Monday, May 31, 2010

राष्ट्रीय एकता और जाति आधारित जनगणना

इस  समय राष्ट्रीय एकता एवं कौमी एकजहती का बोलबाला है | इस सम्बन्ध मे जगह जगह अनेकानेक जलसे , सेमिनार एवं सम्मलेन आये दिन होते हुए दिखाई पड़ते हैं | जबकि ऐसे आयोजनकर्ताओ को यह तक नहीं पाता होता कि राष्ट्रीय एकता और कौमी एकजहती के असली मायने क्या होते हैं ? राष्ट्रीय एकता किन तत्वों से व कैसे आती है और कौन से तत्व इसे समाप्त कर देते हैं या नुकसान पहुंचाते हैं ? ऐसे आयोजनों मे कदाचित उन बिन्दुओं पर चर्चा तक नहीं हो पाती है , जिनसे वस्तुतः राष्ट्रीय एकता बनती है|  ऐसे आयोजन  राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य मे शायद ही कोई योगदान दे पाते है |  इन्ही  बिन्दुओं से मै अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ |
     भारत विषमताओ का देश है और तमाम विषमताओ के बावजूद यहाँ एकता के मजबूत सूत्र भी विद्यमान हैं | अर्थात देश मे समता और विषमता दोनों तरह के बिंदु मौजूद हैं | मजहब , भाषा , खानपान , पहनावा , जाति और क्षेत्रीयता आदि विषमता के बिंदु हैं | भारत मे दुनिया के लगभग सभी मजहबों के लोग रहते हैं और सभी धर्मावलम्बी अपनी पूजा अर्चना करने मे पूर्ण स्वतन्त्र हैं | इसी प्रकार भारत अनेक भाषाभाषियों का देश है | गाँव गाँव मे बानी बदले कुएं कुएं पर  पानी की कहावत भारत पर पूर्णतया चरितार्थ है | अलग अलग जगहों पर बानी अर्थात भाषा के बदलने की प्रवृति है | अलग अलग जगहों मे मानव स्वभाव एवं आदत के कारण खानपान मे अंतर की स्थिति देखने को मिलती है |
 पहनावा भी स्थानीय जरुरत एवं प्रवृति के अनुसार होता है | भारतीय परिवेश मे जाति और क्षेत्रीयता आदि मे अंतर होना भी स्वाभाविक होता है | विषमता के यह बिंदु अनिवार्यता  बरक़रार रहेंगे ही , जरुरत बस इतनी है कि इनके प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाया जाय , ताकि राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य मे इनसे संभावित क्षति को रोककर इनका लाभ लिया जा सके | वस्तुतः इन विषमता के बिन्दुओ पर बल देने के बजाय उन्हें नजरंदाज करना ही सर्बहितकारी होता है | इसी सिद्धांत का पालन करने से राष्ट्रीय एकता को बढावा मिलेगा |
      इसी प्रकार समानता के कतिपय बिंदु हैं , जिनपर निरन्तर बल दिए जाने की आवश्यकता है | समानता के यही बिंदु हमारी भावनात्मक एकता के मुख्य आधार होते हैं और यही पूरे देशवासियों को एकता के सूत्र मे पिरो कर रखते है | राष्ट्रीय एकता के सम्मेलनों व जलसों तथा कौमी एकता सम्बन्धी कार्यक्रमों मे इन्ही समता मूलक बिन्दुओं पर बल दिया जाना चाहिए और इन्ही बिन्दुओं  तक चर्चा को सीमित रखना चाहिए | तभी हम अपनी राष्ट्रीय एकता को मजबूत बना सकते हैं | इसके ठीक बिपरीत ऐसे जलसों मे उन्ही बिन्दुओ पर बल दिए जाते हैं , जो विषमता मूलक होने के कारण यह हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए घातक ही सिद्ध होते हैं | इन जलसों के आयोजको को सामान्यतया यह तक नहीं पाता होता कि राष्ट्रीय एकता कैसे आती है और इसे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए | अतयव ऐसे अति संवेदनशील प्रकरण मे पूरी सतर्कता बरतना आवश्यक है |
      यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमने क्षेत्रीयता एवं भाषा को बल देते हुए भाषा के आधार पर राज्यों का गठन कर लिया | यह स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी गलती थी और   इस निर्णय ने राष्ट्रीय एकता को बहुत कमजोर किया | खैर जो हो गया सो हो गया , हमें अब से भाषा पर बल देना बंद कर देना चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि कम से कम अब तो हमें भाषाई मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए | इसे हमारी पिछली गलतियों के परिप्रेक्ष्य मे प्रायश्चित मानना चाहिए | यहाँ मै पुनः इस बात पर बल देना चाहूँगा कि भाषा हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम है और मातृभाषा तो हम मा के दूध के साथ संस्कार के रूप मे प्राप्त करते हैं | जैसे हम अपनी मा के प्रति कृतग्य रहकर मा की आजीवन सेवा करते हैं , उसी प्रकार का भाव अपनी मातृभाषा के प्रति होना चाहिए और हमें मातृभाषा की आजीवन सेवा करनी चाहिए | पर अतिशय मातृभाषा प्रेम मे भारत माता का कोई अहित नहीं होना चाहिए और यदि हमारे पुर्बजो द्वारा कोई गलती हो गयी है तो इसका भूल सुधार हमें ही करना होगा | हमारे नेताओं की पहली और सबसे बड़ी गलती थी मजहब के आधार पर देश का बटवारा किया जाना | जिसकी पीड़ा भारत और पाकिस्तान के अधिकांश लोगो को आज भी कष्ट देती रही है और आगे सदियों तक कष्ट देती रहेगी |
 आज राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य मे हम दूसरी सबसे बड़ी गलती दोहराने जा रहे है | वह है जाति , जो विषमता का कारक तत्व है , पर बल दिया जाना | जैसा पहले कहा जा चुका है ,  विषमता के बिन्दुओं पर बल देने के बजाय हमें इन्हें नजरंदाज करना चाहिए | इससे राष्ट्रीय एकता को सबसे ज्यादा नुकसान होता है और ऐसा हो भी चुका है | अतः जाति आधारित जनगणना कराना उपरोक्तानुसार स्वतन्त्र भारत की दूसरी बार होने वाली सबसे बड़ी गलती होने जा रही है | ऐसा कराना राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत घातक एवं आत्महत्या के समान सिद्ध होगा | आज हर राजनितिक दल मे जातिगत गणित को चुनाव मे टिकट देते समय देखा जाता है | परन्तु आज हमें यह देखना चाहिए कि जाति पर आधारित जनगणना कराने की मांग कराने वाले कौन लोग हैं और ऐसी मांग करने के पाछे उनकी मंशा  क्या है ? क्या ऐसा कराना राष्ट्रीय एकता के लिए हितकर होगा ? कुछ दलों तथा लोगो द्वारा समाज मे जतिबाद का जहर बोकर समाज को विषाक्त कर रखा गया है और जातिबाद का सहारा लेकर राजनीति की अपनी रोटी सेंक रहे हैं | महाराष्ट्र मे राज ठाकरे का उदाहरण सामने है जो भाषाई जहर की खेती बारी कर रहे हैं | इससे वो कौन सी फसल उगाना चाहते हैं , यह वही जाने ? जाति आधारित जनगणना होने के बाद देश के अलग अलग हिस्सों मे न जाने कितने राजठाकरे उत्पन्न हो जायेगे | ऐसी स्थिति मे हम कल्पना कर सकते हैं कि राष्ट्रीय एकता कितनी रह पायेगी और यह अकेले राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुचने वाला सबसे बड़ा कदम सिद्ध होगा |  अतः सरकार को इस अति संवेदनशील मुद्दे पर सुविचारित व दूरदर्शी निर्णय लेना चाहिए ,  ताकि यह भारत की सबसे बड़ी भूल न बनने पाये |           


अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

1 comment:

  1. जाति आधारित आरक्षण नीति को स्वीकार कर लिये जाने मात्र से जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता सिद्ध हो जाति है। जो लोग जाति आधारित जनगणना का विरोध करते हैं और जाति आधारित आरक्षण का लाभ स्वीकार करते हैं वे अराजकता फैलाने के लिए आग में घी का काम कर रहे हैं। आरक्षण की नीति का मूल्यांकन करने के लिए आधारभूत जातीय सांख्यिकी से परहेज करना कौनसी बुद्धिमानी है?

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