Friday, May 28, 2010

नदियों पर बांध निर्माण के हानि लाभ की गणित

नदियों पर बांध निर्माण करना विकास का सूचक माना जाता है | यह कदाचित इसलिए माना जाता है कि बांध बनाकर हम नदी के जल को रोककर जलाशय मे एकत्र कर लेते हैं , जिससे जलविद्युत् बनायीं जाती है और नहरे बनाकर सिचाई हेतु खेतो को पानी उपलब्ध कराया जाता है | इन दो लाभों की बिना पर हम बांध निर्माण को विकास का मानक समझ बैठते हैं | भाखड़ा नांगल और रिहंद आदि अनेक बाँधों को इसी कारण बिकास का पर्यायवाची समझा जाता है | जबकि वास्तविकता इसके बिलकुल बिपरीत होती है , क्योंकि हमारी संकुचित बुद्धि केवल लाभ ही देख पाती है और उक्त लाभ को पाने हेतु दी गयी कीमत की तरफ हमारी नजर नहीं जाती है
बस्तुतः लाभ लागत अनुपात की कसौटी पर प्रत्येक परियोजना की संरचना की जानी चाहिए
इस प्रकार बांध निर्माण सबंधी समस्त परियोजनाओं की संरचना के समय सबसे जरुरी लागत का ध्यान ही नहीं रखा गया प्रतीत होता है | तभी बाँध निर्माण संबंधित समस्त योजनायें , जिन्हें बरदान समझा गया था , वस्तुतः अभिशाप साबित हुयी है |
बांध के जलाशय मे पानी भरने के उद्देश्य से नदी के प्रवाह को हम सामान्यतया अवरुद्ध कर देते हैं | ऐसी स्थिति मे एक तरह से नदी की हत्या हो जाती है , परिणामतः नदी एक नाला बन कर रह जाती है | नदी मे प्रवाह के साथ पानी न आने के कारण काफी बालू व सिल्ट , जिसे बांध बनने से पहले का नदी का तेज बहाव अपने साथ बहा ले जाता था , नदी के पेटे मे जमा हो जाता था | जिससे नदी की जल धारक क्षमता उत्तरोत्तर घटती जाती है
इस प्रकार २० लाख क्यूसेक जल धारक क्षमता वाला उक्त नदी की जल धारक क्षमता घटते घटते दस साल मे २ लाख क्यूसेक ही रह जाती है | जबकि बांध को टूटने से बचाने के लिए ५० और कभी कभी १०० लाख क्यूसेक पानी छोड़ने की मज़बूरी आ जाती है | इससे भीषण बाढ़ और तबाही की बिभीषिका झेलना पड़ता है | इससे होने वाला नुकसान बांध से उत्पन्न होने वाली बिजली तथा नहर के पानी से मिलने वाले लाभ का कई (सैकड़ो) गुना अधिक होता है | बाढ़ से होने वाली छति एवं लोगो को होने वाली असुविधाओं के दृष्टिगत यह बाँध परियोजना बहुत बड़े घटे का सौदा साबित होती है |
नदी प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग है और प्रकृति अपने ऊपर नियंत्रण करके पालतू बनाये जाने सम्बन्धी प्रयास को किसी दशा मे बर्दास्त नहीं कर सकती है और प्रकृति द्वारा अपने गुस्से का इजहार बाढ़ आदि के रूप मे करना भी स्वाभाविक है | अतः मानव प्रयासों द्वारा प्रकृति को गुलाम बनाये जाने की कार्यवाही किसी भी दशा मे नहीं की जानी चाहिए , ताकि प्रकृति के क्रोध का सामना करने की नौबत न आवे | पिछली भूलो का सुधार करने के बजाय हमारी सरकारें नदियों को जोड़ने की योजना बना रही थी जो पहले की गयी भूल की तुलना मे बहुत बड़ी भूल है
मनुष्य को चाहिए कि वह प्रकृति के अनुकूल आचरण करते हुए प्रकृति का आशीर्वाद व बरदान प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए |
बुंदेलखंड मे नदियों के बजाय प्राकृतिक जल श्रोतो पर आधारित बाँध परियोजनाएं बनाकर लागू की जा रही हैं
अतयव उपरोक्तानुसार अनुभव के आधार पर पुनर्समीक्षा की जानी चाहिए | गुंता बाँध व रसिन बाँध सहित प्राकृतिक जल श्रोतो पर निर्भर बांधो को इस दृष्टि से देखे जाने की आवश्यकता है कि हमारी अधिक प्राथमिकता पीने के पानी की है अथवा सिचाई के लिए पानी की है | मेरी राय मे प्राकृतिक जल श्रोतो पर आधारित परियोजना पेयजल न कि सिचाई क़ी होनी चाहिए | वर्षा ऋतु मे बरसाती झरनों पर आधारित जल विद्युत् परियोजना पर भी विचार किया जा सकता है |



अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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