Tuesday, June 1, 2010

सामान्य संवेग से राष्ट्र निर्माण

राष्ट्र का आधार क्या होता है - निश्चित भूभाग वाला भौगोलिक क्षेत्र , मजहब  , भाषा , पहनावा , रहन सहन आदि | मजहब यदि राष्ट्र का आधार होता तो पूरा यूरोप व अमेरिका सहित इसाई मजहब को मानने वालो का एक ही राष्ट्र होता | इसी तरह मुस्लिम मजहब मानने वाले तमाम लोग अलग अलग देशो के बजाय एक ही राष्ट्र का हिस्सा होते | यदि भाषा राष्ट्र का आधार होता तो अंग्रेजी भाषियों का एक ही और सबसे बड़ा राष्ट्र होता |  इसी प्रकार भौगोलिक क्षेत्र , खान पान , पहनावा और रहन सहन भी राष्ट्र का आधार नहीं होता | अब प्रश्न उठता है कि जब उपरोक्त मे से कोई राष्ट्र का आधार नहीं है तो वास्तव मे  राष्ट्र का आधार क्या है ?
          वास्तव मे सामान्य संवेग (कामन सेंटिमेंट )राष्ट्र का आधार होता है | राष्ट्र तभी होता है , जब यह सामान्य संवेग विद्यमान  होता है  , अन्यथा राष्ट्र विहीनता की स्थिति  होती है | अब हम इस राष्ट्र निर्माण क़ी प्रक्रिया को इतिहास के परिप्रेक्ष्य मे देखना है | बाहर से आने वाले आर्यों ने यहाँ के मूल निवासियों पर आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास किया और मूल निवासियों को उपेक्षा भाव से अनार्य कहा | आर्यो द्वारा अनार्यो पर अत्याचार करना शुरू किया , जिसके फलस्वरूप आर्य विरोधी संवेग उत्पन्न हुआ था और इस सामान्य संवेग के कारण भारत पहली बार राष्ट्र बना था | राष्ट्र निर्माण का यही वह समय होता है जब देश मे चतुर्दिक विकास होता और हुआ है | कालांतर मे आर्य भारतीय समाज का अंग बन गए और अनार्य भी इसी समाज मे संविलीन हो गये और आर्य अनार्य का अंतर भी समाप्त हो गया | अतयव इस पर आधारित आर्य विरोधी सामान्य सामान्य संवेग भी स्वतः समाप्त हो गया था | इससे राष्ट्र विहीनता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है | यह सबसे घातक एवं खतरनाक स्थिति होती है और इस राष्ट्र हीनता के शून्य काल मे विदेशी आक्रमण और अधिपत्य की स्थितिया उत्पन्न होती है | सौभाग्य की स्थिति यह रही कि इस राष्ट्र विहीनता की स्थिति मे विदेशी आक्रमण तो नहीं हुआ , पर देश के भीतर से ही वैचारिक आक्रमण अवश्य हुआ और वह था बौद्ध धर्म का तीव्रता से उदय होना | यह बौद्ध धर्म पूरे देश मे फैला और इसको राज्याश्रय भी प्राप्त हुआ | राज्याश्रय पाने के बाद जोर जबरदस्ती का दौर शुरू हुआ और गैर बौद्धों के ऊपर अत्याचार होने लगा , जिसके फलस्वरूप लोग बौद्ध और गैर बुद्ध दो खेमे मे बट गए | परिणामतः बुद्धबाद विरोधी सामान्य संवेग उत्पन्न हुआ और इस सामान्य संवेग के कारण भारत दुबारा राष्ट्र बना | इस दौरान भारत अत्यधिक शक्ति शाली बन गया था और  देश मे पुनः चतुर्दिक प्रगति हुई | कालांतर मे बौद्ध धर्म कमजोर हुआ और इसके साथ राज्याश्रय भी नहीं रहा | ऐसी स्थिति मे बौद्ध धर्म विरोधी सामान्य संवेग बने रहने की सम्भावना नहीं रही और देश मे दुबारा राष्ट्र विहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी | इस राष्ट्र विहीनता की स्थिति मे विदेसी (मुस्लिम) आक्रमण हुआ और मुस्लिम बर्चस्व कायम हुआ | इन विदेसी आक्रमण कर्ताओं द्वारा यहाँ के निवासियों के ऊपर अत्याचार के कारण मुस्लिम विरोधी सामान्य संवेग की स्थितिया उत्पन्न हुई , जिसके फलस्वरूप देश मे तीसरी बार राष्ट्र बना और शक्ति शाली भारत मे  इस दौरान देश का चतुर्दिक विकास हुआ | अकबर की दीन ए इलाही और सर्ब धर्म समभाव की नीति के कारण मुस्लिम विरोधी सामान्य संवेग समाप्त हो गया और इसी कारण राष्ट्र विहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी | इस सामान्य संवेग की रिक्तता के काल मे अंग्रेज आये और उन्होंने अपना बर्चस्व कायम तो किया ही , शोषण की पराकाष्टा पर पहुँच गए | अतयव ब्रिटिश शोषण विरोधी सामान्य संवेग उत्पन्न हुआ | पूरा देश धर्म , जाति , विचारधारा ,क्षेत्रीयता  आदि को भूलकर इस सामान्य संवेग से