाधिक होता है , विज्ञापन की दुनिया मे स्त्री के रूप और सुन्दरता को विज्ञापन की बस्तु समझ कर इसका भरपूर उपयोग किया गया है |  यहाँ तक पुरुषों के रेजर , आफ्टर शेब और कच्छे के विज्ञापन मे भी स्त्री का ही उपयोग किया गया है | इस प्रकार आज की उपभोक्ता संस्कृति  मे स्त्री को विज्ञापन की बस्तु बनाकर रख दिया है | आज की पीढ़ी मेहनत सेबचना व शार्टकट   अपनाकर एकदम अमीर बनना चाहती है और बिना परिश्रम किये थोड़े समय मे सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है | ज्योतिषी उसकी इसी भावना का लाभ उठाकर जंत्र  तंत्र के उपकरण बेंच रहा है | आज टेलीविजन के सारे चैनल यहाँ तक न्यूज चैनल तक जोर शोर से स्काई शापिंग की इस बिधा द्वारा  मनुष्य को बेवकूफ बनाने के इस धंधे मे लगे हुए हैं | माल संस्कृति भी उपभोक्ताबाद को बढ़ावा डे रहा है | खरीददारी के लिए माल मे जाने पर वहाँ  तरह तरह के आकर्षण मिलते हैं | वहाँ व्यक्ति यदि एक सामान खरीदने के इरादे से जाता  है तो वहाँ इस तरह का परिवेश मिलता है कि व्यक्ति ४ या ५ बस्तुएं ख़रीदे | माल मे बड़े बड़े लुभावने आकर्षण देखने को मिलते हैं | एक कमीज खरीदें पांच कमीजे मुफ्त पायें जैसे विज्ञापन देखकर उपभोक्ता खुश हो जाता है कि जैसे उसने माल को लूट लिया हो , जबकि उपभोक्ता ही माल के लूट  के चक्रव्यूह मे बस्तुतः फंस कर रह जाता है | इस प्रकार माल मे भी व्यक्ति को बेवकूफ बनाने का ही गोरख धंधा चल रहा होता है | 
           फिल्मस्टार और क्रिकेट स्टार लाखों करोंड़ों कीमत लेकर झूंठे किन्तु मनभावन विज्ञापन से लोगों को गुमराह करते  हैं और धन लोलुपता के कारण उनका जमीर शायद मर गया सा प्रतीत होता  है | विज्ञापनों  के  कारण व्यक्ति फिजूलखर्ची का शिकार बन जाता है और प्रायः हीनभावना से पीड़ित रहता है | इस सब का एकमात्र समाधान यही है कि व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं पर नियंत्रण करके उन्हें सीमित रखना चाहिए और पूरे परिवार को यही संस्कार देना चाहिए , ताकि जीवन rकी मूलभुत उपलब्धि संतुष्टि  को  वह प्राप्त  कर  सके  |  

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

2 comments:

  1. Sir is blog me aapne apne anubhavo k aadhar per samaajik paridrashya per jo kataakshya kiye hai vastav me path pradarshak aur laajawab hain.
    Ziaul Haq
    journalist Chitrakoot

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  2. Sir aapka lekh vartmaan paridrashya ki aisi jhaaki prastut karta hai ki ise padhne k baad koi bhi jhakjhor jayega.
    Regards
    Ajeet Singh
    Correspondent Chitrakoot

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