Tuesday, August 10, 2010

हिंसा बनाम अहिंसा : जगन्नाथ सिंह

मानव सभ्यता के आदि प्रश्नों मे से एक प्रश्न यह भी रहा है कि मनुष्य को किसे मारना चाहिए और किसे नहीं मारना चाहिए | अर्थात जीवन मे हिंसा का क्या स्थान होना चाहिए ? इस दिशा मे उत्तर खोजने के बहुत सारे प्रयास हुए ,पर सफलता नहीं मिलने से यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है |
     इस प्रश्न का उत्तर तलाश करने की प्रक्रिया मे हम सबसे पहले समस्त जीवों को तीन श्रेणियों मे वर्गीकृत करते हैं | पहली श्रेणी मे वे सभी जीव आवेंगे जो मनुष्यों के मित्र हैं , जिन्हें हम जातिमित्र कह सकते हैं | जातिमित्र श्रेणी मे मनुष्य के अलावा वे पशु भी आ जावेंगे जो मनुष्य के लिए प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उपयोगी हैं | दूसरी श्रेणी के जीव जातिशत्रु कहलायेगे , क्योकि ये मनुष्य जाति के लिए खतरनाक होते हैं और जिनसे मनुष्य जाति को कभी व कही भी नुकसान पहुँच सकता है | इसके उदाहरण सांप ,शेर आदि जानवर तो है ही ,युद्धों मे दुश्मन भी इसी श्रेणी मे आते हैं | तीसरी श्रेणी के जीवों को हम निरपेक्ष जीव कह साकते हैं | ऐसे जीव सामान्यतया हमारे मित्र होते हैं , पर उनके कभी कभार हमारे शत्रु  बन जाने की सभावना बराबर बानी रहती है | ऐसे जीव जब तक हमारे लिए उपयोगी बने रहते हैं और जब तक मनुष्य जाति  को उनसे किसी प्रकार की हानि  होने की सम्भावना नहीं रहती , तब तक वे मनुष्य जाति के मित्रवत माने जावेंगे और जिस क्षण वे मनुष्य जाति को नुकसान पहुँचाने को उद्धत होते हैं तो उन्हें शत्रुवत माना जावेगा | कुत्ता जब तक पागल होकर लोगों को काटने की स्थिति मे नहीं होता ,वह जातिमित्र कहलायेगा ,इसके बिपरीत स्थिति मे वही कुत्ता जातिशत्रु माना जावेगा |
      अब इस प्रश्न का उत्तर स्वतः आ जाता है कि जातिमित्र को कभी और किसी भी  दशा  मे नहीं मारा जाना चाहिए | इसके अलावा जातिशत्रु को प्रत्येक दशा मे मार डालना चाहिए और किसी भी दशा मे उसे जीवित नहीं छोड़ना चाहिए , क्योकि उदासीनता या दयावश अपने को बचाते हुए जाति शत्रु को जीवित छोड़ दिए जाने पर वह जतिशत्रु आपकी जाति के किसी व्यक्ति को हंज पहुँचा सकता है | पर जातिशत्रु को उसके घर , जहाँ रहकर वह निरपेक्ष जीव की भांति रहकर न तो हमें नुकसान पहुँचाता है और न ही उससे किसी प्रकार के नुकसान की संभावना नही होती है | कहने का अर्थ यही है कि जंगल मे जाकर सारे शेरों को नहीं मार डालना चाहिए और न ही सपेरों की मदद से सारे साँपों को उनकी  बिलों से बाहर निकलवाकर मारना चाहिए | निरपेक्ष जीवों पर सतर्क दृष्टि रखते हुए उनका भरपूर लाभ लिया जाना चाहिए और उनके शत्रु रूप अख्तियार करते ही उन्हें मार देना चाहिए |
    यह एक सार्बभौम उत्तर है जो सर्बकालिक ,सर्बदेशिक तथा सर्बपात्रिक है और हिंसा व अहिंसा का वास्तविक मर्म स्पष्ट करता है |  
 

अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम के लिए श्री जगन्नाथ सिंह पूर्व जिलाधिकारी, (झाँसी एवं चित्रकूट) द्वारा

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