सम्बद्ध हो गए और यही ब्रिटिश बिरोधी सामान्य  संवेग ही पूरे देश की एकता का आधार बना था | यही सामान्य संवेग ने एक बार पुनः भारत को राष्ट्र बनाया था और इसके कारण ही हमें आजादी मिली थी | इस प्रकार भारत को स्वतन्त्र कराने मे इस इस सामान्य संवेग की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही थी और इसी सामान्य संवेग ने पूरे देशवासियों को अपने सारे मतभेदों को भुलाकर एक साथ कंधे से कन्धा मिलाकर जोड़ा था और यदि एक ही तथ्य को आजादी की लडाई मे सफलता हेतु जिम्मेदार मानने की बात हो तो वह तत्व सामान्य संवेग ही है |
     आजादी मिलने के बाद अंग्रेज भारत से चले गए थे , अतयव अंग्रेजो के विरोध पर आधारित सामान्य संवेग भी समाप्त हो गया | इस प्रकार देश पुनः राष्ट्र विहीनता की स्थिति मे पहुँच गया था | इसके फलस्वरूप १९६२ मे चीन का आक्रमण हुआ था | युद्ध काल मे चीन विरोधी सामान्य संवेग उत्पन्न हुआ था , जिसके फलस्वरूप उत्पन्न भावनात्मक एकता के कारण हमने चीन को मुहकी खाने को मजबूर किया था और हम तीसरी बार गुलाम होने से बच गए थे | चीन युद्ध के बाद चीन विरोध पर आधारित सामान्य संवेग भी स्वतः समाप्त हो गया था | ऐसी स्थिति मे एक बार पुनः राष्ट्र विहीनता की स्थिति उत्पन्न हुई थी और इस स्थिति मे मे हमें १९६५ और १९७१ मे पाकिस्तान का आक्रमण झेलना पड़ा था | उस समय पाकिस्तान विरोधी सामान्य संवेग उत्पन्न हुआ था , जिसने हमें सफलता दिलाई थी | इन युद्धों के बाद पाकिस्तान विरोधी सामान्य संवेग स्वतः समाप्त हो गया था और तभी से हम राष्ट्र विहीनता के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं | यदि हम अपने उपरोक्तानुसार अतीत और इतिहास से सीख लेकर आसन्न संकट बचना चाहते हैं तो हमें कोई न कोई सामान्य संवेग अवश्य ईजाद करना होगा | कमसे कम हमें इस सामान्य संवेग की अपरिहार्यता एवं महत्त्व को तो अवश्यमेव समझना होगा | यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है की हम इस महत्वपूर्ण तथ्य की तह मे नहीं पहुँच पाये हैं | जबकि हमारा पडोसी देश पाकिस्तान इस सामान्य संवेग के महत्व को तो पूरा पूरा समझता है ही , समय समय पर इसका लाभ भी उठाता रहा है | तभी तो दो बार भारत से युद्ध लड़ चुका है और  युद्ध की सी स्थिति पैदा कर भारत विरोधी सामान्य संवेग निरन्तर उत्पन्न कर रखा है | वैसे पाकिस्तान की स्थतियाँ इतनी ख़राब है कि भारत विरोधी संवेग के बगैर पाकिस्तान एक दिन भी नहीं रह सकता है और पाकिस्तान  को टूटने से कोई नहीं बचा सकता | पाकिस्तान को जब भी अपने अंदरूनी हालात पर खतरा मडराता महसूस होता है और ऐसी दशा मे उसके अस्तित्व पर ही गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है , पाकिस्तान जोर शोर से भारत बिरोधी अभियान छेड़ देता है और भारत विरोधी सामान्य संवेग के फलस्वरूप पाकिस्तान लोगो का ध्यान मूल समस्या से हटाने मे सफल हो जाता है | इस प्रकार सोची समझी सुनुयोजित रणनीति के तहत पाकिस्तान ऐसा करता आया है |
       उपरोक्त विवेचन से यह स्पस्ट है कि हमें भी पाकिस्तान की तरह सामान्य संवेग की महत्ता को समझना चाहिए | इसका यह तात्पर्य नहीं लगाना चाहिए कि हमें पाकिस्तान पर हमला बोल देना चाहिए | भारत और पाकिस्तान की परिस्थितिया भिन्न है और भारत के सामने पाकिस्तान जैसी कोई मज़बूरी भी नहीं है | चूँकि सामान्य संवेग नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह के हो सकते हैं | अतएव भारत को सकारात्मक संवेग की आवश्यकता है , जिसकी तलाश कर लागू किया जाना चाहिए | नकारात्मक संवेग प्रतिक्रियाबादी होते हैं , जिनका प्रभाव क्षणिक होता है और प्रतिक्रिया का तत्व समाप्त होते ही उस पर आधारित सामान्य संवेग स्वतः तिरोहित हो जाता है | सकारात्मक संवेग का प्रभाव स्थायी होता है |
        

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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